आज का पंचाग, आपका राशि फल, भारतीय संस्कृति में नदी विज्ञान, व्यवहार कैसा हो, सनातन संस्कृति के उत्सवों में घुसपैठ!

🕉️ श्री गणेशाय नमः 🕉️ जगत् जनन्यै जगदंबा भगवत्यै नम 🕉️ नमः शिवाय 🕉️ नमो भगवते वासुदेवाय नमः सभी मित्र मंडली को आज का पंचांग एवं राशिफल भेजा जा रहा है इस का लाभ उठाएंगे भगवान हनुमान जी सभी मित्र मंडली की मनोकामनाएं पूर्ण करेंगे
मंगल ग्रह स्तुति:–
*धरणी गर्भ सम्भूतं, विद्युत् कान्ति समप्रभम्।कुमारं शक्तिहस्तं तं,मंगलं प्रणमाम्यहम्*।।
हिन्दी ब्याख्या:– पृथ्वी के उदर से जिनकी उत्पत्ति हुई विद्युत पुंज बिजली के सामान जिनकी प्रभा है जो हाथों में शक्ति धारण किए रहते हैं उन मंगल देव को मैं प्रणाम करता हूं।
भौम गायत्री मंत्र:–🕉️ *भूमि पुत्राय विद्महे लोहितांगाय धीमहि तन्नो भौम: प्रचोदयात्*।।
भौम गायत्री का यथाशक्ति जप करने के बाद खादिर युक्त पायस घी से दशांश हवन करें।
आपका अपना *पंडित चक्रधर प्रसाद मैदुली*फलित ज्योतिष शास्त्री* ✡️
✡️दैनिक पंचांग✡️
✡️वीर विक्रमादित्य संवत्✡️
✡️2078✡️
✡️आषाढ़ मासे ✡️
08 प्रविष्टे गते
✡️भौम वासरे ✡️
✡️दिनांक ✡️:22 – 06 – 2021(मंगलवार)✡️
✡️सूर्योदय :05.46 पूर्वाह्न✡️
✡️सूर्यास्त :07.11 अपराह्न✡️
✡️सूर्य राशि :मिथुन✡️
✡️चन्द्रोदय :04.45 अपराह्न ✡️
✡️चंद्रास्त :04.00 पूर्वाह्न✡️
✡️चन्द्र राशि :तुला कल 08:59✡️ पूर्वाह्न तक, बाद में वृश्चिक
✡️विक्रम सम्वत :विक्रम संवत✡️ 2078✡️
✡️अमांत महीना :ज्येष्ठ 12✡️
✡️पूर्णिमांत महीना :ज्येष्ठ 27
पक्ष :शुक्ल 12✡️
✡️तिथि :द्वादशी 10.22 पूर्वाह्न तक, बाद में त्रयोदशी✡️
✡️नक्षत्र :विशाखा 2.22✡️ ✡️अपराह्न तक, बाद में अनुराधा✡️
✡️योग :सिद्ध 1.51 अपराह्न तक, बाद में साध्य✡️
✡️करण :बालव 10:22 पूर्वाह्न तक, बाद में कौलव 8:42✡️ ✡️अपराह्न तक, बाद में तैतिल
राहु काल :3.52 अपराह्न से – 5.32 अपराह्न तक✡️
✡️कुलिक काल :12.31 अपराह्न से – 2.11 अपराह्न तक✡️
✡️यमगण्ड :9.11 पूर्वाह्न – 10.51 पूर्वाह्न✡️
✡️अभिजीत मुहूर्त :12.01 अपराह्न – 12.55 अपराह्न✡️
✡️दुर्मुहूर्त :08:27 पूर्वाह्न – 09:20 पूर्वाह्न, 11:25 अपराह्न – 12:07 पूर्वाह्न✡️
*मित्रों राहुकाल यमघंट काल एवं दूर मुहूर्त में यात्रा एवं शुभ कार्य वर्जित है तथा अभिजीत मुहूर्त एवं कुलिक काल में यात्रा एवं शुभ कार्य करने चाहिए धन्यवाद*

✍️चक्रधर प्रसाद शास्त्री: ☸️☸️☸️☸️☸️☸️☸️☸️☸️☸️☸️☸️मित्रों बहुत से मित्रों ने राशि नाम एवं प्रसिद्ध नाम के माध्यम से राशिफल देखने की प्रक्रिया जाननी चाही इसके विषय में महर्षि पाराशर जी ने पाराशरी नामक ग्रंथ में लिखा है कि:–
*देशे ग्रामे गृहे युद्धे, सेवायां व्यवहार के। नाम राशे प्रधानत्वं , जन्म राशि न चिंन्तयेत्*।।
हिंदी ब्यख्या:–
प्रदेश में घर के बाहर गांव में युद्ध के समय सेवारत में व्यवहारिक नाम की प्रधानता होती है स्थानों पर जन्म राशि का चिंतन न करके प्रचलित नाम की राशि का चिंतन करना चाहिए।
*विवाह सर्वमांगल्यै, यात्रायां ग्रह गोचरे । जन्म राशे प्रधानत्वम्, नाम राशि न चिंन्तयेत्*।।
हिन्दी ब्याख्या:–
विवाह के समय मां सभी प्रकार के मांगलिक कार्यों में यात्रा में ग्रह गोचर दशा के पूजन में जन्म राशि की प्रधानता होती है प्रसिद्ध नाम राशि का चिंतन नहीं करना चाहिए।।🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️

✡️आज के लिए राशिफल (22-06-2021) ✡️

✡️मेष✡️22-06-2021
आज का दिन बढ़िया रहने वाला है। आज आप उन चीज़ों को महत्व दें जो सच में आपके लिए महत्वपूर्ण हैं। आज आपको अपने परिवार और काम के बीच संतुलन बनाकर रखना होगा। सभी काम आपके मन के मुताबिक पूरे होंगे। इस राशि के जो लोग पर्यटन के क्षेत्र से जुड़े हैं आज उन्हें किसी अच्छे कस्टमर से बड़ा फायदा होने वाला है। संतान की बड़ी सफलता से आपको खुशी मिलने वाली है। अगर आप बिजनेसमैन हैं तो अपना फेवरेट परफ्यूम लगाकर जाए फायदा ज़रूर मिलेगा। स्वास्थ्य के लिए नियमित योग करना न भूलें।
भाग्यशाली दिशा : पूर्व
भाग्यशाली संख्या : 1
भाग्यशाली रंग : चन्दन रंग
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✡️वृष ✡️22-06-2021
आज आपके व्यापार में उतार-चढ़ाव रहेंगे लेकिन आप इसकी ज्यादा चिंता ना करें। आज आप थोड़े सोच-विचार में रह सकते हैं। कोई नया काम करने से आपको बचना चाहिए। सरकारी और न्यायिक सेवा से जुड़े लोग लाभान्वित होंगे। कई दिनों से लंबित कार्य पूर्ण होगा। लव लाइफ तनाव पूर्ण रहेगी। कारोबार के विस्तार के लिए लोन की आवश्यकता पड़ सकती है। अचानक मन में बदलाव आ सकते हैं जो कि आपके लिए फायदेमंद रहेंगे। आप शारीरिक और भावनात्मक रूप से बेहतर महसूस करते हैं।
भाग्यशाली दिशा : दक्षिण
भाग्यशाली संख्या : 8
भाग्यशाली रंग : नीला रंग
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✡️मिथुन ✡️22-06-2021
अच्छे व्यावसायिक अवसर आपके व्यवसाय को बढ़ाने और विस्तृत करने में अति सहायक सिद्ध होंगे। आप नए क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाने के लिए तैयार होंगे। उद्यमी अच्छा करेंगे। आर्थिक रूप से आप सुरक्षित रहेंगे और संपत्ति में निवेश कर सकते हैं। बच्चे अपने-अपने क्षेत्र में अच्छा करेंगे और आप उनपर गर्व करेंगे। परिवार आपका पूर्ण सहयोग करेगा तथा परिवार में सदस्यों के मध्य स्नेही वातावरण बना रहेगा। लंबे समय से बीमारी से जूझ रहे जातकों का आत्मविश्वास उन्हें बीमारी से पार पाने में मदद करेगा और स्वास्थ्य में सुधार होगा।
भाग्यशाली दिशा : पश्चिम
भाग्यशाली संख्या : 5
भाग्यशाली रंग : हल्का लाल
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☸️कर्क ✡️22-06-2021
आज किसी बात को लेकर आपका तनाव बढ़ सकता है। काम के प्रति दौड़-भाग भरा दिन आपको चिड़चिड़ा बना सकता है। कारोबार में थोड़ी अड़चने आएंगी। बच्चों को आज टाइम से लंच न करने पर पैरेन्ट्स से डांट सुननी पड़ सकती है। हो सकें तो उधार के लेन-देन से आज दूर रहें। आज फिज़ूल की बातों पर बहस करने से बचने की कोशिश करें। लवमेट के लिए आज का दिन काफी अच्छा है। सफेद खरगोश को आज घर लाएं, सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी।
भाग्यशाली दिशा : उत्तर
भाग्यशाली संख्या : 9
भाग्यशाली रंग : गहरा लाल
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✡️सिंह ✡️22-06-2021
आज आपका सही रवैया गलत रवैये को हराने में कामयाब रहेगा। ऑफिस के काम को पूरा करने में आप पूरी तरह से सक्षम होंगे। साथ ही अधिकारी आपके कामों से संतुष्ट होंगे। अपने भाई-बहनों के साथ संबंधो में मिठास बनी रहेगी। अपनी वित्तीय प्राथमिकताएं तय करें और फिर उसी के अनुसार अपना बजट तय करें। आपको सट्टा और जुए में शामिल होने से बचना चाहिए। कोई नया ऑफर भी मिल सकता है। पारिवारिक जीवन शांतिपूर्ण रहेगा।
भाग्यशाली दिशा : पश्चिम
भाग्यशाली संख्या : 1
भाग्यशाली रंग : गहरा पीला
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✡️कन्या✡️22-06-2021
आज आप में से कुछ के जीवन में अप्रत्याशित रूप से कुछ घटित हो सकता हैं। विदेशी संपर्क वाले लोग व्यावसायिक गतिविधि में उतार-चढ़ाव अनुभव कर सकते हैं। यदि आप प्रतियोगिता के माध्यम से नौकरी तलाश कर रहे हैं। तो कड़ी मेहनत कीजिए क्योंकि सफलता आपसे बस कुछ ही दूर है। सरकारी अड़चनो के कारण आपके कुछ पूर्वनियोजित कार्य स्थगित हो सकते हैं। भागेदारी में गलतफहमी के चलते वाद-विवाद हो सकता है। आय यथावत रहेगी। धन में वृद्धि के अवसर के रूप में आप में से कुछ नया व्यवसाय शुरू कर सकते हैं। प्रेम-संबंधो में आप दीर्घकालिक प्रतिबद्धताओं पर विचार कर सकते हैं।
भाग्यशाली दिशा : दक्षिण
भाग्यशाली संख्या : 5
भाग्यशाली रंग : ग्रे रंग
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✡️तुला ✡️22-06-2021
आज का दिन सामान्य रहने वाला है। किसी समारोह में आज खुद को अकेला महसूस करेंगे। इससे निजात पाने के लिए सकारात्मक सोच का सहारा लें और लोगों से बेझिझक बात करें। जो आपको अकेलेपन से दूर रखने में मदद करेगा। आज कोई बड़ा फैसला लेने से बचें। दोस्तों की मदद से आर्थिक समस्यायें हल हो जाएंगी। आज आप जीवनसाथी को किसी मामूली बात पर डांटने के बजाय उन्हें विनम्रता से समझाएं। व्यापार में धीमी प्रगति आपको हल्का सा मानसिक तनाव दे सकती है।
भाग्यशाली दिशा : उत्तर
भाग्यशाली संख्या : 6
भाग्यशाली रंग : हल्का हरा
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✡️वृश्चिक ✡️
🕉️ श्री गणेशाय नमः 🕉️ जगत् जनन्यै जगदंबा भगवत्यै नम 🕉️ नमः शिवाय 🕉️ नमो भगवते वासुदेवाय नमः सभी मित्र मंडली को आज का पंचांग एवं राशिफल भेजा जा रहा है इस का लाभ उठाएंगे भगवान हनुमान जी सभी मित्र मंडली की मनोकामनाएं पूर्ण करेंगे
मंगल ग्रह स्तुति:–
*धरणी गर्भ सम्भूतं, विद्युत् कान्ति समप्रभम्।कुमारं शक्तिहस्तं तं,मंगलं प्रणमाम्यहम्*।।
हिन्दी ब्याख्या:– पृथ्वी के उदर से जिनकी उत्पत्ति हुई विद्युत पुंज बिजली के सामान जिनकी प्रभा है जो हाथों में शक्ति धारण किए रहते हैं उन मंगल देव को मैं प्रणाम करता हूं।
भौम गायत्री मंत्र:–🕉️ *भूमि पुत्राय विद्महे लोहितांगाय धीमहि तन्नो भौम: प्रचोदयात्*।।
भौम गायत्री का यथाशक्ति जप करने के बाद खादिर युक्त पायस घी से दशांश हवन करें।
आपका अपना *पंडित चक्रधर प्रसाद मैदुली*फलित ज्योतिष शास्त्री* ✡️22-06-2021
कारोबार में आपको फायदा हो सकता है, लेकिन आपको अपने खर्चों पर कंट्रोल बनाकर रखना चाहिए। आर्थिक मोर्चे पर बोलते हुए किसी भी प्रमुख वित्तीय लाभ की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। जरूरी कामों की योजना बन सकती है। अपनी जिम्मेदारियों पर पूरा ध्यान दें। शादीशुदा अपने साथी के साथ आनंदित रिश्ते का आनंद लेंगे। आप जीवनसाथी के साथ मंदिर जा सकते हैं। माता-पिता का आर्शीवाद लेने से सभी दिक्कतें दूर हो जायेंगी। सेहत आज ठीक-ठाक बनी रहेगी।
भाग्यशाली दिशा : उत्तर
भाग्यशाली संख्या : 2
भाग्यशाली रंग : सफ़ेद रंग
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✡️धनु ✡️22-06-2021
व्यावसायिक रूप से आज का दिन शुभ रहेगा। पदोन्नति या व्यावसायिक बेहतरी का प्रबल संकेत है। आपको लंबे समय से पोषित सपने एवं परियोजना पर काम करने का अवसर मिल सकता है। व्यावसायिक गतिविधि में तेजी हो सकती है। आर्थिक रूप से आप बहुत अच्छा करेंगे और एक पुराना ऋण भी वसूल किया जा सकता है। आप भौतिक सुख प्राप्ति संबंधित वस्तुओं के क्रय की ओर आकर्षित होंगे। विदेशी यात्रा भी अमल में आ सकती है। स्वैच्छिक कार्य, योग, ध्यान और कलात्मक कार्य आपको संतुष्टि प्रदान करेंगे।
भाग्यशाली दिशा : पश्चिम
भाग्यशाली संख्या : 7
भाग्यशाली रंग : हरा रंग
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✡️मकर ✡️22-06-2021
आज आपका तेज़ सभी से अलग महसूस कराएगी। जो आपके लक्ष्य प्राप्ति में मदद भी करेगी। कार्यक्षेत्र में आज बॉस से आपको पॉजीटिव रिस्पॉन्स मिलेगा। अपनी योग्यताओं का उपयोग व्यावसायिक सफलता के लिए करें। फायदा जरूर होगा। आज महत्वपूर्ण कामों को पूरा करने में आपका पूरा ध्यान रहेगा। इससे कई सारे काम समय से पूरे हो जाएंगे। जीवन में कुछ नए अनुभव आपको मिल सकते हैं। जीवन के लगभग हर पहलू को पूरी गंभीरता से लें। लवमेट कहीं घूमने का प्लान बना सकते हैं, सुहाने मौसम का पूरा आनंद उठाएंगे।
भाग्यशाली दिशा : दक्षिण
भाग्यशाली संख्या : 3
भाग्यशाली रंग : नारंगी रंग
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✡️कुंभ ✡️22-06-2021
आज किसी नए कॉन्टैक्ट से आपको फायदा होगा। अगर आप प्रभावशाली लोगों से संपर्क बनाए रखें, तो अपने करियर में तरक़्क़ी की ओर बड़ा क़दम लेंगे। संघर्ष के बाद सफलता मिलेगी। आपके काम समय पर पूरे होंगे। साथ ही आपको अपनी मेहनत का फल भी अवश्य मिलेगा। महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर काम करते समय आपको सावधानी बरतनी होगी। काम करते समय शांत आचरण बनाए रखें। बढ़ते बीपी से दिक्कत आ सकती है। बच्चे गर्व और खुशी का स्रोत बनेंगे।
भाग्यशाली दिशा : दक्षिण पश्चिम
भाग्यशाली संख्या : 9
भाग्यशाली रंग : बैंगनी रंग
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✡️मीन ✡️22-06-2021
आज का दिन आपके लिए बहुत उत्साहजनक नही है। आज कार्यों में देरी और बाधाएं प्रबल होंगी। हालांकि पारिवार का पूरा सहयोग मिलेगा। आर्थिक रूप से आप मजबूत रहेंगे। अपने विचारों और कार्यों को फिर से व्यवस्थित करने पर ध्यान दें, क्योंकि आपको अधिक अनुशासित और व्यवस्थित होने की आवश्यकता है। मौसमी बीमारियों से बचाव रखने के लिए अपनी जीवनशैली में बदलाव लाएं और स्वस्थ रहने के लिए नियमित व्यायाम करें। यात्रा स्थगित करनी पड़ सकती है।
भाग्यशाली दिशा : पश्चिम
भाग्यशाली संख्या : 3
भाग्यशाली रंग : हल्का पीला
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आपका अपना *पंडित चक्रधर प्रसाद मैदुली फलित ज्योतिष शास्त्री जगदंबा ज्योतिष कार्यालय सोडा सरोली रायपुर देहरादून मूल निवासी ग्राम वादुक पत्रालय गुलाडी पट्टी नन्दाक जिला चमोली गढ़वाल उत्तराखंड फोन नंबर ✡️ 8449046631,9149003677*

भारतीय संस्कृति में नदी विज्ञान व व्यवहार : 

लेखक:- अरुण तिवारी
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

नदियों के नामकरण के भिन्न आधार दिए गए हैं। अधिकांश नदियों का नामकरण उनके गुण, वंश अथवा उद्गम स्थल के आधार पर किए गए हैं। उदाहरण के तौर पर कहा गया कि गं अव्ययं गम्यति इति गंगा अर्थात जो स्वर्ग को जाये, वह गंगा है। गंगा के विष्णुपदी, जाहन्वी, भागीरथी, त्रिपथगा आदि हजारों नाम हैं, जिनके अस्तित्व में आने की वजह भिन्न घटना, संबंध अथवा गुण बताये गए हैं। यम की बहन होने के कारण यमी नाम प्राप्त धारा ही कालांतर में यमुना कहलाई। कलिन्दज पर्वत से निकलने के कारण यमुना का एक नाम कालिंदी पड़ा।
एक कथा के अनुसार, पार्वती नदी के शरीर से निकली शिवा नदी को ही कालांतर में कौशिकी नाम मिला। एक दूसरी कथा के अनुसार, गाधिराज की पुत्री और ऋषि ऋचीक की पत्नी सत्यवती अपने पति का अनुसरण करते हुए स्वर्ग गई। सत्यवती का पृथ्वी पर पुर्नअवतरण एक जलधारा के रूप में हुआ। कुशिक वंश से संबंध होने के कारण इस जलधारा को कौशिकी नाम मिला। कौशिकी को ही हम आज बिहार की कोसी नदी के नाम से जानते हैं।
कोसी के नामकरण तथा कोसी के प्रति ऋषि विश्वामित्र की आस्था का जिक्र रामायण में है। ताड़का वध पश्चात् शोणभद्र (सोन नदी) की ओर प्रस्थान करते हुए स्वयं ऋषि विश्वामित्र ने अपनी बड़ी बहन सत्यवती और इसके पुर्नअवतरण का जिक्र राजकुमार राम-लक्ष्मण से किया है। रामायण में विश्वामित्र को गाधिराज का पुत्र बताया गया है। कोसी नामकरण पर विस्तृत जानकारी श्री दिनेश कुमार मिश्र की पुस्तक ‘दुई पाटन के बीच’ में भी उपलब्ध है।
किसी प्राणी के गुणों जैसे उनके गुण भ कुछ नदियों के नाम के आधार बने। गो-मती, गो-दावरी, साबर-मती, बाघ-मती आदि ऐसे ही नाम है। गौतम ऋषि के तप से प्रकट होने के कारण गोदावरी का एक नाम गौतमी गंगा भी है। सरीसृप जैसे घुमावदार प्रवाह मार्ग के कारण उत्तर प्रदेश की एक नदी का नाम सई है। नर्मदा, तापी, पेनमगंगा, कृष्णा, काली, तुंगभद्रा, से लेकर मूसी, मीठी, पेन्नर, पेरियार, अडयार, वेदवती, सुवर्णमुखी, कमला, मयूराक्षी, पुनपुन, घाघरा, ब्रह्मपुत्र जैसे तमाम नाम वाली धारायें भारत में हैें। स्पष्ट है कि इन जलधाराओं के नामकरण के आधारों को जानकर हम इनके गुण, संबंध तथा स्थानीयता के बारे में कुछ न कुछ जानकारी अवश्य प्राप्त कर सकते हैं।
वृहद धर्मपुराण के ऋषि मनीषा कथन में लिखा है कि भाद्र कृष्ण चतुर्दशी को जितनी दूर तक गंगा का फैलाव रहता है, उतनी दूर तक गंगा के दोनो तटों का भू-भाग नदी गर्भ कहलाता है। नदी गर्भ के बाद डेढ सौ हाथ की दूरी का भू-भाग नदी तीर कहलाता है। नदी तीर से एक ग्वयूति यानी दो हजार धनुष की भूमि को नदी क्षेत्र कहा गया है। एक ग्वयूति यानी दो हज़ार धनुष यानी दो मील यानी एक कोस यानी तीन किलोमीटर। इस तरह दोनो नदी तीरों से तीन-तीन किलोमीटर की दूरियां नदी क्षेत्र हुईं।
नदी भूमि के इस विस्तार को जानना इसलिए भी ज़रूरी है, चूंकि उक्त संदर्भ सिर्फ नदी भूमि का विस्तार ही नहीं बताता, बल्कि इस विस्तृत भूमि में पापकर्म करने से भी मना करता है। पापकर्म यानी जो कर्म नदी जैविकी के किसी भी अंग अथवा क्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हों। नदी भूमि के उक्त विस्तार को सामने रखकर यदि हम अपनी नदी के नदी गर्भ क्षेत्र, तीर क्षेत्र और नदी क्षेत्र में चल रही गतिविधियों की सूची बनायें, तो यह आकलन करना आसान हो जायेगा कि नदी के साथ हम पापकर्म कर रहे हैं या पुण्य कर्म?
नदी आधार पर भूमि के अन्य विभाजन देखिए। जिस भूमि पर की जाने वाली कृषि पूरी तरह वर्षा पर आधारित हो, उसे देवमातृक भूमि की श्रेणी में रखा गया। जो भूमि कृषि के लिए नदी जल पर आधारित हो, उसे नदीमातृक भूमि की श्रेणी में रखा गया। गंगा-यमुना दो नदियों के बीच की भूमि को दोआब कहा गया। दो-आब यानी जिस भूमि के दोनो ओर सतही जल प्रवाह हो। कई इलाकों की स्थानीय बोली में नदी किनारे की भूमि को तराई या तिराई शब्द का प्रयोग किया गया है। नदी आधार पर भूमि नामकरण के अन्य संदर्भ खोजने चाहिए। उन्हें जानकर यदि श्रेणी बदल गई है, तो हम अपनी भूमि की श्रेणी के बदलाव के इतिहास से परिचित हो सकेंगे।
यहां एक उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि भारतीय सांस्कृतिक ग्रथों ने किसी प्रशासनिक सीमा को उत्तर और दक्षिण भारत की विभाजन रेखा के रूप में उल्लिखित करने की बजाय, नदियों को इसका आधार बनाया है। दक्षिणी क्षेत्र को गोदावरी दक्षिण तीरे तथा उत्तरी क्षेत्र को रेवा उत्तर तीरे तथा उत्तर भारत को रेवाखण्ड कहा है। रेवा यानी नर्मदा नदी।
नदियों को आधार बनाकर किए भूमि विभाजन से पता चलता है कि भारतीय संस्कृति का नदियों से कितना गहरा परिचय था। इसे आप नदी आधार के जरिए लोगों को उनकी भू-सांस्कृतिक विविधता से गहराई से परिचय कराने की कोशिश भी कह सकते हैं।
ऋषि संतानों द्वारा ऋषियों के नाम पर गोत्र नामकरण की प्रथा काफी पुरानी तथा सर्वविदित है। कहा जाता है कि कौशिक यानी ऋषि विश्वामित्र के वंशज होने नाते एक वर्ग ने अपने गोत्र का नाम कौशिक रखा। किंतु नदी संदर्भ के अनुसार कौशिकी नदी के नाम पर कौशिक गोत्र तथा ब्राह्मणों के एक वर्ग का नामकरण हुआ। इसी तरह सरस्वती नदी के नाम पर सारस्वत गोत्र के नामकरण की बात सामने आती है। संदर्भ है कि पण्डे-पुरोहितों के वर्ग ने स्वयं को सरस्वती की संतान मानते हुए स्वयं के गोत्र को सारस्वत का नाम दिया। इसी तरह पूर्वी उत्तर प्रदेश की सरयू नदी के पूर्व दिशा में रहने वाले ब्राह्मणों ने कभी अपने को सरयूपारिण ब्राह्मण कहकर संबोधित किया।
संदर्भ मिलता है कि लोगों ने अपनी ही नहीं, अपने मवेशियों तक की पहचान को नदियों से जोडऩा श्रेयस्कर समझा। श्री काका कालेलकर ने अपनी पुस्तक जीवन लीला में इसका जिक्र करते हुए सिंधु तट के घोड़ों को सैंधव, महाराष्ट्र की भीमा नदी के टट्टुओं को भीमाथड़ी के टट्टू और हरियाणा की गाय को यमुनापारी नामकरण का उल्लेख किया है। गौर कीजिए कि अंग्रेजों ने कृष्णा नदी के इलाके की सुंदर गायों को कृष्णा वैली ब्रीड का नाम दिया।
ये नामकरण प्रमाण हैं कि भारतीय समाज के एक वर्ग ने नदी से जुड़ाव को गौरव का विषय समझा। यह जुड़ाव हमेशा रहे, इसी उद्देश्य से नदी के नाम को अपने गोत्र अथवा वर्ग नाम के रूप में अपना लिया। इसी तरह कुहुल का प्रबंधन करने के कारण ही एक वर्ग के नाम के साथ कोहली जुड़ा है। प्रश्न यह है कि क्या आज कौशिक, सारस्वत, सरयूपारिण ब्राह्मण नदियों से तथा कोहली कुहुलों से अपने गौरवपूर्ण जुड़ाव को व्यवहार में कायम रख सके हैं?

नदी गुण
1. निरन्तर प्रवाह : ऋग्वेद के सातवें मण्डल में नदी के निरन्तर प्रवाह की स्तुति की गई है। स्पष्ट है कि प्रवाह की निरन्तरता किसी भी नदी का प्रथम एवम् आवश्यक गुण है।
गौर कीजिए कि नदी प्रवाह की निरन्तरता बहुआयामी होती है। किसी एक भी आयाम में हम निरन्तरता को बाधित करने की कोशिश करेंगे; नदी अपना प्रथम और आवश्यक गुण खो देगी। इसके दुष्प्रभाव कितने व्यापक हो सकते हैं; इसका आकलन आज हम कोसी, गंगा, नर्मदा जैसी कई प्रमुख नदियों के आयामों में मनुष्य द्वारा पैदा की गई बाधाओं के परिणामस्वरूप नदी जल की गुणवत्ता तथा जल, रेत, गाद, वेग तथा नदी के बदले रुख से समझ सकते हैं।
2. बलवान-गुणवान ऊंची तरंगें : यजुर्वेद के नौवें अध्याय के चौथे मंत्र में बताया गया है कि जल के अन्त:स्थल में अमृत तथा पुष्टिकारक औषधियां मौजूद हैं। अश्व यानी गतिशील पशु अथवा प्रकृति के पोषक प्रवाह इस अमृत और औषधिकारक जल का पान कर बलवान् हों। हे जलसमूह, आपकी ऊंची और वेगवान तरंगे हमारे लिए अन्न प्रदायक बनें।
वैज्ञानिक दृष्टि भी यही कहती है कि नदी तभी बलवान होती है, जब उसका जल मृत न हो यानी प्रवाह में ऑक्सीकरण की प्रक्रिया सतत् होती रहे। गुणवान होने के लिए औषधियों से संसर्ग करने आने वाले जल का नदी में आते रहना जरूरी है। तरंगों के ऊंची होने का मतलब है, नदी में बाढ़ आने लायक शक्ति का होना। यदि बाढ़ न आये तो नदियों के मैदान न बनें। वे सतत् ऊंचे न हो। नदी अपने किनारे के इलाकों में भूजल शोधन तथा पुनर्भरण न करे। नदी अपने आसपास की भूमि को उर्वरा बनाने में कोई योगदान न कर सके।
नदी की शुद्धि को लेकर चाणक्य नीति में स्पष्ट कहा गया है कि नदी का वेग बना रहना चाहिए। इसके बगैर नदी जल की शुद्धता की कल्पना करना भी व्यर्थ है। गंगा कार्य योजना से लेकर नमामि गंगे परियोजना तक में क्या हमने कोई ऐसा कार्यक्रम शामिल किया, जो नदी के प्राकृतिक वेग को बनाये रखने में पूरी समग्रता के साथ सहायक होगा?
3. क्रियाशीलता : मनुस्मृति के तृतीय समुल्लास में नौ द्रव्य बताये गए हैं। इनमें से पृथ्वी, जल, तेज, वायु, मन और आत्मा को ऐसा द्रव्य बताया गया है, जिनमें गुण भी हैं और क्रियाशीलता भी है। आकाश, काल और दिशा को अक्रियाशील द्रव्य माना गया है। नदी, सिर्फ जल नहीं है; लेकिन जलमय होने के कारण नदी में जल जैसी क्रियाशीलता मौजूद होगी ही। अत: क्रियाशीलता को नदी के दूसरे गुण के रूप में सूचीबद्ध करना चाहिए।
4. सृष्टि की मूल सक्रिय तत्व की उपस्थिति: अथर्ववेद के तृतीय काण्ड के तेरहवें सूक्त के प्रथम मंत्र में जलधाराओं में सृष्टि के मूल सक्रिय तत्व का आह्वान किया गया है। सृष्टि के शाब्दिक अर्थ पर जायें तो सृष्टि शब्द का मतलब ही है, रचना करना। शाब्दिक अर्थ को सामने रखें, तो रचनात्मक सक्रियता को नदी का एक अपेक्षित गुण मानना चाहिए। सृष्टि कर्म देखें तो सृष्टि में रचना के बाद विनाश और विनाश के बाद रचना, सतत् चलने वाले कर्म हैं। इस दृष्टि से नदी में रचना और विनाश तत्व की सक्रिय मौजूदगी अपेक्षा करनी चाहिए। इसका वैज्ञानिक पहलू यह है कि नदी में जहां एक ओर शीतल तत्व मौजूद होते हैं, वहीं ऊर्जा उत्पन्न करने लायक ताप और वेग भी मौजूद होता है। नदीजल जीवन भी देता है और आवश्यक होने पर विनाश करने की भी शक्ति रखता है।
भारत में आज कितनी ही नदियां ऐसी हैं कि जिनमें इतना अतिरिक्त जल नहीं है कि किसी बाह्य कार्य के लिए उसकी निकासी की जा सके। कितनी नदियां ऐसी हैं, जिनमें बाढ़ आना बीते कल की बात हो चुकी है। कितनी नदियां ऐसी हैं, जिनके सिर्फ निशान मौजूद हैं। उनमें न जल है और न जीवन। वे न किसी बाह्य रचना में योगदान दे सकती हैं और न किसी विनाश में। कई नदियां तो ऐसी हैं, हमने पहले उनके गुणों को मिटाया और फिर उनके नाम से नदी शब्द ही हटा दिया। जयपुर की द्रव्यवती नदी का नाम आज सरकारी रिकॉर्ड में अमानीशाह नाला और अलवर से चलकर दिल्ली आने वाली साबी नदी का नाम दिल्ली के रिकॉर्ड में नजफगढ़ नाला है। यह परिवर्तन विचारणीय है कि नहीं? सोचिए।
5. अन्य में क्रियाशक्ति उत्पन्न करने में सक्षम: अथर्ववेद के तृतीय काण्ड के तेरहवें सूक्त के दूसरे मंत्र में जलधाराओं से कामना की गई है कि वे क्रियाशक्ति उत्पन्न कर उन्हे हीनता से मुक्त करेंगी तथा प्रगतिपथ पर शीघ्र ले जायेंगी। इसका मतलब है कि नदी इतनी सक्षम होनी चाहिए कि वह हमारे भीतर ऐसा कुछ करने की शक्ति पैदा कर सकें, जिससे हमारी हीनता यानी कमजोरी मिटे और हम प्रगति पथ पर अग्रसर हों। इस नदी गुण को हम कृषि, उर्वरता वृद्धि, भूजल पुनर्भरण, भूजल शोधन तथा मैदान व डेल्टा बनाने वाले में नदी के योगदान से जोड़कर देखें।
6. प्रेरक शक्ति की मौजूदगी: अथर्ववेद के तृतीय काण्ड के तेरहवें सूक्त के तीसरे मंत्र में कामना करता है कि सविता देवता की प्रेरणा से हम लौकिक व पारलौकिक कार्य कर सकें। यह नदी के गुणों का अध्यात्मिक और सामाजिक पक्ष है। नदी कर्म में निरन्तरता, शुद्धता, उदारता व परमार्थ तथा वाणी में शीतलता की प्रेरणा देती है। नदियों से सीखने और प्रेरित करने के लिए कवियों ने संस्कृत से लेकर अनेक भाषा व बोलियों में रचनायें रची हैं। कभी उन्हे देखना चाहिए।
7. रूपवती, रसवती, स्पर्शवती, द्रवीभूत, कोमलांगी: मनुस्मृति में कहा है – रूप, रस, स्पर्शवान, द्रवीभूत तथा कोमल जल कहलाता है; परन्तु इसमें जल का रस अग्नि और वायु के योग से होता है। स्पष्ट है कि ये सभी गुण, नदी के गुण हैं। नदी कोमलता का आभास देती है। नदी तरल होती है। नदी स्पर्श करने योग्य होती है। नदी में रस यानी जल होता है। नदी का अपना एक रूप होता है।
विचारणीय तथ्य यह है कि जल के ये गुण अग्नि और वायु के योग के कारण होते हैं। यह तथ्य हमें सावधान करता है कि जल हो या नदी, वायु और ताप से इनका संपर्क टूटने न पाये। पानी से बिजली बनाने वाली परियोजनाओं में नदी को सुरंगों में डाला जाता है। सोचिए कि क्या उस दौरान नदी का वायु और ताप से पर्याप्त संपर्क बना रहता है? यदि नहीं, तो नदी के उक्त गुण सुरंग से निकले नदी जल में बचे रहने का दावा हम कैसे कर सकते हैं?
8. मधुर रस: अथर्ववेद के प्रथम काण्ड के चौथे सूक्त के पहले मंत्र के अनुसार माताओं-बहिनों की भांति यज्ञ से उत्पन्न पोषक धारायें यज्ञकर्ताओं को दूध या पानी के साथ मधुर रस पिलाती हैं। उक्त उल्लेख में गंगा की भांति जो धारायें मनुष्य के तप से उत्पन्न हुई हैं, उनके पोषक होने की बात कही गई है। स्पष्ट है कि पोषण करना, नदी का एक गुण है। दूसरा कथन है कि पोषक धारायें दूध या पानी के साथ मधुर रस पिलाती हैं। यह कथन बताता है कि पोषक धाराओं का जल उन गुणों से परिपूर्ण होता है, जो पानी तथा दूध से भी अधिक पौष्टिकता प्रदान करने में सक्षम हैं।
9. शीतलताएवम् शान्तिप्रदायक: अथर्ववेद में वर्णन है कि हिमाच्छिादित पर्वतों की जलधारायें बहती हुई समुद्र में मिलती हैं। ऐसी धारायें हृदय के दाह को शान्ति देने वाली होती है। गौर कीजिए कि ये दोनो गुण विशेष तौर पर हिम स्रोतों से उत्पन्न होने वाली नदियों में बताये गए हैं। अत: हमारा दायित्व है कि हिमधाराओं के ये गुण इनमें अंत तक कायम रहें। इसमें कोई बाधा न आये।
10. जीवंतता : आपो नारा इति प्रोक्त। आपो वै नर सूनव:। अयनं तस्यता: पूर्व तो नारायण स्मृत:।। अर्थात नर से उत्पन्न होने के कारण जल को नार कहा गया है। नार में अयन यानी निवास करने के कारण हरि का एक नाम नारायण भी है। सृष्टि से पूर्व नार ही मंगल हरि का निवास था। इसी में रहते हुए हरि ने सृष्टि के पुन: सृजन का विचार किया।
भारत के सांस्कृतिक ग्रंथों में जहां जल में ईश का वास माना गया है, वहीं नदियों को देवी तथा मां का संबोधन दिया गया है। पौराणिक कथाओं कहीं किसी नदी का उल्लेख किसी की पुत्री, तो किसी का किसी की बेटी, बहन अथवा अर्धांगिनी के रूप में आया है। नर्मदाष्टक में नर्मदा को हमारी और हमारी प्राचीन संस्कृति की मां बताया गया है। यह प्रमाण है कि भारत को सांस्कृतिक इतिहास नदियों को जड़ न मानकर, जीवित मानता है। सांस लेना, गतिशील होना, वृद्धि होना, अपने जैसी संतान पैदा करना – किसी के जीवित होने के इन जैविक लक्षणों को यदि हम आधार मानें, तो हम पायेंगे कि नदी में ये चारों लक्षण मौजूद हैं।
गौर करें कि तल, तलछट, रेत, सूक्षम एवम् अन्य जलीय जीव, वनस्पति, वेग, प्रकाश, वायु तथा जल में होने वाली क्रिया-प्रतिक्रिया मिलकर एक नदी और इसके गुणों की रचना करते हैं। इसी आधार पर नदी वैज्ञानिकों ने प्रत्येक नदी को महज् जल न मानकर, एक सम्पूर्ण जीवंत प्रणाली माना है। इसी आधार पर न्यूजीलैण्ड और इक्वाडोर में नदियों को जीवित का दर्जा मिला। कहना न होगा कि उत्तराखण्ड के नैनीताल हाईकोर्ट द्वारा हाल ही में गंगा-यमुना की जीवंतता को कानूनी दर्जा प्रदान करना भी भारतीय संस्कृति की नदी जीवंतता अवधारणा की पुष्टि ही है। हालांकि नैनीताल की जीवंतता का फैसले का दायरा उत्तराखण्ड की सीमा में ही लागू होता है; फिर भी इसके संदेश व्यापक हैं। नदी को जीवित का दर्जा दिए जाने का मतलब है, उसे वे सभी अधिकार दे देना, जो किसी जीवित प्राणी हो होते हैं। नदी का शोषण करने, नदी को बीमार करने और नदी को मारने की कोशिश करने जैसे मामलों में अब क्रिमिनल एक्ट के तहत् मुक़दमा चलाया जा सकता है। नदी पर किए गए अत्याचारों के मामले मानवाधिकार आयोग में सुने जा सकेंगे।
✍🏻भारतीय धरोहर

राधे राधे ॥ आज का भगवद चिन्तन। 

🕉️ ऐसे कर्म न करो जिससे कि आपको दूसरों की नजरों से गिरना पड़े क्योंकि पहाड़ से गिरकर फिर उठा जा सकता है मगर नजरों से गिरकर उठना आसान नहीं।

🕉️ जिस प्रकार महल बनाने में वर्षों लग जाते हैं मगर उसे ध्वस्त करने के लिए एक क्षण पर्याप्त होता है। ठीक इसी प्रकार चरित्र निर्माण में तो वर्षों लग जाते हैं मगर चरित्र के पतन होने में भी एक क्षण मात्र लगता है।

🕉️ हर कार्य को करने से पहले उसके परिणाम का विचार कर लेना यह बुद्धिमानों का लक्षण है। और कार्य कर लेने के बाद परिणाम पर विचार करना मूर्खों का। अत: परिणाम के बाद नहीं अपितु कार्य करने के पहले सोचने की आदत बनाओ। ताकि आपकी गिनती भी बुद्धिमानों में हो सके।

🇮🇳🌹🙏🏻🕉️ *जय श्री कृष्णा*🙏🏻🌹🇮🇳

*हमारे पास तो पहले से ही अमृत से भरे कलश थे…!🧐*सनातन संस्कृति के उत्सवों में घुसपैठ!

*फिर हम वह अमृत फेंक कर उनमें कीचड़ भरने का काम क्यों कर रहे हैं…?🤔*

*जरा इन पर विचार करें…🧐👇*

० यदि *मातृनवमी* थी,
तो Mother’s day क्यों लाया गया?

० यदि *कौमुदी महोत्सव* था,
तो Valentine day क्यों लाया गया?

० यदि *गुरुपूर्णिमा* थी,
तो Teacher’s day क्यों लाया गया?

० यदि *धन्वन्तरि जयन्ती* थी,
तो Doctor’s day क्यों लाया गया?

० यदि *विश्वकर्मा जयंती* थी,
तो Technology day क्यों लाया गया?

० यदि *सन्तान सप्तमी* थी,
तो Children’s day क्यों लाया गया?

० यदि *नवरात्रि* और *कन्या भोज* था,
तो Daughter’s day क्यों लाया गया?

० *रक्षाबंधन* है तो Sister’s day क्यों ?

० *भाईदूज* है तो Brother’s day क्यों ?

० *आंवला नवमी, तुलसी विवाह* मनाने वाले हिंदुओं को Environment day की क्या आवश्यकता ?

० केवल इतना ही नहीं, *नारद जयन्ती* ब्रह्माण्डीय पत्रकारिता दिवस है…

० *पितृपक्ष* ७ पीढ़ियों तक के पूर्वजों का पितृपर्व है…

० *नवरात्रि* को स्त्री के नवरूपों के दिवस के रूप में स्मरण कीजिये…

*सनातन पर्वों को अवश्य मनाईये…*

अब पृथ्वी के सनातन भाव को स्वीकार करना ही होगा। अपनी जड़ों की ओर लौटिए। अपने सनातन मूल की ओर लौटिए। व्रत, पर्व, त्यौहारों को मनाइए। अपनी संस्कृति और सभ्यता को जीवंत कीजिये। जीवन में भारतीय पंचांग अपनाना चाहिए, जिससे भारत अपने पर्वों, त्यौहारों से लेकर मौसम की भी
अनेक जानकारियां सहज रूप से जान व समझ लेता है…😊👍🏽

*संस्कृति 🚩रक्षा अभियान….⛳️⛳️*
🙏🏻
*शुभ स्वस्थ जीवन🤝🏼 स्वजन💐🕉️🌹