बर्फबारी : उत्तराखंड के ऊंचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों का अमृत है इसी से यहां जीवन का आनन्द है

केदारनाथ में भगवान शंकर ने बर्फ में समाधि लगा ली है। अब उनकी यह तंद्रा चैत्र में टूटेगी। बर्फबारी उत्तराखंड के ऊंचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों का जीवन है। यहां बर्फबारी के बाद तापमान बढ़ जाता है और कोरी ठंड से होने वाली खुर्रा खांसी आदि बीमारियाँ भी मिट जाती है। माघ मास में चार पांच दिनों तक निरंतर होने इस बर्फबारी को उतराखंड में “झौड़ पड़ना” कहा जाता है। इस झौड़ की तैयारियां कार्तिक मास में घास काट कर उ$ले के खुंम लगा कर और लकड़ी के चट्टे लगा कर की जाती है। इन दिनों के लिए घर और गोशाला के आसपास हरे चारे के पेड़ भी रखे जाते हैं ताकि झौड़ में उपयोग किए जा सकें। झौड में पशुओं को गोशाला में ही रखा जाता है बणों में चरने नहीं भेजा जाता है। झौड़ पडने से घरती सरसब्ज अर्थात पानी से पोषित हो जाती है। झौड़ के बाद जब आकाश साफ होता है तो रात को खूब पाला पड़ता है जिससे बर्फ सख्त हो जाती है और कुछ दिनों तक टिकी रहती है। इससे पानी भूमि के भीतर रिसने की प्रक्रिया चलती है और भूगत जीवों व घास की जड़ों को जल मिलता है और एक माह उपरांत वसंत में वो नव जीवन के रूप में प्रकट होता है। इससे सेब नाशपाती खुमानी चू$ली तैड़ू आलू की पैदावार अच्छी होती है।  देहरादून में रह रहे हमारे कुछ मीडिया के मित्र लिखते हैं “पहाड़ों में बर्फबारी से बढ़ी मुस्किलें” अरे भाई पहाड़ में जीवन का आन्नद ही बर्फबारी से है यदि बर्फबारी ना हो तभी जो मुस्किल है। इसी कारण उच्च पर्वती गांवों में बर्फबारी के बीच विवाह मुंडन आदि शुभ कार्य संपन्न होने सामान्य बात है ✍️डाॅ0 हरीश मैखुरी