पलायन समस्या है कि सरकार का नक्कारापन

 

डॉ हरीश मैखुरी 

*पलायन समस्या है कि सरकार का नक्कारापन?*

*लोगों ने नहीं साहब, सरकार ही पलायन कर गयी है* 

पहाड़ वासियों को पलायन करना है या गांव में रहना है यह उनकी मर्जी पर छोड़ दीजिए सरकार। उत्तराखंड सरकार को चाहिए कि पहाड़ में बुनियादी ढांचा तैयार करें ।  अच्छी सड़कें अच्छे गुरुकुल बनाइए, अस्पताल बनाइए, गैरसैंण  में राजधानी बनाईए, वहां पर मेडिकल कॉलेज बनाइए विश्वविद्यालय बनाइए,  हाईकोर्ट बनाइए, माध्यमिक शिक्षा परिषद का कार्यालय गैरसैंण में खोलें, उच्च शिक्षा निदेशालय गैरसैंण में खोलें तो, लोगों का रुख अपने आप पहाड़ की तरफ हो जाएगा और आपको पलायन की चिंता करने की जरूरत ही नहीं होगी, पलायन रोज खराब होता भी नहीं है। देखने में आया है कि  पलायन विकास जनित भी होता है। दुनियां देखने के लिए बच्चे को मां के पेट से बाहर आना ही पड़ता है। कुछ बड़ा करने के लिए आपको बाहर भी जाना पड़ता है। शौक से जाईए। उत्तराखंड के पहाड़ ने सदैव विकास जनित पलायन दिया है। मजबूरी में जो लोग भांडामजू गये वे आज कोठियों के मालिक हैं। भूखनांग के चलते जो लोग घरेलू नौकर गये वे आज अफसर बने हुए हैं।  यहां तक कि देश की दशा दिशा तय करने वाले सिस्टम के अहं हिस्सा हैं। और अपने गांव भी लौटते हैं। अपनी मां पितृ और पैतृक गांव की चिंता, चिंतन करते हैं। यथा संभव योजना भी बनाते हैं। ये गर्व की बात है। चमोली आदिबद्री क्षेत्र के एक नवनी जी थे सचिव सूचना प्रसारण एवं टेलिकॉम भारत सरकार। एक बार मैं दिल्ली में उनसे मिला पहाड़ के प्रति बहुत लगाव दिखा, कहने लगे यार मैंने उत्तराखंड में टीवी टावर और मोबाइल कनैक्टाबिटी के लिए कई बार प्रदेश सरकार से प्रस्ताव मंगवा दिए आज तक नहीं आये। फिर हंसते हुए कहने लगे जिन ग्राम पंचायत में जरूरत हो उन्हीं से प्रस्ताव भिजवा दो यार। कहने का आशय ये है कि हमारे ओहदों पर पंहुचे लोग पहाड़ के लिए चिंतित भी हों पर गुजरना तो उन्हें भी इसी लुंज पुंज सिस्टम से है न, जिसने अपनी सुविधा के लिए उपस्थित लगाने वाली बायोमीट्रिक मशीनें हफ्ते भर में ही खराब कर दी। लेकिन मैं पलायन पर चिंतित नहीं मुझे तो बहुत गर्व है, गीता स्वामी जी महाराज, डॉ स्वामी राम, गोविंद बल्लभ पंत, हेमवती नंदन बहुगुणा, राजेन्द्र धस्माना, मोहन जोशी, नारायण दत्त तिवारी, मुरली मनोहर जोशी, योगी आदित्यनाथ, अजीत डोभाल, बिपिन रावत, कर्नल कोठियाल,  भोले जी महाराज, महंत देवेन्द्र दास, प्रभात डबराल, भूपेंद्र कैंथोला और दिल्ली  देहरादून लखनऊ जैसे शहरों में काम कर रहे सभी उत्तराखंड के भाई बहनों पर जो वहां रहकर भी अपनी माटी को भूले नहीं हैं कुछ न कुछ इसके लिए करते रहते हैं,  शादी विवाह पूजा पाठ करने गांव आते हैं द्यब्ता नचाते हैं। और उससे भी ज्यादा विश्वास है अपने पहाड़ों के अंदर अभावों की जिंदगी गुजारने के बावजूद अपने गांव से रह रहे कामों में लगे हुए लोगों पर। उत्तराखंड के 1करोड़ 20 लाख लोग बाहर देश विदेशों में रहते हैं 15 लाख गांव खाली हैं जरा सोचो सबके सब वापस पहाड़ आगये तो  यहां उनके लिए क्या संसाधन हैं? खुसी की बात है अब तो नयी पीढ़ी में रिवर्स पलायन का चलन भी दिख रहा है। जो बहुत उत्साहित करने वाला है। भारत माता की जय।