बेदिनी बुग्याल की वेदना समझो सरकार, बाबा मोहन उत्तराखंडी तुम्हें पुकार रहे हैं

डॉ हरीश मैखुरी

उत्तराखंड के चमोली जिले में हमने इतने सुन्दर बेदनी बुग्याल जैसे पर्यटक स्थल को उपेक्षित छोड़ रखा है। माउंट आबू इसके सामने कुछ भी नहीं। लेकिन सौन्दर्यी करण का मतलब हमारे नेता सीमेंट कंक्रीट पोतना समझते हैं। इतने सुन्दरतरम् प्राकृतिक सौंदर्य का क्या सौन्दर्यी करण करना चाहते हैं। यहां बस छोटे छोटे लकड़ी पत्थर के 4-5 हट बनें बस उससे ज्यादा पर्यटक यहां रोज आयेंगे तो बेनीताल वैसे ही बर्बाद हो जायेगा। उत्तराखंड को अपनी तरह के पर्यटन यानी वर्जिन ब्यूटी के नये कानसैप्ट पर विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने की योजना पर काम करने के लिए प्लान करना चाहिए। बेदिनी बुग्याल अचानक तब चर्चा में आया जब हमारे बीर योद्धा बाबा मोहन उत्तराखंडी ने गैरसैंण स्थाई राजधानी के लिए 38 दिनों तक बेदनी बुग्याल स्थित एक कुटिया में आमरण अनशन कर के यहीं से आत्मोसर्ग किया था। तब मैने भुवन नौटियाल के साथ जाकर  बेदनी में उनकी कवरेज की थी। बाबा मोहन उत्तराखंडी ने वर्ष 1997 से आमरण अनशन से संघर्ष शुरू किया। 13 बारआमरण अनशन कर उन्होंने पहाड़ को एक करने में भी अहम भूमिका निभाई। वहीं शासन/प्रशासन (केंद्र व यूपी सरकारों) को उत्तराखंड निर्माण के बार-बार सोचने पर मजबूर किया। सरकारी नौकरी के साथ घर, परिवार को छोड़कर उन्होंने पहाड़ में आंदोलन की एक नई रूपरेखा रची। नवंबर 2000 को उत्तराखंड देश के नक्शे में नए राज्य के रूप में अस्तित्व में आया, लेकिन गैरसैंण राजधानी का सपना साकार होना अब भी शेष था। उन्होंने अपना आखिरी आमरण अनशन बेनीताल में 2 जुलाई 2004 को शुरू किया। 38 वें दिन 8 अगस्त को कर्णप्रयाग  तहसील प्रशासन पुलिस उन्हें जबरन रात को उठाकर पैदल घसीटते हुए दूसरे रास्ते आदिबदरी लायी। वहां से कर्णप्रयाग चिकित्सालय लाई परन्तु चिकित्सालय के डाॅ.    राजीव शर्मा ने बताया कि यहाँ आते आते उन पर जान नहीं रह गई थी।तब भी मैंने कर्णप्रयाग चिकित्सालय से भी सहारा समय चैनल पर लाईव किया था। आज यदि कहीं उनकी एक आध फोटो और वीडियो मिलती है तो वही वीडियो और फोटुवें हैं। आज हमारे नेता उनका बलिदान भूल गये। और गैरसैंण की हत्या करके देहरादून को नरक बनाने में लगे हैं। देहरादून में भी नहरें पाट कर सड़क और जंगल काट कर कंक्रीट के स्ट्रक्चर उगाये जा रहे हैं कालोनाईजर  बिल्डरों और शराब लाबी का काॅकस उत्तराखंड चलाता है।…मोहन उत्तराखंडी के प्राणोत्सर्ग का महीना अगस्त आने वाला है, वीरेंद्र मिंगवाल के अलावा अब उनकी मौत की याद भी अब कितनों को है? सत्ता में आने वाले तो उन्हें भुलाना ही बेहतर समझते हैं। बेदनी बुग्याल की इसी वेदना से दिल भर आया। बेदनी झील में बहुमूल्य औषधि “वच” उगी हुई है। जिसे स्थानीय लोग बाजू कहते हैं। यह बाजू जल संरक्षण और वाटर प्योरिफिकेशन तो करता ही है साथ ही हाक डाक पेट और चर्म रोगों की औषधि भी है। बसर्ते किसी व्यापारी की नजर ना लगे।