लेलिन का बुत क्या हटा बामियान पर खामोश रहने वाले भी बोलने लगे

हरीश मैखुरी

भारत के त्रिपुरा राज्य में कुछ लोगों ने लेनिन का एक बुत हटा दिया। भारतीय जनता पार्टी त्रिपुरा ने इस घटना से किनारा करते हुए कहा कि इससे पार्टी का कोई वास्ता नहीं,  साथ ही घटना की जांच की बात कही। इधर देश भर के वामपंथी इससे खासे बिलबिलाये हुए हैं और इसे भाजपा की तालिबानी कार्यवाही बताने से नहीं चूक रहे। अब सवाल यही उठता है कि मूर्ति पूजा के घोर विरोधी होने के बावजूद ये कामरेडस् आखिर मूर्तियां लगवाते क्यों हैं? ये भी तो बुतपरस्ती हुई न। और जब रुस आदि देशों नें ही घिसी पिटी 18वीं शदी की भोगवादी कम्युनिस्ट विचारधारा छोड़ दी है। तब इस यूरोपियन विचार को भारतीय काहे ढोये जा रहे हैं? खासकर तब जबकि भारत की अपनी वैज्ञानिक सनातन संस्कृति, अपनी स्वावलंबी आर्थिकी, और अब तो दुनियां का सबसे बड़ा आधुनिक और सफलतम लोकतंत्र भी मौजूद है। ऐसे में जनता के पैसे से राजनीतिक दलों द्वारा बुत खड़े करने का औचित्य? ये बुत आखिर देश को किधर ले जाएंगे? विकास कार्यों की बलि देकर ऐसे  बुत खड़े करना तुष्टिकरण से ज्यादा क्या है? रही बात लेनिन की मूर्ति की तो लेनिन स्टालिन सरीखे लोग कितनी हत्याओं के लिए जिम्मेदार रहे हैं ये भी बताओ ना देश को। खास बात यह है कि जिन लोगों ने बामियान में दुर्लभ और फिर कभी नहीं बन सकने वाली मूर्तियों को बुत परस्ती बता कर खामोशी ओढ़ रखी थी वे कल से एक सामान्य  बुत के टूटने पर खासे बेचेन ही नहीं तालिबान की दुहाई से भी बाज नहीं आ रहे हैं, ये शर्मनाक है। हम कतई इस घटना के पक्ष में नहीं हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि इस दौर में इस्लामीकरण देश की गंभीर समस्या है। यह दुर्दान्तं अरैबिक कबीलाई आसुरि राजनीतिक सभ्यता अब तक दुनियां की कई देशों की सभ्यताओं और पशुओं तक को लील चुकी है। और भारत के टुकड़े अफगानिस्तान पाकिस्तान बंगला के रूप में पहले ही कर चुकी है। भारत के बामपंथी इस्लामिकरण एजेंसियों के मददगार साबित हुए हैं । बंगाल व केरल का इस्लामीकरण इन्हीं के राज में हुआ। कम्युनिस्ट विचारधारा एक खास तरह की मजदूर आधारित औद्योगिक इकाइयों की संपत्ति बराबर बांटने से संबंधित आर्थिक विचारधारा भर थी , जो उत्पादन में कम्प्यूटरीकृत इंडस्ट्री व कार्पोरेट सैक्टर आजाने के बाद आज निस्प्रोज्य हो चुकी है। लेकिन भारत के कम्युनिस्ट इसे जबरन ढोये जा रहे हैं। इधर छत्तीसगढ़ गढ़ इलाके में तो कम्युनिस्टों में नक्सली विचार वाली साखा सालों से खासा आतंक फैलाये हुए है। देखने वाली बात ये है कि भारत में उससे अच्छी अहिंसक व अपरिग्रह विचारधारा पहले ही स्थापित है। सारा भ्रष्टाचार सिर्फ धन संपत्ति संग्रह की लोलुपता के कारण ही तो है। ये कम्युनिस्ट और इस्लामिक विचार तो भारतीय आर्ष साहित्य के सिर्फ एक श्लोक के बराबर भी नहीं हैं “सर्वे भवन्तु सुखिन:सर्वे संतु निरामयाः” बुतों के टूटने पर शोक मनाने वाले आतंकवादियों के हाथों जिंदा लोगों व इंसानियत की हत्याओं पर कभी मुखर नहीं होते। कश्मीर में 5लाख हिन्दुओं के भगाये जाने पर मुंह नहीं खोलते। और याद रहे आज कल मूर्ति टूटने पर बिलबिलाने वालों त्रिपुरा में राजीव गांधी की मूर्ति पर कालिख पोतने के बाद तुम्हीं ने तोड़ने की शुरूवात की याद आया कि भूल गये? अब बन रहे सात पानी से नहाये हुए। इसलिए स्वच्छ भारत अभियान आज की अपरिहार्य जरूरत है।