भमोरा : औषधीय गुणों से भरपूर उत्तराखंड का भमोरा फल शरीर से विषाक्तता दूर करता है विरेचक है और बिटामिन व मिनरल का श्रोत है

 उत्तराखंड के कुछ पर्वतीय जनपदों में विशेष रूप से चमोली उत्तरकाशी टिहरी रुद्रप्रयाग अल्मोड़ा वह पिथौरागढ़ में भमोरा पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है यह एक पहाडी फल है जो पेड़ों पर लगता है। बरसात के आखरी दिनों में यानी सितम्बर से नवम्बर तक पक कर तैयार होता है। औषधीय गुणों से भरपूर जंगली फल जिसका लाजवाब जायका हर किसी को दीवाना बना देता है। पहाडी फलों की ऐसी सौ से ज्यादा प्रजातियां हैं, जो पहाड़ को प्राकृतिक रूप में संपन्नता प्रदान करती हैं। इन जंगली फलों में विटामिन्स और एंटी ऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। भमोरा तो स्वाद के साथ विटामिन्स की पूरी खान है। स्वाद में तो बहुत लाजवाब है इसलिए इसे हिमालयन स्ट्राबेरी का नाम दिया गया है। उत्तराखंड में यह उत्तरकाशी और अन्य उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बहुत मिलते हैं। बताया गया कि भमोरा में मौजूद टेनिन कुनैन के विकल्प के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। पारम्परिक रूप से भी भमोरा की कुछ प्रजातियां पारम्परिक चाईनीज तथा कोरियन औषधीयों में जैसे. खांसी, फ्लू, मुत्र रोग, अतिसार रोगों के निवारण के साथ.साथ लीवर तथा किडनी की कार्यप्रणाली के लिए भी प्रयुक्त होता है। जहॉ तक भमोरे के फल का पोष्टिक गुणवता की बात की जाय तो इसमें प्रोटीन.2.58 प्रतिशत, फाइबर.10.43 प्रतिशत, वसा.2.50 प्रतिशत, पोटेशियम 0.46 मि0ग्रा0 तथा फासफोरस.0.07 मि0ग्रा0 प्रति 100 ग्राम तक पाये जाते हैं। इसके साथ ही इसमें प्राकृतिक मिनरल भी मिलते हैं। 

उत्तराखण्ड में पाये जाने वाले भमोरा तथा कई अन्य पोष्टिक एवं औषधीय रूप से महत्वपूर्ण जंगली उत्पादों का यदि विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन कर इनकी आर्थिक क्षमता का आंकलन किया जाय तो यह प्रदेश के जंगली उत्पादों को विश्वभर में एक नई पहचान दिलाने में सक्षम है। उत्तराखंड में सेकड़ों फल ऐसे ही जंगलों में उगते हैं, लेकिन पर्याप्त जानकारी और बाजार ना होने के कारण वो जंगल में ही बर्बाद हो जाते हैं, ऐसी वनस्पतियों को यदि रोजगार से जोड़े तो शायद इसमें परिश्रम भी कम लगेगा क्योंकि यह स्वतः ही पैदा हो जाने वाली जंगली वनस्पति है। वही लोगों तथा सरकार द्वारा इनके आर्थिक महत्व पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यदि इन वहुउद्देशीय पादपों के आर्थिक महत्व पर गहनता से कार्य किया जाता है तो पहाड़ों से पलायन जैसी समस्या से मुक्ति मिल पायी जा सकती है। भमोरा के ऊपर हमारे पर्वतीय क्षेत्रों में विशेष कर गढ़वाल में एक गीत भी लिखा गया है

उठ-दु स्याली चल दू स्याली मैतुड़ा जैयोला

द्वीचार दिन रैकि वख भमोरा खायोला

भमोर के पेड़ अब धीरे-धीरे कम हो रहे हैं मनुष्य के साथ ही पहले भालू रीछ चूति तोता आदि पशु पक्षी भामोरा खाते थे पचाने के बाद भामूरा के बीज फिर से उग जाते थे लेकिन जाने अनजाने पर्वतीय इलाकों के लोगों ने भामूरा के पेड़ ठांकरा गाड़ने के लिए काट दिए जिससे अब भमोरा की प्रजाति तेजी से लुप्त हो रही है जबकि यह भमोरा सबसे महंगा बिकने वाला फल हो सकता है क्योंकि इसके औषधीय गुण ही ऐसे हैं। भामूरा करीब चार से ₹500 किलो बिक सकता है और यदि इसे एक्सपोर्ट किया जाए तो यह ₹1000 किलो से ऊपर बिकेगा। सरकार और वन विभाग को भमोरा के पेड़ लगाने के लिए आगे आना चाहिए ✍️हरीश मैखुरी