आज का पंचाग आपका राशि फल, भारत ने सन 1998 की शुरुआत में जब पोखरण में पांच परमाणु विस्फोट किये तो कई अख़बारों ने पोखरण का जिक्र “शक्ति पीठ” के रूप में किया

🌞 *~ वैदिक पंचांग ~*

🕉श्री हरिहरो विजयतेतराम🕉  
🌄सुप्रभातम🌄
🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓
🌻सोमवार, २३ अक्टूबर २०२३🌻
सूर्योदय: 🌄 ०६:३५
सूर्यास्त: 🌅 ०५:४८
चन्द्रोदय: 🌝 १४:२१
चन्द्रास्त: 🌜२५:०९
अयन 🌖 दक्षिणायणे (दक्षिणगोलीय)
ऋतु: 🗻 हेमन्त 
शक सम्वत: 👉 १९४५ (शोभकृत)
विक्रम सम्वत: 👉 २०८० (पिंगल)
मास 👉 आश्विन 
पक्ष 👉 शुक्ल 
तिथि 👉 नवमी (१७:४४ से दशमी)
नक्षत्र 👉 श्रवण (१७:१४ से धनिष्ठा)
योग 👉 शूल (१८:५३ से गण्ड)
प्रथम करण 👉 बालव (०६:५४ तक)
द्वितीय करण 👉 कौलव (१७:४४ तक)
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॥ गोचर ग्रहा: ॥ 
🌖🌗🌖🌗
सूर्य   🌟 तुला 
चंद्र    🌟 कुम्भ (२८:२२ से)
मंगल 🌟 तुला (अस्त, पश्चिम, मार्गी)
बुध   🌟 तुला (अस्त, पूर्व, वक्री)
गुरु   🌟 मेष (उदित, पश्चिम, वक्री)
शुक्र  🌟 सिंह (उदित, पश्चिम, मार्गी)
शनि  🌟 कुम्भ (उदित, पूर्व, वक्री)
राहु   🌟 मेष 
केतु   🌟 तुला 
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शुभाशुभ मुहूर्त विचार
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अभिजित मुहूर्त 👉 ११:३८ से १२:२३
अमृत काल 👉 ०७:२९ से ०८:५९
सर्वार्थसिद्धि योग 👉 ०६:२४ से १७:१४
रवियोग 👉 पूरे दिन
विजय मुहूर्त 👉 १३:५३ से १४:३८
गोधूलि मुहूर्त 👉 १७:३८ से १८:०४
सायाह्न सन्ध्या 👉 १७:३८ से १८:५५
निशिता मुहूर्त 👉 २३:३६ से २४:२७
राहुकाल 👉 ०७:४८ से ०९:१२
राहुवास 👉 उत्तर-पश्चिम
यमगण्ड 👉 १०:३७ से १२:०१
दुर्मुहूर्त 👉 १२:२३ से १३:०८
होमाहुति 👉 शुक्र (१७:१४ से शनि)
दिशाशूल 👉 पूर्व
अग्निवास 👉 पृथ्वी (१७:४४ तक)
चन्द्रवास 👉 दक्षिण (पश्चिम २८:२३ से) 
शिववास 👉 गौरी के साथ (१७:४४ से सभा में)
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☄चौघड़िया विचार☄
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॥ दिन का चौघड़िया ॥ 
१ – अमृत     २ – काल
३ – शुभ       ४ – रोग
५ – उद्वेग      ६ – चर
७ – लाभ      ८ – अमृत
॥रात्रि का चौघड़िया॥ 
१ – चर         २ – रोग
३ – काल       ४ – लाभ
५ – उद्वेग       ६ – शुभ
७ – अमृत      ८ – चर
नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है। 
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शुभ यात्रा दिशा
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पश्चिम-दक्षिण (दर्पण देखकर अथवा खीर का सेवन कर यात्रा करें)
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तिथि विशेष
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दुर्गा नवमी, बुद्ध जयन्ती, नवरात्री पारण, हेमन्त ऋतु आरम्भ, पंचक आरम्भ २८:२२ से, विवाह मुहूर्त तुला मीन लग्न (प्रातः ०६:३५ से अतंरात्रि ०५:१३) तक आदि।
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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण 
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आज १७:१४ तक जन्मे शिशुओ का नाम श्रवण नक्षत्र के द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (खू, खे, खो) नामक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओ का नाम धनिष्ठा नक्षत्र के प्रथम एवं द्वितीय चरण अनुसार क्रमशः (ग, गी) नामाक्षर से रखना शास्त्रसम्मत है।
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उदय-लग्न मुहूर्त
तुला – ३०:०३ से ०८:२४
वृश्चिक – ०८:२४ से १०:४३
धनु – १०:४३ से १२:४७
मकर – १२:४७ से १४:२८
कुम्भ – १४:२८ से १५:५४
मीन – १५:५४ से १७:१७
मेष – १७:१७ से १८:५१
वृषभ – १८:५१ से २०:४६
मिथुन – २०:४६ से २३:०१
कर्क – २३:०१ से २५:२२
सिंह – २५:२२ से २७:४१
कन्या – २७:४१ से २९:५९
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पञ्चक रहित मुहूर्त
रज पञ्चक – ०६:२४ से ०८:२४
शुभ मुहूर्त – ०८:२४ से १०:४३
चोर पञ्चक – १०:४३ से १२:४७
शुभ मुहूर्त – १२:४७ से १४:२८
रोग पञ्चक – १४:२८ से १५:५४
शुभ मुहूर्त – १५:५४ से १७:१४
मृत्यु पञ्चक – १७:१४ से १७:१७
रोग पञ्चक – १७:१७ से १७:४४
शुभ मुहूर्त – १७:४४ से १८:५१
मृत्यु पञ्चक – १८:५१ से २०:४६
अग्नि पञ्चक – २०:४६ से २३:०१
शुभ मुहूर्त – २३:०१ से २५:२२
रज पञ्चक – २५:२२ से २७:४१
शुभ मुहूर्त – २७:४१ से २९:५९
चोर पञ्चक – २९:५९ से ३०:२४
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आज का राशिफल

🐐🐂💏💮🐅👩

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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)

आज के दिन आप कार्य क्षेत्र से कुछ समय निकालकर मित्र परिवार के साथ मनोरंजन में व्यतीत करेंगे परन्तु आज दुर्व्यसनों से दूर रहना अति आवश्यक है शरीर के साथ मान हानि भी होने की संभावना है। हालांकि आज परोपकार का शुभ फल किसी न किसी रूप में मिलने की आशा है। कार्य क्षेत्र पर कम समय देने के बाद भी संतोषजनक धन लाभ हो जाएगा साथ मे अतिआत्मविश्वास की भावना भी बढ़ेगी जो कि आगे के लिए नुकसान दे सकती है। दाम्पत्य जीवन पहले से बेहतर रहेगा। सन्तानो की प्रगति से आत्मसंतोष होगा। सेहत आज लगभग सामान्य ही रहेगी। आकस्मिक आने वाले क्रोध से बचें।

वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)

आज का दिन आप सुख शांति से बितायेंगे। सेहत भी सामान्य बनी रहेगी। घर में मांगलिक कार्य के कारण अथवा अन्य घरेलु कार्यो में अधिक व्यस्त रहेंगे। कार्य क्षेत्र पर भी मध्यान बाद आशा के अनुरूप व्यवसाय होने से धन लाभ होगा। सुख सुविधा बढ़ाने के ऊपर फिजूल खर्च भी अधिक रहेंगे। घर में मेहमानों के आने से चहल-पहल रहेगी। आज किसी के ऊपर अतिविश्वास हानि भी करा सकता है। आय के नविन साधनों की प्राप्ति होगी। घर में आनंद का वातावरण रहेगा। महिलाए मनोकामना पूर्ति होने पर उत्साहित रहेंगी।

मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)

आज के दिन परिवार में अप्रिय घटना घटित होने से दुख के प्रसंग बनेंगे। प्रातः काल का समय आलस्य में बीतेगा। मध्यान तक वाणी व्यवहार को संयमित रखे किसी आस-पडोसी से वर्चस्व को लेकर टकराव की स्थिति बनने की संभावना है। धैर्य से कार्य करें आज किसी ना किसी की उत्तेजक वाणी मानसिक संतुलन बिगड़ सकती है। दोपहर के बाद से राहत मिलने लगेगी बुद्धि विवेक से काम लेंगे आज परिजनों के साथ यात्रा पिकनिक पर भी खर्च करेंगे परन्तु गलतफहमी के कारण सामंजस्य बैठाना मुश्किल साबित होगा। धन लाभ आकस्मिक होगा। आध्यात्म से जुड़ेंगे।

कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)

आज का दिन आपके लिये आपके लिए अनुकूल रहेगा। मध्यान तक ज्यादा झंझट वाले कार्य से बचने का प्रयास करेंगे।किसी मनोकामना की पूर्ति के लिए थोड़ा इन्तजार करना पदेगा परंतु मध्यान के आस-पास इसके पूर्ण होने से ख़ुशी मिलेगी। परिजनों के साथ भावनात्मक सम्बन्ध जुड़ेंगे अधिक भावनाओ में बहकर सामर्थ्य से अधिक खर्च करने के कारण आर्थिक स्थिति बिगड़ सकती है। आज गूढ़ पारलौकिक रहस्यों को जानने में भी रूचि दिखाएँगे। धार्मिक क्षेत्र की लघु यात्रा हो सकती है। कार्य क्षेत्र पर तालमेल की कमी देखने को मिलेगी मित्र परिचितों से बात करते समय विवेक का परिचय दें अपमान होने की संभावना है। उच्च-निम्न रक्तचाप संबंधित समस्या हो सकती है।

सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)

आज का दिन बेहतर रहने वाला है परंतु विदेश सम्बंधित कार्यो में व्यवधान आने अथवा विदेश स्थित जातको को आकस्मिक कष्ट देखना पड़ेगा। कार्य क्षेत्र पर आज अधिक समय ना देने पर भी आशा से अधिक लाभ होगा। सामाजिक रूप से भी दिन अच्छा रहेगा मान बढ़ने से गर्वित अनुभव करेंगे समाज मे छवि धनी लोगो जैसी बनेगी। व्यवसाय के सिलसिले से बन रही यात्रा की योजना अचानक बदलने से घर पर समय दे पाएंगे परिजन किसी न किसी कारण से आप पर गर्व करेंगे चाहे व्यक्तिगत स्वार्थ ही हो। ख़राब पेट के कारण थोड़ा असहज रहेंगे। खान-पान में सावधानी रखें।

कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)

आज का दिन पिछले कल से थोड़ा बेहतर रहेगा बस मध्यान तक का समय धैर्य से बिताने का प्रयास करें वैसे तो आज व्यर्थ की बातों को अनदेखा करने का प्रयास करेंगे लेकिन बीच-बीच में वातावरण ख़राब होने से क्रोध आएगा। आर्थिक विषय भी आज खास परेशान करेंगे। भागीदारी के कार्य में हानि होने की संभावना भी है। लंबी यात्रा होने की संभावना है परंतु इससे कोई विशेष प्रयोजन सिद्ध नहीं कर पाएंगे। आज किसी सरकारी उलझन में भी फंस सकते है। वाहन चलाते समय सावधानी रखें। सर्जरी अथवा अन्य महंगे इलाज अधिक छान-बीन के बाद ही कराये। परिजनों से मन का भेद ना छुपाएं।

तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)

आज दिन का आधा भाग व्यर्थ के कार्यो की व्यस्तता में बीतेगा लेकिन मध्यान के समय से मानसिक तनाव अनुभव करेंगे। घरेलु वातावरण पहले ही अशान्त रहेगा बाहर भी किसी से धन या अन्य विषयों को लेकर बहस हो सकती है। पर्यटन की योजना भी बिगड़ सकती है। घर के सदस्य की सेहत आकस्मिक ख़राब होने की संभावना है। आर्थिक लेन देन आज ना करें। पुराने रुके कार्य असफल होने से धन अटक सकता है। प्रेम-प्रसंगों से दूरी बनाए रखें अन्यथा मायूसी मिलेगी धन की कमी रहेने से महत्त्वपूर्ण योजनाएं लटकेगी।

वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)

आज का दिन मिला-जुला फल देने वाला रहेगा। आर्थिक रूप से मध्यान तक का समय ठीक रहेगा रुके कार्यो से धन की आवक होगी इसके बाद धन लाभ की अपेक्षा खर्च अधिक रहेंगे। परिवार में पैतृक संपत्ति अथवा अन्य कारणों से अहम् को लेकर टकराव हो सकता है। निजी व्यवसाय अथवा नौकरी में अतिरिक्त कार्य मिलने से पूर्व निर्धारित कार्यक्रम रद्द करने पड़ेंगे। आज किसी के बीच बचाव अथवा जमानती ना बने परोपकार का भी उल्टा इल्जाम लग सकता है। संध्या का समय थकान वाला लेकिन मानसिक रूप से प्रसन्नता दायक रहेगा।

धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)

आज का दिन सामान्य फलदायक रहेगा। कुछ विशेष कार्य नहीं रहने के कारण मध्यान तक आलस्य करेंगे। मध्यान बाद सेहत भी थोड़ी प्रतिकूल बनने लगेगी पिडली में अकड़न अथवा शरीर में निष्क्रियता रहने की सम्भवना है। घर में व्यर्थ के विवाद रहने से गृहस्थ से भी मन ऊबने लगेगा। आज कोई आपकी चुगली भी कर सकता है परंतु इसका आपके व्यक्तित्त्व पर असर नहीं पड़ेगा। प्रातः काल पूर्व में किये गए अनुबंधों से थोड़ा लाभ हो सकता है इसके बाद धन लाभ की इच्छा पूर्ण होने मुश्किल है। परिजनों से विचारो में मतभेद रह सकता है। आज जोखिम किसी भी कार्य मे ना लें बेहतर रहेगा।

मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)

आज आप महत्त्वपूर्ण कार्यो को भी दरकीनार करके अपनी मन पसंद गतिविधियों में दिन व्यतीत करना अधिक पसंद करेंगे। कार्य स्थल पर पहले से व्यवस्था करने से निर्धारित योजनाओं में विघ्न नहीं आ पाएंगे। किसी वरिष्ठ सामाजिक व्यक्ति से भेंट होने से भविष्य के लिए लाभ के द्वार खुलेंगे। कार्य क्षेत्र अथवा रिश्तेदारी से शुभ समाचार मिलेंगे। दोपहर के बाद के समय उत्तम भोजन वाहन सुख मिलेगा। अपव्यय भी अधिक रहेंगे। आज वैसे तो आप धार्मिक एवं परोपकारी रहेंगे फिर भी प्रलोभन से बचें आज स्वाभाविक रूप से ही लाभदायीं दिन है। बाहर की तुलना में घर मे अधिक सुख शान्ति अनुभव होगी।

कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)

आज आपको दोपहर के बाद कष्ट का सामना करना पड़ेगा इससे पहले आवश्यक कार्य पूर्ण कर लें। व्यापार अथवा सामाजिक क्षेत्र में भी धोखा होने की अधिक संभावना है सतर्क रहें। कार्य क्षेत्र पर पूर्ण अनुबंध अचानक निरस्त होने से धन की समस्या खड़ी होगी। क्रोध की भावना बढ़ने से घर बाहर का वातावरण अशान्त बनेगा। किसी के बनाये षड्यंत्र में फंस सकते है। किसी भी अनैतिक गतिविधि से बचकर रहें। मित्र प्रियजनों के साथ ख़ुशी के पल अचानक गम में बदल सकते है। बेहतर रहेगा आज का दिन घर में ही ईश्वरीय आराधना में व्यतीत करें।

 

मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)

आज का दिन आपकी आशाओं पर खरा उतरेगा। घर एवं बाहर अनुकूल वातावरण मिलने से मनचाहा कार्य करने में सुविधा रहेगी आज किसी बहुप्रतीक्षित कार्य के बनने की भी सम्भवना है बस स्वभाव का सनकीपन आज ना दिखाए अन्यथा फल विपरीत हो सकते है। धार्मिक गतिविधयों में जाने से मानसिक शांति मिलेगी। विदेश से आनंद दायक समाचार मिलने की संभावना है अथवा विदेश जाने में आ रही बाधा शांत होने से राहत मिलेगी। घर में सुख के साधनो की खरीददारी पर खर्च करेंगे। आर्थिक रूप से भी आज का दिन शुभ रहेगा कार्य व्यवसाय में मध्यान तक कोटा पूरा कर लेंगे। संध्या का समय परिवार के साथ बितायेंगे।

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भारत ने सन 1998 की शुरुआत में जब पोखरण में पांच परमाणु विस्फोट किये तो कई अख़बारों ने पोखरण का जिक्र “शक्ति पीठ” के रूप में किया। विश्व के लिए ये कई कारणों से घबराने वाली घटना थी। एक तो उनके अनुसार जिसके पास परमाणु शोध की क्षमता ही नहीं होनी चाहिए थी, उसके पास भला परमाणु बम क्यों थे? दूसरा कि शक्ति के इस रूप में उपासना की कोई पद्दति होगी, ऐसा वो सोच ही नहीं पाए थे। उनकी ओर जो व्यवस्था संस्कृति या मजहबी तौर पर चलती थी, उसमें “स्त्री” उपास्य नहीं थी। देवी तो क्या, उनके पास कोई देवदूत भी स्त्री नहीं थी!

शाक्त परम्पराओं के लिए देवी की शक्ति के रूप में उपासना एक आम पद्दति थी। शक्ति का अर्थ किसी का बल हो सकता है, किसी कार्य को करने की क्षमता भी हो सकती है। ये प्रकृति की सृजन और विनाश के रूप में स्वयं को जब दर्शाती है, तब ये शक्ति केवल शब्द नहीं देवी है। सामान्यतः दक्षिण भारत में ये श्री (लक्ष्मी) के रूप में और उत्तर भारत में चंडी (काली) के रूप में पूजित हैं। अपने अपने क्षेत्र की परम्पराओं के अनुसार इनकी उपासना के दो मुख्य ग्रन्थ भी प्रचलित हैं। ललिता सहस्त्रनाम जहाँ दक्षिण में अधिक पाया जाता है, उतर में दुर्गा सप्तशती (या चंडी पाठ) ज्यादा दिखता है।

शाक्त परम्पराएं वर्ष के 360 दिनों को नौ-नौ रात्रियों के चालीस हिस्सों में बाँट देती हैं। फिर करीब हर ऋतुसन्धी पर एक नवरात्र ज्यादा महत्व का हो जाता है। जैसे अश्विन या शारदीय नवरात्री की ही तरह कई लोग चैत्र में चैती दुर्गा पूजा (नवरात्रि) मनाते भी दिख जायेंगे। चैत्र ठीक फसल काटने के बाद का समय भी होता है इसलिए कृषि प्रधान भारत के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। असाढ़ यानि बरसात के समय पड़ने वाली नवरात्रि का त्यौहार हिमाचल के नैना देवी और चिंतपूर्णी मंदिरों में काफी धूम-धाम से मनाया जाता है। माघ नवरात्री का पांचवा दिन हम सरस्वती पूजा के रूप में मनाते हैं।

सरस्वती के रूप में उपासना के लिए दक्षिण में कई जगहों पर अष्टमी-नवमी तिथियों को किताबों की भी पूजा होती है। शस्त्र पूजा में भी उनका आह्वान होता है। बच्चों को लिखना-पढ़ना शुरू करवाने के लिए विजयदशमी का दिन शुभ माना जाता है और हमारी पीढ़ी तक के कई लोगों का इसी तिथि को विद्यारम्भ करवाया गया होगा। देवी जितनी वैदिक परम्पराओं की हैं, उतनी ही तांत्रिक पद्दतियों की भी हैं। डामर तंत्र में इस विषय में कहा गया है कि जैसे यज्ञों में अश्वमेघ है और देवों में हरी, वैसे ही स्तोत्रों में सप्तशती है।

तीन रूपों में सरस्वती, काली और लक्ष्मी देवियों की ही तरह सप्तशती भी तीन भागों में विभक्त है। प्रथम चरित्र, मध्यम चरित्र और उत्तम चरित्र इसके तीन हिस्से हैं। मार्कंडेय पुराण के 81 वें से 93 वें अध्याय में दुर्गा सप्तशती होती है। इसके प्रथम चरित्र में मधु-कैटभ, मध्यम में महिषासुर और उत्तम में शुम्भ-निशुम्भ नाम के राक्षसों से संसार की मुक्ति का वर्णन है (ललिता सहस्त्रनाम में भंडासुर नाम के राक्षस से मुक्ति का वर्णन है)। तांत्रिक प्रक्रियाओं से जुड़े होने के कारण इसकी प्रक्रियाएं गुप्त भी रखी जाती थीं। श्री भास्कराचार्य ने तो सप्तशती पर अपनी टीका का नाम ही ‘गुप्तवती’ रखा था।

पुराणों को जहाँ वेदों का केवल एक उपअंग माना जाता है वहीँ सप्तशती को सीधा श्रुति का स्थान मिला हुआ है। जैसे वेदमंत्रों के ऋषि, छंद, देवता और विनियोग होते हैं वैसे ही प्रथम, मध्यम और उत्तम तीनों चरित्रों में ऋषि, छंद, देवता और विनियोग मिल जायेंगे। इस पूरे ग्रन्थ में 537 पूर्ण श्लोक, 38 अर्ध श्लोक, 66 खंड श्लोक, 57 उवाच और 2 पुनरुक्त यानी कुल 700 मन्त्र होते हैं। अफ़सोस की बात है कि इनके पीछे के दर्शन पर लिखे गए अधिकांश संस्कृत ग्रन्थ लुप्त हो रहे हैं। अंग्रेजी में अभी भी कुछ उपलब्ध हो जाता है, लेकिन भारतीय भाषाओँ में कुछ भी ढूंढ निकालना मुश्किल होगा।

ये एक मुख्य कारण है कि इसे पढ़कर, खुद ही समझना पड़ता है। तांत्रिक सिद्धांतों के शिव और शक्ति, सांख्य के पुरुष-प्रकृति या फिर अद्वैत के ब्रह्म और माया में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है। जैसा कि पहले लिखा है, इसमें 700 ही मन्त्र हैं (सिर्फ पूरे श्लोक गिनें तो 513) यानी बहुत ज्यादा नहीं होता। पाठ कर के देखिये। आखिर आपके ग्रन्थ आपकी संस्कृति, आपकी ही तो जिम्मेदारी हैं!

#नवरात्रि

कभी कभी पशुओं के चोर की कहानियां पढ़ने में आती हैं जिनमें पशु चोर को काफी चतुर बताया जाता है। कहा जाता है कि वो पशु को एक तरफ ले जाते हैं और उसकी घंटी उल्टी दिशा में लेकर भागने के बाद कहीं फेंक देते हैं। घंटी की आवाज का पीछा करते ग्रामीणों को अक्सर सिर्फ घंटी मिलती है और चोर सुरक्षित पशु को लेकर निकल जाते हैं। बाद में तो उसका कीमा ही बन जाता है तो पशु तो मिलने से रहा! इस किस्से के साथ बताया जाता है कि पशु तो शिक्षा, रोजगार, महिला सुरक्षा जैसे मुद्दे हैं और घंटी है शमशान-कब्रिस्तान, मंदिर-मस्जिद जैसे मुद्दे।

अब कहानी का चोर चतुर है तो उसने यहाँ चतुराई की होगी या नहीं? ये सोचने लायक बात है। थोड़े समय पहले एक परिचित जब कोई जलमहल देखने गए तो उन्होंने टापू पर बने महल की तरफ जाते हुए रास्ते में मल्लाह से बातचीत शुरू कर दी। इधर उधर की दूसरी बातों के अलावा उन्होंने मल्लाह से पूछा राजा ने यहाँ महल क्यों बनवा दिया था? मल्लाह ने जवाब दिया, नाच-रंग होता था और क्या? मल्लाह कम पढ़ा लिखा है इसलिए सिर्फ स्थूल पर ध्यान देता है। आप उतने कम शिक्षित नहीं, इसलिए त्वरित फैसले के बदले आपको अपनी समझ इस्तेमाल करनी चाहिए।

जंगल में कहीं एक महल बनाने में वहां तक का रास्ता बनवाना पड़ा होगा जिसमें लोगों ने काम किया होगा। वहां ईट-पत्थर, गारा, रंग-रोगन हुआ होगा जो कहीं से लाया गया होगा। कारीगरों को भी उसमें काम मिला होगा। महल बनवाकर वैसे ही तो छोड़ा नहीं जाता न? उसकी देखभाल के लिए स्थानीय लोगों को रोजगार मिला होगा। महल बनने और राज-पाट ख़त्म होने के करीब सात दशक बाद भी वो जलमहल वहां जाते सैलानियों के रूप में रोजगार पैदा कर ही रहा है। जो अशिक्षित रह गए हैं वो भी मल्लाह के रूप में, गाइड-छोटे दुकानदारों के रूप में काम पाते हैं।

पटना में इसका नमूना देखना हो तो हाल में ही यहाँ कुछ फ्लाईओवर और पार्क बने हैं, वहां ये नजर आ जाएगा। ऐसे पार्क और फ्लाईओवर के आस पास कई ई-रिक्शा (बैटरी वाली रिक्शा) के चालकों को रोजगार मिलता है। पार्क के आस पास जो दर्जनों चाट-गोलगप्पे, आइसक्रीम-गुब्बारे वाले दिखते हैं, उन सबको एक पार्क बनने से रोजगार मिलता है। मंदिरों के लिए प्रसाद चाहिए और वो कई हलवाइयों को रोजगार देता है। वहां फूल चढ़ते हैं जो फूल उगाने वालों, कई मालियों को रोजगार देते हैं। दुर्गा पूजा का एक मेला ही देख लें तो अंदाजा हो जाएगा कि ये कितना रोजगार पैदा करता है।

अभी से लेकर छठ तक में बांस के बने सूप-टोकरी का केवल पटना में साढ़े चार करोड़ का व्यवसाय होता है। इसे डोम समुदाय बनाता है। मंदिरों में जाना वाला हर चढ़ावा सरकारी होता है, इसलिए सरकार को भी आय होती है, जिससे शायद सड़क-बिजली-पानी का इंतजाम होता होगा। दिए बनाने वाले कुम्हार, बद्धी (गले में पहनने की माला) बनाने वाले, रूई की बत्ती, सिन्दूर जैसी छोटी मोटी चीज़ों का व्यवसाय भी सबसे पिछले तबकों में से एक को रोजगार देता है। हाँ आयातित विचारधारा पर चलने वाले आक्रमणकारी जरूर चाहते हैं कि इन व्यवसायों से आने वाली आमदनी को हथियाया जाए।

मोची से जूते-चप्पल का व्यवसाय छीनकर किसी “मोची” नाम के ब्रांड का फायदा तो हुआ ही है। विशेष अवसरों पर न्योता लाने-ले जाने वाले नाई का व्यवसाय किसी जावेद हबीब को अमीर बनने का मौका तो देगा ही। फल जो कुछ ही दिन पहले किसी एक समुदाय के उपवास के दौरान सस्ते होते हैं, वो किसी ने कब्जाए नहीं होंगे तो वो नवरात्र में महंगे करके कैसे बेचे जाते? हमलावरों के लिए ये बहुत जरूरी था कि उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर किया जाए ताकि उन्हें कुचलना आसान हो। लगातार वर्ष भर चलने वाले पर्व-त्योहारों की भारतीय परम्पराएं शोषितों को फिर से आर्थिक सामर्थ्य दे देती है।

कोई आश्चर्य नहीं कि हमलावर लगातार मुंह की खाते रहने के बाद भी हर वर्ष हमारे त्योहारों पर आक्रमण करते ही हैं। सबरीमाला में या किसी शनि मंदिर में श्रद्धालु कम आएं तो वो एक ही झटके में कई लोगों का रोजगार छीनकर उन्हें असंतुष्टों में शामिल कर सकेंगे। किले में बंद रहकर सिर्फ रक्षात्मक नीतियों से लड़ाई लम्बे समय तक जारी नहीं रखी जा सकती। इस शक्ति पूजन के पर्व में कमसे कम किले की दिवार से पत्थर फेंकना तो शुरू करना ही चाहिए न? अपने पक्ष वाला कम से कम कोई दूषित सामग्री पूजा में देने के लिए तो नहीं भेजेगा।

हवन-पूजन की सामग्री, फूल-प्रसाद जैसी चीज़ें जहाँ से लेने की सोच रहे हैं, उसका नाम तो पूछ लिया है न?

करण-अर्जुन एक प्रसिद्ध सी फिल्म भी थी, लेकिन आम तौर पर ये दोनों महाभारत के पात्रों के रूप में जाने जाते हैं। दोनों करीब करीब एक ही स्तर के धनुर्धर थे। कौशल के अलावा दोनों के पास अस्त्र-शस्त्रों के अलावा दिव्य धनुष भी थे, अर्जुन के पास गांडीव तो कर्ण के पास विजया नाम का धनुष था। इस सब के बाद भी अपने काल के ये सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर जब भी आपस में टकराए तो जीत अर्जुन की होती है, कर्ण हार जाता है। कर्ण के साथ समस्या ये थी कि उसे गुरु से झूठ बोलने के कारण शाप मिला था कि जब सबसे जरूरी होगा, तभी वो सारा सीखा हुआ भूल जाएगा!

क्या किसी के बोल भर देने से कोई सारे दिव्यास्त्रों का ज्ञान भूल गया होगा? अगर मिथकीय के बदले इसे साधारण मनुष्यों के स्तर पर देखें तो इसे समझना थोड़ा आसान हो जाता है। शिक्षा प्राप्त करने के बाद अर्जुन लगातार अभ्यास में जुटा रहा। खाण्डव-वन के लिए वो इंद्र से लड़ता है, किरातार्जुनीय जिसपर आधारित है, उस कथा में अर्जुन शिव से लड़ रहा होता है। बाद में वो इंद्र के पास शिक्षा भी लेता है और अपने अहंकार में हनुमान जी को चुनौती देता भी दिखता है। ऐसे इंद्र, शिव या हनुमान जी जैसे प्रतिद्वंदियों के लिए वो क्या साधारण अस्त्रों का प्रयोग कर रहा होगा?

शायद नहीं। इनसे लड़ने के प्रयास में उसने अपने पास मौजूद सबसे भारी भरकम हथियार निकाले होंगे। उसे ऐसे दिव्यास्त्रों के प्रयोग का अभ्यास रहा। उसकी तुलना में कर्ण ने ऐसे प्रतिद्वंदी नहीं (या कम) चुने थे। नागों-गन्धर्वों से लड़ते अर्जुन दिखते हैं, पांडवों के वनवास के समय गन्धर्वों से लड़ने में कर्ण का बुरा हाल हुआ था। बाद में अर्जुन को ही दुर्योधन को गन्धर्वों की कैद से छुड़ाना पड़ा था। आम आदमी की तरह सोचें तो संभवतः अभ्यास के कारण अर्जुन को तो अपने दिव्यास्त्र अच्छी तरह याद थे, लेकिन कर्ण उनमें से कई का प्रयोग सिर्फ जानता होगा, कैसे किया जाता है, ये उसने करके नहीं देखा होगा। कोई आश्चर्य नहीं कि वो जरूरत के समय उन्हें इस्तेमाल ही नहीं कर पाया।

ऐसा ही पढ़ाई के समय भी अक्सर कहा जाता है। लिखकर अपने नोट्स बनाने की सलाह (दूसरों को) इसलिए दी जाती है ताकि वो याद रहें (अपनी बारी में लोग कर्ण हो जाते हैं – यानी सलाह भूलते हैं)। महाभारत के एक लाख के लगभग श्लोकों का भी ऐसा ही हुआ होगा। हो सकता है कि ऋषि व्यास को भी लगा हो कि लोग इसे भूल न जाएँ इसलिए उन्होंने गणेश जी से इसे लिखवा लेने की सोची। उस दौर में शायद इसे “लिख” पाने की क्षमता वाले गणेश जी ही इकलौते थे। लिखने के मामले में भी गणेश जी और ऋषि व्यास आपस में स्पर्धा करते दिखते हैं। एक का कहना था मैं रुक गया तो आगे नहीं लिखूंगा, दूसरे हर थोड़ी देर में ऐसा श्लोक कहते जिसका अर्थ सोचना पड़े, और बिना समझे न लिखने की शर्त साथ लगा देते हैं!

जिस गणेश जी को लिखने के फायदे इतनी अच्छी तरह पता हों, उनके लिखने-पढ़ने के दूसरे किस्से भी आते हैं। जैसे उत्तर भारत में नवरात्रि के समय (कई बार ऐसे भी) लोग “दुर्गा सप्तशती” का पाठ करते दिखते हैं, वैसे ही दक्षिण भारत में “सौन्दर्यलहरी” का प्रचलन है। इस ग्रन्थ में सौ के लगभग श्लोक होते हैं (कुछ अन्य श्लोक शायद बाद के ऋषियों ने जोड़े हैं)। सौन्दर्यलहरी की ये कहानी आदिशंकराचार्य के वाराणसी (काशी) प्रवास के समय से जुड़ी होती है। इसके मुताबिक एक दिन आदिशंकराचार्य भगवान शिव से मिलने उनके निवास कैलाश पर चले। जब वो वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि एक शिला की दिवार सी है, जिसपर काफी कुछ लिखा हुआ है।

आदिशंकराचार्य रूककर पढ़ने लगे कि आखिर ये लिखा क्या है? उन्हें पढ़ते हुए गणेश जी ने देख लिया। गणेश जी को लगा कि विशेष प्रयासों के बाद मिलने वाला ये ज्ञान अगर आदिशंकराचार्य को मिल गया तो ये तो उन्हें सभी आम लोगों में बाँट आयेंगे! बस फिर क्या था, ऊपर की तरफ से आदिशंकराचार्य ने पढ़ना शुरू किया था कि गणेश जी नीचे से श्लोक मिटाने लगे! जब तक आदिशंकराचार्य शुरुआत के 41 श्लोक पढ़ पाते बाकी के 59 श्लोक गणेश जी मिटा चुके थे। आदिशंकराचार्य जब शिव जी के पास पहुंचे तो उन्होंने ये बात बताई और शिव जी ने कहा कि तुम्हारी क्षमता इतनी है कि बाकी के श्लोक तुम स्वयं ही रच लो।

ऐसा माना जाता है कि सौन्दर्यलहरी का शुरूआती 41 श्लोकों का हिस्सा (आनंदलहरी) सीधा भगवान शिव की रचना है और बाद के 59 श्लोक आदिशंकराचार्य ने (उसी शिखरिणी छंद में) जोड़े हैं। दोनों भागों में स्पष्ट अंतर भी है। शुरूआती 41 श्लोकों में मन्त्र, यंत्र और कर्म-काण्ड इत्यादि से जुड़ी बातें हैं और बाद के 59 में अलंकारयुक्त भाषा में देवी की प्रशंसा है। नवरात्रि आज से शुरू होती है और बीच में कुछ छुट्टियाँ भी होंगी। अगर रामचरितमानस, भगवद्गीता, दुर्गा सप्तशती, सौन्दर्यलहरी जैसा कोई भी हिन्दुओं का ग्रन्थ कभी पहले पन्ने से आखरी पन्ने तक पूरा न पढ़ा हो, तो एक बार इन्हें पूरा पढ़ डालने का संकल्प भी लिया जा सकता है। ये सभी नौ दिन में एक बार तो पूरे पढ़े ही जा सकते हैं।

बाकी कुछ ने नवरात्रि पर उपवास किया होगा और कुछ ने नहीं, विविधताओं का सम्मान करने वाले देश में सभी अपने अपने तरीके से बलिहोमप्रिया देवी तारा, छगबलीतुष्टा महाशक्ति कामख्या की उपासना में जुटे होंगे। सभी को #शारदीय_नवरात्रि की बधाई!

✍🏻 आनन्द कुमार जी की पोस्टों से संग्रहित

बेंजामिन नेतन्याहू के भाषण के अंश

इज़राइल की पुकार

75 साल पहले हमें मरने के लिए लाया गया। हमारे पास ना कोई देश था, ना कोई सेना थी। सात देशों ने हमारे विरुद्ध जंग छेड़ दी। हम सिर्फ 65,000 थे। हमें बचाने के लिए कोई नहीं था। हम पर हमले होते रहे, होते रहे।

लेबनान, सीरिया, ईराक़, जॉर्डन, मिस्र, लीबिया, सऊदी अरब जैसे कई देशों ने हमारे ऊपर कोई दया नहीं दिखाई। सभी लोग हमें मारना चाहते थे किंतु हम बच गये।

संयुक्त राष्ट्र ने हमें धरती दी, वह धरती जो 65 प्रतिशत रेगिस्तान थी। हमने उस को भी अपने खून से सींचा। हमने उसे ही अपना देश माना क्योंकि हमारे लिए वही सब कुछ था।

हम कुछ नहीं भूले, हम फिरऔन से बच गए। हम यूनान से बच गए। हम रोमन से बच गए। हम स्पेन से बच गए। हम हिटलर से बच गए। हम अरब देशों से बच गए। हम सद्दाम से बच गए। हम गद्दाफी से बच गए। हम हमास से भी बचेंगे, हम हिजबुल्ला से भी बचेंगे और हम ईरान से भी बचेंगे।

हमारे जेरूसलम पर अब तक 52 बार आक्रमण किया गया, 23 बार घेरा गया, 39 बार तोड़ा गया, तीन बार बर्बाद किया गया, 44 बार कब्जा किया गया लेकिन हम अपने जेरूसलम को कभी नहीं भूले। वह हमारे हृदय में है, वह हमारे मस्तिष्क में है और जब तक हम रहेंगे, जेरूसलम हमारी आत्मा में रहेगा।

संसार यह याद रखें जिन्होंने हमें बर्बाद करना चाहा वह आज स्वयं नहीं है। मिस्र, लेबनान, बेबीलोन, यूनान, सिकंदर, रोमन सब खत्म हो गए हो।

हम फिर भी बचे रहे।

हमें वे (इस्लामी) खत्म करना चाहते हैं। उन्होंने हमारे रस्म रिवाज को कब्जाया। उन्होंने हमारे उपदेशों को कब्जाया। उन्होंने हमारी परंपरा को कब्जाया। उन्होंने हमारे पैगंबर को कब्जाया। कुछ समय पश्चात अब्राहम इब्राहीम कर दिए गए, सोलोमन सुलेमान हो गए, डेविड दाऊद बना दिए गए, मोजेज मूसा कर दिए गए…

फिर एक दिन… उन्होंने कहा तुम्हारा पैगंबर (मुहम्मद) आ गया है। हमने इसे नहीं स्वीकार नहीं क्या। करते भी कैसे, उनके आने का समय नहीं आया था। उन्होंने कहा, स्वीकारो! कबूल लो! हमने नहीं कबूला। फिर हमें मारा गया। हमारे शहरों को कब्जाया गया, हमारे शहर यसरब को मदीना बना दिया गया। हम कत्ल हुए, भगा दिए गए…

मक्का के काबा में हम 2 लाख थे, मार दिए गए। हमें दुश्मन बता कर कत्ल किया गया, फिर सीरिया में, ओमान में यही हुआ। हम तीन लाख थे, मार दिए गए। ईराक़ में हम 2 लाख थे, तुर्की में चार लाख, हमें मारा जाता रहा, मारा जाता रहा। वे हमें मार रहे हैं, मारते जा रहे हैं। हमारे शहर, धन, दौलत, घर, पशु, मान सम्मान सब कुछ कब्जाए जाते रहे फिर भी हम बचे रहे।

1300 सालों में करोड़ों यहूदियों को मारा गया फिर भी हम बचे रहे।

75 साल पहले वे हम पर थूकते थे, जलील करते थे, मारते थे। हमारी नियति यही थी किंतु हम स्वयं पर, अपने नेतृत्व पर, अपने विश्वास पर टिके रहे रहे।

आज हमारे पास एक अपना देश है। एक स्वयं की सेना है, एक छोटी अर्थव्यवस्था है। इंटेल, माइक्रोसॉफ्ट, आईबीएम, फेसबुक, जैसी कई संस्थायें हमने इस दौर में बनाईं। आज हमारे चिकित्सक दवा बन रहे हैं, लेखक किताबें लिख रहे हैं, यह सब के लिए है, यह मानवता के कल्याण के लिए है।

हमने रेगिस्तान को हरियाली में बदला। हमारे फल, दवाएं, उपकरण, उपग्रह सभी के लिए है।

हम किसी के दुश्मन नहीं है, हमने किसी को खत्म करने की कसमें नहीं खाईं। हमें किसी को बर्बाद भी नहीं करना, हम साजिशें भी नहीं करते।

हम जीना चाहते हैं, सिर्फ सम्मान से, अपने देश में, अपनी जमीन पर, अपने घर में।

पिछले हजार सालों से हमें मिटाया गया, खदेड़ा गया, कब्जाया जाता रहा, हम मिटे नहीं, हारे नहीं और न अभी हारेंगे। हम जीतेंगे, हम जीत कर रहेंगे, हम 3000 सालों से यरुशलम में ही थे। आज हम अपने पहले देश इजराइल में हैं। यह हमारा ही था, हमारा ही है और हमारा ही रहेगा, येरूसलम हमसे है और हम येरूसलम से हैं।

यह जिजीविषा हम हिंदुओं में भी पनपनी चाहिए। मानसरोवर, काबुल, कंधार, पेशावर लाहौर, ढाका, चटगांव अपनी संतानों की प्रतीक्षा में है🪢

जब कोई पूछे कि 1200 साल के दमन के बाद भी सनातन धर्म कैसे बचा रहा तो उसे ये चित्र दिखा देना। गरीबी रही लेकिन लालच में पड़ कर धर्म नहीं बदला। # जय माता की #