समूची धरती पर तुलसी जैसा कोई पौधा नहीं

डाॅ0 हरीश मैखुरी

“गाय को ढोर ना जानिए तुलसी ना जानिए पेड़” अर्थात गाय को केवल ढोर डंगर पशु नहीं समझना चाहिए और तुलसी को सिर्फ पेड़-पौधा समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। युगों से तुलसी का बिरवा भारत में हर आंगन और घर की शोभा यूं ही नहीं होता,  बल्कि तुलसी के पौधे में एक कोस के घेरे तक जरासीम (बैक्टिरिया) नष्ट करने की शक्ति है। तो ऊपरी बाधाएं भी उस घर में नहीं आती जहां तुलसी का पौधा हो। तुलसी धरती पर ओजोन गैस का एक मात्र स्रोत है। ओजोन गैस के कारण ही धरती का पानी वाष्प बनकर वायुमण्डल में नहीं समाता और सूर्य देव की घातक पराबैंगनी किरणें धरती तक नहीं पहुंचती। यही नहीं तुलसी का नियमित सेवन हमारे रोग-प्रतिरोधी क्षमता (इम्यून सिस्टम) को बढ़ाता है और कैंसर को पनपने नहीं देता। यजुर्वेद में तुलसी से अमृत, और स्वर्ण बनाने की विधि और उपयोग विधियां सूत्र रूप में दी गई है। इस समग्र जानकारी को हमारे ऋषिमुनी जानते थे,  इसीलिए उन्होंने हर घर में तुलसी उगाने की विधी और पहल की थी। बाद में वैज्ञानिक आविष्कारों से भी तुलसी की महता जग जाहिर हुई है। अनेक आख्यानों में तुलसी को पराभौतिकी पौधा बतातेहुए इसे आनन्द का स्कस्त्रोत कहा गया है, इसी कारण वेद पुराण भागवतजैसे ग्मेंग्रंथों में तुलसी की महत्ता बताई गई है। भगवान नारायण के शालिग्राम विविग्रह का भोग तुलसी के बिना तो लगता ही नहीं। रविवार को तुलसी तोडना तो दूर छूना भी  वर्जित है। तुलसी का अर्थ है “तुला सी” अर्थात जिसकी कोई तुलना नहीं जो अतुलनीय है। तुलसी भगवान विष्णु को अत्यन्त प्रिय है।

इस्लामी विविद्वानों के  अनुसार भी  तुलसी को रैहान कहा गया जिसमें इंसानों के लिये फायदे ही फायदे हैं। सूरह रहमान की आयत में इस धरती पर पाये जाने वाले अल्लाह की नेमतों में तुलसी का नाम है तो सूरह वाकिया में इसका वर्णन जन्नती पौधे के रुप में हुआ है। यानि तुलसी उन बिशिष्ट पौधों में शामिल है जो इस धरती पर भी है और जन्नत में भी है, इसी से इस पौधे की फजीलत का पता चलता है। तुलसी को यह आला मुकाम हासिल हो भी क्यों न, क्योंकि इससे इंसान को तो हर तरह का फायदा तो पहुँचता ही है, यह पर्यावरण को भी स्वच्छ रखता है।  तुलसी द्विबीजपत्री औषधीय पौधा है, जिसकी लंबाई 1 से तीन फीट तक होती है। इसकी पत्तियां बैगनी आभा वाली तथा हल्के रोयें से ढ़की होती है। पत्तियों का आकर 1 से 2 इंच तक होती है। पुष्प मंजरी बहुरंगी छटाओं वाली होती है जिसपर बैगनी और गुलाबी आभा वाले बहुत से पुष्प लगतें हैं। तुलसी की दो प्रधान प्रजातियां हैं , श्रीतुलसी जिसकी पत्तियां हरी होती है और कृष्णा तुलसी जिसकीपत्तियां नीलाभ और कुछ-2 बैगनी रंग की होती है।अंग्रेज़ी में इसे basil कहते हैं जबकि  अरबी में इसे” रैहान”  नाम से पुकारा जाता है। सामान्यता लोगों में ये धारणा है कि तुलसी को केवल हिंदू धर्म में महत्ता दी गई है पर कुरान, हदीस और कई अन्य इस्लामी ग्रंथों का अध्ययन करने से ये पता चलता है कि नबी के चिकित्सीय ज्ञान पर डाॅ0 खालिद गजनवी ने ‘तिब्बे नबी और जदीद साइंस‘ नाम से अपनी  किताब में इस्लामी तिब्ब (चिकित्सा) की कई किताबों में रैहान का अर्थ तुलसी माना गया है।  दुबई के प्रसिद्व शहर दुबई में पवित्र कुरान पार्क बनाये जाने की योजना है जिसे  सिर्फ तुलसी से सजाया जायेगा।  बल्कि ये तक लिखा है कि ‘‘कुरान मजीद ने जन्नत में मिलने वाले बेहतरीन चीजों में तुलसी को शामिल फरमाया है,  जिससे जाहिर ये होता है कि ये लजीज, मुफीद तथा अपने फवायद में यक्ता है।‘‘ ये आगे लिखतें हैं कि ‘‘हिंदू मजहब में तुलसी को बड़ी अहमियत हासिल है, हर वह हिंदू जिसके धर में खुली जगह मयस्सर है, तुलसी का पौधा लगाकर बाइसे बरकत इसका ख्याल रखता है। इस पौधे की परवरिश बड़ी अकीदत से की जाती है। धर के बुर्जुग सुबह उठकर इसको बड़ी अकीदत के साथ पानी देतें हैं। गुमान किया जाता है कि तुलसी जो कि अहले-खाना की मां है उनकी हिफाजत करती है और उस धर में रहमत के फरिश्ते आते  हैं। अरबी में इसे रैहान कहना पसंकरते हैं। विद्वानों ने अपने शोध पत्रों, किताबों और आलेखों में रैहान का शाब्दिक अर्थ तुलसी कहा है। हिंदू धर्म और इस्लाम पंथ दोनों ही में तुलसी को अत्यंत बिशिष्ट स्थान प्राप्त है। इस्लाम में जहां इसे खुदा की नेमत और जन्नती पौधा बताया गया है वहीं हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि जिस धर में तुलसी का पौधा नहीं होता वहां ईश्वर आना पसंद नहीं करते। तुलसी को पूजनीया माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अलावे तुलसी आयुर्वेद और चिकित्साशास्त्र में भी बिशिष्ट स्थान रखता है। भारतबर्ष समेत दुनिया के तमाम हिस्सों में रोगोपचार और उससे बचाव के लिये सदियों से तुलसी का इस्तेमाल किया जाता रहा है। प्राचीन तथा आधुनिक चिकित्सा शास्त्र की कोई भी विधि हो (एलोपैथी, होमियोपैथी, आयुर्वेद या यूनानी) तुलसी सभी में प्रयुक्त की जाती है। सामान्यतया हिंदू घरों में तुलसी का पौधा होता ही है और ये अपने गले में तुलसी की माला धारण करते हैं । धरती पर पेड़-पौधों की हजारों किस्में हैं  परंतु पुराणों में वर्णित पौधों में तुलसी का एक अति बिशिष्ट मुकाम है , यह तुला सी अतुलनीय है। कुरान के अनुसार जन्नतुल-फिरदौस में नूर और रौशनी रैहान (तुलसी) की चमकती डालियों  होंगी और मलकुलमौत और रुह कब्ज करने वाले फरिश्तों के हाथ में इस पवित्र पौधे का होना जन्नती होने की खुशखबरी होगी, इतनी बिशेषतायें वाले इस पौधे जिसके चिकित्सीय और औषधीय गुणों का चिकित्सा शास्त्र भी कायल है, तुलसी को अपने धर में विशेष स्थान और माला के रुप में अपने गले में प्रयोग के द्वारा आप अपने उद्धार की इबादत खुद लिख सकते हैं।