रूस – यूक्रेन युद्ध: अमरीकी आधिपत्य के अंत का आरंभ तो नहीं!, भारत की भूमिका को भी समझें

रूस – यूक्रेन युद्ध: अमरीकी आधिपत्य के अंत का आरंभ तो नहीं!! 

 युद्ध महा विनाश का कारण है, युद्ध किसी भी परिस्थिति में स्वीकार्य नहीं हो सकता है। रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण की घोषणा कर और तीन तरफ उसकी सीमाओं में घुस कर, निरंतर बढ़त बना ली है। जब तक रूस की सेनाओं ने यूक्रेन की सीमाओं पर थल एवं नभ से आक्रमण नहीं किया था, तब तक विश्व द्वारा, विशेषकर अमेरिका एवं उसके नाटो के सदस्य राष्ट्रों को यही आशा थी कि रूस, यूक्रेन पर सीमित सैन्य कार्यवाही मिलिट्री करेगा और शेष विश्व द्वारा आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाने पर, रुक जाएगा। 

लेकिन ऐसा हुआ नहीं अपितु रूस, अमेरिका और उसके यूरोप के नाटो सदस्यों की तमाम धमिकयों का तिरस्कार करते हुए, आगे बढ़ा और इसमें संशय नहीं है कि यूक्रेन रूस के बीच हो रहा यह युद्ध दो देशों तक केंद्रित नहीं रहेगा बल्कि ‘युद्ध’ अपनी परिधि बढ़ाएगा। लेकिन इस परिधि में अमेरिका या नाटो राष्ट्र नहीं आयेंगे क्योंकि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन कभी भी यूक्रेन को लेकर, रूस के विरुद्ध सैन्य शक्ति के प्रयोग करने की मानसिकता नहीं रखते। जो बाइडेन एक थके और फूंके हुए, अमेरिकी लिबरल वामियों के समर्थन से बने डेमोक्रेट राष्ट्रपति हैं जो अमेरिका को युद्धकाल में राष्ट्रध्यक्ष का नेतृत्व देने में पूरी तरह अक्षम हैं। 

यदि यूक्रेन रूस के संदर्भ में पिछले एक माह के घटनाक्रम को देखे तो स्पष्ट है कि यूक्रेन जिस नियति को प्राप्त हो रहा है, वह अमेरिका की हठधर्मिता व जो बाइडेन द्वारा रूस के राष्ट्रपति पुतिन की संकल्पशक्ति का व्यवहारिक आंकलन न कर सकने की गलती किया जाना है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन, जब विंटर ओलंपिक्स में बीजिंग गए थे और वहां चीन के राष्ट्रपति शी के साथ एक बड़ा ट्रेड एग्रीमेंट किया था, तभी अमेरिका को यह समझ लेना चाहिए था कि रूस और चीन दोनो मिल कर, अमेरिका के आधिपत्य को चुनौती देने के लिए समझौता कर चुके हैं। अब इसमें उनकी कठपुतली इमरान की इंट्री भी दिखती है, अमेरिका ने इसकी गंभीरता को शायद इसलिए नहीं लिया क्योंकि इतने दशकों से अपने अहंकार में लोकतंत्र को लेकर इतना विरोधाभासी विदेश नीति का अनुपालन करता रहा है कि आज, जब परिवर्तन का दशक है और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद, न्यू वर्ल्ड ऑर्डर के सृजन का काल है, तब चूक गया है। 

 हम युद्ध, विभीषिका, सामाजिक व राजनैतिक द्वंद और शासकीय तंत्र के पुनर्गठन के दशक के काल में है, जहां नैतिकता के आंख व कान नहीं होते। ऐसे में वही राष्ट्र व उसका समाज सफल होगा जो राष्ट्र अपने आत्मसंरक्षण की नीति को प्राथमिकता देगा। आने वाले समय में, यूक्रेन के समर्पण के बाद, ताइवान पर चीन का एक सफल आक्रमण होना तय है। संभवतः, ताइवान अपने वर्तमान अस्तिव के अंतिम माहों में है। यूक्रेन में रूस की सफलता से प्रेरित चीन ताइवान पर आक्रमण कर अधिकृत कर लेगा और अमेरिका, चीन से सीधे युद्ध की हिम्मत न करने के कारण सही समय पर निर्णय लेने में असफल सिद्ध होगा। यह भी संभव है कि आगामी माह, विशेषकर नवंबर 2022 से पहले चीन, भारत की अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर अतिक्रमण का प्रयास भी कर सकता है। 

 भारत के लिए अभी किसी के साथ खड़े होने का समय नहीं है क्योंकि यूक्रेन कभी भी भारत का मित्र राष्ट्र नहीं रहा है। भारत के भविष्य के लिए, वर्तमान में अमेरिका के एकल प्रभुत्व का टूटना बड़ा आवश्यक है। आगे वैश्विक राजनीति में क्या परिवर्तन होगा और उसका सामरिक समीकरणों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, वह 2022 जाते जाते संभावनाओं के द्वार खोल देगा, वहीं 24 फरवरी 2022 में यह स्पष्ट कर चुका है कि अमेरिका की सुपर पावर है से सुपर पावर ‘था’ की यात्रा आरंभ हो चुकी है। अपने एक दबंग राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को हराकर अमेरिका मात खा चुका है। 

भारत में जो लोग यूक्रेन के समर्थन में दुबले हो रहे हैं उनको समझना चाहिए कि यूक्रेन ने कभी भारत का साथ नहीं दिया और रूस को युद्ध में मोर्चे पर धूल चटाने की धमकी देकर इस भीषण संहार के लिए उकसाया था। 

(1) यूक्रेन ने कश्मीर मुद्दे पर UNO में भारत के विरुद्ध मत दिया था।

(2) यूक्रेन ने परमाणु परीक्षण मुद्दे पर UNO में भारत के विरुद्ध मत दिया था। 

3) यूक्रेन ने UNO की सिक्योरिटी कौंसिल में भारत की स्थायी सदस्यता के विरुद्ध मत किया था।

4) यूक्रेन पाकिस्तान को हथियार सप्पलाई करता है। 

5) यूक्रेन अल कायदा को समर्थन देता है।

इसलिए भारतीय होने के नाते यूक्रेन से कोई सहानुभूति नहीं होनी चाहिए 

युक्रेन ने भारत का कभी भी साथ नहीं दिया। जब हमारे उपर प्रतिबन्ध लगा तो UNO में उसने प्रतिबन्ध के पक्ष मे वोट किया। 

इसके पास यूरेनियम का बाद भंडार था फिर भी बार बार मांगे जाने पर भी इसने कभी भी देना तो दूर हमारे तत्कालीन PM को दूरदूरा दिया। सीधे मुँह बात तक नहीं की, जबकि भारत अपनी ऊर्जा के लिए यूरेनियम खोज रहा था। 

 हां यूक्रेन के नागरिकों के साथ सहानुभूति अवश्य है। कमज़ोर युक्रेन(जो की अपने आप बना) के साथ वही हो रहा है तो नेहरू के समय 1947 से पहले और उसके बाद हुआ। अर्थात विभाजन और फिर देश की सीमा पर अनावश्यक तनाव व अतिक्रमण। लेकिन उसके लिए भी भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब पुतिन से कहा कि हम अपने नागरिकों की सुरक्षित वापसी चाहते हैं तिरंगा लगे किसी वाहन और घर की क्षति ना हो वहीं दो देशों के आपसी प्रकरण में भले हस्तक्षेप ना करें पजन हानि न हो इसका ध्यान अवश्य रखेंगे तब से रूस ने युद्ध नीति में बदलाव करते हुए अपने उद्देश्य और मंतव्य पर केंद्रित हो गया है। और वह उदेश्य साफ है रुसी सीमा पर आतंकवाद समर्थक यूक्रेन का अधिग्रहण।