शिव शर्मा
आतंकवादियों के लिए मध्यरात्रि में भी “न्याय” के द्वार खुले रहते हैं !
आज मतदान हो तो मैं अपने परिचितों से यही कहूंगा कि आँख मूंदकर अमित शाह, मोदी और भाजपा का समर्थन करें, क्योंकि विकल्प में जो पार्टियां हैं वे पहले कुछ अच्छे कार्य भी करती थीं लेकिन अब पूरी तरह से देशद्रोही और जिहादी बन चुकी हैं |
भाजपा के एक नेता ने मुझे फ़ोन पर कहा कि फेसबुक पर आपके पोस्ट देखकर लगता है कि कभी आप भाजपा का समर्थन करते हैं और कभी विरोध ! मेरा उत्तर यही था कि हर चुनाव में मैं अपने खर्चे से भाजपा का कार्य करता हूँ, लेकिन चुनाव के बाद मेरा प्रयास यह रहता है कि भाजपा अपनी विचारधारा पर ईमानदारी और दृढ़ता से कार्य करे — इस प्रयास को कुछ लोग भाजपा का विरोध समझ लेते हैं |
भाजपा का जनाधार बढ़ा है जिस कारण गैर-भाजपाई सोच वाले बहुत से लोग भाजपा से जुड़ गए हैं, उनके कारण ही हिन्दुत्व का मुद्दा ढीला पड़ने लगा है | पण्डित दीनदयाल उपाध्याय की विचारधारा नीचे दब गयी | अतः कड़ाई की आवश्यकता है, वरना भाजपा धीरे-धीरे कांग्रेस बन जायेगी |
ब्लैक-एंड-ह्वाईट में दुनिया देखने वालों को मेरी बातें समझ में नहीं आती | अमित शाह ही नहीं, सभी पार्टियों के सभी नेताओं को अन्धभक्त ही चाहिए, अपने दिमाग से सोचने वाले लोग समर्थक भी हों तो भी नेताओं को खतरनाक लगते हैं | सद्गुण हर नेता में नहीं रहते, बहुत कम नेता अपवाद होते हैं और उनकी बदौलत ही देश को दिशा मिलती है |
नरेन्द्र मोदी और अमित शाह जैसे लोगों में अच्छे नेताओं के सद्गुण हैं, लेकिन आखिर वे भी इन्सान ही हैं, अतः दवाब बनाए रखें ताकि वे हिन्दुत्व के मुद्दे से पीछे न हटें | नरेन्द्र मोदी को अपार जनसमर्थन का एकमात्र कारण है कट्टर हिन्दुत्व वाली उनकी छवि जो कांग्रेस ने बनवाई ! वाजपेयी जी भी अपनी गंगा-जमुनी सोच के कारण प्रधानमन्त्री नहीं बने थे, रामजन्मभूमि मुद्दे के कारण ही दो से बढ़कर दो सौ तक पँहुचे थे | भाजपा जब-जब कट्टर हिन्दुत्व के मुद्दे पर खड़ी हुई, तब-तब जीती है, और जब-जब शाइनिंग-इन्डिया अथवा सबका-साथ-सबका-विकास के नीचे हिन्दुत्व को दफ़न करती है तब-तब हारती है |
कट्टर हिन्दुत्व का अर्थ यह है कि सभी सम्प्रदायों में सौहार्द्र हो और किसी को दबाया न जाय | सेक्युलरिज्म की आड़ में हिन्दुत्व को नष्ट करने का कुचक्र बन्द हो, क्योंकि कट्टर हिन्दुत्व ही सच्चा सेक्युलरिज्म है |
“गंगा-जमुनी सोच” का अर्थ “हिन्दू-मुस्लिम एकता” लगाया जाता है, जैसे कि गंगा हिन्दुत्व की प्रतीक हो और श्रीकृष्ण की यमुना इस्लाम की प्रतीक हो !! रामजन्मभूमि से इस्लाम का कोई सम्बन्ध नहीं है, यह मुद्दा हल होने के बाद श्रीकृष्ण के जन्मस्थल को “जमुनी” सोच से आज़ादी दिलानी है | फिर काशी का असली विश्वनाथ मन्दिर जिसे “ज्ञान वापी मस्जिद” औरंगजेब ने बना दिया | किसी मस्जिद का नाम संस्कृत में होता है ? हिन्दुओं का मंदिर है, हिन्दुओं को वापस चाहिए, यही असली “गंगा-जमुनी” सोच है |
भारत के मुसलमानों को राष्ट्रवाद के विरुद्ध क्यों भड़काया जाता है इसका कारण हमारी मीडिया नहीं बतलाती | संसार में 52 इस्लामी देश हैं, वहाँ के मुसलमान अपने देशों के लिए जान देते हैं | भारत के अधिकाँश मुसलमान भी गद्दार नहीं है | लेकिन एक तबका है जो उन सबको गद्दार बनाना चाहता है | वह तबका है विदेशी मूल वाले मुस्लिम जो सैकड़ों वर्षों से अपने को अशरफ (“शरीफ”, कुलीन) कहते हैं और उनके साहित्य में देशी मूल वाले, अर्थात हिन्दू मूल वाले मुसलमानों को घृणा से अजलफ कहा जाता है | सात सौ वर्ष पहले तुर्क-पठान सल्तनत के दरबारी लेखक ने स्पष्ट लिखा था कि सभी पदों से अजलफों को दूर रखना चाहिए | आज भी वक्फ़ बोर्ड, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, हज कमिटी, आदि से लेकर बड़ी मस्जिदों के इमाम भारतीय मूल के मुसलमानों को नहीं बनने दिया जाता | शाही इमाम बुखारा वाला ही बनेगा, क्योंकि उसका खून “शरीफ” है, भारतीय मुसलमान कहने को तो मुसलमान हैं लेकिन उनका खून काफ़िर वाला है !! यही तबका आतंकवाद, मुस्लिम तुष्टिकरण, पाकिस्तान-परस्ती, आदि के पीछे है | इसी तबके ने देश का विभाजन कराया था, और बारम्बार कराना चाहता है |
इस के पीछे तेल के धनी दर्जनों देशों की ताकत तो है ही, अमरीका जैसे देश भी शक्तिशाली हिन्दू राष्ट्र नहीं चाहते, भारत कमजोर रहेगा तो उनके इशारे पर नाचेगा | आज जो लोग रोहिंग्या को भारत में बसाना चाहते हैं, उनके पीछे वही लोग हैं जो जर्मनी को कमजोर करने के लिए दस लाख अरब “शरणार्थी” को वहां बलपूर्वक भेज चुके हैं, और अभी भी भेज रहे हैं | यूरोप के जिन देशों के रास्ते ये तथाकथित “शरणार्थी” जर्मनी भेजे जाते हैं, वे सारे देश रास्ता तो देते हैं लेकिन अपने देशों में उनको बसने नहीं देते ! इसका कारण है जर्मन एकीकरण के बाद यूरोप के अग्रणी देश के तौर पर जर्मनी का उभरना, जिससे घबडाकर ब्रिटेन और उसकी औलादें (अमरीका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया) जर्मनी को कमजोर करने के लिए यह षड्यन्त्र रच रहे हैं | ISIS के कारण जो लोग शरणार्थी बने हैं उस ISIS को अरब देशों से सहायता मिलती है, वहाँ के शरणार्थी भी अरब नस्ल के हैं, लेकिन एक भी अरब देश उन शरणार्थियों को शरण नहीं देता, जर्मनी भेज रहे हैं !
रोहिंग्या मुस्लिम भी म्यांमार से भारत नहीं आये हैं, बांग्लादेश के रास्ते भारत में छुपकर अवैध तरीके से घुसाए गए हैं | सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि उनमें बच्चे, महिलायें और बूढ़े भी हैं, अतः मानवीय दृष्टिकोण से भी सोचना चाहिए | खतरनाक घुसपैठियों के ऐसी दया राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए घातक है। रोहिंग्या बच्चे हो या बूढ़े, बांग्लादेश से यहाँ क्यों आये, वहीं पर क्यों नहीं रहे ? मूलतः ये सारे लोग बांग्लादेशी ही हैं, वहीं से म्यांमार गए थे — वहां पर बौद्धों और हिन्दुओं को मारकर इस्लामी राष्ट्र स्थापित करने के लिए !
जिस देश में ऐसे “न्यायालय” हों, ऐसी “गंगा-जमुनी सोच” वाली राजनैतिक पार्टियां हों, उस देश का अस्तित्व खतरे में रहेगा | अतः देश को नरेन्द्र मोदी और अमित शाह जैसे नेताओं की सख्त आवश्यकता है, भले ही ये लोग हिन्दुत्व की कसौटी पर पूरी तरह से खरे न उतरे |
सृष्टि के आदि काल से ही ऋग्वेद के जिस नदीसूक्त के मन्त्र द्वारा भारत के लोग स्नान करते आये हैं (इमं मे गंगे यमुने सरस्वति…), उसमें से सरस्वति तो कलियुग के पाप से घबडाकर लुप्त हो गयी, यमुना को विदेशी संस्कृति का प्रतीक बनने से बचाएं | साल में एक दिन के पटाखे से न्यायाधीशों को दमा हो जाता है, लेकिन दिल्ली के कारखानों के प्रदूषित जल से यमुना मर चुकी है उसे बचाने वाला उच्च न्यायालय का निर्णय दशकों से धूल फाँक रहा है — न्यायालय की इस अवमानना पर माननीयों के दृष्टि क्यों नहीं जाती ? क्योंकि वे कारखाने सेठों के हैं ?
ऋग्वेद में कई सूक्त हैं ‘तिस्रो देव्या’ (भारती ईला सरस्वति) के | ईला को ईडा भी कहते हैं | ईडा नाड़ी को “गंगा” अथवा चन्द्रनाड़ी भी कहते हैं | भारती-ईला-सरस्वति ही यमुना-गंगा-सरस्वति हैं, सूर्या-चन्द्रा-सुषुम्ना हैं | भारत का भरण करने वाली सूर्यपुत्री यमी ही यमुना बनकर अवतरित हुई जिसके तट पर ईक्ष्वाकु वंश के सम्राट दिलीप ने “दिली” नगरी की स्थापना की (सर मोनिएर विलियम्स ने “दिलीप” की व्युत्पत्ति बतायी “दिली + प” = दिल्ली का पालक, संस्कृत व्याकरण के अनुसार “दिलीप” का अन्य कोई अर्थ सम्भव ही नहीं है)| दीर्घकाल से उजाड़ पड़ी उस नगरी को श्रीकृष्ण ने पुनः इन्द्रप्रस्थ के नाम से बसाया |
इस्लाम के अनुसार जो अपने को शाह या शाही कहे वह काफ़िर है | बुखारा के उस काफिर खानदान और तमाम अशरफों को बुखारा वापस भगाने या कम से कम महाव्त्पूर्ण पदों से हटाने के बाद ही दिल्ली को पुनः दिली बनाया जा सकता है |
“राष्ट्र का निर्माण ईंट-पत्थर बम-बारूद से नहीं, मानव-मूल्यों से होता है, जिनके स्खलित होने पर राष्ट्र की वह शक्ति क्षीण होती जो मानव को मानव से जोड़कर राष्ट्र का रूप गढ़ती |
“राष्ट्र में यह शक्ति (भारती) जब विद्यमान थी, एक अकेला शिक्षक अपनी चुटिया खोलकर घूम गया तो सभी छात्र उसके पीछे हो लिए, और बिना राजा की सहायता के ही विदेशी आक्रमणकारियों की विशाल सेनाओं को मार भगाया | यह शक्ति क्षीण हुई तो मुट्ठी भर जमीनी और समुद्री दस्यु इस विशाल और अतिप्राचीन देश को बारम्बार पराजित करने में सफल हो गए | ‘लेकिन कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी’ (-इकबाल)| वह बात क्या है, यह स्वतन्त्र भारत के इतिहासकार नहीं बताते, किन्तु औपनिवेशिक युग के इतिहास लेखक विन्सेंट स्मिथ ने लिखा था कि ब्रिटेन (एवं अन्य राष्ट्रों) की राष्ट्रीय एकता तलवार के बलपर कायम हुई, जबकि भारत को एक राष्ट्र के रूप में बाँधने वाला सूत्र राजनैतिक एकता नहीं, बल्कि भारत की विशिष्ट संस्कृति है | महाभारत के आरम्भ में ही भारत की परिभाषा है : भारत (भूगोल का टुकडा ही नहीं बल्कि) एक वृक्ष है जिसके पुष्प तथा फल हैं धर्म और मोक्ष | धर्मरूपी फल द्वारा जो प्रजा का भरण करे उस कल्पवृक्ष को भारत कहते हैं | भारत का प्राण धर्म है, धर्मनिरपेक्षता नहीं | भारतीय संविधान पन्थनिरपेक्ष है, धर्मनिरपेक्ष नहीं | जिस राष्ट्र की नीति धर्म पर नहीं चलती, वह राष्ट्र नहीं कलि है | राजनीति को अधर्म से दूर रखना चाहिए, किन्तु कलियुगी नेता तो राजनीति को धर्म से ही दूर रखने के पक्षधर हैं | भारतीय संस्कृति को सर्वधर्मसमभाव, धर्मनिरपेक्षता, जैसे लुभावने नारों के रूप में परिभाषित किया जा रहा है | सहिष्णुता धर्म का अंग है, किन्तु इस बहाने स्वधर्मत्याग का वातावरण बनाया जा रहा है | जिस वैदिक संस्कृति ने लाखों वर्षों तक इस राष्ट्र को प्राणवान बनाए रखा उसे आयातित तथा पिछड़ेपन का प्रतीक कहकर कलुषित किया जा रहा है | वेद-वेदांग को मिटाने के इस सुनियोजित प्रयास….”
“गंगा-जमुना” को “हिन्दू-मुस्लिम” की खिचड़ी नहीं समझें | मुसलमान कभी खिचड़ी नहीं बनते। वे जन संख्या विविस्फोट और सभी अन्य संभव तरीकों से जवां ए हिंद तक अपने मिशन पर हैं। इसी के तहत मुस्लिमआतंकवादियों द्वारा हमारे जवानों को निशाना बनाया जा रहा है। और हमारे सैनिक बिना युद्ध के लगातार शहीद हो रहे हैं।
मीडिया यह नहीं बतलाती कि म्यांमार में जो लोग हमेशा से “बंगाली मुस्लिम” के नाम से जाने जाते थे, उनको सुनियोजित षड्यन्त्र के तहत अरबी भाषा के शब्द “रोहिंग्या” का नाम दिया गया और उनका अलग राष्ट्र बनाने के लिए अरब पैसे से अलगाववादी हिंसक आन्दोलन बर्मा में आरम्भ कराया गया | आज भी बीस रोहिंग्या सेठ सऊदी अरब में बैठकर इस पूरे आन्दोलन का खर्चा चला रहे हैं, और उनको पाकिस्तान से हथियार तथा प्रशिक्षण दिलाया जाता है | बावन इस्लामी देशों को छोड़कर दुनिया भर के मुस्लिम “शरणार्थी” केवल भारत और जर्मनी की राह ही क्यों पकड़ते हैं ?
साढ़े तीन करोड़ मुकदमें वर्षों से झूल रहे हैं, बिना सजा पाए वर्षों से लाखों निर्दोष लोग जेल में सड़ रहे हैं, उनके लिए न्यायालयों को समय नहीं मिलता ! लेकिन आतंकवादियों के लिए मध्यरात्रि में भी “न्याय” के द्वार खुले रहते हैं ! बिना जन-आन्दोलन के न्याय-प्रणाली ठीक नहीं होने वाली | इसके लिए जनजागरण अनिवार्य है |
जिसने भारत में शरण के लिए आवेदन नहीं दिया, छुपकर घुसपैठ कर गया, उसने कानून तोड़ा है, उसे किस क़ानून के तहत न्यायालय शरण देना चाहता है ?
संसार के किसी देश में ऐसा न्यायालय नहीं है जो वहां के क़ानून के विरुद्ध कार्य करे |
केजरीवाल ने पूरे जीवन में एक ही पुण्य किया – कश्मीरी आतंकियों और अब रोहिंग्या के वकील प्रशान्त भूषण का इलाज कराया | लेकिन पूरा इलाज नहीं कराया | अतः जनजागरण अनिवार्य है | “जनजागरण” का अर्थ समझते हैं न ?
गंगा भी हमारी है, जमुना भी हमारी है, यहाँ के हिन्दू भी हमारे हैं, देसी मुसलमान भी हमारे हैं, लेकिन बुखारा वाले हमारे नहीं हैं | उनका बुखार उतारना है | भारत की अधिकाँश समस्याओं की जड़ ये 0.2% विदेशी मुसलमान हैं | इन्होने ही 99% भारतीयों मुस्लिमों को पिछड़ा बनाकर रखा और अब हिन्दुओं का हक़ मारकर उनको आरक्षण दिलाना चाहते हैं | सात सौ सालों तक राज इन्होने किया, फिर अंग्रेज आये, तो मुसलमानों के पिछड़ेपन के लिए हिन्दू कैसे जिम्मेदार हो गए ? हिन्दू दासों से मैला ढुलवाकर महार, मेस्तर, हलालखोर, आदि नयी जातियाँ इन्हीं अशरफों ने बनवाईं और उसके लिए मनुस्मृति को दोष देते हैं जिसमें ऐसी जातियों की चर्चा ही नहीं है | हिन्दू तो बस्ती के बाहर निर्जन स्थल पर मैला करते थे, मैला उठाने वाली जातियाँ हिन्दुओं के राजकाल में थी ही नहीं | हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार घर में तो क्या, बस्ती की सीमा के भीतर भी मैला नहीं करना चाहिए (अब इतने बड़े नगर बन गए हैं कि इस नियम का पालन सम्भव नहीं रहा, फिर भी प्रयास होना चाहिए कि शौचालय घर के वास्तुमण्डल का हिस्सा न हो)|
बुखारा का शाही मैला हिन्दुस्तान क्यों ढोए ? शाह मर गये, शाही ऐंठन नहीं गयी | यही लोग राष्ट्रगान तक का अपमान करते हैं | असल में ये लोग इस्लामी राष्ट्र का सपना देखते हैं, गजवा-ए-हिन्द का |
जहां धर्म नहीं, वैसा राष्ट्र किस काम का ? मूर्खों के बलपर लूटपाट करने वाले गिरोह तो चल सकते हैं (वह भी कुछ काल के लिए ही, क्योंकि मूर्ख अपना बचाव भी नहीं कर सकते), राष्ट्र का निर्माण सम्भव नहीं | राष्ट्र झुण्ड को नहीं कहते | राष्ट्र संस्कार से बनता है | दिमाग में अन्ध विरोध का भूसा भरा हो तो संस्कार भरने के लिए जगह कहाँ बचेगा ? आज भाजपा सबसे बड़ी पार्टी इसमें बहुत चरित्रवान विद्वान लोग हैं लेकिन बड़ी पार्टी में निहित स्वार्थ के लोग भी घुस कर भाजपा को कांग्रेस बनाने में लगे हैं। भाजपा को याद रखना चाहिए कि उसे म्लेच्छ कभी पनपने नहीं देंगे न वोट देंगे । लेकिन भाजपा ने हिंदुत्व और भारतीय संस्कृति का ऐजेंन्डा छोड़ा तो जो लोग आज साथ हैं वे भी विमुख हो सकते हैं।