अब प्लास्टिक आदि कचरे से बनेंगी देश सड़कें राजगोपालन वासुदेवन ने करोड़ों के विदेशी आफर ठुकरा कर भारत को निशुल्क दी ऐसी तकनीक

राजगोपालन वासुदेवन: जिन्होंने प्लास्टिक कचरे से बनाई सड़क और देशभक्ति का उदहारण प्रस्तुत किया 

भारत के एक साधारण लेकिन असाधारण वैज्ञानिक, डॉ. राजगोपालन वासुदेवन ने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया है, जिसने पर्यावरण संरक्षण, विज्ञान और देशभक्ति—तीनों क्षेत्रों में एक नई मिसाल कायम की है। उन्होंने 10 साल की अथक मेहनत के बाद प्लास्टिक कचरे से सड़क बनाने की अनोखी तकनीक विकसित की, जो न केवल पर्यावरण के लिए वरदान है, बल्कि भारत जैसे देश में सड़कों की मजबूती और लागत में भी क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है।

कैसे हुई शुरुआत?

डॉ. वासुदेवन मदुरै के एक कॉलेज में प्रोफेसर थे। उन्होंने प्लास्टिक के कचरे की बढ़ती समस्या को बहुत गंभीरता से लिया। प्लास्टिक, जो न सड़ता है, न गलता है, और न ही आसानी से खत्म होता है—एक बड़ा पर्यावरणीय संकट बन चुका था। तब उन्होंने सोचा क्यों न इसका उपयोग किसी रचनात्मक और उपयोगी काम में किया जाए।

लगातार प्रयोग, असफलताएं, रिसर्च और विश्लेषण के बाद उन्होंने एक तकनीक खोजी, जिसमें प्लास्टिक के कचरे को पिघलाकर बिटुमिन (जो सड़कों में इस्तेमाल होता है) के साथ मिलाकर सड़कों पर बिछाया जा सकता है। यह सड़कें सामान्य सड़कों से मजबूत, टिकाऊ और सस्ती होती हैं।

देश के लिए समर्पण

इस तकनीक के सामने आते ही विदेशी कंपनियों ने करोड़ों रुपये का ऑफर दिया ताकि वे इसका पेटेंट खरीद सकें और इसे व्यावसायिक रूप से इस्तेमाल कर सकें। लेकिन डॉ. वासुदेवन ने उन सभी प्रस्तावों को ठुकरा दिया। उन्होंने कहा:

“यह तकनीक मेरे देश की है। इसका उपयोग भारत के विकास और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए होना चाहिए, न कि केवल मुनाफे के लिए।”

उन्होंने यह तकनीक भारत सरकार को बिना किसी शुल्क के सौंप दी। आज भारत में हजारों किलोमीटर सड़कें इस तकनीक से बन चुकी हैं और यह तकनीक स्वच्छ भारत मिशन तथा ग्रीन टेक्नोलॉजी का अहम हिस्सा बन चुकी है।

पर्यावरण और देश के लिए वरदान

इस तकनीक के फायदे अनेक हैं:

पर्यावरण संरक्षण: प्लास्टिक कचरे का पुनः उपयोग कर उसका बोझ कम किया जा रहा है।

मजबूत सड़कें: पारंपरिक सड़कों की तुलना में ये सड़कें अधिक टिकाऊ होती हैं।

कम लागत: प्लास्टिक कचरा एक सस्ता और उपलब्ध संसाधन है, जिससे सड़क निर्माण की लागत घटती है।

रोज़गार सृजन: प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा करने और प्रोसेस करने में नए रोजगार उत्पन्न हो रहे हैं।