#ओलम्पिक खेलों में ट्रांसजेंडर के नाम पर जो महिलाओं के गेम में हो रहा है, वह आपराधिक है। कल एक इ ट ली की #महिला #बॉक्सर ने 45 सेकंड्स में ही रिंग छोड़ दिया और कहा कि उसे जिस शक्ति से मुक्के पड़े, जो एक #पुरुष एथलीट द्वारा स्वयं को स्त्री कह कर भाग लेने के कारण पड़े, वह उसने कभी नहीं झेला था।
मुझे #ट्रांस_एथलीट से समस्या नहीं है, जब ओलंपिक में बकलोली ही करनी है तो थर्ड जेंडर के लिए अलग समूह बना दो। ये कितनी विचित्र बात है कि एक भी ट्रांस ‘एथलीट’ पुरुष वर्ग में भाग नहीं लेता। यदि ले ले तो ऐसे पेला जाएगा कि बाप-बाप करता अपने लिंग को कोसता फिरेगा।
ट्रांस लोगों द्वारा महिला खेलों में घुस कर रिकॉर्ड्स बनाना कुछ वैसा ही है जैसे चीता को बैलों की रेस में उतार कर प्रसन्न होना की इस बैल की रेस में बैलों के पुराने रेस के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए।
ओलंपिक जैसे बड़े गेम में कैसे एक महिला से जैविक पुरुष को भिडा दिया गया ___?
चौंकाने वाली बात ये है कि एंजेला कैरिनी को एक बायोलॉजीकल पुरुष – इमान खलीफ, जो खुद को एक महिला के रूप में बताता है, के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए मजबूर किया गया!
आख़िर ये कैसा सिद्धांत है जिसके चलते एक वास्तविक महिला को एक वास्तविक पुरुष से बॉक्सिंग करने को बाध्य किया जाता है ताकि एक असली महिला को एक एलजीबीटी पुरुष से पिटवाता है जबकि वो एलजीबीटी पुरुष एक महिला के छद्म रूप में है ।
एक पुरुष सर्जरी करा के भले ही लिंग के स्थान पर योनि बनवा ले लेकिन उसकी आंतरिक संरचना ,उसका शारीरिक बल और उसके पुरुषोचित हार्मोंस सदा पुरुषों वाले ही रहेंगे और इसलिए एक महिला का एक एलजीबीटी पुरुष के नकली स्त्री रूप में मुकाबला नहीं होना चाहिए था।
लिपस्टिक और काजल लगाए इस LGBTQ पुरुष ने महिला बनकर बॉक्सिंग में महिला वर्ग की बॉक्सिग प्रतियोगिता में भाग लिया और तीस सेकंड में ही असली महिला बॉक्सर को बुरी तरह से पराजित किया।
महिला और पुरुष मानसिक खेलों में समान हो सकते हैं जैसे शतरंज में जहां शारीरिक बल की बात होगी वहां पर ओलंपिक खेलों में इसकी मान्यता नहीं होनी चाहिए।
ये एलजीबीटी गैंग और मुस्लिम देश की करस्तानी है जिसका विरोध किया जाना चाहिए। खेलों के इतिहास में एक काला दिन है।
पेरिस में आज चमोली के खल्ला गांव के परमजीत बिष्ट 20 किमी वॉक रेस में अपना दम-खम दिखाएंगे। 23 वर्षीय परमजीत गांव की ऊबड़-खाबड़ पगडंडियों से होता हुआ अपनी प्रतिभा के दम पर पेरिस जा पहुंचा।✍️हरीश मैखुरी