अलकनंदा व गंगा के अक्वैटिक सिस्टम की हत्या करने वाले दैत्य कौन?

डॉ हरीश मैखुरी

श्रीनगर बांध के कारण अलकनंदा नदी के एक्वेटिक सिस्टम पर बहुत बुरा असर पड़ा है, इसके बैराज और टर्बाइन के कारण ऋषिकेश की तरफ से आने वाली मछलियां प्रजनन के लिए आगे नहीं बढ़ पाती, जिसके कारण नदी जल की सफाई नहीं हो पा रही है। नदी का अपना ऑपरेटिंग और प्योरिफिकेशन सिस्टम चरमरा गया है। नदी में मछलियां और जलीय जीव कम हो गये हैं। गोचर के निकट कमेड़ा गांव के धनी राम सालों से अलकनंदा में मछली पकड़ कर परिवार चलाते हैं। उन्होंने बताया कि “अब अलकनंदा की मछलियों में वो बात नहीं रही, पहले से मछलियां बहुत कम हो गई और जो बड़ी मछलियों की प्रजाति (महाशीर आदि) इसमें मुख्य रूप से आती थी वह भी समाप्त हो गई हैं”। इसी की पुष्टि करते हुए गोविंद बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान श्रीनगर गढ़वाल के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ राकेश कुमार मैखुरी कहते हैं कि ” नदियों का अक्वैटिक सिस्टम बांधों के बैराज, टर्बाइन, टर्नलन और भारी जल जमाव के कारण बिगड़ जाता है, चैनलों में डालने और बैराज बनाने से प्राकृतिक रूप से नदी मर जाती है” । सालों पहले एक अंग्रेज अलकनंदा नदी पर डॉक्यूमेंट्री बना रहा था तब मैंने उससे पूछा कि आप यह डॉक्यूमेंट्री क्यों बना रहे हैं तो अंग्रेज ने बताया की पूरी दुनियां में नदियों की व्यावसायिक मोल्डिंग का काम चल रहा है नदियों को प्राकृतिक बहाव से बिरत कर उन्हें आर्टिफिशियल नहरों चैनलों बैराजों में डाला जा रहा है। मैं दुनियां  को दिखाना चाहता हूं कि यहां के लोगों ने अपनी नदियों को अभी भी प्राकृतिक अवस्था में छोड़कर प्रकृति के साथ तादात्म्य बनाया हुआ है। जब मैंने अंग्रेज को बताया कि बहुत जल्दी इस अलकनंदा गंगा नदी पर ऋषिकेश से बद्रीनाथ तक 100 छोटे बड़े डैम बनने प्रस्तावित हैं तो सच कह रहा हूं अंग्रेज के आंसू आ गए और उसने मुझे कहा “क्या यहां के निवासी इस बात को जानते हैं की उसके बाद यह नदी मर जाएगी और आगे की पीढ़ियां गंगा से वंचित हो जाएंगी”?। भविष्य पुराण में लिखा है कि “कलयुग के प्रथम चरण में ग्राम देवता और द्वितीय चरण में गंगा धरती से लुप्त हो जाएगी”। जिस तरह से हम गंगा को गंदा कर रहे हैं उस पर तमाम तरह के बांध बनाकर उसके प्राकृतिक पहाड़ से छेड़छाड़ कर रहे हैं निश्चित रूप से अलकनंदा और गंगा का बचना मुश्किल ही है। इसे समझने के हेतु पद्मश्री चंडीप्रसाद भट्ट कहते हैं कि” मानव जनित आपदा से लगातार हिमालय पिघल रहा है नदियों के जल स्तर में परिवर्तन आया है और भारी संख्या में पेड़ कटने से नदियों में भीषण बाढ़ की स्थितियाँ बनती हैं नदियां बौखलाई हैं”।  मेरा 50 सालों का व्यवहारिक अनुभव यह रहा कि भारी जनसंख्या विस्फोट, जंगलों के कटाव,  वायु और जल प्रदूषण के कारण जल की गुणवत्ता खराब हो गई है, हजारों  जल श्रोत तेजी से सूख रहे हैं इससे कई नदियां विलुप्त हो गई हैं और अकेले गंगा नदी के चौदह प्रयागों में से 8  प्रयागों का अस्तित्व ही समाप्त हो गया है” यह इन दशकों की विनाशकारी त्रासदी है जिसकी चपेट में भविष्य की सारी पीढियां रहेंगी।