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37 मुसलमान सांसद हैं एक ने भी बक्फबोर्ड संशोधन का समर्थन नहीं किया लेकिन 232 जयचंदो ने देश को बर्बाद करने के लिए भू-माफिया #बक्फबोर्ड के पक्ष में वोट दिया। https://www.facebook.com/share/r/15ts9dQLZW/
एक पाकिस्तान देश काट कर बनाया एक पाकिस्तान बक्फबोर्ड को नो लाख एकड़ भूमि दे कर देश के भीतर बना दिया।
#मुसलमानों के लिए मजहब के आधार पर पाकिस्तान बनते ही सभी मुसलमान भारत में अवैध नागरिक हो गए थे । अब ये अवैध कब्जाधारी आये दिन धमकी देते हैं कि #किसी_के_बाप_का_हिन्दुस्तान #थोड़ी है। इन दुर्दांत लुटेरे मुगल आक्रान्ताओं के पिछलग्गुओं की ये हिम्मत संसद में बैठे गद्दारों के कारण आती है। 37 मुसलमान सांसद हैं एक ने भी बक्फबोर्ड संशोधन का समर्थन नहीं किया लेकिन 232 जयचंदो ने देश को बर्बाद करने के लिए भू-माफिया #बक्फबोर्ड के पक्ष में वोट दिया। #भारत को #पाकिस्तान बनाने के पक्ष में वोट करने वाले देश के जयचंदो सांसद पद से #त्यागपत्र दे कर पाकिस्तान जाओ गद्दारों।
क्यों कि अरबी कबीलों के दुर्दांत पिछलग्गू राष्ट्र गान में खड़े नहीं होंगे भारत माता की जय नहीं बोलेंगे झंडे को सलामी नहीं देंगे लेकिन देश के #संसाधनों पर #पहल_हक हमारा भी है। पूरा पाकिस्तान और बांग्लादेश लेकर भी जिनका पेट नहीं भरा,अब उन्हें वक्फ के बहाने अब हिंदुस्तान भी चाहिए।https://www.facebook.com/share/r/1NWiKvem48/
बक्फबोर्ड के रूप में भारत के भीतर एक पाकिस्तान बनाने के बाद इन्हे बक्फबोर्ड की शक्ति सुप्रीम कोर्ट संसद और संविधान से भी उपर चाहिए और कांग्रेस ने ऐसा करने का पूरा षड्यंत्र रचा भी और रच भी रही है।
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अब तो लगता है कि बक्फबोर्ड संशोधन विधेयक के विरूद्ध याचिकाओं और आन्दोलनजीवियों के पीछे भी कांग्रेस गठबंधन है पश्चिम बंगाल में कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में हुए विशाल प्रदर्शन ये यह सिद्ध भी हो जाता है ।
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पाकिस्तानभारत को अपने अब्बा की जागीर जैसे बांटने वालों पर बढ़िया कहानी गढ़ी जाती उन्हें महिमामंडित भी बहुत किया जाता है। देश का बंटवारा करने वाले महान हो गये यहां तक कि देश का पिता चचा और न जाने क्या क्या बताया जाता है। लेकिन ये नहीं बताया जाता है कि देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले गुरू गोविन्द सिंह के बच्चों को किसने और कैसे मारा! बंदा बैरागी के बच्चे को मारकर उस बच्चे का कलेजा निकाल कर बाप को खिलाने वाले मुगल आक्रान्ता आतंकवादी नहीं थे क्या! छत्रपति शिवाजी संभा जी महाराज जैसे हजारों योद्धाओं और तीन करोड़ भारतीयों की हत्या करने वाले मुगल आक्रान्ता तीस हजार मंदिरों का सोना लूट कर उन्हें तोड़ने वाले मुगल आक्रान्ता तीन लाख गुरूकुल समाप्त करने वाले नालंदा तक्षशिला विक्रम शिला और शारदा जैसे सैकड़ो विश्व विद्यालय नष्ट करने वाले लुटेरे आक्रान्ता तुम्हें आतंकवादी नहीं दिखते! दिखेंगे कैसे देश के पहले अरबी शिक्षा मंत्री ने उन्हें पाठ्यक्रम की कहानियों में महान जो बनवा दिया। मुगल आक्रान्ताओं के दुर्दांत पिछलग्गु बने हुए डायरेक्ट एक्शन डे करने वाले मजहबी उन्मादियों के लिए भारत के टुकड़े करने वालों के लिए ही भारत में फिर से भू-माफिया #बक्फबोर्ड बना कर पाकिस्तान के बराबर भारत पुन: देदिया अब इसमें संशोधन ना हो इस पर छाती पीटी जा रही है। अस्तु भारत के फिर टुकड़े ना हो और देश अखंड रहे इसके लिए आवश्यक है कि भारत के बंटवारे करने वालों की फिर से समीक्षा हो १९४८ भारत का बंटवारा करने वालों का उदेश्य क्या था इस पर खुल कर चर्चा हो भारत के इतिहास और विधान की फिर से समीक्षा हो।
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वक़्फ़ बिल एक्ट बनने से पहले ही
सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी –
कितने उतावले हैं –
वक़्फ़ बोर्ड एक दाग था और
न्यायपालिका पर भी दाग
लगा हुआ है –
सोच समझ कर निर्णय करें –
जब राष्ट्रपति ने वक़्फ़ संशोधन बिल को संसद से पास होने के बाद मंजूरी दी है लेकिन उसके पहले ही ओवैसी और कांग्रेस के मोहम्मद जावेद ने सुप्रीम कोर्ट में बिल को ही चुनौती दे दी जो किसी मायने में उचित नहीं थी – बिल को संसद में पास होने के बाद और एक्ट बनने से पहले कैसे चुनौती दे सकते हो, इसका मतलब ये लोग संसद की भूमिका को ही चुनौती दे रहे हैं – फिर तो राज्यसभा और लोकसभा को प्रतिवादी बनाना चाहिए –
बताया गया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा ने भी याचिका दायर की है -और वकील खड़े हुए हैं कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी – अब ये सोचते होंगे कि सुप्रीम कोर्ट में ये सेटिंग कर लेंगे और कानून को गिरवा देंगे जैसे इलेक्टोरल बांड को गिरवा दिया था ।
अनेक लोग कह रहे हैं कि ओवैसी समेत बड़े बड़े मुस्लिम नेताओं ने वक़्फ़ की संपत्तियों पर कब्ज़ा किया हुआ है – एक मौलाना तो कह रहा था मुस्लिम संगठनों के किसी भी व्यक्ति की संपत्ति देख लो सबमे गड़बड़झाला मिलेगा – एक तरफ मुस्लिम नेता मुसलमानों को सड़कों पर उतरने के लिए भड़का रहे हैं और यह काम कांग्रेस नेतृत्व भी कर रहा है और दूसरी तरफ ये कोर्ट में भी लड़ना चाहते हैं – कई राज्यों में मुस्लिम वक़्फ़ बिल के पास होने पर जश्न भी मना रहे है।
इसमें तो कोई शक नहीं है कि वक़्फ़ की संपत्तियोंमें जमकर घोटाला हुआ है और किसी गरीब मुसलमान को कुछ नहीं मिला – यानी यह मुस्लिम समाज के लिए भी एक दाग था जिसे मिटाने के लिए कुछ संशोधन किए गए हैं –
लेकिन अब मामला न्यायपालिका के पास गया है और यह नहीं भूलना चाहिए कि आज न्यायपालिका स्वयं कलंकित है खासकर यशवंत वर्मा के घर से मिले धन के बाद – वैसे सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णय संदेह के घेरे में रहे है – केजरीवाल की जमानत में यह कैसे मान लिया जाए कि कोई सौदेबाजी नहीं हुई क्योंकि उसके लिए संजीव खन्ना ने जो 3 जजों की बेंच बनाने के लिए कहा था वह 9 महीने बाद भी नहीं बनी है –
ठीक चुनाव से पहले इलेक्टोरल बांड्स पर चंद्रचूड़ का निर्णय देकर सात साल बाद उन्हें असंवैधानिक कहना अपने आप में संदेह पैदा करता था और वह संदेह तब और पुख्ता हो गया जब अमेरिका से 182 करोड़ रुपया भारत में अस्थिरता फ़ैलाने के लिए भेजने की बात सामने आई – एक तरफ सुप्रीम कोर्ट कहता है कि अवैध निर्माण गिराना गलत नहीं है और दूसरी तरफ ऐसे निर्माणों को बनाने के लिए बढ़ावा देता है – हल्द्वानी के बनफूलपुरा में रेलवे लाइन पर हजारो लोगों के कब्जे को गिराने पर जनवरी, 2023 में रोक लगा दी और तब से कोई सुनवाई नहीं हो रही –
चंद्रचूड़ ने Places of Worship act में किसी सर्वे पर रोक ना लगाने की बात कही थी और कहा था कि यह एक्ट सर्वे करने से नहीं रोकता लेकिन संजीव खन्ना ने चीफ जस्टिस बनकर सभी सर्वे बंद करा दिए, चल रहे मुकदमों की सुनवाई रोक दी और कोई भी फैसला सुनाने से मना कर दिया जब तक इस पर सुप्रीम कोर्ट फैसला न सुना दे – याद रहे यह मामला 2020 से चल रहा है जिसका मतलब है पंचवर्षीय योजना पूरी हो गई और अब अगली पंचवर्षीय योजना शुरू कर दी गई है –
इसलिए सुप्रीम कोर्ट को वक़्फ़ मामले में संसद के अधिकारों से टकराने से पहले 50 बार सोच लेना चाहिए – अभी पहले ही सुप्रीम कोर्ट के जज दबाव में हैं जो अपनी संपत्तियों की घोषणा करने की बात कर रहे हैं – उपराष्ट्रपति धनखड़ कई बार कह चुके है कि न्यायपालिका के पास विधायिका की कानून बनाने के शक्तियां नहीं है, वे केवल विधायिका और कार्यपालिका का काम है -इसलिए कोर्ट एक्ट को खारिज करने की भूल न करें (साभार सुभाष चंद्र)
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भारत के हिंदुओं पर इतना जुल्म और भारत के हिंदुओं के इतने विरोधी तो अंग्रेज भी नहीं थे जितने विरोधी कांग्रेस पार्टी है। क्या भारतीय राजाओं ने सरदार पटेल के कहने पर इसलिए अपने राजवाड़े देश के नाम समर्पित किए थे की कोई इस देश को अपने अब्बा की जागीर की तरह बांटे! या इसलिए लाखों भारतीयों ने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी थी कि यहां के काले अंग्रेज फिर से उन्हीं का विधान लागू करें!यदि हिंदुओं के अंदर #जयचंद नहीं होते तो आतंकी आक्रांत मुगल भारत ना ❌आए होते और यदि हिंदुओं में #हिंदूद्रोही ना होते तो हिंदुओं के ऊपर संविधान की आड़ में शरिया कानून ना❌ थोपे गए होते यदि भारत में #सेक्युलर लोग ना होते होते तो इस्लाम का विस्तार नहीं ❌ होता और भारत में अन्याय की जगह न्याय✔️ होता कल तक जो वक्फ बोर्ड भारत के संविधान भारत के सुप्रीम कोर्ट भारत के प्रधानमंत्री भारत के राष्ट्रपति से भी बड़ा था अब उसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होगी।
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वक़्फ़ बिल एक्ट बनने से पहले ही
सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी –
कितने उतावले हैं –
वक़्फ़ बोर्ड एक दाग था और
न्यायपालिका पर भी दाग
लगा हुआ है –
सोच समझ कर निर्णय करें –
कल राष्ट्रपति ने वक़्फ़ संशोधन बिल को संसद से पास होने के बाद मंजूरी दी है लेकिन उसके पहले ही ओवैसी और कांग्रेस के मोहम्मद जावेद ने सुप्रीम कोर्ट में बिल को ही चुनौती दे दी जो किसी मायने में उचित नहीं थी – बिल को संसद में पास होने के बाद और एक्ट बनने से पहले कैसे चुनौती दे सकते हो, इसका मतलब ये लोग संसद की भूमिका को ही चुनौती दे रहे हैं – फिर तो राज्यसभा और लोकसभा को प्रतिवादी बनाना चाहिए –
बताया गया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा ने भी याचिका दायर की है -और वकील खड़े हुए हैं कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी – अब ये सोचते होंगे कि सुप्रीम कोर्ट में ये सेटिंग कर लेंगे और कानून को गिरवा देंगे जैसे इलेक्टोरल बांड को गिरवा दिया था –
अनेक लोग कह रहे हैं कि ओवैसी समेत बड़े बड़े मुस्लिम नेताओं ने वक़्फ़ की संपत्तियों पर कब्ज़ा किया हुआ है – एक मौलाना तो कह रहा था मुस्लिम संगठनों के किसी भी व्यक्ति की संपत्ति देख लो सबमे गड़बड़झाला मिलेगा – एक तरफ मुस्लिम नेता मुसलमानों को सड़कों पर उतरने के लिए भड़का रहे हैं और यह काम कांग्रेस नेतृत्व भी कर रहा है और दूसरी तरफ ये कोर्ट में भी लड़ना चाहते हैं – कई राज्यों में मुस्लिम वक़्फ़ बिल के पास होने पर जश्न भी मना रहे है।
इसमें तो कोई शक नहीं है कि वक़्फ़ की संपत्तियोंमें जमकर घोटाला हुआ है और किसी गरीब मुसलमान को कुछ नहीं मिला – यानी यह मुस्लिम समाज के लिए भी एक दाग था जिसे मिटाने के लिए कुछ संशोधन किए गए हैं –
लेकिन अब मामला न्यायपालिका के पास गया है और यह नहीं भूलना चाहिए कि आज न्यायपालिका स्वयं कलंकित है खासकर यशवंत वर्मा के घर से मिले धन के बाद – वैसे सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णय संदेह के घेरे में रहे है – केजरीवाल की जमानत में यह कैसे मान लिया जाए कि कोई सौदेबाजी नहीं हुई क्योंकि उसके लिए संजीव खन्ना ने जो 3 जजों की बेंच बनाने के लिए कहा था वह 9 महीने बाद भी नहीं बनी है –
ठीक चुनाव से पहले इलेक्टोरल बांड्स पर चंद्रचूड़ का निर्णय देकर सात साल बाद उन्हें असंवैधानिक कहना अपने आप में संदेह पैदा करता था और वह संदेह तब और पुख्ता हो गया जब अमेरिका से 182 करोड़ रुपया भारत में अस्थिरता फ़ैलाने के लिए भेजने की बात सामने आई – एक तरफ सुप्रीम कोर्ट कहता है कि अवैध निर्माण गिराना गलत नहीं है और दूसरी तरफ ऐसे निर्माणों को बनाने के लिए बढ़ावा देता है – हल्द्वानी के बनफूलपुरा में रेलवे लाइन पर हजारो लोगों के कब्जे को गिराने पर जनवरी, 2023 में रोक लगा दी और तब से कोई सुनवाई नहीं हो रही –
चंद्रचूड़ ने Places of Worship act में किसी सर्वे पर रोक ना लगाने की बात कही थी और कहा था कि यह एक्ट सर्वे करने से नहीं रोकता लेकिन संजीव खन्ना ने चीफ जस्टिस बनकर सभी सर्वे बंद करा दिए, चल रहे मुकदमों की सुनवाई रोक दी और कोई भी फैसला सुनाने से मना कर दिया जब तक इस पर सुप्रीम कोर्ट फैसला न सुना दे – याद रहे यह मामला 2020 से चल रहा है जिसका मतलब है पंचवर्षीय योजना पूरी हो गई और अब अगली पंचवर्षीय योजना शुरू कर दी गई है –
इसलिए सुप्रीम कोर्ट को वक़्फ़ मामले में संसद के अधिकारों से टकराने से पहले 50 बार सोच लेना चाहिए – अभी पहले ही सुप्रीम कोर्ट के जज दबाव में हैं जो अपनी संपत्तियों की घोषणा करने की बात कर रहे हैं – उपराष्ट्रपति धनखड़ कई बार कह चुके है कि न्यायपालिका के पास विधायिका की कानून बनाने के शक्तियां नहीं है, वे केवल विधायिका और कार्यपालिका का काम है -इसलिए कोर्ट एक्ट को खारिज करने की भूल न करे क्योंकि कोर्ट का कार्यक्षेत्र केवर संसद द्वारा पारित कानूनों की व्यवस्था और व्याख्या करना है न कि संसद के कार्य में हस्ताक्षेप करना और यदि कोर्ट हस्तक्षेप करती है तब तो देश में कोई कानून बनेगा ही नहीं। बता दें कि बचे खुचे भारत को पाकिस्तान बनाने के लिए उद्दत जयचंद संसद में भी बैठे हैं!, कांग्रेस ने जिस बक्फबोर्ड को सुप्रीम कोर्ट से भी उपर बनाने का षड्यंत्र रचा अब औवैसी जमीयत, कपिल सिब्बल, आदि २९ याचिकाओं में बक्फबोर्ड को संसद से उपर बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट गये हैं। बक्फबोर्ड के बहाने बचे खुचे भारत को पाकिस्तान बनाने के लिए उद्दत जयचंद ! आखिर बक्फबोर्ड को कानून संसद और सुप्रिम कोर्ट से भी उपर क्यों बनाना चाहते हैं!
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*आइए वक्फ अधिनियम (Waqf Act), खासकर 1995 के मूल अधिनियम और उसके 2013 के संशोधन की कुछ मुख्य और विवादित बातों पर नजर डालते हैं — और समझते हैं कि किस आधार पर ये संवैधानिक चुनौती का सामना कर सकते हैं…!!***
1. वक्फ संपत्ति का स्वत: पंजीकरण (धारा 40, 36 आदि)
*विवाद:**
वक्फ बोर्ड को यह अधिकार है कि वह किसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर दे—even अगर असली मालिक इसका विरोध करे।
संविधानिक चिंता: यह अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और संपत्ति के अधिकार (अनुच्छेद 300A) का उल्लंघन माना जा सकता है, क्योंकि:
कई बार मालिक को उचित सुनवाई का अवसर नहीं मिलता।
संपत्ति को “वक्फ” घोषित करने की प्रक्रिया एकतरफा होती है।
*2. वक्फ ट्रिब्यूनल का एकाधिकार (धारा 83)**
*विवाद:**
वक्फ से जुड़े विवादों के लिए केवल वक्फ ट्रिब्यूनल में मामला चल सकता है; सिविल कोर्ट की कोई भूमिका नहीं होती।
*संविधानिक चिंता:**
यह न्याय तक समान पहुंच (Right to access justice) पर असर डालता है।
ट्रिब्यूनल में न्यायिक स्वतंत्रता और निष्पक्षता की कमी हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कहा है कि ट्रिब्यूनल्स की शक्ति सीमित होनी चाहिए (जैसे L. Chandra Kumar v. Union of India)।
3. पुनः कब्जा लेने की शक्ति (धारा 54)
*विवाद:**
वक्फ बोर्ड को यह शक्ति दी गई है कि वह “अवैध कब्जा” हटवाने के लिए प्रशासन से सीधा कब्जा दिलवा सकता है—बिना न्यायिक आदेश के।
*संविधानिक चिंता:**
यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों (principles of natural justice) के खिलाफ हो सकता है।
*4. वक्फ बोर्ड की स्वायत्त शक्ति और राजनीतिक प्रभाव**
वक्फ बोर्ड एक अर्ध-सरकारी संस्था होते हुए भी मौलिक अधिकारों और पारदर्शिता के मानकों का पूरी तरह पालन नहीं करता।
इसमें सदस्यों की नियुक्ति, जांच प्रक्रिया, और अधिकारों का संतुलन कई बार सवालों के घेरे में रहा है।
*क्या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है?**
हाँ, हाल के वर्षों में कई याचिकाएँ दायर की गई हैं जो वक्फ अधिनियम की वैधता और प्रक्रिया पर सवाल उठाती हैं। कुछ मामलों में सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों ने वक्फ ट्रिब्यूनल की कार्यप्रणाली और संपत्ति से जुड़ी प्रक्रिया पर सख्त टिप्पणियाँ भी की हैं**
क्या आप मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों का हिस्सा बनने की अनुमति देंगे?’, वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ; जानिए 10 बड़ी बातें
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अहम सुनवाई हुई। CJI संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले में दो अहम पहलुओं पर विचार करने की बात कही। साथ ही कोर्ट ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से ‘वक्फ बाई यूजर’ के मुद्दे पर जवाब मांगा है। अगली सुनवाई गुरुवार को होगी। कोर्ट ने आज साफ किया कि कानून पर रोक की मांग पर कोई सुनवाई नहीं होगी।
कोर्ट की तरफ से बुधवार को कोई आदेश जारी नहीं किया गया। सीजेआई ने मौखिक रूप से कहा कि जो भी संपत्ति उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ घोषित की गई है, या कोर्ट द्वारा घोषित की गई है, उसे अधिसूचित नहीं किया जाएगा। साथ ही कोर्ट ने कहा कि पदेन सदस्य नियुक्त किए जा सकते हैं, उन्हें धर्म की परवाह किए बिना नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन अन्य मुस्लिम होने चाहिए। ऐसे में आइए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून से जुड़ी 10 बड़ी बातें-
*1.:* सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि क्या मुसलमानों को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान हिंदू धार्मिक ट्रस्टों का हिस्सा बनने की अनुमति दी जाएगी। पीठ ने कहा कि आप उपयोगकर्ता द्वारा ऐसे वक्फों को कैसे पंजीकृत करेंगे? उनके पास कौन से दस्तावेज़ होंगे? इससे कुछ पूर्ववत हो जाएगा। हां, कुछ दुरुपयोग है। लेकिन वास्तविक भी हैं। मैंने प्रिवी काउंसिल के फ़ैसलों को भी पढ़ा है। उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ को मान्यता दी गई है। यदि आप इसे पूर्ववत करते हैं तो यह एक समस्या होगी। विधानमंडल किसी निर्णय, आदेश या डिक्री को शून्य घोषित नहीं कर सकता। आप केवल आधार ले सकते हैं। मेहता ने कहा कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग है जो वक्फ अधिनियम द्वारा शासित नहीं होना चाहता है। पीठ ने तब मेहता से पूछा कि क्या आप कह रहे हैं कि अब से आप मुसलमानों को हिंदू बंदोबस्ती बोर्डों का हिस्सा बनने की अनुमति देंगे। इसे खुलकर कहें। शीर्ष अदालत ने कहा कि जब 100 या 200 साल पहले किसी सार्वजनिक ट्रस्ट को वक्फ घोषित किया जाता है, तो उसे अचानक वक्फ बोर्ड द्वारा अपने अधीन नहीं लिया जा सकता और अन्यथा घोषित नहीं किया जा सकता। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, पीठ ने कहा, “आप अतीत को फिर से नहीं लिख सकते।
*2.:* वक्फ (संशोधन) अधिनियम पर सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि नए कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में हो रही हिंसा से वह बहुत परेशान है। सीजेआई खन्ना ने कहा कि एक बार जब सुप्रीम कोर्ट ने मामले को अपने हाथ में ले लिया है, तो ऐसा नहीं होना चाहिए। एसजी ने कहा कि इस तरह की हिंसा दबाव की रणनीति के एक नए तरीके के रूप में उभरी है। नये कानून के तहत वक्फ बोर्ड की संरचना क्या है? विधेयक में राज्य/संघ राज्य क्षेत्र वक्फ बोर्डों में बोहरा और अघाखानी समुदायों से एक-एक सदस्य को शामिल करने का प्रावधान किया गया है, यदि उनके पास कार्यात्मक औकाफ है। इसके अलावा, बोर्ड में शिया और सुन्नी सदस्यों के अलावा पिछड़े वर्ग के मुसलमानों का भी प्रतिनिधित्व होगा। इसमें नगर पालिकाओं या पंचायतों से दो या अधिक निर्वाचित सदस्य शामिल हैं, जो वक्फ मामलों में स्थानीय शासन को मजबूत करते हैं। बोर्ड/(केन्द्रीय वक्फ परिषद) सीडब्ल्यूसी में पदेन सदस्यों को छोड़कर दो गैर-मुस्लिम सदस्य होंगे।
*3.:* याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल सहित कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने पक्ष रखा। सिब्बल ने कहा कि यह संशोधन संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक समुदायों को अपने धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता देता है। उन्होंने सवाल उठाया कि कानून के मुताबिक, मुझे अपने धर्म की आवश्यक प्रथाओं का पालन करने का अधिकार है। सरकार कैसे तय कर सकती है कि वक्फ केवल वही लोग बना सकते हैं, जो पिछले पांच साल से इस्लाम का पालन कर रहे हैं? सिब्बल ने यह भी तर्क दिया कि इस्लाम में उत्तराधिकार मृत्यु के बाद मिलता है, लेकिन यह कानून उससे पहले ही हस्तक्षेप करता है। उन्होंने अधिनियम की धारा 3(सी) का हवाला देते हुए कहा कि इसके तहत सरकारी संपत्ति को वक्फ के रूप में मान्यता नहीं दी जाएगी, जो पहले से वक्फ घोषित थी। सिब्बल ने कहा कि 20 करोड़ लोगों के अधिकारों को इसके आधार पर हड़पा जा सकता है। सिब्बल ने कहा कि पहले कोई लिमिटेशन नहीं थी। इनमें से कई वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण किया गया था।वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि यह कानून इस्लाम धर्म की अंदरूनी व्यवस्था के खिलाफ है। अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि 8 लाख में से 4 वक्फ हैं, जो उपयोगकर्ता के द्वारा हैं। उन्होंने इस बात को लेकर चिंता जताई कि वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधन के बाद इन संपत्तियों पर खतरा उत्पन्न हो गया है.सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अदालत इस समय उस कानून पर सुनवाई कर रही है, जिसे व्यापक चर्चा और विचार-विमर्श के बाद लाया गया है।
*4.:* वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी दलीलें दीं और कहा कि हमने सुना है कि संसद की जमीन भी वक्फ की है। वहीं, CJI खन्ना ने जवाब दिया कि हम यह नहीं कह रहे कि सभी वक्फ गलत तरीके से पंजीकृत हैं, लेकिन कुछ चिंताएं हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि इस मामले की सुनवाई हाई कोर्ट को सौंपी जा सकती है। सिब्बल की दलीलों पर CJI ने कहा कि ऐसे कितने मामले होंगे? मेरी समझ से व्याख्या आपके पक्ष में है। अगर किसी संपत्ति को प्राचीन स्मारक घोषित करने से पहले वक्फ घोषित किया गया था, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। सिंघवी ने कहा कि अनुच्छेद 25 और 26 को पढ़ने से ज्यादा अनुच्छेद 32 क्या है, यह ऐसा मामला नहीं है जहां मीलॉर्ड्स को हमें HC भेजना चाहिए। अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि वक्फ संसोधित अधिनियम के रूल 3( 3)(डीए) में कलेक्टर को व्यापक रूप से परिभाषित किया गया है। लोगों को अधिकारी के पास जाने के लिए बनाया गया है। वरिष्ठ वकील सीयू सिंह ने कहा कि अनुच्छेद 26 देखें, मैं आवश्यक धार्मिक तर्क से भटक रहा हूं, यह यहां महत्वपूर्ण नहीं है। कृपया धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के बीच अंतर देखें, इसमें धार्मिक आवश्यक अभ्यास के प्रश्न का उत्तर देने की आवश्यकता नहीं है। अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने भी कहा कि अधिनियम की धारा 3(आर) के तीन पहलुओं पर ध्यान देना जरूरी है। खासकर इस बात पर कि ‘इस्लाम का पालन करना’ यदि आवश्यक धार्मिक अभ्यास माना जाता है, तो इसका प्रभाव नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर भी पड़ सकता है। अहमदी ने कहा कि यह अस्पष्टता पैदा करता है।
*5.:* सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से भी तीखे सवाल पूछे। सीजेआई ने एसजी तुषार मेहता से कहा कि वक्फ बाई यूजर क्यों हटाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 14,15वीं सदी की अधिकांश मस्जिदों में बिक्री विलेख नहीं होगा। अधिकांश मस्जिदें वक्फ बाई यूजर होंगी। इस पर एसजी ने कहा कि उन्हें इसे पंजीकृत करवाने से किसने रोका? सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि अगर सरकार कहने लगी कि ये जमीनें सरकारी हैं तो क्या होगा?याचिकाकर्ता की तरफ से सिब्बल ने राम जन्मभूमि के फैसले का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि धारा 36, आप उपयोगकर्ता द्वारा बना सकते हैं, संपत्ति की कोई आवश्यकता नहीं है। मान लीजिए कि यह मेरी अपनी संपत्ति है और मैं इसका उपयोग करना चाहता हूं, मैं पंजीकरण नहीं करना चाहता। सुप्रीम कोर्ट ने सिब्बल से पूछा कि पंजीकरण में क्या समस्या है? सिब्बल ने कहा कि मैं कह रहा हूं कि उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ को समाप्त कर दिया गया है, यह मेरे धर्म का अभिन्न अंग है, इसे राम जन्मभूमि फैसले में मान्यता दी गई है। सिब्बल ने कहा कि समस्या यह है कि वे कहेंगे कि यदि वक्फ 3000 साल पहले बनाया गया है तो वे डीड मांगेंगे। एसजी तुषार मेहता ने कहा कि कोर्ट इस समय उस कानून पर सुनवाई कर रही है, जिसे व्यापक चर्चा और विचार-विमर्श के बाद लाया गया है। अब मैं वह सच्चाई सामने रख रहा हूं, जिसे याचिकाकर्ता नजरअंदाज कर रहे हैं। इस कानून को बनाने के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया गया था। इस समिति ने कई बैठकें कीं, देश के प्रमुख शहरों का दौरा किया, विभिन्न पक्षों से परामर्श किया और प्राप्त हुए 29 लाख सुझावों पर गंभीरता से विचार किया उसके बाद इसे सदन में पास करवाया गया।
*6.:* वक्फ अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सीजेआई संजीव खन्ना ने कहा कि हम दोनों पक्षों से दो पहलुओं पर विचार करने के लिए कहना चाहते हैं। सबसे पहले, क्या हमें इस पर विचार करना चाहिए या इसे उच्च न्यायालय को सौंप देना चाहिए? दूसरा, संक्षेप में बताएं कि आप वास्तव में क्या आग्रह कर रहे हैं और क्या तर्क देना चाहते हैं?
*7.:* इस कानून की वैधता को चुनौती देते हुए कुल 72 याचिकाएं दायर की गई हैं। याचिकाकर्ताओं में एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी), जमीयत उलमा-ए-हिंद, डीएमके और कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और मोहम्मद जावेद शामिल हैं। इसके बाद शीर्ष अदालत में कई नई याचिकाएं भी दायर की गईं, जिनमें टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, संभल से समाजवादी पार्टी के सांसद जिया-उर-रहमान बर्क की याचिकाएं भी शामिल हैं। आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआरसीपी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई), तमिलगा वेट्री कझगम प्रमुख और अभिनेता से नेता बने विजय ने भी इस मुद्दे पर शीर्ष अदालत का रुख किया है। अधिवक्ता हरि शंकर जैन और मणि मुंजाल ने भी कानून के कई प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को इस आधार पर चुनौती देते हुए एक अलग याचिका दायर की है कि वे गैर-मुसलमानों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। केंद्र ने भी 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में एक कैविएट दायर की, जिसमें किसी भी आदेश को जारी करने से पहले सुनवाई का अनुरोध किया गया।
*8.:* सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 100 से अधिक याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा है। इस अधिनियम में वक्फ संपत्ति के प्रमाणीकरण की मांग की गई है और वक्फ परिषद तथा औकाफ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति का प्रावधान है। लेकिन कानून के क्रियान्वयन पर रोक नहीं लगाई।
*9.:* वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर चल रही सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के बाहर बोलते हुए कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा कि (कोर्ट रूम के अंदर) बहुत भीड़ है, यहां तक कि अंदर जाना भी मुश्किल है। सुनवाई अभी शुरू ही हुई है, और मुझे पूरा भरोसा है कि न्याय मिलेगा। हम न्यायिक कार्यवाही पर टिप्पणी नहीं कर सकते, लेकिन हमें पूरा विश्वास है कि यहां से न्याय मिलेगा। समाजवादी पार्टी के सांसद जिया उर रहमान बर्क ने सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से पहले कहा था कि सुप्रीम कोर्ट आज याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। मैंने और हमारी पार्टी के अखिलेश यादव ने संसद में लाए गए (वक्फ) बिल का विरोध किया था। यह बिल हमारे समाज को बांटने और हमारे देश के विकास में बाधा डालने के लिए है। हमने संसद के अंदर और जंतर-मंतर पर भी बिल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। मैंने सुप्रीम कोर्ट में एक रिट भी दायर की है, जिस पर आज सुनवाई होगी और हमें न्याय की उम्मीद है।
*10.:* एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, मध्य प्रदेश और असम सहित छह भाजपा शासित राज्यों ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिकता का समर्थन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। छह भाजपा शासित राज्यों – हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और असम – ने अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं, जिसमें वक्फ (संशोधन) अधिनियम को रद्द करने या इसमें बदलाव करने पर संभावित प्रशासनिक और कानूनी परिणामों पर प्रकाश डाला गया है। मुख्य याचिका में हस्तक्षेप दायर करने वाले हरियाणा ने वक्फ संपत्ति के प्रबंधन में सुधार की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया। इसने कहा कि संशोधित कानून वक्फ प्रबंधन के लिए एक एकीकृत ढांचा लाने और मुतवल्लियों (संरक्षकों) की अधिक निगरानी सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।महाराष्ट्र सरकार ने जोर देकर कहा कि संसदीय रिकॉर्ड, समिति की सिफारिशें और राष्ट्रीय परामर्श से प्राप्त जानकारी प्रदान करके सर्वोच्च न्यायालय की सहायता करना महत्वपूर्ण है।