आज का पंचाग आपका राशि फल, विवाह संस्कार से पहले कुंडली मिलान की आवश्यकता, घर में बड़ी संख्या में चींटियां निकलें तो समझें संकेतों को, अफगानिस्तान के आतंक का उद्देश्य दुनियां भर में रिफ्यूजी भेजना तो नहीं?

🕉श्री हरिहरो विजयतेतराम🕉
🌄सुप्रभातम🌄
🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓
🌻रविवार, २९ अगस्त २०२१🌻

सूर्योदय: 🌄 ०६:०१
सूर्यास्त: 🌅 ०६:३९
चन्द्रोदय: 🌝 २२:४९
चन्द्रास्त: 🌜१२:०१
अयन 🌕 दक्षिणायने (उत्तरगोलीय)
ऋतु: ❄️ शरद
शक सम्वत: 👉 १९४३ (प्लव)
विक्रम सम्वत: 👉 २०७८ (आनन्द)
मास 👉 भाद्रपद
पक्ष 👉 कृष्ण
तिथि 👉 सप्तमी (२३:२५ तक)
नक्षत्र 👉 कृत्तिका (पूर्ण रात्रि)
योग 👉 ध्रुव (०६:४५ तक)
प्रथम करण 👉 विष्टि (१०:०९ तक)
द्वितीय करण 👉 बव (२३:२५ तक)
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॥ गोचर ग्रहा: ॥
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सूर्य 🌟 सिंह
चंद्र 🌟 वृष (१०:१९ से)
मंगल 🌟 सिंह (अस्त, पश्चिम, मार्गी)
बुध 🌟 सिंह (अस्त, पूर्व, मार्गी)
गुरु 🌟 कुम्भ (उदय, पूर्व, वक्री)
शुक्र 🌟 कन्या (उदय, पश्चिम, मार्गी)
शनि 🌟 मकर (उदय, पूर्व, वक्री)
राहु 🌟 वृष
केतु 🌟 वृश्चिक
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शुभाशुभ मुहूर्त विचार
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अभिजित मुहूर्त 👉 ११:५२ से १२:४३
अमृत काल 👉 २७:५७ से २९:४५
त्रिपुष्कर योग 👉 ०५:५२ से २३:२५
विजय मुहूर्त 👉 १४:२६ से १५:१७
गोधूलि मुहूर्त 👉 १८:३० से १८:५४
निशिता मुहूर्त 👉 २३:५५ से २४:४०
राहुकाल 👉 १७:०७ से १८:४३
राहुवास 👉 उत्तर
यमगण्ड 👉 १२:१७ से १३:५४
होमाहुति 👉 गुरु
दिशाशूल 👉 पश्चिम
अग्निवास 👉 पृथ्वी (२३:२५ तक)
भद्रावास 👉 स्वर्ग (१०:०९ तक)
चन्द्रवास 👉 पूर्व (दक्षिण १०:२० से)
शिववास 👉 श्मशान में (२३:२५ गौरी के साथ)
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☄चौघड़िया विचार☄
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॥ दिन का चौघड़िया ॥
१ – उद्वेग २ – चर
३ – लाभ ४ – अमृत
५ – काल ६ – शुभ
७ – रोग ८ – उद्वेग
॥रात्रि का चौघड़िया॥
१ – शुभ २ – अमृत
३ – चर ४ – रोग
५ – काल ६ – लाभ
७ – उद्वेग ८ – शुभ
नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
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शुभ यात्रा दिशा
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दक्षिण-पूर्व (पान का सेवन कर यात्रा करें)
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तिथि विशेष
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शीतला सप्तमी आदि।
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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण
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आज २९:५८ तक जन्मे शिशुओ का नाम
कृतिका नक्षत्र के प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (अ, ई, उ, ए) नामाक्षर से रखना शास्त्रसम्मत है।
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उदय-लग्न मुहूर्त
सिंह – २९:०० से ०७:१९
कन्या – ०७:१९ से ०९:३७
तुला – ०९:३७ से ११:५८
वृश्चिक – ११:५८ से १४:१७
धनु – १४:१७ से १६:२१
मकर – १६:२१ से १८:०२
कुम्भ – १८:०२ से १९:२८
मीन – १९:२८ से २०:५१
मेष – २०:५१ से २२:२५
वृषभ – २२:२५ से २४:२०
मिथुन – २४:२० से २६:३५
कर्क – २६:३५ से २८:५६
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पञ्चक रहित मुहूर्त
रज पञ्चक – ०५:५२ से ०७:१९
शुभ मुहूर्त – ०७:१९ से ०९:३७
चोर पञ्चक – ०९:३७ से ११:५८
शुभ मुहूर्त – ११:५८ से १४:१७
रोग पञ्चक – १४:१७ से १६:२१
शुभ मुहूर्त – १६:२१ से १८:०२
मृत्यु पञ्चक – १८:०२ से १९:२८
अग्नि पञ्चक – १९:२८ से २०:५१
शुभ मुहूर्त – २०:५१ से २२:२५
मृत्यु पञ्चक – २२:२५ से २३:२५
अग्नि पञ्चक – २३:२५ से २४:२०
शुभ मुहूर्त – २४:२० से २६:३५
रज पञ्चक – २६:३५ से २८:५६
शुभ मुहूर्त – २८:५६ से २९:५३
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आज का राशिफल
🐐🐂💏💮🐅👩
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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
आज के दिन आप जहाँ भी रहेंगे वहीँ आलस्य प्रमाद फैलाएंगे। आर्थिक लाभ की उम्मीद न एक बराबर रहेगी परन्तु खर्चो में कमी लाने में सफल रहेंगे जिससे धन सम्बंधित समस्या नहीं बनेगी। दिनचर्या के अधिकांश कार्य परिजनों के सहयोग द्वारा पूर्ण हो जाएंगे। दोपहर के बाद किसी आवश्यक कार्य के पूर्ण होने से राहत मिलेगी।
घर की महिलाओं से मामूली बात पर नोक झोंक हो सकती है फिर भी शांति बनी रहेगी। सन्तानो से मित्रवत व्यवहार रहेगा। रिश्तेदारो के विषय में कोई अप्रिय समाचार मिलने से थोड़े समय की चिंता बनेगी। संध्या का समय पूरे दिन की अपेक्षा सुख दायक रहेगा।

वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
आज के दिन आपमें चंचलता अधिक रहेगी बेकार के विषयों में मन भटकेगा परन्तु निकट भविष्य में धन लाभ के प्रबल योग भी बन रहे है आज अपनी तरफ से व्यवहारिकता में कमी ना आने दें इससे लाभदायक संपर्क बनेंगे। परिजनों से व्यर्थ की बातों पर बहस होगी कार्य क्षेत्र पर निर्णय लेने की क्षमता कम रहेगी आर्थिक विषयो में सफलता पाने के लिए आज किसी की सहायता लेनी पड़ेगी। दोपहर तक स्वास्थ्य ठीक रहेगा इसके बाद थकान शिथिलता बनेगी। व्यापार में वर्तमान स्थिति बनाये रखें निवेश आज ना करें। दाम्पत्य जीवन में समरसता की कमी रह सकती है।

मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
आज के दिन आपको विविध कष्टो का सामना करना पड़ेगा। मन समाज में वर्जित कार्यो की और अधिक आकर्षित रहेगा जिससे घर में कलह हो सकती है सामाजिक क्षेत्र पर भी आलोचना होगी। व्यवहार में कटुता एवं स्वार्थ सिद्धि की भावना अधिक रहेगी। अधिकारी वर्ग से काम निकालने के लिए चाटुकारिता का सहारा लेना पड़ेगा लेकिन फिर भी कार्य सफलता निश्चित नहीं रहेगी। दोपहर के बाद सम्मानित व्यक्ति अथवा महिला के सहयोग से धन लाभ हो सकता है। नए कार्य का आरम्भ फिलहाल निरस्त करें पुराने अधूरे कार्यो को प्राथमिकता से पूर्ण करें अन्यथा धन की आमद रूक जायेगी। घरेलु कार्यो की अनदेखी अशांति का कारण बन सकती है।

कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
आजका दिन आपके पक्ष में रहेगा। मन की कल्पनाएं काफी हद तक साकार होने की संभावनाएं रहेंगी। आपके विचार भी लोगो को आकर्षित करेंगे। दो पक्षो के झगडे में मध्यस्थता कर सकते है निर्णय निष्पक्ष देने से सम्मान मिलेगा। कार्य व्यवसाय में प्रारंभिक अड़चनों के बाद आय के साधन सुलभ होंगे। आज कई दिनों से मन में चल रही व्यावसायिक योजना को दिशा मिलने से आय के नविन स्त्रोत्र बनेंगे। जोखिम वाले कार्यो में निवेश बेहिचक कर सकते है भविष्य के लिए लाभदायक रहेंगे। महिलाये पूजा-पाठ के कार्यो में अधिक व्यस्त रहेंगी साथ ही सेहत का ध्यान भी रखें।

सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
आज आप अपने महत्त्वपूर्ण कार्यो में सफलता पाने के लिये जी जान से प्रयत्न करेंगे आरम्भ में इनमे असफलता नजर आएगी परन्तु मध्यान के बाद परिश्रम का फल मध्यम ही सही लेकिन अवश्य मिलेगा। मन भटकेगा भी परन्तु एकाग्र होकर कार्यो में लगे रहें। व्यवसाय में आज जिस योजना पर कार्य करेंगे निकट भविष्य में वह धन लाभ कराएगा। घर एवं बाहर बडबोलेपन के कारण सम्मान हानि हो सकती है आवश्यकता से अधिक ना बोलें। घरेलु कार्यो के कारण अतिरिक्त श्रम करना पड़ेगा। महिला वर्ग पारिवारिक सम्बन्धो को जोड़े रखने में सहायक रहेंगी। आर्थिक कारणों से आज किसी से ना उलझें।

कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
आज के दिन भी अधिकांश समय परिस्थिति चिंता मुक्त रहेगी। लेकिन भ्रामक खबरों पर देख-भाल कर ही यकीन करें अन्यथा जल्दबाजी में गलत निर्णय हानि करा सकता है। कार्य व्यवसाय में किसी के बेवजह दखल देने से दुविधा में पड़ सकते है बुजुर्ग व्यक्ति ही इससे बाहर निकालने में मददगार बनेंगे। आज स्वयं के लिए निर्णय ज्यादा प्रभावी साबित होंगे प्रलोभनो से बच कर रहें। धन लाभ जरुरत के अनुसार अवश्य हो जाएगा। महिला वर्ग आज किसी काम के बिगड़ने से चिंतित रहेंगी परन्तु थोड़े अतिरिक्त श्रम के बाद स्थिति सामान्य बन जायेगी। संतानो के ऊपर नजर रखना आवश्यक है।

तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
आपका आज का दिन सामान्य रहेगा फिर भी कार्यो को अधिक बेहतर बनाने का प्रयास अवश्य करें। स्वास्थ्य सम्बंधित शिकायते रहेंगी रक्त विकार, जोड़ो अथवा सूजन सम्बंधित समस्या रह सकती है। कार्यो में भी मन कम् ही लगेगा धन की कमी के कारण मन उदास रहेगा परन्तु फिर भी आज के दिन धन से ज्यादा आपसी संबंधों को ज्यादा महत्त्व दें आगे के लिए लाभदायक एवं शांति स्थापना के लिए आवश्यक है। नौकरी व्यवसाय में लापरवाही के कारण हानि के योग भी है अधिक सावधानी बरतें। सामाजिक रिश्तों में कड़वाहट आएगी। गृहस्थ जीवन मिश्रित रहेगा। महिलाओं का नरम व्यवहार शांति स्थापित करने में मदद करेगा।

वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
आज के दिन व्यापारी वर्ग को लाभदायक सौदे मिलेंगे। भविष्य की योजनाओं पर भी धन का निवेश करेंगे साथ ही बचत भी कर पाएंगे। व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा रहने पर भी आपके कार्य निर्विघ्न चलते रहेंगे परन्तु बीच-बीच में सहकर्मियो के कारण थोड़ी असुविधा बन सकती है। धन लाभ आशा के अनुरूप हो जाएगा कार्य के नए क्षेत्र मिलेंगे। मित्र स्वयजनो के साथ धार्मिक यात्रा के योग भी बनेंगे। महिला वर्ग सेहत को लेकर परेशान रह सकती है थकान अधिक रहेगी स्वभाव में भी चिड़चिड़ा पन रहने से घरेलु कार्य अस्त-व्यस्त रहेंगे। सन्तान पढ़ाई पर कम ध्यान देंगी।

धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
आज के दिन आपके द्वारा लिये निर्णय प्रेमीजनों से राग द्वेष की भावना बना सकते है। स्वभाव में दिखावे की प्रवृति रहेगी। बेवजह के खर्च आर्थिक समस्या बनाएंगे। आस पड़ोसियों से भी अहम् को लेकर टकराव हो सकता है किसी भी प्रकार की गंभीर परिस्थिति से बचने के लिए बुद्धि विवेक जाग्रत रखें। व्यवसाय में बदलाव अथवा निवेश अनुभवी व्यक्ति की सलाह से ही करें। दिन की विपरीत परिस्थितियों में घर के बुजुर्ग सहायक बनेंगे। महिला वर्ग से नीरसता युक्त सम्बन्ध रहेंगे दाम्पत्य में सामंजस्य बैठाने में कठिनाई आएगी। आर्थिक विषयो के कारण यात्रा करनी पड़ेगी।

मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
आज का दिन प्रत्येक क्षेत्र से आनंद की प्राप्ति कराएगा। आज आपके अधिकांश कार्य पहले से निर्धारित रहेंगे जिससे दुविधा की स्थिति से बचेंगे। व्यवसायी वर्ग कार्य क्षेत्र की गतिविधियों से संतुष्ट रहेंगे लेकिन थोड़ी देर के लिए सहकर्मियो से नाराजगी के प्रसंग अव्यवस्था कर सकते है। सरकारी कार्यो में निश्चित सफलता मिलेगी परंतु पैतृक सम्बंधित मामले किसी अन्य के कारण अनिश्चित रहेंगे। महिलाये गृहस्थ की गलतफहमियों में सुधार कर वातावरण खुशहाल बनाएंगी घर में मान बढेगा। धार्मिक कार्यो में जितनी आस्था रहेगी उसके अनुरूप समय नहीं दे पाएंगे।

कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
आज के दिन आपके मन में अनेक योजनाएं बनती रहेंगी लेकिन इनको समय अथवा धन अभाव के कारण साकार रूप नहीं दे पाएंगे। आर्थिक लाभ परिश्रम के बाद भी अल्प रहेगा खर्च भी आज ज्यादा नहीं रहने से एक समस्या कम रहेगी। सरकारी अथवा जमीन सम्बंधित कार्यो में आज देर ना करें अन्यथा लंबे समय के लिए टल सकते है। सामाजिक क्षेत्र से प्रसिद्धि मिलेगी। कार्य क्षेत्र पर मंदी के चलते आर्थिक समस्याओं के कारण मानसिक रूप से विचलित रहेंगे। जोखिम के कार्यो में निवेश पहले हानि परन्तु बाद में लाभदायक सिद्ध होगा। पारिवारिक वातावरण में पहले की अपेक्षा सुधार होगा।

मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
आज के दिन आपको आकस्मिक लाभ की सम्भावनाये बन रही है। जोखिम वाले कार्यो से डर लगेगा परन्तु शीघ्र ही इसके बेहतर परिणाम मिल सकते है। आज किसी अनजान व्यक्ति से उधार का व्यवहार ना करें डूबने की आशंका है परंतु उधारी चुकाने के लिए दिन उत्तम है। धन लाभ रुक रुक कर होगा खर्च भी विशेष रहेंगे फिर भी कई दिनों का कोटा पूर्ण कर लेंगे। संध्या तक व्यावसायिक कार्यो से निश्चिन्त हो सकेंगे। नौकरी पेशा जातको को आज कार्य क्षेत्र पर तालमेल बैठाने में संघर्ष करना पड़ेगा। अधिकारी वर्ग अकारण नाराज रहेंगे। दाम्पत्य जीवन में थोड़े उतार-चढाव आ सकते है।
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〰〰〰〰🙏राधे राधे🙏

*विवाह पूर्व जन्मकुंडली मिलान…(चन्द आवश्यक बातें)*

हिंदू वैदिक संस्कृति में विवाह से पूर्व जन्म कुंडली मिलान की शास्त्रीय परंपरा है, लेकिन आपने बिना जन्म कुंडली मिलाए ही गंधर्व विवाह [प्रेम-विवाह] कर लिया है तो घबराएं या डरें नहीं, बल्कि यह मान लें कि ईश्वरीय शक्ति द्वारा आपका ग्रह मिलान हो चुका है।हिन्दू संस्कृति में विवाह को सर्वश्रेष्ठ संस्कार बताया गया है। क्योंकि इस संस्कार के द्वारा मनुष्य धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की सिद्धि प्राप्त करता है। विवाहोपरांत ही मनुष्य देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण से मुक्त होता है। समाज में दो प्रकार के विवाह प्रचलन में हैं- पहला परंपरागत विवाह [प्राचीन ब्रह्मधा विवाह] और दूसरा अपरंपरागत विवाह [प्रेम विवाह या गंधर्व विवाह]। परंपरागत विवाह माता-पिता की इच्छा अनुसार संपन्न होता है, जबकि प्रेम विवाह में लड़के और लड़की की इच्छा और रूचि महत्वपूर्ण होती है।

हिंदू धर्म शास्त्रों में हमारे सोलह संस्कार बताए गए हैं। इन संस्कारों में काफी महत्वपूर्ण विवाह संस्कार। शादी को व्यक्ति को दूसरा जन्म भी माना जाता है क्योंकि इसके बाद वर-वधू सहित दोनों के परिवारों का जीवन पूरी तरह बदल जाता है। इसलिए विवाह के संबंध में कई महत्वपूर्ण सावधानियां रखना जरूरी है। विवाह के बाद वर-वधू का जीवन सुखी और खुशियोंभरा हो यही कामना की जाती है। ऐसा माना जाता है इस सृष्ठि में प्रत्येक जीवित प्राणी का अपना उर्जा क्षेत्र होता है। इन प्राणियों के उर्जा क्षेत्र किसी ना किसी ग्रह या किसी राशि के द्वारा नियंत्रित किया जाता है। संसार के सभी उर्जा क्षेत्र किसी ग्रह या राशि के द्वारा परिचालित होने के कारण अन्य सभी उर्जा क्षेत्रों के साथ संगत नहीं होते हैं। उदाहरण स्वरुप, पानी और अग्नि का एक दूसरे के साथ मेल नहीं हो सकता,क्योंकि पानी आग को बुझा सकता है। यह वह स्थान है जहां कुंडली मिलान का रिवाज काफी महत्वपूर्ण हो जाता है, जैसाकि यह प्रस्तावित जोड़े की संगत के विषय में उचित राय देता है। वर-वधू का जीवन सुखी बना रहे इसके लिए विवाह पूर्व लड़के और लड़की की कुंडली का मिलान कराया जाता है। किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी द्वारा भावी दंपत्ति की कुंडलियों से दोनों के गुण और दोष मिलाए जाते हैं। साथ ही दोनों की पत्रिका में ग्रहों की स्थिति को देखते हुए इनका वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा? यह भी सटिक अंदाजा लगाया जाता है। यदि दोनों की कुंडलियां के आधार इनका जीवन सुखी प्रतीत होता है तभी ज्योतिषी विवाह करने की बात कहता है। कुंडली मिलान से दोनों ही परिवार वर-वधू के बारे काफी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं। यदि दोनों में से किसी की भी कुंडली में कोई दोष हो और इस वजह से इनका जीवन सुख-शांति वाला नहीं रहेगा, ऐसा प्रतीत होता है तो ऐसा विवाह नहीं कराया जाना चाहिए। कुंडली के सही अध्ययन से किसी भी व्यक्ति के सभी गुण-दोष जाने जा सकते हैं। कुंडली में स्थित ग्रहों के आधार पर ही हमारा व्यवहार, आचार-विचार आदि निर्मित होते हैं। उनके भविष्य से जुड़ी बातों की जानकारी प्राप्त की जाती है। कुंडली से ही पता लगाया जाता है कि वर-वधू दोनों भविष्य में एक-दूसरे की सफलता के लिए सहयोगी सिद्ध या नहीं। वर-वधू की कुंडली मिलाने से दोनों के एक साथ भविष्य की संभावित जानकारी प्राप्त हो जाती है इसलिए विवाह से पहले कुंडली मिलान किया जाता है।

व्यवहारिक रूप में गुण मिलान की यह विधि अपने आप में पूर्ण नहीं है तथा सिर्फ इसी विधि के आधार पर कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित कर देना उचित नहीं है। इस विधि के अनुसार वर-वधू की कुंडलियों में नवग्रहों में से सिर्फ चन्द्रमा की स्थिति ही देखी जाती है तथा बाकी के आठ ग्रहों के बारे में बिल्कुल भी विचार नहीं किया जाता जो किसी भी पक्ष से व्यवहारिक नहीं है क्योंकि नवग्रहों में से प्रत्येक ग्रह का अपना महत्त्व है तथा किसी भी एक ग्रह के आधार पर इतना महत्त्वपूर्ण निर्णय नहीं लिया जा सकता। इस लिए गुण मिलान की यह विधि कुंडलियों के मिलान की विधि का एक हिस्सा तो हो सकती है लेकिन पूर्ण विधि नहीं। आइए अब विचार करें कि एक अच्छे ज्योतिषि को कुंडलियों के मिलान के समय किन पक्षों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। आधुनिक परिप्रेक्ष्य, स्वतंत्र विचारों, पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के कारण अधिकतर अभिभावक चिंतित रहते हैं कि कहीं उनका लड़का या लड़की प्रेम विवाह तो नहीं कर लेगाक् विवाह पश्चात उनका दाम्पत्य जीवन सुखमय रहेगा या नहींक् ऎसे कई प्रश्न माता-पिता के लिए तनाव का कारण बन सकते हैं। क्योंकि परंपरागत विवाह में जन्म कुंडली मिलने के बाद ही विवाह किया जाता है, जबकि प्रेम विवाह में जरूरी नहीं कि कुंडली मिलान किया जाए। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि अधिकतर के पास जन्म कुंडली होती नहीं है। कई बार छिपकर भी प्रेम विवाह हो जाता है। विवाह होने के पश्चात जब माता-पिता को पता चलता है तो वह चिंतित हो उठते हैं क्या इनका दाम्पत्य जीवन सुखी और स्थायी रहेगा। माता-पिता इस तरह की चिंता नहीं करें, बल्कि यह सोचें कि इनकी कुंडली या ग्रह तो स्वयं ईश्वर ने ही मिला दिए हैं, तभी तो इनका विवाह हुआ है। ज्योतिषशास्त्र के अंतर्गत प्रेम विवाह में पंचम भाव से व्यक्ति के संकल्प, विकल्प इच्छा, मैत्री, साहस, भावना और योजना-सामथ्र्य आदि का ज्ञान होता है। सप्तम भाव से विवाह, दाम्पत्य सुख का विचार करते हैं। एकादश भाव इच्छापूर्ति और द्वितीय भाव पारिवारिक सुख-संतोष को प्रकट करता है।

सबसे पहले एक अच्छे ज्योतिषि को यह देखना चाहिए कि क्या वर-वधू दोनों की कुंडलियों में सुखमय वैवाहिक जीवन के लक्ष्ण विद्यमान हैं या नहीं। उदाहरण के लिए अगर दोनों में से किसी एक कुंडली मे तलाक या वैध्वय का दोष विद्यमान है जो कि मांगलिक दोष, पित्र दोष या काल सर्प दोष जैसे किसी दोष की उपस्थिति के कारण बनता हो, तो बहुत अधिक संख्या में गुण मिलने के बावज़ूद भी कुंडलियों का मिलान पूरी तरह से अनुचित हो सकता है। इसके पश्चात वर तथा वधू दोनों की कुंडलियों में आयु की स्थिति, कमाने वाले पक्ष की भविष्य में आर्थिक सुदृढ़ता, दोनों कुंडलियों में संतान उत्पत्ति के योग, दोनों पक्षों के अच्छे स्वास्थय के योग तथा दोनों पक्षों का परस्पर शारीरिक तथा मानसिक सामंजस्य देखना चाहिए। उपरोक्त्त विष्यों पर विस्तृत विचार किए बिना कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित करना मेरे विचार से सर्वथा अनुचित है। इस लिए कुंडलियों के मिलान में दोनों कुंडलियों का सम्पूर्ण निरीक्षण करना अति अनिवार्य है तथा सिर्फ गुण मिलान के आधार पर कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित करने के परिणाम दुष्कर हो सकते हैं। सिर्फ गुण मिलान की विधि से ही 25 से अधिक गुण मिलने के कारण वर-वधू की शादी करवा दी गई तथा कुंडली मिलान के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया गया जिसके परिणाम स्वरुप इनमें से बहुत से केसों में शादी के बाद पति पत्नि में बहुत तनाव रहा तथा कुछ केसों में तो तलाक और मुकद्दमें भी देखने को मिले। अगर 28-30 गुण मिलने के बाद भी तलाक, मुकद्दमें तथा वैधव्य जैसी परिस्थितियां देखने को मिलती हैं तो इसका सीधा सा मतलब निकलता है कि गुण मिलान की प्रचलित विधि सुखी वैवाहिक जीवन बताने के लिए अपने आप में न तो पूर्ण है तथा न ही सक्षम। इसलिए इस विधि को कुंडली मिलान की विधि का एक हिस्सा मानना चाहिए न कि अपने आप में एक सम्पूर्ण विधि।

*कैसे होता हें कुंडली मिलान*

कुंडली मिलान, निर्धारित दिशा निर्देशों व नियमों की मदद से एक स्थिर समाज बनाने की क्षमता रखता है। उदाहरणस्वरुप, यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल काफी मजबूत का होता है, तो वह बहुत तीव्र, उत्साह से भरा हुआ तथा सक्रिय होता है। दूसरी ओर कमजोर मंगल वाला व्यक्ति में यह गुण नहीं होता। अब, यदि ऐसे दो लोगों का विवाह होता है तो , मजबूत मंगल वाला व्यक्ति को हमेशा लगेगा कि उसका साथी काफी सुस्त तथा अनुत्साहित है। इसी तरह कमजोर मंगल वाला अपनी साथी की गति तथा तीव्रता के कारण दबाव महसूस कर सकता है। इस तरह से यह एक आदर्श जोड़ा नही हो सकता है। हिंदू या वैदिक ज्योतिष प्रणाली में, जोड़े के मिलान के लिए अष्टकुट विधि ( आठ बिंदु विधि) का इस्तेमाल किया जाता है। इस पद्धति के अनुसार, अनुकूलता की जांच करने के लिए आठ विभिन्न मापदंडों को माना जाता है और प्रत्येक मापदंड जीवन की एक विशेष पहलू का सूचक है। इस प्रणाली हमें यह जानने में मदद करता है कि दो लोग जीवन के विभिन्न पहलू में एक दूसरे के साथ आरामदायक हैं या नहीं। ये सभी मापदंड विभिन्न बिंदूओं का मिलान करता है। यदि मिलान बिंदू १८ से अधिक है, तो यह एक औसत मेल माना जाता है, जबकि १८ से कम बिंदूओं पर मिलान की सिफारिश नहीं की जाती। यदि मिलान बिंदू २४ से ज्यादा है तो मेल औसत से अच्छा है और यदि यह २८ से ज्यादा है तो इसे अच्छा मेल माना जाता है। कुंडली के मिलान के समय, सभी मापदंडों को ध्यान में रखा जाता है तथा निम्न वर्णित के आधार पर अधिकतम अंक दिए जाते हैं। यहां प्रत्येक मापदंड के अर्थ का उल्लेख किया गया है। यह पद्धति एक जोड़े की संगतता (अनुकूलता) को पहचानने के लिए सदियों से अजेय रहा है।

भारतीय ज्योतिष में विवाह शादी के लिए कुंडली मिलान के लिए गुण मिलान की विधि आज भी सबसे अधिक प्रचलित है। इस विधि के अनुसार वर-वधू की जन्म कुंडलियों में चन्द्रमा की स्थिति के आधार पर निम्नलिखित अष्टकूटों का मिलान किया जाता है। 1) वर्ण 2) वश्य 3) तारा 4) योनि 5) ग्रह-मैत्री 6) गण 7) भकूट 8) नाड़ी उपरोक्त अष्टकूटों को क्रमश: एक से आठ तक गुण प्रदान किये जाते हैं, जैसे कि वर्ण को एक, नाड़ी को आठ तथा बाकी सबको इनके बीच में दो से सात गुण प्रदान किये जाते हैं। इन गुणों का कुल जोड़ 36 बनता है तथा इन्हीं 36 गुणों के आधार पर कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित किया जाता है। 36 में से जितने अधिक गुण मिलें, उतना ही अच्छा कुंडलियों का मिलान माना जाता है। 36 गुण मिलने पर उत्तम, 36 से 30 तक बहुत बढ़िया, 30 से 25 तक बढ़िया तथा 25 से 20 तक सामान्य मिलान माना जाता है। 20 से कम गुण मिलने पर कुंडलियों का मिलान शुभ नहीं माना जाता है।

भारतीय ज्योतिष में कुंडली मिलान के लिए प्रयोग की जाने वाली गुण मिलान की विधि में मिलाए जाने वाले अष्टकूटों में नाड़ी और भकूट को सबसे अधिक गुण प्रदान किए जाते हैं। नाड़ी को 8 तथा भकूट को 7 गुण प्रदान किए जाते हैं। इस तरह अष्टकूटों के इस मिलान में प्रदान किए जाने वाले 36 गुणों में से 15 गुण केवल इन दो कूटों अर्थात नाड़ी और भकूट के हिस्से में ही आ जाते हैं। इसी से गुण मिलान की विधि में इन दोनों के महत्व का पता चल जाता है। नाड़ी और भकूट दोनों को ही या तो सारे के सारे या फिर शून्य गुण प्रदान किए जाते हैं, अर्थात नाड़ी को 8 या 0 तथा भकूट को 7 या 0 अंक प्रदान किए जाते हैं। नाड़ी को 0 अंक मिलने की स्थिति में वर-वधू की कुंडलियों में नाड़ी दोष तथा भकूट को 0 अंक मिलने की स्थिति में वर-वधू की कुंडलियों में भकूट दोष बन जाता है। भारतीय ज्योतिष में प्रचलित धारणा के अनुसार इन दोनों दोषों को अत्यंत हानिकारक माना जाता है तथा ये दोनों दोष वर-वधू के वैवाहिक जीवन में अनेक तरह के कष्टों का कारण बन सकते हैं और वर-वधू में से किसी एक या दोनों की मृत्यु का कारण तक बन सकते हैं। तो आइए आज भारतीय ज्योतिष की एक प्रबल धारणा के अनुसार अति महत्वपूरण माने जाने वाले इन दोनों दोषों के बारे में चर्चा करते हैं।

१ वर्ण सामाजिक मूल्यों की अनुकूलता १ अंक
२ वैश्य सामांजस्य स्तर पर अनुकूलता २ अंक
३ तारा / दिना व्यक्तिगत नियति की अनुकूलता ३ अंक
४ योनि यौन अनुकूलता ४ अंक
५ गृह /मैत्री वैवाहिक सद्भाव की अनुकूलता ५ अंक
६ गण व्यक्तिगत लक्षण की अनुकूलता ६ अंक
७ भकूट सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति की अनुकूलता ७ अंक
८ नाड़ी संतति पैदा करने की अनुकूलता ८ अंक

इस प्रणाली का पालन करके किए जाने वाले जोड़े मेल वैज्ञानिक रुप से सही होते हैं। गणेशजी एक उदाहरण देना चाहते हैं। कुंडली में नाड़ी दोष संतान के जन्म में कठिनाईयों को दिखाता है। यदि गुण मिलाप के समय मध्य नाड़ी दोष का संकेत मिलता है, तो युगल के संतान सुख से वंचित रखने की संभावना काफी मजबूत होती है। कारण – नाड़ी किसी व्यक्ति की प्रकृति (मूल तत्व ) को इंगित करता है। ये प्रकृति वात, पित्त और कफ हैं। यदि दोनों भागीदार एक ही प्रकृति में जन्म लेते हैं तो नाड़ीके तहत प्राप्त अंक शून्य होगा। विवाह का मकसद एक दूसरे के साथ सुखी जीवन ही नहीं है, बल्कि परिवार का विस्तार भी है। यदि युगल संतानसुख से वंचित रहते हैं तो वैवाहिक जीवन में कुछ वर्षों के पश्चात उदासी आ सकती है तथा युगल को बुढ़ापे में सहारे के लिए भी कोई नहीं होता। नाड़ी के प्रकार तथा उनके अर्थ निम्न प्रकार से हैं-

आद्य नाड़ी – वात- वायु स्वभाव – सूखा तथा ठंड़ा

मध्य नाड़ी- पित्त- पित्त स्वभाव- उच्चतम मेटाबोलिक दर

अंत नाड़ी – कफ- सुस्त स्वभाव – तैलिय तथा विनित

मध्य नाड़ी दोष इन तीनों में से सबसे मजबूत माना जाता है, जैसा कि पित्त प्रकृति वीर्य की गुणवत्ता का नाश करता है। इस कारण से सफल गर्भाधान की संभावना काफी कम हो जाती है, अधिकांशतः इसलिए कि शुक्राणु की आयु ३ से ५ दिन की होती है और पित्त प्रकृति का स्वभाव इसका नाश करने का है। फलतः मध्य नाड़ी दोष वाले युगल की प्रजनन क्षमता काफी कम होती है।

आइए सबसे पहले यह जान लें कि नाड़ी और भकूट दोष वास्तव में होते क्या हैं तथा ये दोनों दोष बनते कैसे हैं। नाड़ी दोष से शुरू करते हुए आइए सबसे पहले देखें कि नाड़ी नाम का यह कूट वास्तव में होता क्या है। नाड़ी तीन प्रकार की होती है, आदि नाड़ी, मध्या नाड़ी तथा अंत नाड़ी। प्रत्येक व्यक्ति की जन्म कुंडली में चन्द्रमा की किसी नक्षत्र विशेष में उपस्थिति से उस व्यक्ति की नाड़ी का पता चलता है। नक्षत्र संख्या में कुल 27 होते हैं तथा इनमें से किन्हीं 9 विशेष नक्षत्रों में चन्द्रमा के स्थित होने से कुंडली धारक की कोई एक नाड़ी होती है। उदाहरण के लिए : चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की आदि नाड़ी होती है : अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तर फाल्गुणी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा तथा पूर्व भाद्रपद। चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की मध्य नाड़ी होती है : भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्व फाल्गुणी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा तथा उत्तर भाद्रपद। चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की अंत नाड़ी होती है : कृत्तिका, रोहिणी, श्लेषा, मघा, स्वाती, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती। गुण मिलान करते समय यदि वर और वधू की नाड़ी अलग-अलग हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 8 अंक प्राप्त होते हैं, जैसे कि वर की आदि नाड़ी तथा वधू की नाड़ी मध्या अथवा अंत। किन्तु यदि वर और वधू की नाड़ी एक ही हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 0 अंक प्राप्त होते हैं तथा इसे नाड़ी दोष का नाम दिया जाता है। नाड़ी दोष की प्रचलित धारणा के अनुसार वर-वधू दोनों की नाड़ी आदि होने की स्थिति में तलाक या अलगाव की प्रबल संभावना बनती है तथा वर-वधू दोनों की नाड़ी मध्य या अंत होने से वर-वधू में से किसी एक या दोनों की मृत्यु की प्रबल संभावना बनती है। नाड़ी दोष को निम्नलिखित स्थितियों में निरस्त माना जाता है : यदि वर-वधू दोनों का जन्म एक ही नक्षत्र के अलग-अलग चरणों में हुआ हो तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं बनता। यदि वर-वधू दोनों की जन्म राशि एक ही हो किन्तु नक्षत्र अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं बनता। यदि वर-वधू दोनों का जन्म नक्षत्र एक ही हो किन्तु जन्म राशियां अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं बनता। नाड़ी दोष के बारे में विस्तारपूर्वक जानने के बाद आइए अब देखें कि भकूट दोष क्या होता है। यदि वर-वधू की कुंडलियों में चन्द्रमा परस्पर 6-8, 9-5 या 12-2 राशियों में स्थित हों तो भकूट मिलान के 0 अंक माने जाते हैं तथा इसे भकूट दोष माना जाता है। उदाहरण के लिए मान लीजिए कि वर की जन्म कुंडली में चन्द्रमा मेष राशि में स्थित हैं, अब : यदि कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्रमा कन्या राशि में स्थित हैं तो इसे षड़-अष्टक भकूट दोष का नाम दिया जाता है क्योंकि मेष राशि से गिनती करने पर कन्या राशि छठे तथा कन्या राशि से गिनती करने पर मेष राशि आठवें स्थान पर आती है। यदि कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्रमा धनु राशि में स्थित हैं तो इसे नवम-पंचम भकूट दोष का नाम दिया जाता है क्योंकि मेष राशि से गिनती करने पर धनु राशि नवम तथा धनु राशि से गिनती करने पर मेष राशि पांचवे स्थान पर आती है। यदि कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्रमा मीन राशि में स्थित हैं तो इसे द्वादश-दो भकूट दोष का नाम दिया जाता है क्योंकि मेष राशि से गिनती करने पर मीन राशि बारहवें तथा मीन राशि से गिनती करने पर मेष राशि दूसरे स्थान पर आती है। भकूट दोष की प्रचलित धारणा के अनुसार षड़-अष्टक भकूट दोष होने से वर-वधू में से एक की मृत्यु हो जाती है, नवम-पंचम भकूट दोष होने से दोनों को संतान पैदा करने में मुश्किल होती है या फिर सतान होती ही नहीं तथा द्वादश-दो भकूट दोष होने से वर-वधू को दरिद्रता का सामना करना पड़ता है। भकूट दोष को निम्नलिखित स्थितियों में निरस्त माना जाता है : यदि वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों का स्वामी एक ही ग्रह हो तो भकूट दोष खत्म हो जाता है। जैसे कि मेष-वृश्चिक तथा वृष-तुला राशियों के एक दूसरे से छठे-आठवें स्थान पर होने के बावजूद भी भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि मेष-वृश्चिक दोनों राशियों के स्वामी मंगल हैं तथा वृष-तुला दोनों राशियों के स्वामी शुक्र हैं। इसी प्रकार मकर-कुंभ राशियों के एक दूसरे से 12-2 स्थानों पर होने के बावजूद भी भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि इन दोनों राशियों के स्वामी शनि हैं। यदि वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों के स्वामी आपस में मित्र हैं तो भी भकूट दोष खत्म हो जाता है जैसे कि मीन-मेष तथा मेष-धनु में भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि इन दोनों ही उदाहरणों में राशियों के स्वामी गुरू तथा मंगल हैं जो कि आपसे में मित्र माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त अगर दोनो कुंडलियों में नाड़ी दोष न बनता हो, तो भकूट दोष के बनने के बावजूद भी इसका असर कम माना जाता है। किन्तु इन दोषों के द्वारा बतायी गईं हानियां व्यवहारिक रूप से इतने बड़े पैमाने पर देखने में नहीं आतीं और न ही यह धारणाएं तर्कसंगत प्रतीत होती हैं। उदाहरण के लिए नाड़ी दोष लगभग 33 प्रतिशत कुंडलियों के मिलान में देखने में आता है कयोंकि कुल तीन नाड़ियों में से वर और वधू की नाड़ी एक होने की सभावना लगभग 33 प्रतिशत बनती है। इसी प्रकार की गणना भकूट दोष के विषय में भी करके यह तथ्य सामने आता है कि कुंडली मिलान की लगभग 50 से 60 प्रतिशत उदाहरणों में नाड़ी या भकूट दोष दोनों में से कोई एक अथवा दोनों ही उपस्थित होते हैं। और क्योंकि बिना कुंडली मिलाए विवाह करने वाले लोगों में से 50-60 प्रतिशत लोग ईन दोनों दोषों के कारण होने वाले भारी नुकसान नहीं उठा रहे इसलिए इन दोनों दोषों से होने वाली हानियों तथा इन दोनों दोषों की सार्थकता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। नाड़ी दोष तथा भकूट दोष अपने आप में दो लोगों के वैवाहिक जीवन में उपर बताई गईं विपत्तियां लाने में सक्षम नहीं हैं तथा इन दोषों और इनके परिणामों को कुंडली मिलान के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं के साथ ही जोड़ कर देखना चाहिए। नाड़ी दोष तथा भकूट दोष से होने वाले बुरे प्रभावों को ज्योतिष के विशेष उपायों से काफी हद तक कम किया जा सकता है।

ज्योतिष को एक विज्ञान के रुप में, समय से काफी आगे, व्यक्ति के तारीख, समय तथा जन्म स्थान के आधार पर, सही वैज्ञानिक व्याख्या के साथ सभी कुछ का सही विवरण बताता है। लेकिन, क्या युगल एक दूसरे के लिए भाग्यशाली साबित होगें ?विवाह के बाद क्या युगल वित्तिय प्रगति कर सकेगें ? इस तरह के सवालों का जवाब भी विस्तृत कुंडली के मिलान करके आसानी से पाया जा सकता है।यहां अन्य कई ज्योतिषिय मापदंड भी हैं जो कुंडली मिलान के समय ध्यान में रखा जाता है। इसमें समग्र तालिका की अवधारणा भी शामिल है, जो बताता है कि दो लोग एक दूसरे के साथ सुखी रहेगें हैं या नहीं। उनका जीवन किस तरह से बितेगा, कोई एक चमकेगा तथा दूसरे के सकारात्मक गुणों से तर हो जाएगा ? ये सारे कारण हैं कि विवाह को तय करने से पहले दूल्हा दुल्हन के कुंडली का मिलान किया जाता है। इस संदर्भ में पुरूष के लिए शुक्र और स्त्री के लिए मंगल का विश्लेषण आवश्यक है। शुक्र प्रणय और आकर्षण का प्रेरक है। इससे सौंदर्य, भावनाएं, विलासिता का भी ज्ञान होता है। पंचम भाव स्थित शुक्र जातक को प्रणय की उद्दाम अनुभूतियों से ओत-प्रोत करता है। मंगल साहस का कारक है। मंगल जितना प्रभुत्वशाली होगा, जातक उसी अनुपात में साहसी और धैर्यशील होगा। यदि व्यक्ति मंगल कमजोर हो तो जातक प्रेमानुभूति को अभिव्यक्त नहीं कर पाता। वह दुविधा, संशय और हिचकिचाहट में रहता है।

चंद्रमा मन का कारक ग्रह है। चंद्रमा का मानसिक स्थिति, स्वभाव, इच्छा, भावना आदि पर प्रभुत्व है। प्रेम मन से किया जाता है। इसलिए चंद्र की स्थिति भी प्रेम विवाह में अनुकूलता प्रदान करती है। शुक्र आकर्षण का कारक है। यदि शुक्र जातक के प्रबल होता है तो प्रेम विवाह हो जाता है और यदि शुक्र कमजोर होता है तो विवाह नहीं हो पाता है।

संक्षेप में कहा जाए तो कुंडली मिलान एक सफल तथा सद्भावपूर्ण विवाहित जीवन की कुंजी है।

*दूसरी बात, वो ये कि आजकल जन्मकुंडली मिलान वगैरह के लिए भी कम्पयूटर का ही सहारा लिया जाने लगा है. खैर इसमें कोई बुराई नहीं बल्कि ये तो अच्छी बात है क्यों कि कम्पयूटर के इस्तेमाल से गलती की कैसी भी कोई संभावना नहीं रहती…… परन्तु अन्तिम निर्णय तो विद्वान ज्योतिषी को ही करना होता है. कम्पयूटर का कार्य है सिर्फ गणित(Calculations) करना. जन्मकुंडली देखना, उसके बारे में अन्तिम रूप से सारांशत: व्यक्तिगत रूचि लेकर किसी निर्णय पर पहुँचने का कार्य ज्योतिष के ज्ञाता का है. कम्पयूटर मानव कार्यों का एक सर्वोतम सहायक जरूर है, मानव नहीं…..इसलिए कम्पयूटर का उपयोग करें तो सिर्फ जन्मकुंडली निर्माण हेतु….न कि कम्पयूटर द्वारा दर्शाई गई गुण मिलान संख्या को आधार मानकर कोई अंतिम निर्णय लिया जाए….*

*शुभ और अशुभ भकूट गुणों का विचार/निर्णय*

भकूट दोष की प्रचलित धारणा के अनुसार षड़-अष्टक भकूट दोष होने से वर-वधू में से एक की मृत्यु हो जाती है, नवम-पंचम भकूट दोष होने से दोनों को संतान पैदा करने में मुश्किल होती है या फिर सतान होती ही नहीं तथा द्वादश-दो भकूट दोष होने से वर-वधू को दरिद्रता का सामना करना पड़ता है। भकूट दोष को निम्नलिखित स्थितियों में निरस्त माना जाता है : यदि वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों का स्वामी एक ही ग्रह हो तो भकूट दोष खत्म हो जाता है। जैसे कि मेष-वृश्चिक तथा वृष-तुला राशियों के एक दूसरे से छठे-आठवें स्थान पर होने के बावजूद भी भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि मेष-वृश्चिक दोनों राशियों के स्वामी मंगल हैं तथा वृष-तुला दोनों राशियों के स्वामी शुक्र हैं। इसी प्रकार मकर-कुंभ राशियों के एक दूसरे से 12-2 स्थानों पर होने के बावजूद भी भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि इन दोनों राशियों के स्वामी शनि हैं। यदि वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों के स्वामी आपस में मित्र हैं तो भी भकूट दोष खत्म हो जाता है जैसे कि मीन-मेष तथा मेष-धनु में भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि इन दोनों ही उदाहरणों में राशियों के स्वामी गुरू तथा मंगल हैं जो कि आपसे में मित्र माने जाते हैं।इसके अतिरिक्त अगर दोनो कुंडलियों में नाड़ी दोष न बनता हो, तो भकूट दोष के बनने के बावजूद भी इसका असर कम माना जाता है। किन्तु इन दोषों के द्वारा बतायी गईं हानियां व्यवहारिक रूप से इतने बड़े पैमाने पर देखने में नहीं आतीं और न ही यह धारणाएं तर्कसंगत प्रतीत होती हैं। उदाहरण के लिए नाड़ी दोष लगभग 33 प्रतिशत कुंडलियों के मिलान में देखने में आता है कयोंकि कुल तीन नाड़ियों में से वर और वधू की नाड़ी एक होने की सभावना लगभग 33 प्रतिशत बनती है। इसी प्रकार की गणना भकूट दोष के विषय में भी करके यह तथ्य सामने आता है कि कुंडली मिलान की लगभग 50 से 60 प्रतिशत उदाहरणों में नाड़ी या भकूट दोष दोनों में से कोई एक अथवा दोनों ही उपस्थित होते हैं। और क्योंकि बिना कुंडली मिलाए विवाह करने वाले लोगों में से 50-60 प्रतिशत लोग ईन दोनों दोषों के कारण होने वाले भारी नुकसान नहीं उठा रहे इसलिए इन दोनों दोषों से होने वाली हानियों तथा इन दोनों दोषों की सार्थकता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। मेरे अपने अनुभव के अनुसार नाड़ी दोष तथा भकूट दोष अपने आप में दो लोगों के वैवाहिक जीवन में उपर बताई गईं विपत्तियां लाने में सक्षम नहीं हैं तथा इन दोषों और इनके परिणामों को कुंडली मिलान के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं के साथ ही जोड़ कर देखना चाहिए।

भकूट का तात्पर्य वर एवं वधू की राशियों के अन्तर से है। यह 6 प्रकार का होता है जो क्रमश: इस प्रकार है:- कुण्डली में गुण मिलान के लिए अष्टकूट(Ashtkoot) से विचार किया जाता है इन अष्टकूटों में एक है भकूट (Bhakoot)। भकूट अष्टकूटो में 7 वां है,भकूट निम्न प्रकार के होते हैं.

1. प्रथम – सप्तक 2. द्वितीय – द्वादश 3. तृतीय – एकादश 4. चतुर्थ – दशम 5. पंचम – नवम 6. षडष्टक ज्योतिष के अनुसार निम्न भकूट अशुभ (Malefic Bhakoota) हैं——

द्विर्द्वादश,(Dwirdadasha or Dwitiya Dwadash Bhakoot)
नवपंचक (Navpanchak Bhakoota) एवं
षडष्टक (Shadashtak Bhakoota)
शेष निम्न तीन भकूट शुभ (Benefic Bhakoota) हैं. इनके रहने पर भकूट दोष (Bhakoot Dosha) माना जाता है—–

प्रथम-सप्तक,(Prathap Saptak Bhakoota)
तृतीय-एकादश (Tritiya Ekadash Bhakoot)
चतुर्थ-दशम (Chaturth Dasham Bhakoot)
भकूट जानने के लिए वर की राशि से कन्या की राशि तक तथा कन्या की राशि से वर की राशि तक गणना करनी चाहिए। यदि दोनों की राशि आपस में एक दूसरे से द्वितीय एवं द्वादश भाव में पड़ती हो तो द्विर्द्वादश भकूट होता है। वर कन्या की राशि परस्पर पांचवी व नवी में पड़ती है तो नव-पंचम भकूट होता है, इस क्रम में अगर वर-कन्या की राशियां परस्पर छठे एवं आठवें स्थान पर पड़ती हों तो षडष्टक भकूट बनता है। नक्षत्र मेलापक में द्विर्द्वादश, नव-पंचक एवं षडष्टक ये तीनों भकूट अशुभ माने गये हैं। द्विर्द्वादश को अशुभ की इसलिए कहा गया है क्योंकि द्सरा स्थान(12th place) धन का होता है और बारहवां स्थान व्यय का होता है, इस स्थिति के होने पर अगर शादी की जाती है तो पारिवारिक जीवन में अधिक खर्च होता है।

नवपंचक (Navpanchak) भकूट को अशुभ कहने का कारण यह है कि जब राशियां परस्पर पांचवें तथा नवमें स्थान (Fifth and Nineth place) पर होती हैं तो धार्मिक भावना, तप-त्याग, दार्शनिक दृष्टि तथा अहं की भावना जागृत होती है जो दाम्पत्य जीवन में विरक्ति तथा संतान के सम्बन्ध में हानि देती है। षडष्टक भकूट को महादोष की श्रेणी में रखा गया है क्योंकि कुण्डली में 6ठां एवं आठवां स्थान(Sixth and Eighth Place) मृत्यु का माना जाता हैं। इस स्थिति के होने पर अगर शादी की जाती है तब दाम्पत्य जीवन में मतभेद, विवाद एवं कलह ही स्थिति बनी रहती है जिसके परिणामस्वरूप अलगाव, हत्या एवं आत्महत्या की घटनाएं भी घटित होती हैं। मेलापक के अनुसार षडष्टक में वैवाहिक सम्बन्ध नहीं होना चाहिए। शेष तीन भकूट- प्रथम-सप्तम, तृतीय – एकादश तथा चतुर्थ -दशम शुभ होते हैं। शुभ भकूट (Auspicious Bhakoot) फल निम्न हैं—-

मेलापक में राशि अगर प्रथम-सप्तम हो तो शादी के पश्चात पति पत्नी दोनों का जीवन सुखमय होता है और उन्हे उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।
वर कन्या का परस्पर तृतीय-एकादश भकूट हों तो उनकी आर्थिक अच्छी रहती है एवं परिवार में समृद्धि रहती है,
जब वर कन्या का परस्पर चतुर्थ-दशम भकूट हो तो शादी के बाद पति पत्नी के बीच आपसी लगाव एवं प्रेम बना रहता है।
इन स्थितियों में भकूट दोष नहीं लगता है:

1. यदि वर-वधू दोनों के राशीश आपस में मित्र हों।
2. यदि दोनों के राशीश एक हों।
3. यदि दोनों के नवमांशेश आपस में मित्र हों।
4. यदि दोनों के नवमांशेश एक हो।

*नाड़ी दोष*

कुंडली मिलान के लिए प्रयोग की जाने वाली गुण मिलान की विधि में मिलाए जाने वाले अष्टकूटों में नाड़ी और भकूट को सबसे अधिक गुण प्रदान किए जाते हैं। नाड़ी को 8 तथा भकूट को 7 गुण प्रदान किए जाते हैं। इस तरह अष्टकूटों के इस मिलान में प्रदान किए जाने वाले 36 गुणों में से 15 गुण केवल इन दो कूटों अर्थात नाड़ी और भकूट के हिस्से में ही आ जाते हैं। इसी से गुण मिलान की विधि में इन दोनों के महत्व का पता चल जाता है। नाड़ी और भकूट दोनों को ही या तो सारे के सारे या फिर शून्य गुण प्रदान किए जाते हैं, अर्थात नाड़ी को 8 या 0 तथा भकूट को 7 या 0 अंक प्रदान किए जाते हैं। नाड़ी को 0 अंक मिलने की स्थिति में वर-वधू की कुंडलियों में नाड़ी दोष तथा भकूट को 0 अंक मिलने की स्थिति में वर-वधू की कुंडलियों में भकूट दोष बन जाता है। भारतीय ज्योतिष में प्रचलित धारणा के अनुसार इन दोनों दोषों को अत्यंत हानिकारक माना जाता है तथा ये दोनों दोष वर-वधू के वैवाहिक जीवन में अनेक तरह के कष्टों का कारण बन सकते हैं और वर-वधू में से किसी एक या दोनों की मृत्यु का कारण तक बन सकते हैं। तो आइए आज भारतीय ज्योतिष की एक प्रबल धारणा के अनुसार अति महत्वपूरण माने जाने वाले इन दोनों दोषों के बारे में चर्चा करते हैं। आइए सबसे पहले यह जान लें कि नाड़ी और भकूट दोष वास्तव में होते क्या हैं तथा ये दोनों दोष बनते कैसे हैं। नाड़ी दोष से शुरू करते हुए आइए सबसे पहले देखें कि नाड़ी नाम का यह कूट वास्तव में होता क्या है। नाड़ी तीन प्रकार की होती है, आदि नाड़ी, मध्या नाड़ी तथा अंत नाड़ी। प्रत्येक व्यक्ति की जन्म कुंडली में चन्द्रमा की किसी नक्षत्र विशेष में उपस्थिति से उस व्यक्ति की नाड़ी का पता चलता है। नक्षत्र संख्या में कुल 27 होते हैं तथा इनमें से किन्हीं 9 विशेष नक्षत्रों में चन्द्रमा के स्थित होने से कुंडली धारक की कोई एक नाड़ी होती है। उदाहरण के लिए : चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की आदि नाड़ी होती है : अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तर फाल्गुणी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा तथा पूर्व भाद्रपद। चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की मध्य नाड़ी होती है : भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्व फाल्गुणी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा तथा उत्तर भाद्रपद। चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की अंत नाड़ी होती है : कृत्तिका, रोहिणी, श्लेषा, मघा, स्वाती, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती। गुण मिलान करते समय यदि वर और वधू की नाड़ी अलग-अलग हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 8 अंक प्राप्त होते हैं, जैसे कि वर की आदि नाड़ी तथा वधू की नाड़ी मध्या अथवा अंत। किन्तु यदि वर और वधू की नाड़ी एक ही हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 0 अंक प्राप्त होते हैं तथा इसे नाड़ी दोष का नाम दिया जाता है। नाड़ी दोष की प्रचलित धारणा के अनुसार वर-वधू दोनों की नाड़ी आदि होने की स्थिति में तलाक या अलगाव की प्रबल संभावना बनती है तथा वर-वधू दोनों की नाड़ी मध्य या अंत होने से वर-वधू में से किसी एक या दोनों की मृत्यु की प्रबल संभावना बनती है। नाड़ी दोष को निम्नलिखित स्थितियों में निरस्त माना जाता है : यदि वर-वधू दोनों का जन्म एक ही नक्षत्र के अलग-अलग चरणों में हुआ हो तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं बनता। यदि वर-वधू दोनों की जन्म राशि एक ही हो किन्तु नक्षत्र अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं बनता। यदि वर-वधू दोनों का जन्म नक्षत्र एक ही हो किन्तु जन्म राशियां अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं बनता। नाड़ी दोष के बारे में विस्तारपूर्वक जानने के बाद आइए अब देखें कि भकूट दोष क्या होता है। यदि वर-वधू की कुंडलियों में चन्द्रमा परस्पर 6-8, 9-5 या 12-2 राशियों में स्थित हों तो भकूट मिलान के 0 अंक माने जाते हैं तथा इसे भकूट दोष माना जाता है। उदाहरण के लिए मान लीजिए कि वर की जन्म कुंडली में चन्द्रमा मेष राशि में स्थित हैं, अब : यदि कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्रमा कन्या राशि में स्थित हैं तो इसे षड़-अष्टक भकूट दोष का नाम दिया जाता है क्योंकि मेष राशि से गिनती करने पर कन्या राशि छठे तथा कन्या राशि से गिनती करने पर मेष राशि आठवें स्थान पर आती है। यदि कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्रमा धनु राशि में स्थित हैं तो इसे नवम-पंचम भकूट दोष का नाम दिया जाता है क्योंकि मेष राशि से गिनती करने पर धनु राशि नवम तथा धनु राशि से गिनती करने पर मेष राशि पांचवे स्थान पर आती है। यदि कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्रमा मीन राशि में स्थित हैं तो इसे द्वादश-दो भकूट दोष का नाम दिया जाता है क्योंकि मेष राशि से गिनती करने पर मीन राशि बारहवें तथा मीन राशि से गिनती करने पर मेष राशि दूसरे स्थान पर आती है।

*कुंडली मिलान के लिए गुण मिलान की विधि*

एक अच्छे ज्योतिषि को यह देखना चाहिए कि क्या वर-वधू दोनों की कुंडलियों में सुखमय वैवाहिक जीवन के लक्ष्ण विद्यमान हैं या नहीं। उदाहरण के लिए अगर दोनों में से किसी एक कुंडली मे तलाक या वैध्वय का दोष विद्यमान है जो कि मांगलिक दोष, पित्र दोष या काल सर्प दोष जैसे किसी दोष की उपस्थिति के कारण बनता हो, तो बहुत अधिक संख्या में गुण मिलने के बावज़ूद भी कुंडलियों का मिलान पूरी तरह से अनुचित हो सकता है। इसके पश्चात वर तथा वधू दोनों की कुंडलियों में आयु की स्थिति, कमाने वाले पक्ष की भविष्य में आर्थिक सुदृढ़ता, दोनों कुंडलियों में संतान उत्पत्ति के योग, दोनों पक्षों के अच्छे स्वास्थय के योग तथा दोनों पक्षों का परस्पर शारीरिक तथा मानसिक सामंजस्य देखना चाहिए। उपरोक्त्त विष्यों पर विस्तृत विचार किए बिना कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित करना मेरे विचार से सर्वथा अनुचित है। इस लिए कुंडलियों के मिलान में दोनों कुंडलियों का सम्पूर्ण निरीक्षण करना अति अनिवार्य है तथा सिर्फ गुण मिलान के आधार पर कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित करने के परिणाम दुष्कर हो सकते हैं।

अगर 28-30 गुण मिलने के बाद भी तलाक, मुकद्दमें तथा वैधव्य जैसी परिस्थितियां देखने को मिलती हैं तो इसका सीधा सा मतलब निकलता है कि गुण मिलान की प्रचलित विधि सुखी वैवाहिक जीवन बताने के लिए अपने आप में न तो पूर्ण है तथा न ही सक्षम। इसलिए इस विधि को कुंडली मिलान की विधि का एक हिस्सा मानना चाहिए न कि अपने आप में एक सम्पूर्ण विधि।

*🐜घर में चीटियां निकल रही है तो जानिए शुभ और अशुभ संकेत*🐜

अगर घर में चींटियां निकल रही हैं तो यह आपके जीवन में होने वाली किसी बात को लेकर संकेत है। घरों में चींटियों का निकलना हम आम बात समझकर उस पर गौर नहीं करते हैं लेकिन यह बहुत बड़ी घटनाओं के बारे में संकेत देती हैं।

चींटियां घर में ऊपर की ओर जा रही है या नीचे के ओर जा रही हैं। इसके अलावा आपके घर में आई चींटियों को कुछ खाने को मिल रहा है या नहीं यह भी होने वाली कई घटनाओं पर केंद्रीत होना माना जाता है।

*लाल चींटी और काली चींटी अलग बातों का संकेत देती हैं।*

अगर आपके घर में काली चीटियां आ रही हैं तो सुख और ऐश्वर्य वाला समय आने के संकेत देती हैं।

काली चींटियां सामान्य तौर पर घरों में चलती हुई दिखाई देती हैं। कई बार लोग काली चींटियों को शकर, आटा जैसे खाद्य पदार्थ भोजन के लिए डालते हैं। काली चींटियों को खाना खिलाना शुभ होता है। अगर चावल के भरे बर्तन से चींटियां निकल रही हैं तो यह शुभ संकेत होते हैं।

कुछ ही दिनों में आपकी धन वृद्धि होने वाली है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति अच्छी होने जा रही है। काली चीटियां आने से भौतिक सुख वाली चीजों के लिए भी शुभ माना जाता है।

*❌🐜लाल चींटियां घर में दिखे तो हो जाएं सावधान🐜❌*

अगर आपके घर में कहीं भी लाल चीटियां दिखाई देती हों तो सावधान हो जाएं। लाल चींटियां अशुभ का संकेत मानी जाती हैं। भविष्य की परेशानियों, विवाद, धन से खर्च होने के संकेत भी चींटियां देती हैं।

अगर लाल चींटियां आपके घर आ रही हैं तो यह सभी अशुभ काम आपके साथ हो सकते हैं। लेकिन लाल चींटियां मुंह में अंडा लेकर घर से जाए तो यह अच्छे संकेत के रुप में देखा जाता है। चींटियों को खाने के लिए खाद्य पदार्थ डालना चाहिए। अगर चीटियां आपके घर में भूखी रहेंगी तो यह भी अशुभ संकेत माने जाते हैं।

*👉इस दिशा से आने वाली चीटियां शुभ*

निश्चित दिशाओं से आपके घर चीटियां आती हैं तो आपके लिए यह शुभ संकेत हो सकता है। दरअसल काली चींटियां आपके घर में उत्तर दिशा से आती हैं तो आपके लिए शुभ संकेत होते हैं। दक्षिण दिशा से आ रही हों तो यह भी फायदेमंद होगा। पूर्व दिशा से चींटियां आ रही हैं तो सकारात्मक सूचना आपके घर आ सकती है। पश्चिम दिशा से चींटियां आएंगी तो आपकी बाहर यात्रा के योग बन सकते हैं।

 अफगानिस्तान में होने वाला घटनाक्रम शायद एक बहुत बड़ा नाटक है दूसरे देश मे refugee भेजने का। ये जो लोग दिख रहे हैं क्या ये शरिया को मानने वाले लोग नही है। इनमें और तालिबान में अंतर क्या है। तालिबान में Aliens थोड़े है अफगानी ही है 90% अफगान वहां की सेना, ऑफिसर डॉक्टर सब तालिबान को support करते हैं इसलिए अमरीका back हो गया। भारत के लोग क्यो इतना उछल रहे समझ नही आ रहा। भारत का देवबंद क्या है वह भी तो तालिबान है। उसको खत्म कर अपनी पीढ़ियों की चिंता करो अफगान की चिंता करते हम केवल एक जोकर नजर आ रहे हैं। we are sitting on demographic time bomb

काबुल की दुर्दशा का कारण अमेरिका का पलायन नहीं अफगानी सेना का अपने दीन के प्रति समर्पण है।

काबुल की सड़कों पर बर्बरता का नंगा नाच हो रहा है। भारत अफगानिस्तान में अपनी पूंजी लगाकर जो चौड़ी-चौड़ी सड़कें बनाया था उस पर तालिबानी आतंकवादी राइफल लहराते हुए अपनी गाड़ियां दौड़ा रहे हैं।

अमेरिका और नाटो की दस हजार की सेना कुछ हजार तालिबानों को गुफा में छुपने के लिए मजबूर कर दी थी, लेकिन क्या कारण है कि साढ़े तीन लाख की अफगानी सेना उन्हें नहीं रोक पायी? वास्तविकता तो यह है कि अफगानी सेना नें युद्ध ही नहीं लड़ा। बीस वर्षों से अमेरिका के पैसे पर पल रहे और प्रशिक्षित किए जा रहे सैनिक इन बर्बर असभ्यों से भला कैसे हार गए? वास्तविकता तो यह है कि वे हारे नहीं बल्कि स्वयं एक-एक राज्य सौंपते गए और अंत में काबुल भी सौंप दिए, क्योंकि यह उनके दीन की बात थी। भले ही वे अमेरिका से वेतन ले रहे थे लेकिन उनका ईमान तालिबानियों के साथ था। अमेरिका यह जान चुका था कि ओसामा और मुल्ला उमर के मारे जाने के बाद अफगानिस्तान में उसका अपना काम तो पूरा हो चुका है। अब वह ऐसे लोगों का बोझ ढो रहा है जो स्वयं तालिबान से लड़ने की इच्छा शक्ति नहीं रखते,बल्कि अपने मजहबी फरमान के आधार पर उनके प्रति सहानुभूति भी रखते हैं

बीस वर्ष एक लम्बा समय होता है। कब तक कोई देश दूसरे का बोझ उठाएगा? वह भी उस परिस्थिति में जब सभी प्रयास मजहब के सामने राख में घी सुखाने की तरह बेकार हों। वास्तव में यह अमेरिका का पलायन नहीं मजहब की मूलगामी सोच का प्रतिफल है। जो सरकारें और जो लोग इससे सबक नहीं लेंगे उन्हें भी भविष्य में ऐसे ही परिणाम के लिए तैयार रहना चाहिये।
साभार…
प्रसिद्ध इतिहासविद् अतुल रावत की किताब में बताया गया है कि
16,000 रानियों की चिता की राख से अल्लाउद्दीन ने
“सवा चौहत्तर मन सोना” लूटा था।
यह जूता है उनके मुँह पर जो इस विषय पर भंसाली जैसे बॉलीवुड भाँडों के लिये सहानुभूति रखते हैं। अल्लाउद्दीन की मरघटी मोहब्बत का आखिर यही अर्थशास्त्र है!!
अतुल रावत का कथन पढ़िए –
“भारतीय सन्दर्भ में लोक परंपरा किस प्रकार इतिहास को संरक्षित किये रहती है यह पद्मिनी की महान गाथा से स्पष्ट है”।
जौहर की ज्वाला शांत होने के बाद अलाउद्दीन ने उस विशाल चिता को भी नहीं छोड़ा।
सभी राजपूतानियाँ पूरा श्रृंगार करके चिता पर आरूढ़ हुई थीं। अलाउद्दीन ने चिता की राख से “सवा चौहत्तर मन सोना” लूटा था।
हिन्दू समाज ने राजपूतानियों के उस महान बलिदान की स्मृति बनाये रखने के लिए एक लोक परंपरा आरम्भ की जो अब से पचास -साठ वर्ष पूर्व तक चलती रही – हिन्दू अपने पत्रों पर “सवा चौहत्तर का अंक” अंकित किया करते थे।
इसका आशय यह था कि जिसको पत्र लिखा गया है उसके अलावा यदि कोई अन्य व्यक्ति इस पत्र को खोले तो उसे वही पाप लगे जो पाप पद्मिनी की चिता से सवा चौहत्तर मन सोना लूटने पर अल्लाउद्दीन को लगा था।
लोक इतिहास संरक्षण का यह अनूठा तरीका था। इसीलिए यह इतिहास दो पीढ़ी पहले तक तो बचा रहा।
ये हमारा दुर्भाग्य है कि वर्तमान पीढ़ी विकृत इतिहास और अल्प इतिहास ही पढ़ पायी है, इन्हें अपनी ठसक से नीचे उतरकर खुद को पहचानने की फुर्सत ही नहीं!
वास्तविक से दूर सपनों में जीने की आदी युवा पीढ़ी इस संरक्षण के योग्य बची ही नहीं हैं जो महारानी पद्मिनी को रज मात्र भी समझ पाये….
✍️अवधेश प्रताप सिंह कानपुर उत्तर प्रदेश