भिक्षा मांग कर शिक्षा पाने वाले यहां के बच्चे कर रहे हैं देश का नाम रौशन

#एक_स्कूल_भिक्षां_देहि_की_निभाते_परंपरा_बन_जाते_हैं_अफसर_और_विद्वान !

#भिक्षां देहि… भिक्षां देहि…। आवाज सुनते ही घरों के दरवाजे खुल जाते हैं। सामने नजर आते हैं दर्जनभर बच्चे। विशुद्ध पारंपरिक परिधानों में। माथे पर चंदन आदि टीका सुशोभित। चेहरों पर दिव्यता। वाणी में सौम्यता। और आचरण में भरपूर विनम्रता। गृहस्वामी इनकी झोली भरने को आतुर हो उठता है। कोई चावल तो कोई दाल लाकर झोली में डालता जाता है…।

#यह रामायण या महाभारत धारावाहिक का कोई सीन नहीं बल्कि आज के दौर का एक सच है। बिहार के दरभंगा स्थित जगदीश नारायण ब्रह्मचार्या आश्रम में शिक्षण की पुरातन परंपरा कायम है। भिक्षाटन कर शिक्षा पाने वाले यहां के अनेक बच्चे आज बड़े पदों पर हैं।

#दरभंगा जिले के मनीगाछी प्रखंड के लगमा गांव में है यह आश्रम। गुरुकुल की पुरानी परंपरा को उसी रूप में संजोए हुए है। करीब सौ बच्चे वेद, पुराण व कर्मकांडीय ज्ञान अर्जित करते हुए शिक्षा प्राप्त करते हैं। इस आश्रम से निकले कई छात्र आगे की पढ़ाई में भी सफल रहे और जीवन में उच्चतम लक्ष्य रख उसे पाने में आशातीत सफलता पाई।
1963 में स्थापित आश्रम से निकले छात्र आज प्रोफेसर और आइएएस अधिकारी तो अनेक संस्कृत के प्रकांड विद्वान हैं। कुछ ने यूपीएससी जैसी प्रतिष्ठित परीक्षा में बाजी मारकर देश सेवा को चुना। गुरुकुल के प्रांगण में दो छात्रावास हैं। आश्रम की 10 गायों की सेवा का जिम्मा इन्हीं छात्रों पर है।

#छात्र सुबह चार बजे उठते हैं। वंदना, आरती-हवन आदि सुबह 10 बजे तक होता है। 10 से 2.30 बजे तक पढ़ाई होती और तीन से पांच तक भिक्षाटन। लौटने पर संध्या वंदन, आरती और फिर पढ़ाई। आश्रम में 12 साल तक के बच्चों को गीता, रामायण, वेद, धर्मशास्त्र के अलावा कर्मकांड का ज्ञान दिया जाता है। इसे आचार्य की पढ़ाई के समान माना जाता है।

#छात्र प्रतिदिन धोती-कुर्ता पहन आसपास के गांवों में भिक्षाटन के लिए जाते हैं और आश्रम के लिए भोजन जुटाते हैं। अलग-अलग टोली में छह-सात छात्र भिक्षाटन को निकलते हैं। आश्रम के संचालक और बच्चों के गुरु हरेराम दास भी उनके साथ होते हैं। आसपास के गांव व जिले में भागवत और कथा वाचन के अलावा कर्मकांड कराने से जो रकम मिलती है, उसे आश्रम के संचालन में खर्च कर दिया जाता है।
दिल्ली में पदस्थ आइएएस अधिकारी डॉ. नागेंद्र झा इस महाविद्यालय में 1988-91 बैच के छात्र थे। वे मूलरूप से मधुबनी जिले के अंधराठाढ़ी गांव के हैं। आश्रम के बाद यहां के संस्कृत महाविद्यालय से पढ़े डॉ. शंभूनाथ झा जगदगुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर में वेद विषय के रीडर हैं।

#वर्ष 1963 में जगदीश नारायण ब्रह्मचार्या ने आश्रम की स्थापना श्मशान की एक एकड़ भूमि पर की थी। वहीं, गुरुकुल पद्धति से वेद और कर्मकांड की शिक्षा शुरू की। बाद में इसी प्रांगण में जगदीश नारायण ब्रह्मचार्या आश्रम आदर्श संस्कृत विद्यालय की स्थापना हुई। 1968 में इसी नाम से संस्कृत महाविद्यालय को मान्यता मिली।
कालजयी अपनी परंपरा

#इस गुरुकुल ने भारतीय परंपरा में समाहित कालजयी तत्व को स्थापित कर दिखाया है। साबित कर दिखाया है कि आदर्श रूप में यह तत्व हर परिस्थिति हर काल में उतना ही सफल उतना ही प्रभावी है।

#यह गुरुकुल आधुनिक शिक्षातंत्र, खासकर ग्रामीण शिक्षातंत्र को बहुत बड़ी सीख भी दे रहा है। समाज से थोड़ा लेकर समाज को बहुत कुछ देने की सीख। इसे अच्छे से समझा और आत्मसात किया जाए तो देश से अशिक्षा, वर्ग संघर्ष, बेरोजगारी, बेचारगी और गरीबी दूर होने में देर नहीं लगेगी।