आज का पंचाग आपका राशि फल, हरि प्रबोधिनी, देवोत्थान, देवउठनी एकादशी, तुलसी विवाह, उत्तराखण्ड का लोकपर्व ‘यकादशी बग्वाल’ ‘ईगास’ का महात्म्य

🚩🌺🙏 महर्षि पाराशर पंचांग 🙏🌺

       🌺🙏अथ पंचांगम् 🙏🌺

*दिनाँक:-23/11/2023, गुरुवार*

एकादशी, शुक्ल पक्ष

तिथि——– एकादशी 21:01:24 तक 

पक्ष———————— शुक्ल

नक्षत्र—-उत्तराभाद्रपदा 17:14:57

योग————– वज्र 11:51:59

करण———– वणिज 10:01:48

करण——- विष्टि भद्र 21:01:24

वार———————– गुरूवार

माह———————– कार्तिक

चन्द्र राशि——————- मीन

सूर्य राशि—————– वृश्चिक

रितु————————- हेमंत

आयन—————– दक्षिणायण

संवत्सर—————— शोभकृत

संवत्सर (उत्तर)—————– पिंगल

विक्रम संवत—————- 2080 

गुजराती संवत————– 2080 

शक संवत——————-1945 

कलि संवत—————– 5124

दिल्ली

सूर्योदय————— 06:51:06 

सूर्यास्त—————- 17:23:32

दिन काल————–10:32:25 

रात्री काल————–13:28:22

चंद्रोदय—————- 14:43:58

चंद्रास्त—————- 27:26:58*

लग्न—- वृश्चिक 6°17′ , 216°17′

सूर्य नक्षत्र—————- अनुराधा 

चन्द्र नक्षत्र——— उत्तरा भाद्रपदा

नक्षत्र पाया——————– ताम्र 

*🚩💮🚩 पद, चरण 🚩💮🚩*

झ—- उत्तरभाद्रपदा 11:34:49

ञ—- उत्तरभाद्रपदा 17:14:57

दे—- रेवती 22:55:28

दो—- रेवती 28:36:24

*💮🚩💮 ग्रह गोचर 💮🚩💮*

        ग्रह =राशी , अंश ,नक्षत्र, पद

==========================

सूर्य= वृश्चिक 06:30, अनुराधा 1 ना 

चन्द्र= मीन 10:30 , उ o भा o 2 3 झ

बुध =वृश्चिक 24°:53′ ज्येष्ठा 3 यी

शु क्र=कन्या 22°05, हस्त’ 4 ठ

मंगल=वृश्चिक 04°30 ‘ अनुराधा’ 1 ना 

गुरु=मेष 13°30 ‘ भरणी , 1 ली 

शनि=कुम्भ 06°50 ‘ शतभिषा ,1 गो      

राहू=(व) मीन 28°50 रेवती , 4 ची 

केतु=(व) कन्या 28°50 चित्रा , 2 पो 

*🚩💮🚩 शुभा$शुभ मुहूर्त 🚩💮🚩

राहू काल 13:26 – 14:45 अशुभ

यम घंटा 06:51 – 08:10 अशुभ

गुली काल 09:29 – 10: 48 

अभिजित 11:46 – 12:28 शुभ

दूर मुहूर्त 10:22 – 11:04 अशुभ

दूर मुहूर्त 14:35 – 15:17 अशुभ

वर्ज्यम 28:36* – 30:07* अशुभ

💮गंड मूल 17:15 – अहोरात्र अशुभ

🚩पंचक अहोरात्र अशुभ

💮चोघडिया, दिन

शुभ 06:47 – 08:07 शुभ

रोग 08:07 – 09:26 अशुभ

उद्वेग 09:26 – 10:46 अशुभ

चर 10:46 – 12:05 शुभ

लाभ 12:05 – 13:25 शुभ

अमृत 13:25 – 14:45 शुभ

काल 14:45 – 16:04 अशुभ

शुभ 16:04 – 17:24 शुभ

🚩चोघडिया, रात

अमृत 17:24 – 19:04 शुभ

चर 19:04 – 20:45 शुभ

रोग 20:45 – 22:25 अशुभ

काल 22:25 – 24:06* अशुभ

लाभ 24:06* – 25:46* शुभ

उद्वेग 25:46* – 27:27* अशुभ

शुभ 27:27* – 29:07* शुभ

अमृत 29:07* – 30:48* शुभ

💮होरा, दिन

बृहस्पति 06:47 – 07:40

मंगल 07:40 – 08:33

सूर्य 08:33 – 09:26

शुक्र 09:26 – 10:19

बुध 10:19 – 11:12

चन्द्र 11:12 – 12:05

शनि 12:05 – 12:58

बृहस्पति 12:58 – 13:51

मंगल 13:51 – 14:45

सूर्य 14:45 – 15:38

शुक्र 15:38 – 16:31

बुध 16:31 – 17:24

🚩होरा, रात

चन्द्र 17:24 – 18:31

शनि 18:31 – 19:38

बृहस्पति 19:38 – 20:45

मंगल 20:45 – 21:52

सूर्य 21:52 – 22:59

शुक्र 22:59 – 24:06

बुध 24:06* – 25:13

चन्द्र 25:13* – 26:20

शनि 26:20* – 27:27

बृहस्पति 27:27* – 28:34

मंगल 28:34* – 29:41

सूर्य 29:41* – 30:48

*🚩 उदयलग्न प्रवेशकाल 🚩* 

वृश्चिक > 05:16 से 07:50 तक

धनु > 07:50 से 08:16 तक

मकर > 08:16 से 11:24 तक

कुम्भ > 11:24 से 12:56 तक

मीन > 12:56 से 14:18 तक

मेष > 14:18 से 16:06 तक

वृषभ > 16:06 से 18:04 तक

मिथुन > 18:04 से 20:12 तक

कर्क > 20:12 से 22:28 तक

सिंह > 22:28 से 00:30 तक

कन्या > 00: 30 से 04:00 तक

तुला > 03:00 से 05:16 तक

*नोट*– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। 

प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है। 

चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।

शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥

रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार।

अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥

अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।

उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।

शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।

लाभ में व्यापार करें ।

रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।

काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।

अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।

*💮दिशा शूल ज्ञान————-दक्षिण*

परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो घी अथवा केशर खाके यात्रा कर सकते है l

इस मंत्र का उच्चारण करें-:

*शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l*

*भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll*

*🚩 अग्नि वास ज्ञान -:*

*यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,*

*चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु ।*

*दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,*

*नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं ।।* *महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्*

*नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत् ।।*

  11 + 5 + 1 = 17 ÷ 4 = 1 शेष

 पाताल लोक पर अग्नि वास हवन के लिए अशुभ कारक है l

*🚩💮 ग्रह मुख आहुति ज्ञान 💮🚩*

सूर्य नक्षत्र से अगले 3 नक्षत्र गणना के आधार पर क्रमानुसार सूर्य , बुध , शुक्र , शनि , चन्द्र , मंगल , गुरु , राहु केतु आहुति जानें । शुभ ग्रह की आहुति हवनादि कृत्य शुभपद होता है

 शनि ग्रह मुखहुति

*💮 शिव वास एवं फल -:*

  11 + 11 + 5 = 27 ÷ 7 = 6 शेष

क्रीड़ायां = शोक , दुःख कारक

*🚩भद्रा वास एवं फल -:*

*स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।*

*मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।*

प्रातः 10:03 से रात्रि 21:03

मृत्यु लोक = सर्वकार्य विनाशिनी 

*💮🚩 विशेष जानकारी 🚩💮*

 *देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत (सर्वेषां)

*देवोत्थान एकादशी (देव उठनी)

* तुलसी सालिग्राम विवाहोत्सव 

* भीष्म पंचक प्रारम्भ

* सर्वार्थ सिद्धि योग 15:15 से 

*💮🚩💮 शुभ विचार 💮🚩💮*

सत्कुले योजयेत्कन्यां पुत्रं विद्यासु योजतेत् ।

व्यसने योजयेच्छत्रुं मित्रं धर्मे नियोजयेत् ।।

।। चा o नी o।।

लड़की का बयाह अच्छे खानदान मे करना चाहिए. पुत्र को अचछी शिक्षा देनी चाहिए, शत्रु को आपत्ति और कष्टों में डालना चाहिए, एवं मित्रों को धर्म कर्म में लगाना चाहिए.

*🚩💮🚩 सुभाषितानि 🚩💮🚩*

गीता -: सांख्ययोग अo-02

य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्‌ ।

उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ॥,

जो इस आत्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसको मरा मानता है, वे दोनों ही नहीं जानते क्योंकि यह आत्मा वास्तव में न तो किसी को मारता है और न किसी द्वारा मारा जाता है॥,19॥,

*💮🚩 दैनिक राशिफल 🚩💮*

देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।

नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।।

विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे।

जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत ।।

🐏मेष

भेंट व उपहार की प्राप्ति होगी। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। रोजगार में वृद्धि होगी। साझेदारी में नवीन प्रस्ताव प्राप्त हो सकेंगे। शत्रु सक्रिय रहेंगे। गर्व-अहंकार को दूर करें। राजनीतिक व्यक्तियों से लाभकारी योग बनेंगे। मनोबल बढ़ने से तनाव कम होगा।

🐂वृष

बकाया वसूली के प्रयास सफल रहेंगे। यात्रा सफल रहेगी। रोजगार में वृद्धि होगी। जोखिम न लें। अपने व्यसनों पर नियंत्रण रखें। पत्नी के बतलाए रास्ते पर चलने से लाभ की संभावना बनती है। यात्रा से लाभ। वाहन-मशीनरी खरीदी के योग हैं। व्यवसाय में अड़चनें आएंगी।

👫मिथुन

फालतू खर्च होगा। दुष्टजन हानि पहुंचा सकते हैं। विवाद को बढ़ावा न दें। चिंता तथा तनाव रहेंगे। व्यावसायिक योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं हो पाएगा। परिवार की चिंता रहेगी। आय से व्यय अधिक होंगे। अजनबियों पर विश्वास से हानि हो सकती है।

🦀कर्क

धर्म-कर्म में रुचि रहेगी। कोर्ट व कचहरी के कार्य बनेंगे। व्यवसाय ठीक चलेगा। चोट व रोग से बचें। कार्य-व्यवसाय में लाभ होने की संभावना है। दांपत्य जीवन में अनुकूलता रहेगी। सामाजिक समारोहों में भाग लेंगे। सुकर्मों के लाभकारी परिणाम मिलेंगे।

🐅सिंह

प्रतिष्ठा बढ़ेगी। रोजगार में वृद्धि होगी। यात्रा का शुभ योग होने के साथ ही कठिन कार्य में भी सफलता मिल सकेगी। रिश्तेदारों से संपत्ति संबंधी विवाद हो सकता है। व्यापार-नौकरी में लाभ होगा। पुराना रोग उभर सकता है। प्रयास सफल रहेंगे।

🙎‍♀️कन्या

पुराने मित्र व संबंधियों से मुलाकात होगी। शुभ समाचार मिलेंगे। मान बढ़ेगा। प्रसन्नता रहेगी। मन में उत्साह रहेगा, जिससे कार्य की गति बढ़ेगी। आपके कार्यों को समाज में प्रशंसा मिलेगी। भागीदारी में आपके द्वारा लिए गए निर्णयों से लाभ होगा।

⚖️तुला

प्रेम-प्रसंग में अनुकूलता रहेगी। कानूनी अड़चन दूर होगी। भौतिक सुख-सुविधाओं में वृद्धि होगी। स्वास्थ्य संबंधी समस्या हल हो सकेगी। व्यापार-व्यवसाय अच्छा चलेगा। अपनी वस्तुएँ संभालकर रखें। रुका धन मिलेगा। भ्रम की स्थिति बन सकती है।

🦂वृश्चिक

जीवनसाथी से सहयोग मिलेगा। वाहन व मशीनरी के प्रयोग में सावधानी रखें। विवाद को बढ़ावा न दें। मितव्ययिता को ध्यान में रखें। कुटुंबियों से संबंध सुधरेंगे। शत्रुओं से सावधान रहें। व्यापार लाभप्रद रहेगा। खर्चों में कमी करें। सश्रम किए गए कार्य पूर्ण होंगे।

🏹धनु

स्वादिष्ट भोजन का आनंद मिलेगा। विद्यार्थी वर्ग सफलता हासिल करेगा। व्यवसाय ठीक चलेगा। अच्छे लोगों से भेंट होगी जो आपके हितचिंतक रहेंगे। योजनाएं फलीभूत होंगी। नौकरी में पदोन्नाति के योग हैं। आलस्य से बचकर रहें। परिवार की मदद मिलेगी।

🐊मकर

रोजगार में वृद्धि होगी। नौकरी में अधिकार बढ़ सकते हैं। भूमि व भवन संबंधी योजना बनेगी। अर्थ संबंधी कार्यों में सफलता से हर्ष होगा। सुखद भविष्य का स्वप्न साकार होगा। विचारों से सकारात्मकता बढ़ेगी। दुस्साहस न करें। व्यापार में इच्छित लाभ होगा।

🍯कुंभ

नई योजना बनेगी। कार्यप्रणाली में सुधार होगा। मान-सम्मान मिलेगा। नेत्र पीड़ा हो सकती है। अधिकारी वर्ग विशेष सहयोग नहीं करेंगे। ऋण लेना पड़ सकता है। यात्रा आज नहीं करें। परिवार के कार्यों को प्राथमिकता दें। आपकी बुद्धिमत्ता सामाजिक सम्मान दिलाएगी।

🐟मीन

किसी के भरोसे न रहकर अपना कार्य स्वयं करें। महत्वपूर्ण कार्यों में हस्तक्षेप से नुकसान की आशंका है। परिवार में तनाव रहेगा। व्यापार-व्यवसाय मध्यम रहेगा। कष्ट, भय, चिंता व बेचैनी का वातावरण बन सकता है। दु:खद समाचार मिल सकता है, धैर्य रखें।

प्रबोधिनी, देवोत्थान, देवउठनी एकादशी, तुलसी विवाह उत्तराखण्ड का लोकपर्व यकादशी बग्वाल ईगास की शुभकामनाएं 

     कार्तिक मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को हरि प्रबोधिनी, देवोत्थान, देवउठनी एकादशी कहा जाता है। 🌷 *देवप्रबोधिनी एकादशी व्रत* 

🌷 *देवउठनी एकादशी व्रत* 

🌷 *तुलसी विवाह व्रत* 

देवप्रबोधिनी एकादशी को देव उठनी एकादशी और देवुत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है इस वर्ष *देवप्रबोधिनी एकादशी आज 23 नवम्बर, 2023 गुरुवार के दिन मनाई जाएगी* 🙏

  👉 *देव प्रबोधिनी एकादशी का व्रत कर करने से सभी एकादशियों के व्रत का फल मिल जाता है और व्यक्ति सुख तथा वैभव प्राप्त करता है और उसके पाप नष्ट हो जाते हैं* 🙏

 👉 *पद्मपुराण के अनुसार इस दिन उपवास करने से सहस्त्र एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है। जप, होम, दान सब अक्षय होता है। यह उपवास हजार अश्वमेध तथा सौ राजसूय यज्ञों का फल देनेवाला, ऐश्वर्य, सम्पत्ति, उत्तम बुद्धि, राज्य तथा सुख प्रदाता है। मेरु पर्वत के समान बड़े-बड़े पापों को नाश करनेवाला, पुत्र-पौत्र प्रदान करनेवाला है। इस दिन गुरु का पूजन करने से भगवान प्रसन्न होते हैं व भगवान विष्णु की कपूर से आरती करने पर अकाल मृत्यु नहीं होती।* 

👉 *देव उठनी एकादशी का महत्व* 👇

कार्तिक शुक्ल एकादशी को देवोत्थनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। *इस दिन से विवाह, गृह प्रवेश तथा अन्य सभी प्रकार के मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते हैं।* एक पौराणिक कथा में उल्लेख मिलता है कि *भगवान श्रीविष्णु* ने भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को महापराक्रमी *शंखासुर नामक राक्षस को लम्बे युद्ध के बाद समाप्त किया था और थकावट दूर करने के लिए क्षीरसागर में जाकर सो गए थे* और *चार मास पश्चात फिर जब वे उठे तो वह दिन “देवोत्थनी एकादशी” कहलाया* । इस दिन भगवान विष्णु का सपत्नीक आह्वान कर विधि विधान से पूजन करना चाहिए। इस दिन उपवास करने का विशेष महत्व है।

👉 *पूजा विधि* 👇

इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा स्थल को साफ करें और आंगन में चौक बनाकर भगवान श्रीविष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करें। *दिन में चूंकि धूप होती है इसलिए भगवान के चरणों को ढंक दें।* 

👉रात्रि के समय घंटा और शंख बजाकर निम्न मंत्र से भगवान को जगाएँ-:👇

*‘उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।*

*त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥’*

*‘उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।*

*गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥’*

*‘शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।’*

*‘उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।*

इसके बाद भगवान को जल, दूध, पंचामृत शहद, दही, घी, शक्कर

हल्दी मिश्रित जल, तथा अष्ट गंध से स्नान कराएं इसके बाद नये वस्त्र अर्पित करें फिर पीले चंदन का तिलक लगाएँ, श्रीफल अर्पित करें, नैवेद्य के रूप में विष्णु जी को ईख, अनार, केला, सिंघाड़ा आदि अर्पित करने चाहिए। फिर कथा का श्रवण करने के बाद आरती करें और बंधु बांधवों के बीच प्रसाद वितरित करें।

 *प्रबोधिनी एकादशी व्रत वाले दिन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के विविध मंत्र भी पढ़े जाते हैं* । 

👉 *भगवान श्रीविष्णु को तुलसी अर्पित करें* 👇

पुराणों में उल्लेख मिलता है कि *स्वर्ग में भगवान श्रीविष्णु के साथ लक्ष्मीजी का जो महत्व है वही धरती पर तुलसी का है* । इसी के चलते भगवान को जो व्यक्ति तुलसी अर्पित करता है उससे वह अति प्रसन्न होते हैं। बद्रीनाथ धाम में तो यात्रा मौसम के दौरान श्रद्धालुओं द्वारा तुलसी की करीब दस हजार मालाएं रोज चढ़ाई जाती हैं। इस दिन श्रद्धालुओं को चाहिए कि जिस गमले में तुलसी का पौधा लगा है उसे गेरु आदि से सजाकर उसके चारों ओर मंडप बनाकर उसके ऊपर सुहाग की प्रतीक चुनरी को ओढ़ा दें। इसके अलावा गमले को भी साड़ी में लपेट दें और उसका श्रृंगार करें। इसके बाद सिद्धिविनायक श्रीगणेश सहित सभी देवी−देवताओं और श्री शालिग्रामजी का विधिवत पूजन करें। एक नारियल दक्षिणा के साथ टीका के रूप में रखें और भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसीजी की सात परिक्रमा कराएं। इसके बाद आरती करें।

👉 *देवउठनी एकादशी व्रत कथा* 👇

भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा को अपने रूप पर बड़ा गर्व था। वे सोचती थीं कि रूपवती होने के कारण ही श्रीकृष्ण उनसे अधिक स्नेह रखते हैं। एक दिन जब नारदजी उधर गए तो सत्यभामा ने कहा कि आप मुझे आशीर्वाद दीजिए कि अगले जन्म में भी भगवान श्रीकृष्ण ही मुझे पति रूप में प्राप्त हों। *नारदजी बोले, ‘नियम यह है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी प्रिय वस्तु इस जन्म में दान करे तो वह उसे अगले जन्म में प्राप्त होगी* अतः *तुम भी श्रीकृष्ण को दान रूप में मुझे दे दो तो वे अगले जन्मों में जरूर मिलेंगे।’ सत्यभामा ने श्रीकृष्ण को नारदजी को दान रूप में दे दिया।* जब नारदजी उन्हें ले जाने लगे तो अन्य रानियों ने उन्हें रोक लिया। इस पर नारदजी बोले, ‘यदि श्रीकृष्ण के बराबर सोना व रत्न दे दो तो हम इन्हें छोड़ देंगे।’

तब तराजू के एक पलड़े में श्रीकृष्ण बैठे तथा दूसरे पलड़े में सभी रानियां अपने−अपने आभूषण चढ़ाने लगीं, पर पलड़ा टस से मस नहीं हुआ। यह देख सत्यभामा ने कहा, यदि मैंने इन्हें दान किया है तो उबार भी लूंगी। यह कह कर उन्होंने अपने सारे आभूषण चढ़ा दिए, पर पलड़ा नहीं हिला। वे बड़ी लज्जित हुईं। सारा समाचार *जब रुक्मिणी जी ने सुना तो वे तुलसी पूजन करके उसकी पत्ती ले आईं। उस पत्ती को पलड़े पर रखते ही तुला का वजन बराबर हो गया* । नारद तुलसी दल लेकर स्वर्ग को चले गए। रुक्मिणी श्रीकृष्ण की पटरानी थीं। *तुलसी के वरदान के कारण ही वे अपनी व अन्य रानियों के सौभाग्य की रक्षा कर सकीं। तब से तुलसी को यह पूज्य पद प्राप्त हो गया कि श्रीकृष्ण उसे सदा अपने मस्तक पर धारण करते हैं* । इसी कारण इस एकादशी को तुलसीजी का व्रत व पूजन किया जाता है🙏

👉 *पद्मपुराण के अनुसार* 👇

 *एकादशी के दिन यदि एक ही आँवला मिल जाये तो उसके सामने गंगा, गया, काशी और पुष्कर आदि तीर्थ कोई विशेष महत्व नहीं रखते एकादशी के दिन आंवले के रस से स्नान जरूर करें (आंवले के रस को नहाने के पानी में थोड़ा सा मिलाकर स्नान करें) एवं प्रभु श्री हरि विष्णु को आंवला अर्पित करें।*

(आंवले के रस की बोतल पतंजलि आयुर्वेदिक स्टोर पर या अन्य आयुर्वेदिक स्टोर पर आप को मिल जाएगी) 

🌷 *विशेष* 🌷 

*एकादशी के पूरे दिन एवं रात्रि मे जागरण के लिए जहां तक संभव हो वहां तक टीवी चैनल पर प्रसारित होने वाली सभी धार्मिक- आध्यात्मिक चैनल जैसे कि आस्था टीवी चैनल ,आस्था भजन चैनल, संस्कार चैनल, सत्संग चैनल ,शुभ चैनल, धर्म संदेश चैनल {अरिहंत चैनल} ,साधना चैनल, संतवाणी चैनल, ईश्वर चैनल, दिशा चैनल ,श्रद्धा चैनल , वैदिक चैनल, दिव्य चैनल, शरणम चैनल, आस्था गुजराती चैनल विगेरे…विगेरे… विविध प्रकार की सभी स्वदेशी चैनल ……….जो कि पूरे दिन और रात्रि में यानी कि 24 घंटे आरती,भजन- कीर्तन,श्री हनुमानचालीसा, श्री सुंदरकांड ,श्रीमद् भागवत कथा , श्री गीता ज्ञान, श्री शिव महापुराण कथा, श्री राम कथा, श्री देवी भागवत कथा, भक्तमाल कथा जो कि कई सालों से निरंतर प्रसारित करती है …..हम यही सभी धार्मिक चैनलों के साथ जुड़कर रात्रि जागरण के लिए …या फिर अपने समय के अनुकूल कभी भी सभी धार्मिक चैनलों के साथ जुड़ के भक्ति में लीन हो सकते हैं🙏* 

 *मेरा🙋‍♂️ निवेदन👏👏 रहेगा कि सभी सनातन प्रेमी हमारी स्वदेशी धार्मिक चैनलों का उपयोग अवश्य करें और भावभक्ति में लीन हो जाए और बाकी लोगों को भी ज्यादा से ज्यादा जोड़ें*🙏 

🌷 *एकादशी मंत्र* 🌷

| *राम रामेति रामेति |* 

| *रमे रामे मनोरमे |* 

| *सहस्त्रनाम ततुल्यं |* 

| *राम नाम वरानने |* 

 एकादशी के दिन इस मंत्र👆 का जप करने से *श्री विष्णु सहस्त्रनाम जप के समान* पुण्य फल प्राप्त होता है🙏

*नामसंकीर्तन यस्य सर्वपापप्रणाशनम्।* 

 *प्रणामो दुःखशमनस्तं नमामि हरिं परम्*

👉 *मंत्र :-* एकादशी के दिन इनमें👇 से किसी भी मंत्र का 108 बार जाप अवश्‍य करना चाहिए। 

1} ॐ विष्णवे नम:🙏

2} ॐ नमो भगवते वासुदेवाय🙏

3} श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी। हे नाथ नारायण वासुदेवाय🙏 

4} ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्🙏

5} ॐ नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि🙏

6} ‘हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे’ 

‘हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे’🙏

     आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं, इसीलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है।

     मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 माह शयन के बाद जागते हैं। भगवान विष्णु के शयनकाल के चार मास में विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं,इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है।      

     देवोत्थान एकादशी पर भगवान हरि के जागने के बाद शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। 

     इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है। देवउठनी एकादशी और उत्तराखंड में एकादशी की बग्वाल ईगास यानी बारहवीं दीपावली मनाई जाती है।

            (तुलसी विवाह)

 ज्योतिष पंचांग के अनुसार देवउठनी (प्रबोधिनी) एकादशी व्रत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की लंबी नींद के बाद जगते हैं। इस दिन से सभी मांगलिक कार्य पुनः शुरू हो जाते हैं।

 देवउठनी एकादशी के दिन “तुलसी विवाह” भी किया जाता है। अतः यह तुलसी विवाह 23 नवंबर 2023, गुरुवार देवउठनी एकादशी के दिन आज किया जाएगा।

*🔸देवउठनी एकादशी व्रत-:* 

इस बार एकादशी व्रत/ तुलसी जी का विवाह 23 नवंबर 2023 गुरुवार को रखा जाएगा।

*🔸व्रत का पारण-:* 

एकादशी का पारण अगले दिन 24 नवंबर, शुक्रवार सुबह सूर्योदय से सुबह 9:30 बजे तक।

*🔸देवउठनी एकादशी-:*

इस दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान वगैरा से निवृत हो जाए। और साफ स्वच्छ वस्त्र धारण करें काले- नीले कपड़ों से परहेज करें।

 भगवान श्रीहरि विष्णु जी को सुबह सबसे पहले तुलसी दल अर्पित करें, और भगवान सुंदर व पवित्र भाव के साथ व लोकगीत/ श्लोक, प्रार्थना व मंत्रों के साथ उठाएं और उनसे जगत के कल्याण की कामना करें। आप यह मंत्र भी पूरे भाव के साथ उच्चारित कर सकते हैं-:

“उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज।

उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यं मङ्गलं कुरु।।”

*🔸एकादशी व्रत के सामान्य नियम-:*

▪️एकादशी व्रत के दिन किसी भी तरह का अन्न (अनाज) नहीं खाया जाता। इस दिन चावल खाना व खिलाना बिल्कुल वर्जित है।

▪️एकादशी व्रत के दिन ज्यादा से ज्यादा मौन व्रत का पालन करें। भगवान के मंत्रों का जाप , श्री गोपाल सहस्त्रनाम, श्रीविष्णु सहस्त्रनाम, श्री रामचरित्र मानस भागवत गीता आदि का पठन व श्रवण करना चाहिए।

▪️एकादशी व्रत के दिन फल , दूध इत्यादि भगवान को भोग लगाने के उपरांत ग्रहण किया जा सकता हैं।

▪️भगवान श्री हरि/श्री राम/ श्री कृष्णा के भोग में तुलसी दल का उपयोग जरूर करना चाहिए। इनके बिना तुलसी दल के भोग स्वीकार नहीं होता।

▪️एकादशी के दूसरे दिन व्रत का पारण किया जाता है, व्रत पारण के दिन भगवान को सात्विक भोजन का भोग लगाकर पारण करें और इस दिन अपनी श्रद्धा अनुसार दान- पुण्य करें। उसके उपरांत स्वयं प्रसाद ग्रहण करके व्रत खोलें।

 

तुलसी शालिग्राम विवाह 

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भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की उदयव्यापिनी एकादशी तिथि तथा कुछ प्रान्तों में कार्तिक शुक्ल द्वादशी के दिन भी मनाया जाता है। इस वर्ष 23 नवम्बर गुरुवार के दिन तुलसी शालिग्राम विवाह कराया जाएगा।

पद्मपुराण के पौराणिक कथानुसार राजा जालंधर की पत्नी वृंदा के श्राप से भगवान विष्णु पत्थर बन गए, जिस कारणवश प्रभु को शालिग्राम भी कहा जाता है और भक्तगण इस रूप में भी उनकी पूजा करते हैं.इसी श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु को अपने शालिग्राम स्वरुप में तुलसी से विवाह करना पड़ा था और उसी समय से कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को तुलसी विवाह का उत्सव मनाया जाता है।

 

पद्मपुराण के अनुसार कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की नवमी को तुलसी विवाह रचाया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की प्रतिमा बनाकर उनका विवाह तुलसी जी से किया जाता है. विवाह के बाद नवमी, दशमी तथा एकादशी को व्रत रखा जाता है और द्वादशी तिथि को भोजन करने के विषय में लिखा गया है. कई प्राचीन ग्रंथों के अनुसार शुक्ल पक्ष की नवमी को तुलसी की स्थापना की जाती है. कई श्रद्धालु कार्तिक माह की एकादशी को तुलसी विवाह करते हैं और द्वादशी को व्रत अनुष्ठान करते हैं।

 

देवोत्थान एकादशी के दिन मनाया जाने वाला तुलसी विवाह विशुद्ध मांगलिक और आध्यात्मिक प्रसंग है। दरअसल, तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं। देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। इसीलिए तुलसी विवाह को देव जागरण के पवित्र मुहूर्त के स्वागत का आयोजन माना जाता है। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आहावान। कार्तिक, शुक्ल पक्ष, एकादशी को तुलसी पूजन का उत्सव मनाया जाता है। वैसे तो तुलसी विवाह के लिए कार्तिक, शुक्ल पक्ष, नवमी की तिथि ठीक है, परन्तु कुछ लोग एकादशी से पूर्णिमा तक तुलसी पूजन कर पाँचवें दिन तुलसी विवाह करते हैं। आयोजन बिल्कुल वैसा ही होता है, जैसे हिन्दू रीति-रिवाज से सामान्य वर-वधु का विवाह किया जाता है।

 

देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन मनाए जानेवाले इस मांगलिक प्रसंग के सुअवसर पर सनातन धर्मावलम्बी घर की साफ़-सफाई करते हैं और रंगोली सजाते हैं. शाम के समय तुलसी चौरा के पास गन्ने का भव्य मंडप बनाकर उसमें साक्षात् नारायण स्वरुप शालिग्राम की मूर्ति रखते हैं और फिर विधि-विधानपूर्वक उनके विवाह को संपन्न कराते हैं. मंडप, वर पूजा, कन्यादान, हवन और फिर प्रीतिभोज, सब कुछ पारम्परिक रीति-रिवाजों के साथ निभाया जाता है। इस विवाह में शालिग्राम वर और तुलसी कन्या की भूमिका में होती है। यह सारा आयोजन यजमान सपत्नीक मिलकर करते हैं। इस दिन तुलसी के पौधे को यानी लड़की को लाल चुनरी-ओढ़नी ओढ़ाई जाती है। तुलसी विवाह में सोलह श्रृंगार के सभी सामान चढ़ावे के लिए रखे जाते हैं। शालिग्राम को दोनों हाथों में लेकर यजमान लड़के के रूप में यानी भगवान विष्णु के रूप में और यजमान की पत्नी तुलसी के पौधे को दोनों हाथों में लेकर अग्नि के फेरे लेते हैं। विवाह के पश्चात प्रीतिभोज का आयोजन किया जाता है। कार्तिक मास में स्नान करने वाले स्त्रियाँ भी कार्तिक शुक्ल एकादशी को शालिग्राम और तुलसी का विवाह रचाती है। समस्त विधि विधान पूर्वक गाजे बाजे के साथ एक सुन्दर मण्डप के नीचे यह कार्य सम्पन्न होता है विवाह के स्त्रियाँ गीत तथा भजन गाती है।

कार्तिक माह की देवोत्थान एकादशी से ही विवाह आदि से संबंधित सभी मंगल कार्य आरम्भ हो जाते हैं. इसलिए इस एकादशी के दिन तुलसी विवाह रचाना उचित भी है. कई स्थानों पर विष्णु जी की सोने की प्रतिमा बनाकर उनके साथ तुलसी का विवाह रचाने की बात कही गई है. विवाह से पूर्व तीन दिन तक पूजा करने का विधान है. नवमी,दशमी व एकादशी को व्रत एवं पूजन कर अगले दिन तुलसी का पौधा किसी ब्राह्मण को देना शुभ होता है। लेकिन लोग एकादशी से पूर्णिमा तक तुलसी पूजन करके पांचवे दिन तुलसी का विवाह करते हैं। तुलसी विवाह की यही पद्धति बहुत प्रचलित है।

शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपत्तियों के संतान नहीं होती,वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें।तुलसी विवाह करने से कन्यादान के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है।

कार्तिक शुक्ल एकादशी पर तुलसी विवाह का विधिवत पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।हिन्दुओं के संस्कार अनुसार तुलसी को देवी रुप में हर घर में पूजा जाता है. इसकी नियमित पूजा से व्यक्ति को पापों से मुक्ति तथा पुण्य फल में वृद्धि मिलती है. यह बहुत पवित्र मानी जाती है और सभी पूजाओं में देवी तथा देवताओं को अर्पित की जाती है. सभी कार्यों में तुलसी का पत्ता अनिवार्य माना गया है. प्रतिदिन तुलसी में जल देना तथा उसकी पूजा करना अनिवार्य माना गया है. तुलसी घर-आँगन के वातावरण को सुखमय तथा स्वास्थ्यवर्धक बनाती है.तुलसी के पौधे को पवित्र और पूजनीय माना गया है। तुलसी की नियमित पूजा से हमें सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

तुलसी विवाह के सुअवसर पर व्रत रखने का बड़ा ही महत्व है. आस्थावान भक्तों के अनुसार इस दिन श्रद्धा-भक्ति और विधि पूर्वक व्रत करने से व्रती के इस जन्म के साथ-साथ पूर्वजन्म के भी सारे पाप मिट जाते हैं और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है।

तुलसी विवाह की विधि 

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👉 तुलसी का गमला साफ-सफाई करके गेरू और चूने से रंगकर सजायें।

👉 साड़ी आदि से सुन्दर मंडप बनाकर गन्ने व फूलों से सजाना चाहिए ।

👉 परिवार के सभी सदस्य शाम के समय तुलसी विवाह में शामिल होने के लिए नए कपड़े आदि पहन कर तैयार हो जाये।

👉 तुलसी के साथ विवाह के लिए शालिग्राम जी यानि विष्णु जी की काली मूर्ति चाहिए होती है। ये नहीं मिले तो आप अपनी श्रद्धानुसार सोने , पीतल या मिश्रित धातु की मूर्ति ले सकते है या फिर विष्णु जी की तस्वीर भी ले सकते है। यदि कोई व्यवस्था ना हो पाए तो पंडित जी से आग्रह करने पर वे मंदिर से शालिग्राम जी की मूर्ति अपने साथ ला सकते है।

👉 सबसे पहले गणेश जी का पूजन करें , फिर मंत्रो का उच्चारण करते हुए गाजे बाजे के साथ भगवान विष्णु की प्रतिमा को तुलसी जी के निकट लाकर रखे।

👉 भगवान विष्णु का आवाहन इस मन्त्र के साथ करें –

” आगच्छ भगवन देव अर्चयिष्यामि केशव। तुभ्यं दास्यामि तुलसीं सर्वकामप्रदो भव “

( यानि हे भगवान केशव , आइये देव मैं आपकी पूजा करूँगा , आपकी सेवा में तुलसी को समर्पित करूँगा। आप मेरे सभी मनोरथ पूर्ण करना )

फिर इस मंत्र से तुलसी जी का ध्यान करें

देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः

नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।

तुलसा जी व भगवान विष्णु की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा करके निम्नस्तुति आदि के द्वारा भगवान को निद्रा से जगाये।

उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।

त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥

उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।

गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥

शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।

उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।

👉 विष्णु जी को पीले वस्त्र धारण करवाये ,पीला रंग विष्णु जी का प्रिय है।

👉 कांसे के पात्र में दही, घी, शहद रखकर भगवान् को अर्पित करें।

👉 फिर पुरुष सूक्त हरी ॐ सहस्त्रशीर्षा पुरुष:सहस्राक्ष:सहस्रपात् |

स भूमि सर्वत: स्पृत्वाSत्यतिष्ठद्द्शाङ्गुलम् || आदि 16 मंत्रो से या सामर्थ्य हो तो षोडशोपचार से पूजा करें।

👉 इस मंत्र को बोलकर तुलसी जी का पूजन करें।

तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।

धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।

लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।

तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।

👉 तुलसी माता को लाल रंग की ओढ़नी ओढ़ानी चाहिए।

👉 शालीग्राम जी को चावल नहीं चढ़ाये जाते है इसीलिए उन्हें तिल चढ़ाये। दूध व हल्दी का लेप बनाकर शालिग्राम जी व तुलसी जी को चढ़ाये। गन्ने से बनाये गए मंडप की भी दूध हल्दी से पूजा करे।

👉 विवाह के समय निभाये जाने वाली सभी रस्मे करें।

👉 तुलसीजी और शालिग्राम जी के फेरे भी करवाने चाहिए।

👉 साथ ही “ओम तुलस्यै नमः ” मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए।

👉 तुलसी माता की शादी के लिए साड़ी, ब्लाउज , मेहंदी , काजल , बिंदी , सिंदूर , चूड़ा आदि सुहाग का सामान तथा बर्तन चढ़ाये।

👉 जो भी भोजन बनाया हो वह एक थाली में दो जनो के लिए रखकर फेरो के समय भोग लगाने के लिए रखना चाहिए।

👉 कन्यादान का संकल्प करें और भगवान से प्रार्थना करें – हे परमेश्वर ! इस तुलसी को आप विवाह की विधि से ग्रहण कीजिये। यह पार्वती के बीज से प्रकट हुई है , वृन्दावन की भस्म में स्थित रही है।

आपको तुलसी अत्यंत प्रिय है अतः इसे मैं आपकी सेवा में अर्पित करता हूँ। मैंने इसे पुत्री की तरह पाल पोस कर बड़ा किया है। और आपकी तुलसी आपको ही दे रहा हूँ। हे प्रभु इसे स्वीकार करने की कृपा करें।

👉 इसके पश्चात् तुलसी और विष्णु दोनों की पूजा करें और तुलसी माता की कहानी सुने।

👉 कपूर से तुलसी माता की आरती करें। और नामाष्टक मंत्र का यथा सामर्थ्य जप करें।

वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।

पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।

एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।

य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।

👉 इसके बाद आरती करें

जय जय तुलसी माता,मैया जय तुलसी माता ।

सब जग की सुख दाता,सबकी वर माता ॥

॥ जय तुलसी माता…॥

सब योगों से ऊपर,सब रोगों से ऊपर ।

रज से रक्ष करके,सबकी भव त्राता ॥

॥ जय तुलसी माता…॥

बटु पुत्री है श्यामा,सूर बल्ली है ग्राम्या ।

विष्णुप्रिय जो नर तुमको सेवे,

सो नर तर जाता ॥॥ जय तुलसी माता…॥

हरि के शीश विराजत,त्रिभुवन से हो वंदित ।

पतित जनों की तारिणी,तुम हो विख्याता ॥

॥ जय तुलसी माता…॥

लेकर जन्म विजन में,आई दिव्य भवन में।

मानव लोक तुम्हीं से,सुख-संपति पाता ॥

॥ जय तुलसी माता…॥

हरि को तुम अति प्यारी,श्याम वर्ण सुकुमारी ।

प्रेम अजब है उनका,तुमसे कैसा नाता ॥

हमारी विपद हरो तुम,कृपा करो माता ॥ 

॥ जय तुलसी माता…॥

जय जय तुलसी माता,मैया जय तुलसी माता ।

सब जग की सुख दाता,सबकी वर माता ॥

👉 भगवान को लगाए गए भोग का प्रसाद के रूप में वितरण करे।

👉 सुबह हवन करके पूर्णाहुती करें । इसके लिए खीर , घी , शहद और तिल के मिश्रण की 108 आहुति देनी चाहिए। महिलाये तुलसी माता के गीत गाती है। उसी समय व्रत करने वाली के पीहर वाले कपड़े पहनाते है। इसी समय शालीग्राम व तुलसी माता को श्रद्धानुसार भोजन परोसकर भोग लगाना चाहिए , साथ में श्रद्धानुसार दक्षिणा अर्पित की जानी चाहिए।

👉 भगवान से प्रार्थना करें – प्रभु ! आपकी प्रसन्नता के लिए किये गए इस व्रत में कोई कमी रह गई हो तो क्षमा करें। अब आप तुलसी को साथ लेकर बैकुंठ धाम पधारें। आप मेरे द्वारा की गई पूजा से सदा संतुष्ट रहकर मुझे कृतार्थ करें। इस प्रकार तुलसी विवाह का परायण करके भोजन करें। भोजन में आँवला , गन्ना व बैर आदि अवश्य शामिल करें। भोजन के बाद तुलसी के अपने आप गिरे हुए पत्ते खाएँ, यह बहुत शुभ होता है। तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराना विष्णु भगवान की भक्ति का एक रूप है।

तुलसी शालिग्राम विवाह कथा

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प्राचीन काल में जालंधर नामक राक्षस ने चारों तरफ़ बड़ा उत्पात मचा रखा था। वह बड़ा वीर तथा पराक्रमी था। उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म। उसी के प्रभाव से वह सर्वजंयी बना हुआ था। जालंधर के उपद्रवों से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गये तथा रक्षा की गुहार लगाई। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय किया। उधर, उसका पति जालंधर, जो देवताओं से युद्ध कर रहा था, वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया। जब वृंदा को इस बात का पता लगा तो क्रोधित होकर उसने भगवान विष्णु को शाप दे दिया, ‘जिस प्रकार तुमने छल से मुझे पति वियोग दिया है, उसी प्रकार तुम भी अपनी स्त्री का छलपूर्वक हरण होने पर स्त्री वियोग सहने के लिए मृत्यु लोक में जन्म लोगे।’ यह कहकर वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई। जिस जगह वह सती हुई वहाँ तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ।

एक अन्य प्रसंग के अनुसार वृंदा ने विष्णु जी को यह शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। अत: तुम पत्थर के बनोगे। विष्णु बोले, ‘हे वृंदा! यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल है कि तुम तुलसी बनकर मेरे साथ ही रहोगी। जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, वह परम धाम को प्राप्त होगा।’ बिना तुलसी दल के शालिग्राम या विष्णु जी की पूजा अधूरी मानी जाती है। शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी के विवाह का प्रतीकात्मक विवाह है।

कथा विस्तार〰️〰️〰️〰️〰️

एक लड़की थी जिसका नाम वृंदा था राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु जी की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा,पूजा किया करती थी.जब वे बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया,जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था.वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी।

एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा – स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते में अपना संकल्प नही छोडूगी, जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी,उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके सारे देवता जब हारने लगे तो भगवान विष्णु जी के पास गये।

सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता पर देवता बोले – भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है।

भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा,वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए,जैसे ही उनका संकल्प टूटा,युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है? उन्होंने पूँछा आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया,तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई,उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ,भगवान तुंरत पत्थर के हो गये सबी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगे और प्राथना करने लगे यब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गयी।

उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा आज से इनका नाम तुलसी है,और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और में बिना तुलसी जी के भोग स्वीकार नहीं करुगा.तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे.और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है.देवउठनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है|

कथा – 2〰️〰️〰️〰️

ऐसा माना जाता है कि देवप्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु चार माह की नींद के बाद जागते हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से प्रचलित है कि जब विष्णु भगवान ने शंखासुर नामक राक्षस को मारा था और उस विशेष परिश्रम के कारण उस दिन सो गए थे, उसके बाद वह कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागे थे, इसलिए इस दिन उनकी पूजा का विशेष विधान है।इस संबंध में एक कथा प्रचलित है कि शंखासुर बहुत पराक्रमी दैत्य था इस वजह से लंबे समय तक भगवान विष्णु का युद्ध उससे चलता रहा। अंतत: घमासन युद्ध के बाद भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु ने दैत्य शंखासुर को मारा था। इस युद्ध से भगवान विष्णु बहुत अधिक थक गए। तब वे थकावट दूर करने के लिए क्षीरसागर लौटकर सो गए। वे वहां चार महिनों तक सोते रहे और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे। तब सभी देवी-देवताओं द्वारा भगवान विष्णु का पूजन किया गया। इसी वजह से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रत-उपवास करने का विधान है।

कथा – 3

एक बार भगवान विष्णु से उनकी प्रिया लक्ष्मी जी ने आग्रह के भाव में कहा- हे भगवान, अब आप दिन रात जागते हैं। लेकिन, एक बार सोते हैं,तो फिर लाखों-करोड़ों वर्षों के लिए सो जाते हैं। तथा उस समय समस्त चराचर का नाश भी कर डालते हैं। इसलिए आप नियम से विश्राम किया कीजिए। आपके ऐसा करने से मुझे भी कुछ समय आराम का मिलेगा। लक्ष्मी जी की बात भगवान को उचित लगी। उन्होंने कहा, तुम ठीक कहती हो। मेरे जागने से सभी देवों और खासकर तुम्हें कष्ट होता है। तुम्हें मेरी सेवा से वक्त नहीं मिलता। इसलिए आज से मैं हर वर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करुंगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी।यह मेरी अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी रहेगी। इस दौरान जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे, मैं उनके घर तुम्हारे समेत निवास करुंगा।

तुलसी विवाह व्रत कथा

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प्राचीन ग्रंथों में तुलसी विवाह व्रत की अनेक कथाएं दी हुई हैं. उन कथाओं में से एक कथा निम्न है. इस कथा के अनुसार एक कुटुम्ब में ननद तथा भाभी साथ रहती थी. ननद का विवाह अभी नहीं हुआ था. वह तुलसी के पौधे की बहुत सेवा करती थी. लेकिन उसकी भाभी को यह सब बिलकुल भी पसन्द नहीं था. जब कभी उसकी भाभी को अत्यधिक क्रोध आता तब वह उसे ताना देते हुए कहती कि जब तुम्हारा विवाह होगा तो मैं तुलसी ही बारातियों को खाने को दूंगी और तुम्हारे दहेज में भी तुलसी ही दूंगी. कुछ समय बीत जाने पर ननद का विवाह पक्का हुआ. विवाह के दिन भाभी ने अपनी कथनी अनुसार बारातियों के सामने तुलसी का गमला फोड़ दिया और खाने के लिए कहा. तुलसी की कृपा से वह फूटा हुआ गमला अनेकों स्वादिष्ट पकवानों में बदल गया. भाभी ने गहनों के नाम पर तुलसी की मंजरी से बने गहने पहना दिए. वह सब भी सुन्दर सोने – जवाहरात में बदल गए. भाभी ने वस्त्रों के स्थान पर तुलसी का जनेऊ रख दिया. वह रेशमी तथा सुन्दर वस्त्रों में बदल गया. ननद की ससुराल में उसके दहेज की बहुत प्रशंसा की गई. यह बात भाभी के कानों तक भी पहुंची. उसे बहुत आश्चर्य हुआ. उसे अब तुलसी माता की पूजा का महत्व समझ आया. भाभी की एक लड़की थी. वह अपनी लड़की से कहने लगी कि तुम भी तुलसी की सेवा किया करो. तुम्हें भी बुआ की तरह फल मिलेगा. वह जबर्दस्ती अपनी लड़की से सेवा करने को कहती लेकिन लड़की का मन तुलसी सेवा में नहीं लगता था. लड़की के बडी़ होने पर उसके विवाह का समय आता है. तब भाभी सोचती है कि जैसा व्यवहार मैने अपनी ननद के साथ किया था वैसा ही मैं अपनी लड़की के साथ भी करती हूं तो यह भी गहनों से लद जाएगी और बारातियों को खाने में पकवान मिलेंगें. ससुराल में इसे भी बहुत इज्जत मिलेगी. यह सोचकर वह बारातियों के सामने तुलसी का गमला फोड़ देती है. लेकिन इस बार गमले की मिट्टी, मिट्टी ही रहती है. मंजरी तथा पत्ते भी अपने रुप में ही रहते हैं. जनेऊ भी अपना रुप नही बदलता है. सभी लोगों तथा बारातियों द्वारा भाभी की बुराई की जाती है. लड़की के ससुराल वाले भी लड़की की बुराई करते हैं. भाभी कभी ननद को नहीं बुलाती थी. भाई ने सोचा मैं बहन से मिलकर आता हूँ. उसने अपनी पत्नी से कहा और कुछ उपहार बहन के पास ले जाने की बात कही. भाभी ने थैले में ज्वार भरकर कहा कि और कुछ नहीं है तुम यही ले जाओ. वह दुखी मन से बहन के पास चल दिया. वह सोचता रहा कि कोई भाई अपने बहन के घर जुवार कैसे ले जा सकता है. यह सोचकर वह एक गौशला के पास रुका और जुवार का थैला गाय के सामने पलट दिया. तभी गाय पालने वाले ने कहा कि आप गाय के सामने हीरे-मोती तथा सोना क्यों डाल रहे हो. भाई ने सारी बात उसे बताई और धन लेकर खुशी से अपनी बहन के घर की ओर चल दिया. दोनों बहन-भाई एक-दूसरे को देखकर अत्यंत प्रसन्न होते हैं।

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