प्रो.नारायण सिंह बिष्ट-जिन्होंने पलायन नहीं, पहाड़ अपनाया

 

हरीश मैखुरी

देहरादून – पलायन उत्तराखंड की सबसे बड़ी त्रासदी है इससे निपटने का सुझाव और तरीका फिलहाल न सरकारों के पास है और न किसी व्यक्ति विशेष ने इस दिशा में अभी तक सार्वभौमिक काम किया, लोगों में तराई के शहरों में बसना एक फैशन बन गया और बेरोजगारी से निपटने का लोगों ने एक तरीका पलायन के रूप में खोज निकाला। लगातार खाली होते पहाड़ों और सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा का संकट देख उत्तराखंड सरकार ने पलायन आयोग ही बना डाला ऐसे में प्रोफेसर नारायण सिंह बिष्ट का जीवन पूरे पहाड़ और पलायन करने वाले युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है। गढ़वाल विश्ववद्यालय के डीन रहे अर्थशास्त्री प्रो० नारायण सिंह बिष्ट आजीवन पहाड़ों में ही रह कर जीवन संघर्ष में शामिल लोगों के लिए एक मिशाल भी बने रहे। पिछले दिनों उनके निधन से पहाड़ों में बसागत कर रही एक बड़ी आबादी को बड़ा झटका भी लगा है। चमोली जनपद के सड़क सुविधा से वंचित दशोली विकासखंड के दूरस्थ गांव सरतोली में जन्मे प्रोफेसर नारायण सिंह बिष्ट का जीवन संघर्षों से भरा रहा। पुराने जमाने में भी आभावों के बीच शिक्षा ग्रहण कर उन्होंने रेशम विभाग से अदनी नौकरी पाकर सरकारी सेवा की शुरुआत की। इसके बावजूद उनके भीतर आगे बड़ी नौकरी में जाने का जज़्बाथा। सेवा के कुछ ही दिन बाद वे सहायक विकास अधिकारी उद्योग के पद पर काबिज़ होने में कामयाब हो गए। इसी दौर में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर उपाधि भी हासिल कर ली और कुछ की अंतराल के बाद वे डॉक्टरेट करने में भी कामयाब हो गए। इसके बाद डॉक्टर बिष्ट गढ़वाल विश्वविद्यालय में प्राध्यापक बनने में सफल हो गए। जीवन पर्यन्त अर्थशास्त्र विषय में वे बच्चों को पढ़ाने के साथ ही पारंगत भी हो गए। गढ़वाल विश्वविद्यालय में डीन रहते हुए उन्होंने एक अर्थशस्त्री के रूप में देश में अपनी विशिष्ट पहचान भी बनाई। यही वजह है कि एशिया पैसिफिक पर सेरेमिक इंडस्ट्री में वह पहले रिसर्च होल्डर भी रहे। उत्तराखंड के लिए सस्टेनेबल डेवलपमेंट पर उनके कई शोध भी प्रकाशित हुए। ये नहीं उन्हें प्लैनिंग कमीशन सदस्य के रूप में भी देश की सेवा करने का अवसर मिला। गढ़वाल मंडल विकास निगम के बोर्ड ऑफ डायरक्टर्स के पद पर भी रह कर उन्होंने निगम के आर्थिक हालातों में सुधार के लिए कई टिप्स भी दिए। अर्थशास्त्र पर उनके कई रिसर्च पेपर आज भी नहीं पीढ़ी के लिए शोध के विषय बने हुए हैं। अर्थशास्त्र विषय पर प्रो.नारायण सिंह बिष्ट के सैकड़ों रिसर्च पेपर लेख और पुस्तकें प्रकाशित हैं। उनके सानिध्य और निर्देशन में कई विद्यार्थियों ने रिसर्च भी किया देश के प्रमुख अर्थशास्त्रियों में शुमार बिष्ट की कोई राजनीतिक वर्ग में पहुंच न होने कारण वे मौजूदा दौर के पुरूस्कारों की भीड़ से भी दूर रहे।पत्नी सरला बिष्ट प्रधानाचार्य के पद से रिटायार हुई तो पति-पत्नी गोपेश्वर जैसे पहाड़ी कस्बे में ही अपना घर बना कर रहने लगे। इसी दौरान उन्होंने नारायण सेवा संस्थान के जरिए यहां के हालातों पर काम करना शुरू किया। निसंतान इस परिवार ने मौजूदा दौर में पहाड़ों से पलायन कर महानगरों की सुख सुविधा की परवाह किए बगैर पहाड़ी कस्बे गोपेश्वर में ही बसागत करना बेहतर समझा। उनका सम्पूर्ण जीवन ही शिक्षाप्रद है वे जीवन के अंतिम पड़ाव में भी वे गोपेश्वर में ही जमे रहे। मौजूदा दौर में पलायन के चलते जब पहाड़ के गांव से लेकर बाज़ार तक खाली हो गए हैं तो तब प्रोफेसर बिष्ट यहां रह रहे लोगों के लिए सुख दुःख के साथी भी बन गए थे। अब जबकि पलायन ने पहाड़ों को खाली कर दिया है तो दिवंगत बिष्ट पलायन करने वालों लिए एक मिसाल बन गए । 88 साल की उम्र में देहरादून के एक निजी स्पताल में भले उन्होंने अंतिम सांस ली हो, लेकिन इसके बावजूद आम पहाड़ी जन मानस में वे अपना नाम छोड़ गए हैं। पहाड़ों की मौजूदा पीढ़ी के लिए पहाड़ों में ही बसागत कर वे मिशाल कायम कर गये, जीवन में ऊंचे मुकामों पर पहुंचना अच्छी बात है किन्तु अपनी पहाड़ की माटी की खुशबू से जुड़ाव अवश्य रहना चाहिए, इसी में पहाड़ों का बेहतर भविष्य है। पलायन रोकने के लिए प्रो बिष्ट ने अपने अर्थशास्त्र में दर्जनों तरीके सुझाये हैं सरकार को उनका साहित्य चर्चा के लिए सार्वजनिक करना चाहिए और उनके सुझावों पर एक्शन प्लान बनाना चाहिए।