आज का पंचाग आपका राशि फल, भारत में मंदिर निर्माण की शैलियां, वसंत ऋतु में आहार विहार, गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत न्यूटन से 1200 साल पहले भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य ने बनाया

   *श्री हरिहरौ*  *विजयतेतराम*

 *सुप्रभातम**आज का पञ्चाङ्ग*

*_रविवार, १८ फरवरी २०२४_*

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सूर्योदय: 🌄 ०७:०६, सूर्यास्त: 🌅 ०६:१६

चन्द्रोदय: 🌝 १२:२७, चन्द्रास्त: 🌜२७:२३

अयन 🌘 उत्तरायणे(दक्षिणगोलीय)

ऋतु: 🗻 शिशिर 

शक सम्वत:👉१९४५(शोभकृत)

विक्रम सम्वत:👉२०८० (पिंगल)

मास 👉 माघ, पक्ष 👉 शुक्ल 

तिथि 👉 नवमी (०८:१५ से दशमी)

नक्षत्र 👉 रोहिणी (०९:२३से मृगशिरा)

योग 👉 वैधृति (१२:३९ से विष्कुम्भ)

प्रथम करण👉कौलव(०८:१५तक

द्वितीय करण 👉 तैतिल(२०:२८ तक)

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॥ गोचर ग्रहा: ॥ 

🌖🌗🌖🌗

सूर्य 🌟 कुम्भ 

चंद्र 🌟 मिथुन (२१:५३ से)

मंगल🌟मकर (उदित, पूर्व, मार्गी)

बुध🌟मकर (अस्त, पूर्व, मार्गी)

गुरु🌟मेष (उदित, पश्चिम, मार्गी)

शुक्र🌟मकर(उदित,पश्चिम,मार्गी)

शनि 🌟 कुम्भ 

(अस्त, पश्चिम, मार्गी)

राहु 🌟 मीन 

केतु 🌟 कन्या

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शुभाशुभ मुहूर्त विचार

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अभिजित मुहूर्त 👉 १२:०९ से १२:५३

अमृत काल 👉 २५:१९ से २७:००

रवियोग 👉 पूरे दिन

विजय मुहूर्त 👉 १४:२३ से १५:०८

गोधूलि मुहूर्त 👉 १८:०५ से १८:३०

सायाह्न सन्ध्या 👉 १८:०७ से १९:२४

निशिता मुहूर्त 👉 २४:०५ से २४:५६

राहुकाल 👉 १६:४३ से १८:०७

राहुवास 👉 उत्तर

यमगण्ड 👉 १२:३१ से १३:५५

दुर्मुहूर्त 👉 १६:३७ से १७:२२

होमाहुति 👉 शुक्र (०९:२३ से शनि)

दिशाशूल 👉 पश्चिम

नक्षत्र शूल 👉 पश्चिम (०९:२३ तक)

अग्निवास 👉 पृथ्वी

चन्द्र वास 👉 दक्षिण (पश्चिम २१:५४ से) 

शिववास 👉 गौरी के साथ (०८:१५ से सभा में)

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☄चौघड़िया विचार☄

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॥ दिन का चौघड़िया ॥ 

१ – उद्वेग २ – चर

३ – लाभ ४ – अमृत

५ – काल ६ – शुभ

७ – रोग ८ – उद्वेग

॥रात्रि का चौघड़िया॥ 

१ – शुभ २ – अमृत

३ – चर ४ – रोग

५ – काल ६ – लाभ

७ – उद्वेग ८ – शुभ

नोट👉 दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है। 

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शुभ यात्रा दिशा

🚌🚈🚗⛵🛫

पश्चिम-दक्षिण (पान का सेवन कर यात्रा करें)

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तिथि विशेष

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गुप्त नवरात्री विधान समाप्त, महानन्दा नवमी, विवाह मुहूर्त मिथुन लग्न (दोपहर ०१:२० से ०३:३३), गोधुलि (सायं ०५:३२ से ०७:०७), कन्या- धनु लग्न (रात्रि ०८:०७ से अतंरात्रि ०५:०५) तक, देवप्रतिष्ठा मुहूर्त १२:३७ से ०१:४० तक आदि।

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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण 

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आज ०९:२३ तक जन्मे शिशुओ का नाम रोहिणी नक्षत्र के चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (वू) नामाक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओ का नाम मृगशिरा नक्षत्र के प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (वे, वो, क, की) नामाक्षर से रखना शास्त्र सम्मत है।

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उदय-लग्न मुहूर्त

कुम्भ – ३०:४४ से ०८:१०

मीन – ०८:१० से ०९:३३

मेष – ०९:३३ से ११:०७

वृषभ – ११:०७ से १३:०२

मिथुन – १३:०२ से १५:१७

कर्क – १५:१७ से १७:३८

सिंह – १७:३८ से १९:५७

कन्या – १९:५७ से २२:१५

तुला – २२:१५ से २४:३६

वृश्चिक – २४:३६ से २६:५५

धनु – २६:५५ से २८:५९

मकर – २८:५९ से ३०:४०

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पञ्चक रहित मुहूर्त

शुभ मुहूर्त – ०६:५५ से ०८:१०

रोग पञ्चक – ०८:१० से ०८:१५

शुभ मुहूर्त – ०८:१५ से ०९:२३

मृत्यु पञ्चक – ०९:२३ से ०९:३३

रोग पञ्चक – ०९:३३ से ११:०७

शुभ मुहूर्त – ११:०७ से १३:०२

मृत्यु पञ्चक – १३:०२ से १५:१७

अग्नि पञ्चक – १५:१७ से १७:३८

शुभ मुहूर्त – १७:३८ से १९:५७

रज पञ्चक – १९:५७ से २२:१५

शुभ मुहूर्त – २२:१५ से २४:३६

चोर पञ्चक – २४:३६ से २६:५५

शुभ मुहूर्त – २६:५५ से २८:५९

रोग पञ्चक – २८:५९ से ३०:४०

शुभ मुहूर्त – ३०:४० से ३०:५४

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आज का राशिफल🐐🐂💏💮🐅👩

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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)

आज के दिन आपका स्वभाव अत्यंत आलसी रहेगा परन्तु फिर भी जिस भी कार्य को करेंगे उसमे सफलता अवश्य ही मिलेगी। घरेलू कार्यो के साथ ही व्यावसायिक कार्य भी एकसाथ करने में थोड़ी दुविधा बनेगी लेकिन बुजुर्गो का सहयोग मिलने से इससे निजात पा लेंगे। कार्य-व्यवसाय में आज किसी बहुप्रतीक्षित योजना के परिणाम को लेकर बेचैन रहेंगे धर्य से काम लें जल्दबाजी में कोई गलत निर्णय लेने से बचें विजय आपकी ही होगी। धन की आमद को लेकर दिन के आरंभ में आशंकित रहेंगे मध्यान बाद अकस्मात हो जाएगी। आपके पीछे से चुगली करने वाले लोग हानि पहुचा सकते है सतर्क रहें। सेहत में थोड़ा उतार-चढ़ाव लगा रहेगा मनोरंजन के अवसर मिलेंगे।

वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)

आज का दिन शान्तिप्रद रहेगा दिन के आरंभ से मन मे चंचलता रहेगी परिजनों के साथ हल्की फुल्की मजाक से वातावरण हल्का बनेगा मध्यान के आस-पास किसी से शुभ समाचार मिलेंगे। कार्य क्षेत्र पर लाभ के सौदे हाथ लेंगेंगे लेकिन इनसे जितनी आशा थी उतना लाभ नही ले सकेंगे फिर भी आज खर्च से अधिक आय हो ही जाएगी। साथ काम करने वाले लोग आपके व्यवहार से आकर्षित होंगे। किसी से भी काम निकालना आज आसान रहेगा। महिलाओं अथवा बुजुर्गो को छाती में संक्रमण हो सकता है।

मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)

आज का दिन बचते बचते कुछ ना कुछ हानि कराएगा। आज आपके विचार किसी से जल्दी मेल नही खाएंगे हानि वाले कामो में रुचि अधिक रहेगी। आज जिसकी आशंका नही रहेगी उसी कार्य से नुकसान होने की संभावना है। धन संबंधित लेन-देन अथवा निवेश पर आज विराम रखें अन्यथा आर्थिक कमी के कारण बाद में परेशानी होगी। नौकरी वाले जातको को लापरवाही के कारण डांट सुननी पड़ेगी। घर मे कुछ अप्रिय घटना होने से मन बेचैन रहेगा। हित शत्रुओ से विशेष सावधान रहें पीठ पीछे हानि पहुँचा सकते है। सेहत अकस्मात खराब होने की संभावना है।

कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)

आज का दिन ज्यादा लाभदायक तो नही फिर भी सधा रहने से आगे के लिये सफलता का मार्ग खोलेगा। दिन का आरंभ सुस्ती में होगा लेकिन इसके बाद सभी कार्य नियमित समय पर पूर्ण कर लेंगे। कार्य-व्यवसाय के प्रति आज अधिक गंभीर रहेंगे इसके लिये लघु यात्रा भी करनी पड़ेगी मध्यान के समय भगदौड़ व्यर्थ होती प्रतीत होगी धन की आमद आज अनिश्चित रहने के कारण मन निराश होगा लेकिन अपने कार्यो से संतुष्ट एवं भविष्य के लिये निश्चिन्त भी रहेंगे। परिवार में आपसी प्रेम स्नेह बढेगा। स्वास्थ्य में संध्या बाद कुछ नरमी आएगी।

सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)

आज का दिन कार्य सफलता वाला है इसका लाभ उठाएं स्वभाव में आलस्य अधिक रहेगा इससे बचे अन्यथा लाभ हाथ आकर निकल भी सकता है। कार्य क्षेत्र पर मध्यान बाद ही अनुकूल परिस्थितियां बनेंगी लाभ के कई अवसर मिलेंगे लेकिन सकारात्मक परिणाम कुछ एक से ही मिलेगा। धन लाभ आवश्यकता अनुसार हो ही जायेगा। नौकरी वाले लोग किसी बहुप्रतीक्षित योजना पर कार्य आरंभ करेंगे शीघ्र ही इसके सही दिशा लेने पर भविष्य सुरक्षित बनेगा। सरकार की तरफ से नरमी रहेगी कागजी कार्य आज अवश्य पूर्ण करलें। घर मे सुख शांति रहेगी। 

कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)

कार्य क्षेत्र की कुछ परेशानियों को छोड़ अन्य सभी कार्यो के लिए आज दिन शुभ रहेगा। धार्मिक कार्यो में रुचि रहेगी लेकिन व्यस्तता के कारण ठीक से समय नही दे पाएंगे। व्यावसायिक स्थल पर अधिकारी वर्ग प्रसन्न रहेंगे परन्तु नौकरों अथवा सहकर्मियों का मनमाना व्यवहार रहने से परेशानी खड़ी हो सकती है अन्य व्यक्तियों का कार्य भी आपके जिम्मे आने से असहजता रहेगी। धन लाभ के प्रयासों में दोपहर तक सफलता मिल जायेगी लेकिन रुक रुक कर ही होगा। व्यापारी वर्ग कार्य क्षेत्र पर विस्तार की योजना बनाएंगे परन्तु आज इसकी सफलता संदिग्ध रहेगी। संध्या बाद परिजनों के साथ शांति से समय कटेगा। सेहत को लेकर थोड़े आशंकित रहेंगे लेकिन छोटी मोटी व्याधि होकर स्वतः शांत हो जाएगी।

तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)

आज का दिन प्रतिकूल रहेगा सेहत में सुबह से ही कुछ ना कुछ कमी बनेगी अनदेखी पर मध्यान तक इसके बढ़ने की संभावना है। कार्य क्षेत्र से आज आशा कम ही रखें दिन परिश्रम साध्य रहेगा कम परिश्रम करने पर लाभ भी कम ही मिल सकेगा। आज अकस्मात खर्च ज्यादा परेशान करेंगे व्यर्थ के खर्चो पर नियंत्रण की आवश्यकता है। नौकरी करने वाले कामना पूर्ति ना होने पर अधिकारियों से नाराज रहेंगे जानकर काम खराब भी कर सकते है। मध्यान के बाद धार्मिक भावनाओं का उदय होगा लेकिन पूजा पाठ में फिर भी मन केंद्रित नही कर पाएंगे।

वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)

आज दिन शुभ फलदायक रहने से मनचाहा कार्य कर सकेंगे। बड़े लोगो से भी आज आसानी से अपना स्वार्थ सिद्ध कर सकते है। दिन के प्रथम भाग में मानसिक रूप से चंचलता रहेगी बचकानी हरकतों से घर के लोगो को हंसने पर मजबूर करेंगे। कार्य क्षेत्र पर माथा पच्ची करनी पड़ेगी लेकिन सकारत्मक परिणाम भी मिलेंगे विदेशी वस्तुओ के व्यापार अथवा शेयर सम्बंधित कारोबार में निवेश का निकट भविष्य में लाभ मिलेगा। महिला के सहयोग से भाग्योन्नति के मार्ग खुलेंगे। लेन-देन में अधिक सावधानी बरतें। घर में पैतृक संपत्ति के बंटवारे अथवा अन्य समस्याओं को लेकर आपस में चर्चा हो सकती है। संतान से सुख मिलेगा। सेहत ठंड में लापरवाही के कारण नरम रहेगी।

धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)

आज भी दिन में कई बार लाभ के अवसर मिलेंगे। परन्तु आलस्य प्रमाद के कारण कार्यो को गंभीरता से नहीं लेंगे फलस्वरूप उम्मीद से कम में ही संतोष करना पड़ेगा। गुप्त शत्रु पीठ पीछे हानि पंहुचाने का हर संभव प्रयास करेंगे जान कर भी अनजान बनने के कारण आगे दुष्परिणाम हो सकते है सतर्क रहें। मौज-शौक में अधिक व्यय करने के कारण आर्थिक संतुलन बिगड़ सकता है। सेहत की लापरवाही करना ठीक नहीं ख़राब पेट के कारण कई बीमारियां बन सकती है। घर में शांति रहेगी फिर भी ज्यादा बोलने से बचे लोग सही बात का भी गलत अर्थ निकाल झगड़ा करेंगे। 

 

मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)

आपका आज का दिन बीते कल से काफी बेहतर रहेगा। आज आप नीतिपूर्वक कार्य करना पसंद करेंगे जिससे धन मिले या न मिले सम्मान अवश्य बढेगा। सामाजिक कार्यो में अधिक समय देंगे। धार्मिक क्षेत्र पर दान-पुण्य के अवसर भी मिलेंगे। ज्योतिष अथवा तंत्र मंत्र आध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को जानने की उत्सुकता रहेगी। संध्या के आस-पक़स आकस्मिक धन लाभ से उत्साह बढेगा। कार्य क्षेत्र पर सहकर्मी एवं नौकरों के मनमाने व्यवहार के कारण थोड़ी असुविधा हो सकती है । पति पत्नी के बीच थोड़े बहुत मतभेद को छोड़ घर में शांति रहेगी। उदर शूल एवं हड्डियों संबंधित समस्या हो सकती है।

कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)

आज का दिन साधारण रहेगा पूर्व में किया किसी गलत आचरण का अफसोस होगा लेकिन सुधार फिर भी नही करेंगे। अन्य लोगो के ऊपर आश्रित रहने के कारण कार्य व्यवसाय में परिश्रम का लाभ कम ही मिलेगा फिर भी आज आवश्यकताए कम रहने से परेशानी नही होगी धन की आमद कम ही रहेगी। नौकरी वाले लोग आलसी व्यवहार के कारण कार्य क्षेत्र पर अव्यवस्था फैलाएंगे। परिजनों का सहयोग सानिध्य हौसला बढ़ाएगा लेकिन फिर भी काम नही आएगा। खान पान संयमित रखें पेट खराब हो सकता है।

मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)

आज के दिन आपको शुभ फलों की प्राप्ति होगी। कई दिनों से लटकी योजना अथवा अति महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न होने से राहत मिलेगी। भाग दौड़ अन्य दिनों की अपेक्षा आज अधिक करनी पड़ेगी फिर भी परिणाम निराशाजनक नही रहेंगे। आज काम छोटा हो या बड़ा सभी कुछ ना कुछ लाभ ही देंगे। धन की आमद संतोषजनक रहेगी लेकिन कार्य क्षेत्र पर किसी से कहासुनी होने की संभावना है। आज गृहस्थ में बाहर की अपेक्षा शांति अनुभव करेंगे। संध्या के समय मन मे विपरीत विचार आएंगे सेहत सामान्य रहेगी।

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सनातन_हिन्दू_मन्दिर_वास्तुकला_और_शैलियां

भारतीय स्थापत्य में हिन्दू मन्दिर का विशेष स्थान है। हिन्दू मंदिर में अन्दर एक गर्भगृह होता है जिसमें मुख्य देवता की मूर्ति स्थापित होती है। गर्भगृह के ऊपर टॉवर-नुमा रचना होती है जिसे शिखर (या, विमान) कहते हैं। मन्दिर के गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा के लिये स्थान होता है। इसके अलावा मंदिर में सभा के लिये कक्ष हो सकता है।

🔸नागर शैली : उत्तर भारतीय हिन्दू स्थापत्य शैली

🔸वेसर शैली : मिश्रित भारतीय शैली

🔸द्रविड़ शैली : दक्षिण भारतीय शैली

🔸इतिहास

मन्दिर शब्द संस्कृत वाङ्मय में अधिक प्राचीन नहीं है। महाकाव्य और सूत्रग्रन्थों में मंदिर की अपेक्षा देवालय, देवायतन, देवकुल, देवगृह आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है। मंदिर का सर्वप्रथम उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में मिलता है। शाखांयन स्त्रोत सूत्र में प्रासाद को दीवारों, छत, तथा खिड़कियों से युक्त कहा गया है। वैदिक युग में प्रकृति देवों की पूजा का विधान था। इसमें दार्शनिक विचारों के साथ रूद्र तथा विष्णु का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद में रूद्र प्रकृति, वनस्पति, पशुचारण के देवता तथा विष्णु यज्ञ के देवता माने गये हैं। बाद में, उत्तरवर्ती वैदिक साहित्य में विष्णु देवताओं में श्रेष्ठतम माने गए। ( विष्णु परमः तदन्तरेण सर्वा अव्या देवताः।)

भारत की प्राचीन स्थापत्य कला में मंदिरों का विशिष्ट स्थान है। भारतीय संस्कृति में मंदिर निर्माण के पीछे यह सत्य छुपा था कि ऐसा धर्म स्थापित हो जो जनता को सहजता व व्यवहारिकता से प्राप्त हो सके। इसकी पूर्ति के लिए मंदिर स्थापत्य का प्रार्दुभाव हुआ। इससे पूर्व भारत में बौद्ध एवं जैन धर्म द्वारा गुहा, स्तूपों एवं चैत्यों का निर्माण किया जाने लगा था। कुषाणकाल के बाद गुप्त काल में देवताओं की पूजा के साथ ही देवालयों का निर्माण भी प्रारंभ हुआ।

प्रारंभिक मंदिरों का वास्तु विन्यास बौद्ध बिहारों से प्रभावित था। इनकी छत चपटी तथा इनमें गर्भगृह होता था। मंदिरों में रूप विधान की कल्पना की गई और कलाकारों ने मंदिरों को साकार रूप प्रदान करने के साथ ही देहरूप में स्थापित किया। चौथी सदी में भागवत धर्म के अभ्युदय के पश्चात (इष्टदेव) भगवान की प्रतिमा स्थापित करने की आवश्यकता प्रतीत हुई। अतएव वैष्णव मतानुयायी मंदिर निर्माण की योजना करने लगे। साँची का दो स्तम्भयुक्त कमरे वाला मंदिर गुप्तमंदिर के प्रथम चरण का माना जाता है। बाद में गुप्त काल में वृहदस्तर पर मंदिरों का निमार्ण किया गया जिनमें वैष्णव तथा शैव दोनों धर्मो के मंदिर हैं। प्रारम्भ में ये मंदिर सादा थे और इनमें स्तंभ अलंकृत नही थे। शिखरों के स्थान पर छत सपाट होती थी तथा गर्भगृह में भगवान की प्रतिमा, ऊँची जगती आदि होते थे। गर्भगृह के समक्ष स्तंभों पर आश्रित एक छोटा अथवा बड़ा बरामदा भी मिलने लगा। यही परम्परा बाद के कालों में प्राप्त होती है।

🔸#_मन्दिर_शब्दावली

१.शिखर या विमानम्, २.गर्भगृह, ३.कलश, ४.गोपुरम, ५.रथ, ६.उरुशृंग, ७.मण्डप, ८.अर्धमण्डप, ९. जगति, १०.स्तम्भ, ११.परिक्रमा या प्रदक्षिणा, १२.शुकनास, १३.तोरण, १४.अन्तराल, १५.गवाक्ष, १६.अमलक, १७.अधिष्ठान

🔸शैलियाँ

भारतीय उपमहाद्वीप तथा विश्व के अन्य भागों में स्थित मन्दिर विभिन्न शैलियों में निर्मित हुए हैं। मंदिरों की कुछ शैलियाँ निम्नलिखित हैं-

#_नागर_शैली

नागर शैली का प्रसार हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत माला तक देखा जा सकता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार नागर शैली के मंदिरों की पहचान आधार से लेकर सर्वोच्च अंश तक इसका चतुष्कोण होना है। विकसित नागर मंदिर में गर्भगृह, उसके समक्ष क्रमशः अन्तराल, मण्डप तथा अर्द्धमण्डप प्राप्त होते हैं। एक ही अक्ष पर एक दूसरे से संलग्न इन भागों का निर्माण किया जाता है।.

#_द्रविड़_शैली

यह शैली दक्षिण भारत में विकसित होने के कारण द्रविण शैली कहलाती है। इसमें मंदिर का आधार भाग वर्गाकार होता है तथा गर्भगृह के उपर का भाग पिरामिडनुमा सीधा होता है, जिसमें अनेक मंजिलें होती हैं। इस शैली के मंदिरों की प्रमुख विशेषता यह हे कि ये काफी ऊॅंचे तथा विशाल प्रांगण से घिरे होते हैं। प्रांगण में छोटे-बड़े अनेक मंदिर, कक्ष तथा जलकुण्ड होते हैं। प्रागंण का मुख्य प्रवेश द्वार ‘गोपुरम्’ कहलाता है।चोल काल के मंदिर द्रविड़ शैली के सर्वश्रेष्ठ प्रमाण है.

#_वेसर_शैली

वेसर का शाब्दिक अर्थ है मिश्रित अत एव नागर और द्रविड़ शैली के मिश्रित रूप को बेसर की संज्ञा दी गई है यह विन्यास में द्रविड़ शैली का तथा रूप में नागर शैली का होता है दो विभिन्न शैलियों के कारण उत्तर और दक्षिण के विस्तृत क्षेत्र के बीच सतह एक क्षेत्र बन गया जहां इनके मिश्रित रूप में बेसर शैली हुई इस शैली के मंदिर विंध्य पर्वतमाला से कृष्णा नदी तक निर्मित है लेकिन कला का क्षेत्र असीम है

*वसन्त ऋतु में आहार-विहार*

वसन्त-ऋतु सब ऋतुओं से सुहानी होती है। इसमें सब जगह प्रकृति की सुन्दरता दिखाई देती है। रंग-िबरंगे फूलों की सुन्दरता और सुगन्ध से ऐसा लगता है, मानो प्रकृति प्रसन्न मुद्रा में है। यह ऋतु शीतकाल और ग्रीष्म-काल का सन्धि समय होता है। मौसम समशीतोष्ण होता है अर्थात् न तो कँपकँपाती सर्दी होती है और न ही कड़ाके की धूप या गर्मी ही। मौसम मिला-जुला होता है, दिन में गर्मी और रात में सर्दी होती है।

वसन्त ऋतु में प्राकृतिक भाव

प्रबल रस कषाय

प्रबल महाभूत पृथ्वी, वायु

दोष अवस्था कफ दोष का प्रकोप

जठराग्नि की क्रियाशीलता मन्द अथवा अल्प

बल मध्यम बल

शोधन कर्म कफ दोष शमन हेतु वमन एवं नस्य

शरीर पर प्रभाव

इस ऋतु में सूर्य की किरणें तेज होने लगती हैं। शीत-काल (हेमन्त और शिशिर ऋतुओं) में शरीर के अन्दर जो कफ जमा हो जाता है, वह इन किरणों की गर्मी से पिघलने लगता है। इससे शरीर में कफ दोष कुपित हो जाता है और कफ से होने वाले रोग (जैसे- खाँसी, जुकाम, नजला, दमा गले की खराश, टॉन्सिल्स, पाचन-शक्ति की कमी, जी-मिचलाना आदि) उत्पन्न हो जाते हैं। वातावरण में सूर्य का बल बढ़ने और चंद्रमा की शीतलता कम होने से जलीय अंश और चिकनाई कम होने लगती है। इसका प्रभाव शरीर पर पड़ता है और दुर्बलता आने लगती है। अतः इस ऋतु में खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। अम्ल, मधुर और लवण रस वाले पदार्थ खाने से कफ में वृद्धि होती है।

पथ्य आहार-विहार

इस ऋतु में ताजा हल्का और सुपाच्य भोजन करना चाहिए। कटु रस युक्त, तीक्ष्ण और कषाय पदार्थों का सेवन लाभकारी है। मूँग, चना और जौ की रोटी, पुराना गेहूँ और चावल, जौ, चना, राई, भीगा व अंकुरित चना, मक्खन लगी रोटी, हरी शाक-सब्जी एवं उनका सूप, सरसों का तेल, सब्जियों में- करेला, लहसुन, पालक, केले के फूल, जिमीकन्द व कच्ची मूली, नीम की नई कोपलें, सोंठ, पीपल, काली मिर्च, हरड़, बहेड़ा, आँवला, धान की खील, खस का जल, नींबू, मौसमी फल तथा शहद का प्रयोग बहुत लाभकारी है। जल अधिक मात्रा में पीना चाहिए। अदरक डाल कर तथा शहद मिलाकर जल तथा वर्षा का जल पीना चाहिए। कफ को कम करने के लिए वमन (गुनगुना जल पीकर गले में अंगुली डालकर उल्टी करना), हरड़ के चूर्ण का शहद के साथ मिला कर सेवन करना उपयोगी है।

नियमित रूप से हल्का व्यायाम अथवा योगासन करना चाहिए। सूर्योदय से पहले भमण करने से स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। तैल मालिश करके तथा उबटन लगा कर गुनगुने पानी से (आदत होने पर ठण्डे ताजे पानी से) स्नान करना हितकारी है। औषधियों से तैयार धूमपान तथा आँखों में अंजन का प्रयोग करना चाहिए। स्नान करते समय मलविसर्जक अंगों की सफाई ठीक प्रकार से करनी चाहिए। सिर पर टोपी व छाते का प्रयोग करने से धूप से बचा जा सकता है। स्नान के बाद शरीर पर कपूर, चन्दन, अगरु (अगर), कुंकुम आदि सुगन्धित पदार्थों का लेप लाभकारी होता है।

अपथ्य आहार-विहार

वसन्त-ऋतु में भारी, चिकनाई युक्त, खट्टे (इमली, अमचूर) व मीठे (गुड़, शक्कर) एवं शीत प्रकृति वाले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। नया अनाज, उड़द, रबड़ी, मलाई जैसे भारी भोज्य पदार्थ व खजूर का सेवन भी ठीक नहीं है। खुले आसमान में, नीचे ओस में सोना, ठण्ड में रहना, धूप में घूमना तथा दिन में सोना भी हानिकारक है

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः।सर्वे सन्तु निरामयाः।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥

🌸♾️🌸♾️🌸♾️🌸♾️🌸♾️🌸गुरुत्वाकर्षण बल का सिद्धांत का प्रतिपादन सर्वप्रथम भास्कराचार्य जी ने अपनी पुस्तक “सिद्धांत शिरोमणि” में किया था :–

जब हम गुरुत्वाकर्षण के बारे में बात करते हैं, तो हमारे दिल में पहला नाम “सर आइजैक न्यूटन” का आता है। स्कूल में हम सभी को यह कहानी सुनाई गई है कि जब एक पेड़ से एक सेब गिरा तो न्यूटन को “गुरुत्वाकर्षण का सार्वभौमिक नियम” बनाने की प्रेरणा कैसे मिली। दुनिया मानती है कि गुरुत्वाकर्षण की अवधारणा की खोज सबसे पहले न्यूटन ने की थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत न्यूटन से 1200 साल पहले भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य ने बनाया था।

भास्कराचार्य या भास्कर द्वितीय (1114 – 1185) प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं ज्योतिषी थे। इनके द्वारा रचित मुख्य ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणि है जिसमें लीलावती, बीजगणित, ग्रहगणित तथा गोलाध्याय नामक चार भाग हैं। ये चार भाग क्रमशः अंकगणित, बीजगणित, ग्रहों की गति से सम्बन्धित गणित तथा गोले से सम्बन्धित हैं। आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्य ने उजागर कर दिया था।

सन् 1150 ई० में इन्होंने सिद्धान्त शिरोमणि नामक पुस्तक, संस्कृत श्लोकों में, चार भागों में लिखी है, जो क्रम से इस प्रकार है:

1.पाटीगणिताध्याय या लीलावती,

2.बीजगणिताध्याय,

3.ग्रहगणिताध्याय, तथा

4.गोलाध्याय

भाष्कराचार्य की पुत्री का नाम लीलावती थी। भाष्कराचार्य ने इस नियम की पुष्टि अपनी पुत्री के कहने पर की,जब उनकी पुत्री के मन मे अचानक ये विचार आया तो उसने अपने पिताजी से पूछ ही लिया -“पिताजी, यह पृथ्वी, जिस पर हम निवास करते हैं, किस पर टिकी हुई है?” लीलावती ने शताब्दियों पूर्व यह प्रश्न अपने पिता भास्कराचार्य से पूछा था। इसके उत्तर में भास्कराचार्य ने कहा, “बाले लीलावती !, कुछ लोग जो यह कहते हैं कि यह पृथ्वी शेषनाग, कछुआ या हाथी या अन्य किसी वस्तु पर आधारित है तो वे गलत कहते हैं। यदि यह मान भी लिया जाए कि यह किसी वस्तु पर टिकी हुई है तो भी प्रश्न बना रहता है कि वह वस्तु किस पर टिकी हुई है और इस प्रकार कारण का कारण और फिर उसका कारण… यह क्रम चलता रहा, तो न्याय शास्त्र में इसे अनवस्था दोष कहते हैं।

लीलावती ने कहा फिर भी यह प्रश्न बना रहता है पिताजी कि पृथ्वी किस चीज पर टिकी है?

 

तब भास्कराचार्य ने कहा, क्यों हम यह नहीं मान सकते कि पृथ्वी किसी भी वस्तु पर आधारित नहीं है।….. यदि हम यह कहें कि पृथ्वी अपने ही बल से टिकी है और इसे गुरुत्वाकर्षण शक्ति कह दें तो क्या दोष है?

इस पर लीलावती ने पूछा यह कैसे संभव है। तब भास्कराचार्य सिद्धान्त की बात कहते हैं कि वस्तुओं की शक्ति बड़ी विचित्र है।

उन्होंने ‘सिद्धांत शिरोमणि’ में एक श्लोक लिखा है जिसके तीसरे अध्याय के छठे श्लोक में लिखा है कि ‘पृथ्वी में खींचने की शक्ति है। पृथ्वी भारी चीजों को आकर्षण के बल पर अपनी तरफ खींचती है, आकर्षण के कारण ही ये सब गिरते प्रतीत होते हैं।

–मरुच्लो भूरचला स्वभावतो यतो

विचित्रावतवस्तु शक्त्य:॥ —सिद्धांतशिरोमणि, गोलाध्याय – भुवनकोश

आगे कहते हैं-

आकृष्टिशक्तिश्च मही तया यत् खस्थं

गुरुस्वाभिमुखं स्वशक्तत्या।

आकृष्यते तत्पततीव भाति

समेसमन्तात् क्व पतत्वियं खे॥

— सिद्धांतशिरोमणि गोलाध्याय – भुवनकोश

अर्थात् पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है। पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति से भारी पदार्थों को अपनी ओर खींचती है और आकर्षण के कारण वह जमीन पर गिरते हैं। पर जब आकाश में समान ताकत चारों ओर से लगे, तो कोई कैसे गिरे? अर्थात् आकाश में ग्रह निरावलम्ब रहते हैं क्योंकि विविध ग्रहों की गुरुत्व शक्तियाँ संतुलन बनाए रखती हैं।

उनकी पुस्तक सूर्य सिद्धांत के श्लोकों का एक अंश दिया गया है जो बताता है कि गुरुत्वाकर्षण बल कैसे काम करता है:

“मध्ये समन्तंदस्य भुगोलो व्योम्नि तिष्ठति।”

बिभ्रणः परमं शक्तिं ब्राह्मणो धारणाात्मिकम्।”

संदर्भ (सूर्य सिद्धांत 12वाँ अध्याय 32 श्लोक)

उपरोक्त श्लोक का अर्थ: गोलाकार पृथ्वी धरनात्मकम् ऊर्जा के कारण अंतरिक्ष में दुनिया के केंद्र बिंदु पर रहती है, जो दुनिया को लगातार गिरने से बचाती है और दृढ़ता से खड़े रहने में सहायता करती है।

“अक्रस्ता शक्तिश्च मही तय यत् स्वस्थं गुरु स्वाभिमानं स्वसक्त्य

अक्र्ष्यते तत्पततिव भाति समं समंतत् क्व पत्तव्यं खे”

संदर्भ (सिद्धांत शिरोमणि, भुवनकोष, छठा श्लोक)

भास्कराचार्य का गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के श्लोक का अर्थ: प्रत्येक वस्तु पृथ्वी के आकर्षण के कारण जमीन पर गिरती है। यह शक्ति सूर्य, पृथ्वी, चंद्रमा और आकाशीय पिंडों को घेरे में रहने की अनुमति देती है।

*जिसे मन स्वीकार कर लेता है…*
*वह सुख बन जाता है…*
*और*
*जिसे मन स्वीकार नहीं करता…*
*वह दु:ख बन जाता है…*
*बस यहीं जीवन के सुख -दुःख का सार है..!

इसीलिए **धीरज… अपने लिए ,*
*प्रेम… दूसरों के लिए ,*
*और…*
*करुणा… सभी के लिए…!!*

*🙏 सुप्रभातम 🙏**🌻।।जय श्री कृष्ण।🌻*