आज का पंचाग राशि फल और भगवत प्राप्ति का सरल मार्ग

🌹………..|| *पञ्चाङ्गदर्शन* ||……….🌹
*श्रीशुभ वैक्रमीय सम्वत् २०७७ || शक-सम्वत् १९४२ || याम्यायन् || प्रमादी नाम संवत्सर|| हेमन्त ऋतु || मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष || अष्टमी तिथि अपराह्न ५:२१ तक उपरान्त नौमी || कुजवासर || मार्गशीर्ष सौर २३ प्रविष्ठ || तदनुसार ०८ दिसम्बर २०२० ई० || नक्षत्र पूर्वाफाल्गुनी अपराह्न १:४९ तक उपरान्त अर्यमा || सिंहस्थ चन्द्रमा || श्री भैरवाष्टमी ||*
💐👏🏾 *सुदिनम्* 👏🏾💐
📖 *पर्वानुशंसा………………..*✍
*मार्गशीर्षसिताष्टम्यां कालभैरवसन्निधौ।*
*उपोष्य जागरं कुर्वन् सर्वपापैः प्रमुच्यते।।*
📝 *भावार्थ* 👉🏾 शिवपुराणकी शतरुद्रसंहिता (८|१२) के अनुसार परमेश्वर सदाशिवने मार्गशीर्षमासके कृष्णपक्षकी अष्टमीको भैरवरूपमें अवतार लिया।अतः उन्हें साक्षात् भगवान् शंकर ही मानना चाहिए।
💐👏🏾 *सुदिनम्* 👏🏾💐

*दिनांक, ०८ दिसम्बर मंगलवार* युगाब्द ५१२२, विक्रम संवत् २०७७, शक संवत १९४२, हेमन्त ऋतु, मार्गशीर्ष मास, कृष्ण पक्ष, *अष्टमी* १७.१७ से नवमी तिथि, पूर्व फाल्गुनी १३.४७ से उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र, अभिजीत मुहूर्त :- ११.३७ – १२.२१, राहुकाल १४.४५ – १६.०८. योग :- प्रीति

*प्रभु का मार्ग सरल है और उलझा भी….*
*बुद्धि से चलो तो बहुत उलझा,*
*भक्ति से चलो तो बड़ा सरल..!!*
*विचार से चलो तो बहुत दूर ,*
*भाव से चलो तो बहुत पास…!!*
*दिव्य दृष्टि से देखो तो कण कण में ,*
*अंतर्मन से देखो तो जन जन में…!!!

आजकल सनातन परम्पराओं से विमुख करने के उद्देश्य से लोगों को भगवद् भक्ति की बजाय गुरूपंथी बनाने का प्रचलन बढ़ गया है। यह सनातन परम्पराओं को खंडित कर नास्तिक बनाने का छद्म षडयंत्र से अधिक कुछ नहीं। नास्तिक और गुरूपंथी बनाने के बाद ईसाई या मुस्लिम बनाना सरल हो जाता है। ये निराकार वाले सभी पंथी इसी उद्देश्य से कूटरचित पुरूषार्थ और उद्यम करते रहते हैं। अन्यथा चार करोड़ वर्षों की सनातन संस्कृति तोड़ना इतना सरल कहां होता? अधिकांश गुरूपंथियों का ज्योतिष वेदों पुराणों भाष्य भगवान के साकार रूप मूर्ति पूजा संस्कृत और संस्कृति यज्ञोपवित यज्ञ हवन-पूजन कर्मकांड का विरोध करना और विरोध हेतु कुतर्क गढ़ना मुख्य ऐजेंडा होता है। मूल रूप से ये धर्मद्रोही होते हैं। गुरूपंथियों के समागम में 99 %अभागे हिंदू ही दिखेंगे। आश्चर्यजनक रूप से निराकार मत को मानने वाले झंडाबरदार मुस्लिम या ईसाई नहीं दिखेंगे। हम चार करोड़ वर्षों से “निरंकारमोंकार मूलम् तुरीयं” रूद्राष्टकम् में गाते रहे हैं। यानी निराकार और ओंकार का मूल तू ही है, एक ही है। जो सदा वंदनीय है। बिना आकार का कुछ नहीं होता। हम और आप भी नहीं। संसार ही नहीं होता इसीलिए भगवान ने सगुण साकार श्रृष्टि बनायी है। भगवान स्वयं भी साकार हैं। जो केवल निराकार हो वो किसी को आकार कैसे दे सकता है? अनंन्त अखंड अच्छेद्य अभेद्य अव्यक्त अगोचर अगम्य पारब्रम्ह परमेश्वर को सगुण साकार आनन्दकंद नारायण स्वरूप में देखना ही सौभाग्य की बात है। (ये चर्चा शैव वैष्णव, शाकत्य, स्मार्त, सिक्ख, नागा संन्यासी नाथ पंथी आर्य समाजी जैन बौद्ध परंपरा पर नहीं है ये सभी सनातन संस्कृति के ही सोपान हैं अभिन्न अंग हैं कालखंड की आवश्यकता के अनुसार सृजित हुए हैं अन्यथा ये एक ही हैं सैक्युलर ब्रिगेड और गुरूपंथी शाजिस के तहत इन्हें पृथक पृथक करने की कोशिश करते हैं ये सब सनातनधर्मी ही हैं) यहां कथित गुरुपंथ का आशय रामपाल निरंकारी राम रहीम जैसे हजारों गुरूपंथियों से है, जो लोगों को भगवद् भक्ति से विमुख करने का महापाप करते हैं। । बलिप्रथा भी सनातन धर्म का अंग नहीं है। वेदों में बलि का विधान नहीं है, दुर्गा सप्तशती में जिस माघबलि का उल्लेख है उसमें विधान है कि पत्ते के दौंने में चावल दाल पीली पिठांई रखें और उपर से दही डाल कर उसे अभिमंत्रित करके विश्वानर देव के लिए घर की छत धुर्पली में रखें। साथ ही स्पष्ट रूप से कहा गया है जीव हत्या और मांसाहार बाम मार्गी अधोगामी और आसुरी वृत्तियां है। इन्हें प्रेतयोनियां मिलती हैं और मुक्ति कभी नहीं मिलती। हर हर महादेव। जय नारायण जी की सरकार 💐🙏

🕉🐄 🐚🌞 *सुप्रभातम्* 🌞🐚🐄🕉

🚩 *भारत माता की जय*🚩

*भगति निरूपन बिबिध बिधाना। छमा दया दम लता बिताना॥ सम जम नियम फूल फल ग्याना। हरि पद रति रस बेद बखाना॥*

भावार्थ :- *नाना प्रकार से भक्ति का निरूपण और क्षमा, दया तथा दम (इन्द्रिय निग्रह) लताओं के मण्डप हैं। मन का निग्रह, यम (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह), नियम (शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान) ही उनके फूल हैं, ज्ञान फल है और श्री हरि के चरणों में प्रेम ही इस ज्ञान रूपी फल का रस है। ऐसा वेदों ने कहा है।*
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🍁 *आपका दिन मंगलमय हो* 🍁

🌈 🙏🏼 *वंदे भारत मातरम* 🙏🏼🌈

*स्वस्थ रहे सुरक्षित रहे… 💐 👏*