कलश जनजाति दुनियां के भविष्य पर मंडराते खतरे का आखिरी सबूत

कलश जनजाति दुनियां के भविष्य पर मंडराते खतरे का आखिरी सबूत तो नहीं बनेगी?

– संजीव कुमार दुबे की कलम से

 एक जगह ले के चलता हूँ… कहाँ ?? ज्यादा दूर नहीं… बस अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान के खैबर-पख़्तूनख्वा प्रान्त के चितराल जिले में। ये जिला इसलिए कि यहाँ एक जनजाति सदियों से रहती आई हैं जिसका कि मैं उल्लेख करने वाला हूँ। हालाँकि ये पहले लगभग पुरे प्रान्त में थे और कुछ अफ़ग़ानिस्तान में भी…. लेकिन अब ये सिकुड़ कर चितराल जिले में रह गए हैं। और ये जनजाति हैं “कलश’’ जनजाति !! इनका जिक्र क्यों कर रहा हूँ… वो आगे आपको मालूम हो जाएगा।.. कभी ये पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में और हिन्दुकुश के क्षेत्रों में बहुत आबाद थे। ये ऋग्वेदिक या प्राचीन हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग हैं। इनका मुख्य धारा से कभी लेना-देना नहीं रहा था.. अपने जंगलों में ये खुश रहते थे.. जब अरबों का आक्रमण हुआ तो जो शहरी लोग थे उनको पहले पहल मुसलमान बनाया गया, कुछ स्वेच्छा(?) से भी बने.. लेकिन ये इस्लाम सिर्फ शहरों तक ही सीमित रहा… . जंगल के आदिवासियों तक नहीं पहुँच पाया था। फिर धीरे-धीरे शहरी लोग बढ़ते गए और जंगल सिकुड़ता गया.. तो शहरी मुसलमानों ने देखा कि कुछ लोग जंगलों में भी रहते हैं और किसी दूजे किसिम के भगवानों को मानते हैं और पूजते हैं… माने हमारे पाक ज़मीन पे कुछ नापाक क़ाफ़िर भी रहते हैं… तो इन मुसलमान बांधवों ने उस क्षेत्र को क़ाफ़िर वाला क्षेत्र याने “क़ाफिरिस्तान” घोषित कर दिया.. और उस क़ाफिरिस्तान भूमि को “पाक” भूमि में परिवर्तित करने का संकल्प भी लिया गया… अब ये कैसे किया जाता हैं… वो तो आप सब भलीभांति जानते ही होंगे .. अरे वही पुराना वाला स्टाइल.. याने तलवार वाली। और तब से शुरू हुआ इनका इस्लामीकरण और इनकी आबादी का घटना।।

सन 1893 में भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच डुरंड लाइन खींची गई जिसमें काफिरिस्तान का बहुल भाग अफ़ग़ानिस्तान में चला गया… 1895-96 में “आमिर ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान”(1880-1901) आमिर अब्दुर रहमान ख़ान ने इस क्षेत्र में हमला करके अपने अधिकार में लिया और एक साल के भीतर ही सिर्फ तलवार के बल पे क़ाफिरिस्तान के सारे कलश जनजाति के लोगों को मुसलमान बना दिया .. और उसके बाद क़ाफिरिस्तान का नाम बदल के “नुरिस्तान” कर दिया। लेकिन बोर्डर के इधर याने पाकिस्तान में इनके ऊपर कोई बड़ा हमला नहीं हुआ था… लेकिन अफ़ग़ानियों की देखा-देखी ये भी उस रास्ते पे चल पड़े… जब नाम हमारा पाकिस्तान तो फिर यहाँ नापाक क़ाफ़िर कैसे रह सकते हैं ? और फिर इधर भी शुरू हुआ इनका इस्लामीकरण… जिसको भी पकड़ा गया ज़बरदस्ती मुसलमान बनाया गया.. 1970-80 के बीच तो इनका खूब इस्लामीकरण हुआ.. ये दर्रों में छुप-छाप के अपने को किसी तरह बचाते रहे और कम भी होते रहे … और अब इनकी आबादी सिमटकर मात्र 3500-4000 के बीच रह गई हैं.. फिर भी इनके पीछे इस्लामिस्ट ग्रुप हाथ-मुँह धो के पड़े हुए हैं.. कुछ दिन पहले तालिबान ने इन सब को अल्टीमेटम दिया था कि या तो मुसलमान बन जाओ या फिर मरने को तैयार रहो। हालाँकि इस अल्टीमेटम के बाद पाकिस्तानी सरकार ने इन्हें नाम मात्र की सुरक्षा प्रदान की है। आज भी इनका कन्वर्जन जारी हैं… लेकिन एक बात हैं कि इनका मुखिया या फिर जो सरदार ऐसे ‘कलश’ के लोग जो इस्लाम अपना चुके होते हैं उसको वो अपने काबिले से हमेशा के लिए बाहर कर देते हैं। उनका कहना हैं कि हम जब तक जिएंगे तब तक सिर्फ और सिर्फ ‘कलश’ ही रहेंगे। आज ये बस अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, इन्हें पता हैं कि ये कुछ वर्षों में समाप्त हो जाएंगे लेकिन अपनी पहचान नहीं खोना चाहते हैं।

अब आते हैं अपने भारतवर्ष में….
मालुम हैं दुनिया की सबसे ज्यादा ‘Indigenous People’ माने “मूलनिवासी” कहाँ रहते हैं ???

अपने भारत में !!.. जी हाँ अपने भारत में..
इनकी टोटल आबादी 85 मिलियन के आस-पास हैं जो कि विश्व के किसी भी देश से कहीं ज्यादा हैं और अभी तक ये अपने को ‘मॉडर्न लाइफस्टाइल” से दूर ही रखा हुआ हैं। माने कि अपनी एक विशिष्ट पहचान को अब तक बनाये हुए रखा हैं।

अगर हम टोटल SC-ST की बात करें तो ये टोटल आबादी के 25 फीसदी हैं। समझ सकते हैं कि 25 फीसदी कितनी होती हैं?…. लेकिन ये आबादी इतनी हैं क्यों ?? और कैसे हैं ??… मुसलमानों की तथाकथित 1000 साल की ग़ुलामी और अंग्रेजों की 250 साल की ग़ुलामी के बावज़ूद ये इतनी संख्या में क्यों हैं ?? अभी तक तो इन्हें मुसलमान और ईसाई बन जाना चाहिए था जैसा कि मिस्र,सीरिया,तु र्की,ईरान,इराक़,अफ़ग़ानिस्तान,पाकिस्तान.. आदि देशों के मूलनिवासियों के साथ हुआ। अगर हम अंग्रेजों के द्वारा थोपे गए ‘आर्यन इंवेजन’ थ्योरी को ही मान के चले तो.. आर्यन लोग यहाँ 5000 वर्ष पुर्व आये और लड़ाईयां भी बहुत हुई, फिर भी 5000 साल के शासन के बाद भी ये इतनी आबादी में हैं माने आर्यन या फिर हिन्दू नहीं हुए हैं! वहीँ 2000 और 1400 साल पहले आये ईसाईयों और मुसलमानों ने भारत को छोड़ अन्य को अपने कब्जे में ले लिया और जहाँ कहीं भी बचे-खुचे हैं उनको अभी भी लिया जा रहा हैं. लेकिन फिर भी भारत में आप एक विशिष्ट मूलनिवासी पहचान बनाने या रखने में सफल रहे हैं.., भला कैसे और क्यों ??

तो ऊपर जो मैंने पाकिस्तान के कलश जनजाति का सन्दर्भ दिया हैं, वो यहाँ भी लागू होता हैं.. पहले ये राजनैतिक जगहों याने शहरी इलाकों में कब्ज़ा करते हैं और जब इनका शहरियों में खूब प्रभाव हो जाता हैं याने पूर्णतः कन्वर्जन हो जाता हैं तब ये गांव और फिर उसके बाद जंगलों की ओर रुख करते हैं। लेकिन जब ये भारत में आये तो इन्हें शहरों में ही कड़ी टक्कर मिली.. ये शहर को कब्जाने में ही उलझे रहे। कहने को तो सल्तनतें कायम हो गई लेकिन सिर्फ नाम मात्र का.. सभी शहरियों का पूर्णतः कन्वर्जन कर ही नहीं पाये.. और जहाँ कहीं भी थोड़ा ज्यादा हुआ उसके बाद वो गाँव की तरफ रुख किये.. लेकिन ये गाँव तक ही आ कर रुक गए…. जंगल में घुसने का इन्हें मौका ही नहीं मिला… इसलिए एक बार हमनें बोला था कि आप कोई कंवर्टेड आदिवासी मुस्लिम ढूंढ़ के दिखा दीजिये। चैलेन्ज था मेरा, शायद एक दो अपवाद में मिल जाए, फिर भी मिल जाय तो सूचित कीजियेगा। तो भारत में ऐसी कौन सी ताक़त थी जिसने इन्हें अब तक जंगल में नहीं घुसने दिया और ऐसी कौन सी ताक़त उन मुल्कों के पास नहीं थी जो आज पूर्णतः मुस्लिम राष्ट्र बन चुके हैं ? अगर मैं भारत की बात करू तो…. वो थी “हिंदुत्व” की ताक़त.. जी हाँ हिंदुत्व की ताक़त… वो ताक़त जो इतने वर्षों के बाद भी हमें अपने मूल में बना के रखा हुआ हैं।

“पार्सियन एम्पायर” जो कभी विश्व की सबसे शक्तिशाली साम्राज्य हुआ करती थी, जिससे रोमन साम्राज्य थर-थर काँपता था, वो साम्राज्य मुसलमानों के आक्रमण को 100 साल भी नहीं झेल पाई.. और यही हाल उन तमाम मुल्कों का हुआ जो आज मुस्लिम राष्ट्र हैं। लेकिन उनका ये पैंतरा भारत में 1400 साल बाद तक भी नहीं चल सका हैं,हालाँकि क्षति के तौर पर पाकिस्तान, बांग्लादेश और कश्मीर मिल चुके हैं।

लेकिन अब इनलोगों ने अपने बाप-दादाओं के स्ट्रेटेजी को बदला हैं, और दूसरे तरीके से हिंदुत्व को कमजोर करने में लगे हुए हैं, जिसमें कि ये सफल भी होते दिख रहे हैं.. जिस दिन हिंदुत्व कमजोर हुई, ये तुम्हें कहीं का भी नहीं छोड़ेंगे। माने पूर्णतः ‘मुल्लाकरण’ और जब भागकर किसी एक जगह पे सिकुड़ कर रह जाओगे न तो उस क्षेत्र को ये “क़ाफिरिस्तान” के नाम से पुकारेंगे।

‘फॉरवर्ड प्रेस’ पत्रिका असुर जनजाति के सुषमा असुर बहन के माध्यम से बता रहा था कि ये अब सिर्फ 9000 के आस-पास में बचे हुए हैं और ये हिंदुत्ववादी सरकार इन्हें अब विलुप्त कर के ही मानेगी.. बड़ा आश्चर्य हुआ मुझे ये जानकर। मैं तमाम सुषमा असुर बहन और आदिवासी बन्धुवों से पूछना चाहता हूँ कि बहन किसी हिन्दू शासक ने कभी आप लोगों को अल्टीमेटम दिया हैं कि हिन्दू बन जाओ नहीं तो जान से हाथ धो बैठोगे ? अगर किसी ने ऐसा फरमान जारी किया हो तो बताना। आज जो आपलोग थोक के भाव में ईसाई बन रहे हो, क्या आप इनसे अपना मूल पहचान बना के रख पाओगे ?? कभी नहीं रख पाओगे।।। आज ये ईसाई तुम्हें तुम्हारे जड़ो से काट रहे हैं और तुम इसे समझ नहीं पा रहे हो ,इसे समझो. जिस आदिवासी पहचान को आपलोग अब तक बना के रख पाये हो, अगर इसी तरह से तुम्हारा इसाईकरण चलता रहा तो तुम आने वाले कुछ ही वर्षों में अपनी पहचान खो बैठोगे।

और इधर जो ‘नीले और हरे झंडे का गठबंधन’ याने दलित-मुस्लिम का गठबंधन चल रहा हैं न उसका एक मात्र उद्देश्य सिर्फ “हिंदुत्व” को कमजोर करना हैं। और जिस दिन ये हुआ, इस्लाम शहर और गाँव को पार करता हुआ जंगल तक पहुँच जाएगा।
मुझे तो ये साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा हैं। अब जिसे ये नहीं दिखाई दे रहा हैं वो ‘बरातियों का स्वागत पान पराग से करते रहे’

*”जय वनवासी, जय भीम , जय सनातन ।”*

धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो,
प्राणियों मे सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो !

*सत्यमेव जयते*

– आपका मित्र
अनुराग त्रिपाठी सामाजिक अभियन्ता नैनीताल (उत्तराखंड )