भारत की मूल अवधारणा वसुधैव कुटुम्बकम की रही है। इस लिए संविधान में भी इस अवधारणा का समावेश है।
भारत के #संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद जी थे, संविधान सभा में कुल 389 सदस्य थे, इनमें से 292 सदस्य प्रांतों से और 93 सदस्य रियासतों से थे, एक मजहब के लिए भारत के विभाजन करने के बाद सदस्यों की संख्या घटकर 299 रह गई थी। भारतीय संविधान को लिखने का कार्य अपने सुलेख में #प्रेमबिहारी_नारायण_रायज़ादा ने किया था। संविधान पर हस्ताक्षर करने वाले पहले व्यक्ति संविधान सभा के अध्यक्ष #डॉ0राजेंद्र_प्रसाद थे।
संविधान की हिन्दी प्रति #वसंतकृष्ण_वैद्य ने लिखी थी।
मूल संविधान के हर पन्ने पर #देवी_देवताओं के #चित्र अंकित हैं।
संविधान के मूल संस्करण को #सुशोभित करने का काम नंद लाल बोस और #राममनोहर_सिन्हा ने किया था।
संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी (प्रारूप समिति) के सात सदस्यों में से एक #भीमराव_अंबेडकर थे उन्हें इस प्रारूप समिति का अध्यक्ष भी बनाया गया था। इस प्रारूप समिति में अंबेडकर के साथ अल्लाडी कृष्णस्वामी, डॉ के एम मुंशी, सैयद मोहम्मद सादुल्लाह, एन माधव राऊ, टी टी कृष्णमाचारी थे।
संविधान सभा के सदस्यों की संख्या का विवरण-
संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर अप्रत्यक्ष रूप से हुआ था।
चुने गए सदस्यों में से 229 सदस्य 12 भारतीय प्रांतों से थे।
मनोनीत सदस्यों में से 70 सदस्य 29 रियासतों से थे।
महिला सदस्यों की संख्या 15 थी।
अनुसूचित जाति के सदस्यों की संख्या 26 थी।
अनुसूचित जनजाति के सदस्यों की संख्या 33 थी।
संविधान सभा से जुड़ी कुछ और बातें
संविधान सभा का गठन कैबिनेट मिशन योजना के अंतर्गत 6 दिसंबर, 1946 को हुआ था।
संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे।
संविधान सभा ने 26 नवंबर, 1949 को अपना काम पूरा कर लिया था।
संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ था।
संविधान सभा ने स्वतंत्र भारत के लिए संविधान का विवरण तैयार करने में लगभग तीन वर्ष लगाए थे।
भारतीय संविधान के निर्माण में कई देशों के संविधानों से प्रेरणा ली गई, #संविधान_सभा ने विश्व के 60 से अधिक #देशों के #संविधानों का अध्ययन किया और उनमें से उपयोगी प्रावधानों को भारतीय संविधान में सम्मिलित किया। संविधान के बहुत से प्रावधान मनुस्मृति से भी लिए गये हैं।
मूल संविधान में आरक्षण की व्यवस्था केवल दस वर्षों के लिए थी, अब तक भारत के संविधान में 107 बार संशोधन हो चुके हैं।पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बाहर से समर्थन देने वाले बामपंथियों के दबाव में संविधान की प्रस्तावना में छेडछाड़ कर #पंथ_निरपेक्ष #सैक्यूलरिज्म और #समाजवादी शब्द जोड़ा। यह संविधान की आत्मा पर अब तक का सबसे बड़ा कुठाराघात था। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, जिसे “उपासना स्थल अधिनियम, 1991” भी कहा जाता है, यह कानून धार्मिक स्थल को उसके 15 अगस्त 1947 को उसके धार्मिक स्वरूप से बदलने से रोकता है, यह कानून किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप को उसी रूप में बनाए रखने का प्रावधान करता है। इस कानून को मुगल आक्रान्ताओं द्वारा भारत में खंडित किए गये तीस हजार से भी अधिक मंदिरों के पुनर्निर्माण को बाधित करने के लिए कांग्रेस सरकार द्वारा लाया गया था। जबकि #वक्फ #संशोधन एक्ट 2014 में लोकसभा चुनाव से पहले पारित हुआ इसमें बक्फबोर्ड को कार्यपालिका और न्यायालय से भी उपर बनाने का षड्यंत्र रचा गया। यूं समझो कांग्रेस ने मजहब के आधार पर मुसलमानों को एक तिहाई भारत देने उपरांत भारत के संविधान में भी समय समय पर अनेक संशोधन करके संविधान का शरिया करण कर दिया।
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संविधान से जुड़ी कुछ और विशेष बातें:
संविधान सभा ने 26 नवंबर, 1949 को संविधान को अपनाया था।
#संविधान को लागू करने की तिथि 26 जनवरी, 1950 थी। इसी दिन को #गणतंत्र_दिवस के रूप में मनाया जाता है।
संविधान को लिखने में संविधान सभा को 2 साल, 11 महीने, और 18 दिन लगे थे।
संविधान को अंगीकृत करने के समय इसमें 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थीं।
संविधान की मूल कॉपी अंग्रेज़ी में लिखी गई थी। अंग्रेजी संविधान से ली गई प्रमुख विशेषताएं:
संसदीय प्रणाली:
भारत में सरकार का संसदीय स्वरूप ब्रिटिश संविधान से लिया गया है, जहां कार्यपालिका विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है।
कानून की सर्वोच्चता:
कानून की सर्वोच्चता, जिसका अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है, ब्रिटिश संविधान से ली गई है।
संवैधानिक प्रक्रिया:
भारतीय संविधान में कुछ संवैधानिक प्रक्रियाओं का प्रारूप ब्रिटिश संविधान से लिया गया है।
संविधान में संशोधन:
संविधान में संशोधन की प्रक्रिया भी ब्रिटिश संविधान से प्रभावित है, जहां संसद को संविधान में संशोधन का अधिकार है।
प्रतिनिधित्व और चुनाव:
भारत में प्रतिनिधित्व और चुनाव की प्रणाली भी ब्रिटिश संविधान से प्रेरित है।
इनके साथ ही कुछ विशिष्ट कानून और प्रावधान भी अंग्रेजी संविधान से प्रभावित हैं, जैसे कि दंड प्रक्रिया संहिता और कुछ नागरिक कानून इस प्रकार इसमें करीब 211 धारायें अंग्रेजी कानूनों जैसी ही रखी गयी थी। जिसमें कुछ #अप्रासंगिक #निस्प्रोज्य हो चुकी धारायें तो #मोदी_सरकार ने हटा भी दी। अंग्रेजों ने भारतियों को दंड देने के लिए जो कानून बनाये थे उस ‘दंड प्रक्रिया संहिता’ का नाम परिवर्तित कर मोदी सरकार ने अब ‘भारतीय न्याय प्रकिया संहिता’ कर दिया है। उसी भांति अंग्रेज सरकार का विरोध करने वालों पर ‘राजद्रोह’ कानून लगता था वह भी संविधान में ज्यों का त्यों था मोदी सरकार ने उसे भी हटा दिया, अब उसके स्थान पर ‘देशद्रोह कानून’ लाया गया है अर्थात सरकार का विरोध करने की अब स्वतंत्रता है लेकिन देश विरोधी कार्य नहीं कर सकते हैं।
संविधान कोई आत्मकथा जैसी पुस्तक नहीं है जिसे एक व्यक्ति लिखता और संसार की सबसे बड़ी जनसंख्या पर इंपोज अर्थात लागू हो जाता, जैसा संविधान के नाम पर कुछ रैडिकल अंबेडकवावादी मिथ्या नैरेटिव या अवधारणा बनाते रहते हैं, अपितु देश का संविधान भारत की संविधान सभा के करीब 300 से अधिक विषय विशेषज्ञों द्वारा देश के लिए रचित व प्राख्यापित किया गया विधि और विधान है। संविधान में राष्ट्र के नागरिकों के रूप में हम सबको आबद्ध करने की शक्ति तथा हमारी सामूहिक शक्ति समाहित है। समय की मांग है कि हम #सत्यनिष्ठा और #समर्पित भाव से इस शक्ति और संविधान में निहित बातों के प्रति जन-जन को परिचित कराने का निरंतर प्रयास करें। जो लोग भारत में रह कर भारत का संविधान और कानून नहीं मानते या संविधान की जगह शरियत की बात करते हैं, धर्माचरण की जगह धर्मांतरण करते हैं और युगों से चली आ रही भारतीय संस्कृति को अरब के दुर्दांत कबीलों की तरह या यूरोप के लुटेरे कबीलों जैसा बनाने का कूट करण करते हैं उन पर तत्काल देशद्रोह का वाद पंजीकृत होना चाहिए उनका वोटिंग अधिकार समाप्त हो और चुनाव लड़ना प्रतिबंधित होना चाहिए।
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अब समय आ गया है कि संविधान में निहीत सभी जातिवादी और मजहबी भेदभाव वाले विसम प्रावधान हटाकर, समान नागरिकता संहिता विधेयक लाया जाय। इसी के साथ अल्प संख्यक की परिभाषा स्पष्ट हो और जनसंख्या नियंत्रण कानून भी अविलम्ब प्रस्तुत हो, ताकि देश के प्राकृतिक संसाधनों का निर्मम विदोहन कुछ कम किया जा सके। वर्षों केस लटके रहना देर से न्याय होना और अपराधियों पर दया भारतीय भारतीय संविधान का स्याह पहलू है, न्याय में देरी भी अन्याय ही कहा गया है । संविधान में तत्काल प्रभाव से भेदभाव रहित एवं प्रभावी नाय व्यवस्था सुनिश्चित किए जाने की अविलम्ब आवश्यकता है ।
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संविधान भारत के लिए है न कि संविधान के लिए देश, इसलिए भारत की सुरक्षा भी संविधान में अविलम्ब सुनिश्चित हो ✍️हरीश मैखुरी
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