क्या यूं ही सेवानिवृत्त हो जाएंगे उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ राजेंद्र डोभाल

क्या यूंही सेवानिवृत्त जाएंगे उत्तराखंड के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ राजेंद्र डोभाल

उत्तराखंड के विकास में अतुलनीय योगदान देने वाले एवं प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ राजेंद्र डोभाल इसी 30 जून को अपने पद से सेवानिवृत्त हो जाएंगे। वैसे तो सामान्यतः जो भी व्यक्ति सरकारी सेवा में आता है वह निश्चित समय पर अपने पद से सेवानिवृत्त होता है। जो व्यक्ति राज्य के लिए ऐसैट्स हो उस व्यक्ति के अनुभव के लाभ को राज्य के विकास से ऐसे ही वंचित होने दिया जाए! डॉ. राजेन्द्र डोभाल जैसे मूर्धन्य वैज्ञानिक को क्या सरकार सरकारी सेवा से ऐसे ही मुक्त हो जाने देगी जबकि उत्तराखंड में कोई वैज्ञानिक संवर्ग ही नहीं है। कैप के निदेशक डॉ. नृपेंद्र सिंह को छोड़ दें तो राज्य में उनकी दूसरी क्या तीसरी पंक्ति के लोग भी नहीं है। उत्तराखंड में जितने भी ख्यातिलब्ध वैज्ञानिक हैं वह सब भारत सरकार के विभिन्न संस्थानों में उच्च पदों पर कार्यरत हैं। 

डॉ राजेंद्र डोभाल एक ख्यातिलब्ध वैज्ञानिक ही नहीं है बल्कि एक प्रसिद्ध विज्ञान संचारक और यदि उनके लिए ‘चलते फिरते एनसाइक्लोपीडिया’ शब्द का उपयोग किया जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

डॉ. राजेन्द्र डोभाल को नारायण दत्त तिवारी मध्यप्रदेश सरकार से लाये थे। उस समय डोभाल मध्यप्रदेश के वैज्ञानिक सलाहकार थे। नारायण दत्त तिवारी एक ज़ौहरी की भांति हीरे को पहचानते थे।

डा. राजेंद्र डोभाल वर्तमान में उत्तराखंड राज्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद, उत्तराखंड सरकार के महानिदेशक रूप में कार्यरत हैं। डॉ. राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम (एनआरडीसी) भारत सरकार के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक भी उरह चुके हैं। डॉ डोभाल उत्तराखंड में राज्य स्थापना के कुछ समय बाद आये थे। उस समय विज्ञान और तकनीक क्षेत्र में उत्तराखंड का क्या भविष्य हो सकता है, इस बात की शासन स्तर पर कल्पना भी नहीं थी। 22 वर्ष के इस राज्य में उत्तराखंड विज्ञान, शिक्षा और अनुसंधान केंद्र (यूसर्क), उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसेक), तथा उत्तराखंड राज्य जैव प्रौद्योगिकी बोर्ड की स्थापना तथा इन संस्थानों के संस्थापक निदेशक एवं सलाहकार वैज्ञानिक होने का श्रेय डॉ. राजेन्द्र डोभाल को जाता है। डॉ डोभाल नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, भारत के फैलो हैं एवं उन्होंने बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) क्षेत्र में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, गोल, वाशिंगटन यूनिवर्सिटी (यूएसए) तथा इंटरनेशनल लॉ डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (ILDI) मनीला, फिलीपींस एवं नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी बैंगलोर से विशेषज्ञता प्राप्त की हैं।

देहरादून में विज्ञान धाम, रीजनल साइंस सेंटर की स्थापना तथा देश की पांचवी सांइस सिटी लाने का श्रेय भी डॉ. डोभाल को जाता है। डॉ राजेंद्र डोभाल को 16 राज्य विज्ञान कांग्रेस के सफल आयोजनों तथा 10,000 युवा वैज्ञानिकों के सृजन का श्रेय जाता है। डॉ. राजेंद्र डोभाल के निर्देशन में राज्य के उच्च शिक्षा संस्थानों में 250 से अधिक रिसर्च प्रोजेक्टों पर कार्य चल रहा है। डा. डोभाल द्वारा लिखित 40 तकनीक रिपोर्ट्स, 12 पुस्तकें तथा 150 शोध पत्र राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर के प्रकाशनों में प्रकाशित हो चुके है।

विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में अल्प समय में इतना बड़ा एस्टेब्लिशमेंट सामान्य बात नहीं है। पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड के साथ अस्तित्व में आए झारखंड, छत्तीसगढ़ में भी इतनी उपलब्धियां नहीं है। आज देश के प्रमुख रिसर्च सेंटर्स, लैबोरेटरी में उत्तराखंड के युवा वैज्ञानिक झंडे गाड़ रहे हैं।

देश के सभी हिमालयी राज्यों को एक प्लेटफॉर्म पर लाकर ‘सस्टेनेबल माउंटेन डेवलोपमेन्ट समिट’ की शुरुआत करके उसे ICIMOD ज़ैसे अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म तक जोड़ने वाले डॉ. आरएस टोलिया ने अपनी अनंत यात्रा से कुछ समय पूर्व अपनी कमान डॉ. राजेंद्र डोभाल को बुलाकर सौंपी थी। डॉ. टोलिया को उनमें ही एक आशा दिखाई दी थी। तत्कालीन राज्यपाल केके पॉल ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में रिसर्च एवं इनोवेशन की जमीनी हकीकत पता करने के लिए डॉ राजेन्द्र डोभाल की अध्यक्षता में विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की एक कमेटी बनाई थी। इस समिति की रिपोर्ट के बाद ही विश्वविद्यालयों के लिए चांसलर्स ट्रॉफी की शुरुआत हुई। उत्तराखंड में नेशनल अकादमी ऑफ साइंस का चैप्टर भी डॉ डोभाल के कारण ही खुल पाया।

विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में राज्य को अभी बहुत ऊंचाइयों को प्राप्त करना है। सबसे पहला पड़ाव है देश की पांचवी साइंस सिटी का धरातल पर बेहतर ढंग से उतारना। दूसरा राष्ट्रीय महत्व के अन्य शोध संस्थानों की स्थापना, तीसरा राज्य में उन्नत हो रही तकनीक का राज्य के लोगो के लिए सुलभ होना।
जब राज्य सरकार ऐसे लोगों को सेवा विस्तार दे सकती है जिनका कोई विशेष योगदान नहीं है राज्य के विकास में तब क्या डॉ. राजेन्द्र डोभाल को यूँ ही मुक्त किया जाना जंच नहीं रहा है। भले राजेन्द्र डोभाल को अब पद प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं हो लेकिन राज्य को उनकी आवश्यकता है।