जन्मदिवस : 11 सितम्बर, 1950, (चन्द्रपुर, महाराष्ट्र) 2009 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक हैं। के. एस. सुदर्शन जी ने अपनी सेवानिवृत्ति पर उन्हें अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुना था।
आरएसएस के सरसंघचालक मोहनराव भागवत का जन्म 11 सितम्बर, 1950 में महाराष्ट्र के छोटे से शहर चंद्रपुर में हुआ था। मोहनराव भागवत का वास्तविक नाम मोहनराव मधुकर राव भागवत है। इनका पूरा परिवार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा हुआ है। मोहनराव भागवत के पिता मधुकर राव भागवत चंद्रपुर क्षेत्र के संघचालकऔर गुजरात के प्रांत प्रचारक रहे हैं । मोहनराव भागवत अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं।
आपात काल के दौरान भूमिगत कार्य करने के बाद भागवत 1977 में अकोला (महाराष्ट्र) में प्रचारक बन गए और बाद में उन्हें नागपुर और विदर्भ क्षेत्रों का प्रचारक बनाया गया। वर्ष 1991 में सारे देश में संघ कार्यकर्ताओं के शारीरिक प्रशिक्षण के लिए अखिल भारतीयसह शारीरिक प्रमुख बने और वे इस दायित्व पर 1999 तक रहे। इसी वर्ष उन्हें सारे देश में पूर्णकालिक काम करने वाले संघ कार्यकर्ताओं का प्रभारी, अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख, का दायित्व दिया गया।
वर्ष 2000 में जब पू राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैय्या) और श्री एच.वी. शेषाद्रि ने क्रमश: संघ प्रमुख-सरसंघचालक और महासचिव (सरकार्यवाह) दायित्व से कार्य मुक्ति ली तो श्री के.एस. सुदर्शनजी को नया सरसंघचालक और मोहनराव भागवत को सरकार्यवाह बनाया गया था।
वर्ष 2009 में 21 मार्च को श्री मोहनजी भागवत को सरसंघचालक का दायित्व दिया गया। संघ का प्रमुख बनने वाले वे युवा नेताओं में से एक हैं। उन्हें संघ का स्पष्ट भाषी, विनम्र और व्यवहारिक प्रमुख माना जाता है जोकि संघ को राजनीति से दूर रखने की एक स्पष्ट दूरदृष्टि रखते हैं।
अकोला में जिला प्रचारक रहे, फिर संघ की रचना में जिस तरह से प्रांतों का निर्माण किया है उसमें विदर्भ एक अलग प्रांत है. वे विदर्भ के प्रांत प्रचारक रहे। विदर्भ के बाद वे बिहार के क्षेत्र प्रचारक रहे।1987 में संघ की केन्द्रीय कार्यकारिणी अखिल भारतीय सह शारिरीक प्रमुख के बतौर काम करने लगे. केन्द्रीय कार्यकारिणी में उन्होंने 1991 से 1999 तक शारीरिक प्रमुख के रूप में काम किया फिर एक साल के लिए अ भा प्रचारक प्रमुख रहे। सन 2000 में जब सुदर्शनजी सरसंघचालक बने तो मोहनराव भागवत सरकार्यवाह बनाये गये। 2000 से 2009 तक वे तीन बार संघ के सरकार्यवाह रहे। सरकार्यवाहआरएसएस की कार्यप्रणाली में दूसरे नंबर का कार्याधिकारी होते हैं।
मोहन जी भागवत को एक व्यावहारिक नेता के रूप में देखा जाता है। उन्होंने हिन्दुत्व के विचार को आधुनिकता के साथ आगे ले जाने की बात कही है। उन्होंने बदलते समय के साथ चलने पर बल दिया है। लेकिन इसके साथ ही संगठन का आधार समृद्ध और प्राचीन भारतीय मूल्यों में दृढ़ बनाए रखा है। वे कहते हैं कि इस प्रचलित धारणा के विपरीत कि संघ पुराने विचारों और मान्यताओं से चिपका रहता है, इसने आधुनिकीकरण को स्वीकार किया है और इसके साथ ही यह देश के लोगों को सही दिशा भी दे रहा है।
हिन्दू समाज में जातीय असमानताओं के सवाल पर, भागवतजी ने कहा है कि अस्पृश्यता के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अनेकता में एकता के सिद्धान्त के आधार पर स्थापित हिन्दू समाज को अपने ही समुदाय के लोगों के विरुद्ध होने वाले भेदभाव के स्वाभाविक दोषों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। केवल यही नहीं अपितु इस समुदाय के लोगों को समाज में प्रचलित इस तरह के भेदभावपूर्ण रवैये को दूर करने का प्रयास भी करना चाहिए तथा इसकी शुरुआत प्रत्येक हिन्दू के घर से होनी चाहिए।