जाने जप माला में 108 दाने क्यों होते हैं और यज्ञोपवीत में तीन लड़, नौ तार और ९६ चौवे का रहस्य क्या है ?

जप माला में क्यों होते हैं १०८ दाने!

हिन्दू धर्म में हम मंत्र जप के लिए जिस माला का उपयोग करते हैं, उस माला में दानों की संख्या १०८ होती है। शास्त्रों में संख्या १०८ का अत्यधिक महत्व होता है।माला में १०८ ही दाने क्यों होते हैं, इसके पीछे कई धार्मिक, ज्योतिषीय और वैज्ञानिक मान्यताएं हैं।

सूर्य की एक एक कला का प्रतीक होता है माला का एक एक दाना!

एक मान्यता के अनुसार माला के १०८ दाने और सूर्य की कलाओं का गहरा संबंध है। एक वर्ष में सूर्य २१६००० कलाएं बदलता है और वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता है। छह माह उत्तरायण रहता है और छह माह दक्षिणायन। अत: सूर्य छह माह की एक स्थिति में १०८००० बार कलाएं बदलता है।

सूर्य की एक एक कला का प्रतीक है एक एक दाना!

इसी संख्या १०८००० से अंतिम तीन शून्य हटाकर माला के १०८ मोती निर्धारित किए गए हैं। माला का एक एक दाना सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक है। सूर्य ही व्यक्ति को तेजस्वी बनाता है, समाज में मान सम्मान दिलवाता है। सूर्य साक्षात दिखने वाले देवता हैं, इसी वजह से सूर्य की कलाओं के आधार पर दानों की संख्या १०८ निर्धारित की गई है। माला में १०८ दाने रहते हैं।

सांसों के आधार पर निर्धारित है जपमाला के १०८ दाने!

इस संबंध में शास्त्रों में दिया गया है कि एक पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति दिनभर में जितनी बार सांस लेता है, उसी से माला के दानों की संख्या १०८ का संबंध है। सामान्यत: २४ घंटे में एक व्यक्ति करीब २१६०० बार सांस लेता है। दिन के २४ घंटों में से १२ घंटे दैनिक कार्यों में व्यतीत हो जाते हैं और शेष १२ घंटों में व्यक्ति सांस लेता है १०८०० बार। इसी समय में देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को हर सांस पर यानी पूजन के लिए निर्धारित समय १२ घंटे में १०८०० बार ईश्वर का ध्यान करना चाहिए, लेकिन यह संभव नहीं हो पाता है। इसीलिए १०८०० बार सांस लेने की संख्या से अंतिम दो शून्य हटाकर जप के लिए १०८ संख्या निर्धारित की गई है। इसी संख्या के आधार पर जप की माला में १०८ दाने होते हैं।

१०८ के लिए ज्योतिष की मान्यता!

ज्योतिष के अनुसार ब्रह्मांड को १२ भागों में विभाजित किया गया है। इन १२ भागों के नाम मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। इन १२ राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं। अत: ग्रहों की संख्या ९ का गुणा किया जाए राशियों की संख्या १२ में तो संख्या १०८ प्राप्त हो जाती है।

संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करती है यह संख्या।

माला के दानों की संख्या १०८ संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करती है। एक अन्य मान्यता के अनुसार ऋषियों ने माला में १०८ दाने रखने के पीछे ज्योतिषी कारण बताया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल २७ नक्षत्र बताए गए हैं। हर नक्षत्र के ४ चरण होते हैं और २७ नक्षत्रों के कुल चरण १०८ ही होते हैं। माला का एक एक दाना नक्षत्र के एक एक चरण का प्रतिनिधित्व करता है।

किसे कहते हैं सुमेरू!

माला के दानों से मालूम हो जाता है कि मंत्र जप की कितनी संख्या हो गई है। जप की माला में सबसे ऊपर एक बड़ा दाना होता है जो कि सुमेरू कहलाता है। सुमेरू से ही जप की संख्या प्रारंभ होती है और यहीं पर खत्म भी। जब जप का एक चक्र पूर्ण होकर सुमेरू दाने तक पहुंच जाता है तब माला को पलट लिया जाता है। सुमेरू को लांघना नहीं चाहिए।

जब भी मंत्र जप पूर्ण करें तो सुमेरू को माथे पर लगाकर नमन करना चाहिए। इससे जप का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

यज्ञोपवीत में तीन लड़, नौ तार और ९६ चौवे ही क्यों?

यज्ञोपवीत के तीन लड़, सृष्टि के समस्त पहलुओं में व्याप्त त्रिविध धर्मों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं। तैत्तिरीय संहिता ६, ३, १०, ५ के अनुसार तीन लड़ों से तीन ऋणों का बोध होता है। ब्रह्मचर्य से ऋषिऋण, यज्ञ से देवऋण और प्रजापालन से पितृऋण चुकाया जाता है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश यज्ञोपवीतधारी द्विज की उपासना से प्रसन्न होते हैं। त्रिगुणात्मक तीन लड़ बल, वीर्य और ओज को बढ़ाने वाले हैं, वेदत्रयी, ऋक, यजु, साम की रक्षा करती हैं। सत, रज व तम तीन गुणों की सगुणात्मक वृद्धि करते हैं। यह तीनों लोकों के यश की प्रतीक हैं। माता, पिता और आचार्य के प्रति समर्पण, कर्तव्यपालन, कर्तव्यनिष्ठा की बोधक हैं।

सामवेदीय छान्दोग्यसूत्र में लिखा है, ब्रह्माजी ने तीन वेदों से तीन लड़ों का सूत्र बनाया विष्णु ने ज्ञान, कर्म, उपासना इन तीनों कांडों से तिगुना किया और शिवजी ने गायत्री से अभिमंत्रित कर उसमें ब्रह्म गांठ लगा दी। इस प्रकार यज्ञोपवीत नौ तार और ग्रंथियां समेत बनकर तैयार हुआ। यज्ञोपवीत के नौ सूत्रों में नौ देवता वास करते हैं;

१. ओंकार: ब्रह्म, २. अग्नि: तेज, ३. अनंत: धैर्य, ४. चंद्र: शीतल प्रकाश, ५. पितृगण: स्नेह, ६. प्रजापति: प्रजापालन, ७. वायु: स्वच्छता ८. सूर्य: प्रताप, ९. सब देवता: समदर्शन। इन नौ देवताओं के, नौ गुणों को धारण करना भी नौ तार का अभिप्राय है। यज्ञोपवीत धारण करने वाले को देवताओं के नौ गुण; ब्रह्म, परायणता, तेजस्विता, धैर्य, नम्रता, दया, परोपकार, स्वच्छता और शक्ति संपन्नता को निरंतर अपनाने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।

यज्ञोपवीत के नौ धागे नौ सद्गुणों के प्रतीक भी माने जाते हैं। ये हृदय में प्रेम, वाणी में माधुर्य, व्यवहार में सरलता, नारी मात्र के प्रति पवित्र भावना, कर्म में कला और सौंदर्य की अभिव्यक्ति, सबके प्रति उदारता और सेवा भावना, शिष्टाचार और अनुशासन, स्वाध्याय एवं सत्संग, स्वच्छता, व्यवस्था और निरालस्यता माने गए हैं, जिन्हें अपनाने का निरंतर प्रयत्न करना चाहिए। वेद और गायत्री के अभिमत को स्वीकार करना और यज्ञोपवीत पहनकर ही गायत्री मंत्र का जाप करना।

९६ चौवे (चप्पे) लगाने का अभिप्राय है, क्योंकि गायत्री मंत्र में २४ अक्षर हैं और वेद ४ हैं। इस प्रकार चारों वेदों के गायत्री मंत्रों के कुल गुणनफल ९६ अक्षर आते हैं। सामवेदी छान्दोग्य के तिथि १५, वार ७, नक्षत्र २७, तत्त्व २५, वेद ४, गुण ३, काल सूत्र मतानुसार ३, मास १२ इन सबका जोड़ ९६ होता है। ब्रह्म पुरुष के शरीर में सूत्रात्मा प्राण का ९६ वस्तु कंधे से कटि पर्यंत यज्ञोपवीत पड़ा हुआ है, ऐसा भाव यज्ञोपवीत धारण करने वाले को मन में रखना चाहिए।

*छत्तीसगढ़ में : विष्णु.*

*मध्यप्रदेश में : मोहन.*

*राजस्थान में : भजन.*

*विष्णु रूप धर मोहन है आये*

*सारे संसार को भजन कराए।*

*मोदी की लीला अपरंपार है!*🚩