कौन है इन रजवाड़ों को खाली कराने का दोषी

डॉ हरीश मैखुरी

उत्तराखंड के लोग अपने रजवाड़े छोड़कर मैदानों की बिना धूप हवा पानी वाले किराये की गंदगी में जाने को अभिशप्त हैं। सीमा के गांवों का खाली होना मात्र एक त्रासदी नहीं इससे राष्ट्रीय सुरक्षा का खतरा होना तय है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि  उत्तराखंड राज्य बनने के बाद  53 लाख लोगों ने पलायन कर दिया और करीब 15000 गांव पलायन की चपेट में आ गए, और  उल्टे यहां अपराधी और अवांछित तत्व घुस आये।  सरकार के पास यह आंकड़ा मौजूद है  तो सरकार  इस  प्रदेश की त्रासदी पर  युद्ध स्तर पर काम करने के लिए चिंतन क्यों नहीं करती? हमारे युवा सरकार को रोजगार की फैक्ट्री समझने की भूल भी कर रहे हैं, जबकि सरकार ने मनमोहन सिंह के जमाने से ही लोक कल्याण का विचार त्याग दिया है। अब सरकार के पास काम रह गया है न्याय व्यवस्था कानून व्यवस्था स्थानीय, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और रोजगार का माहौल व अवसर पैदा करना। सामाजिक सुरक्षा सामाजिक न्याय, स्वास्थ्य व शिक्षा के क्षेत्र में काम करना। इसलिए मुफ्त के 15 लाख मांगने और सरकार को रोजगार की फैक्ट्री समझने वाली मानसिक स्थिति बदल कर खुद के इनोवेशन, स्टार्टअप और अन्य योजनाओं में अपना काम शुरू कर सकते हैं। अपने महलों को आबाद कर सकते हैं। हमारे सीमावर्ती हमारी सीमावर्ती गांव सरकार की प्राथमिकता में होने चाहिए। यही नहीं अगर जनता गैरसैंण को राजधानी बनाना चाहती है तो सरकार को इसमें बिना लाग-लपेट के 1 मिनट की देरी किए बिना राजधानी घोषित कर देनी चाहिए। परिणाम सरकार के हाथ में नहीं होते, लेकिन प्रयास तो करने ही चाहिए। सरकार को जन भावनाओं की कद्र करनी चाहिए, और यहाँ के लोगों को अपनों से लड़ने के लिए मजबूर नहीं होने देना चाहिए। क्योंकि लोगों की मांग अपनी रोजमर्रा की समस्याओं के अनुरूप होती है जब यहां के लोग 70 और 80 के दशक में मोटर सड़के मांग रहे थे तब सरकार और दिमागी कमजोरी वालों ने सड़कों के निर्माण पर पर्यावरण कानून चिपका दिए जिससे सड़कों का काम दशकों पीछे चले गया और लोगों ने पहाड़ खाली कर दिए। अब कहीं सड़कें आई भी हैं तो लोगों का लौटना मुश्किल हो गया।