ये कारें नहीं, सरकारें जाम हैं¡

हरीश मैखुरी

उत्तराखंड में इन दिनों जाम की समस्या बताकर पर्यटन का बेड़ा गर्क करने के लिए मीडिया ट्रायल चल रहा है, सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनल तक और प्रिंट मीडिया से लेकर फुटपाथ कब्जाऐ छोटे-मोटे दुकानदार तक इस बात से चिंतित हैं कि उत्तराखंड में इतने पर्यटक क्यों आ रहे हैं? बढ़ा चढ़ा कर गाड़ियों के जाम की तस्वीरें चस्पा की जा रही हैं। लेकिन वास्तव में देखा जाए तो यह गाड़ियों का जाम नहीं, यहां की व्यवस्था जाम है। श्रद्धालु और पर्यटक तो आयेंगे ही, आने ही चाहिए। जमाना अब पैदल यात्रा का नहीं, बल्कि कारों का है। लेकिन इसके लिए हमारी व्यवस्था क्या है? सवाल तो ये है। सबको पहले से मालूम है कि हर साल गर्मियों में देश के चारधाम यात्रियों सहित छुट्टी बिताने वे लोग भी चले आते हैं जिन्होंने उत्तराखंड से स्थाई पलायन कर लिया है। उत्तराखंड से स्थाई पलायन करने वाले लोगों की संख्या एक करोड़ के आसपास है, उत्तराखंड में कम लोग हैं और पलायन ज्यादा लोग कर चुके हैं। यह तो हमारा प्लस प्वाइंट है कि लोग आज भी गाहे-बगाहे समय मिलने पर छुट्टियां होने पर अपने पहाड़ आते हैं, खासकर छुट्टियों के दिनों में गर्मियों से बचने के लिए वे अपने बच्चों को भी इसी बहाने पहाड़ दिखा देते हैं। सरकार को यह पता है कि हर साल गर्मियों में भारी संख्या में लोग पहाड़ का रुख करते हैं। यहां सरकारें यात्राकाल में मीटिंग भी करती हैं, उस पर बजट भी खर्च करती है, कुछ लोगों की ड्यूटी भी लगाती है, लेकिन सरकार के साथ ही तमाम नगर पालिकाओं ने करोड़ों के बजट खर्च करने के बावजूद कहीं नयीं पार्किंग के लिए जगह नहीं बनाई है। उत्तराखंड में बाहरी अतिक्रमणकारियों ( बंगलादेशी व रोहिंग्या) ने नगर पालिकाओं के खाली पड़े स्थानों पर जबरन कब्जा करके मकान बना लिए हैं और यहां के पेड़ों का सफाया कर दिया है उसी तरह से पार्किंग के स्थानों पर भी इन लोगों ने अपनी फड़ें हैं और दुकानें लगा दी हैं फुटपाथों पर भी जगह नहीं छोड़ी है वहां अतिक्रमणकारियों की रेडी ठेली सब्जी चाय फुटपाथ पर कब्जा करके ही बिक रही है। यदि सरकार सिर्फ अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाए तो पार्किंग की समस्या हल हो सकती है। इसी के साथ हर नगर पालिका क्षेत्र का बजट उसकी पार्किंग के स्थानों को विकसित करने के लिए खर्च होना चाहिए क्योंकि अब कारों की संख्या हर साल दुगनी हो रही है लेकिन इस हिसाब से पार्किंग एरिया हर साल घट रहे हैं। जबकि हम मीडिया ट्रायल चला कर जाम का रोना रो रहे हैंं। उत्तराखंड में थोड़ा सा इस दिशा में पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने “होमस्टे योजना “लाकर पर्यटकों को गांवों की ओर मोड़ने का कुछ रुक रुझान अवश्य किया, लेकिन गांवों में सड़कें नहीं पहुंची, सड़कें नहीं पहुंचे तो अच्छे मकान अच्छे होटल भी नहीं बने, वरना गांव हमारे अच्छे डेस्टिनेशन हो सकते थे। लोग गांव की संस्कृति से भी रूबरू होते गांव का सादा खाना खाते। हमें देखना होगा कि पहाड़ की तरफ कौन पर्यटक आ रहा है? उत्तराखंड सरकार को भी समझना चाहिए कि पहाड़ की तरफ जो पर्यटक आ रहा है वह यहां सुविधाओं के लिए नहीं आ रहा, वह शांति के लिए आ रहा है सुविधाएं उसके पास शहर में सब हैं लेकिन शहर में सुकून नहीं है हवा पोल्यूटेड है धूल धुआं धोखा धक्का-मुक्की से परेशान आदमी पहाड़ की शांत वादियों में कुछ दिन अभावग्रस्त जिंदगी जीने के लिए तैयार है उसे सिर्फ भोजन चाहिए, एक ठिकाना चाहिए और उसकी गाड़ी के लिए कहीं पर पार्किंग बस तीन चीजें मिल जाए। तो क्या उत्तराखंड सरकार हमारी नगर पालिका ने हमारे ग्राम पंचायत के लोग इतना बजट खर्च करने के बावजूद इस तरह की तीन छोटी-छोटी सुविधाएं जुटा नहीं पा रहे हैं?  रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल ने आम आदमी बनकर गौरीकुंड फाटा और रामबाड़ा में थोड़ा सा लोगों की समस्याएं जानने की कोशिश की और देखा कि यह सारी खामियां व्यवस्थागत हैं उन्होंने तत्काल कुछ लोगों को चेतावनी दी कुछ लोगों को ट्रांसफर किया कुछ लोगों को सस्पेंड करने की संस्तुति कर दी तो कुछ इमानदार कर्मियों को पुरस्कृत भी किया। सबसे खतरनाक जाम जोशीमठ के आसपास है, मारवाड़ी बाईपास खोलते ही इस जाम का हल निकल सकता है लेकिन यहां राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते मारवाड़ी बाईपास खोलने की दिशा में पहल नहीं हो रही। चमोली की जिलाधिकारी स्वाति एस भदौरिया और पुलिस भी मौके पर यात्रियों को पानी की बोतलें बिस्कुट बंटवाने और जायजा लेने मौके पर पहुंची, जल्दी जाम भी खुलवाया गया। इतनी सी इतनी एक्टिवनेस भी हमारे अन्य जिलाधिकारियों में हो तो काफी हद तक जाम की समस्या से भी निपटा जा सकता है। इससे ज्यादा अभावग्रस्त और कठिन यात्रा अमरनाथ की है लेकिन लोग शौक से अमरनाथ यात्रा करते हैं केदारनाथ में हमारे करीब 100 से ज्यादा हेलीकॉप्टर लगे हुए हैं अच्छी खासी सुविधाएं हैं लेकिन लोग परेशान हैं क्योंकि सुविधाएं होने के बावजूद व्यवस्थागत समस्याएं खड़ी हैं। अब लोगों की उम्मीद  चार धाम यात्रा प्रोजेक्ट और  रेलवे लाइन से जुड़ी है  जितनी जल्दी यह दोनों प्रोजेक्ट पूरे होंगे उतनी ही जल्दी उत्तराखंड की चारधाम यात्रा सुगम होगी। एक यात्री है जयपुर की दीक्षा राजपूत मुझे केदारनाथ के रास्ते में मिली मैंने उससे कहा यहां की परेशानी पर कुछ कहना चाहोगी? उसने कहा कुछ परेशानी नहीं है हमें तो भगवान केदार के दर्शन करने हैं हर हाल में दर्शन करने हैं इसमें परेशानी की क्या बात है पहाड़ की जिंदगी है थोड़ा सा कष्ट तो उठाना ही पड़ता है। उसी तरह से बद्रीनाथ में मुझे केरला के मुरलीधर ने बताया कि कोई परेशानी नहीं है सिर्फ लाइन लग रही है, लाइन में खड़े होकर अगर भगवान बद्रीनाथ के दर्शन होते हैं तो यह हमारा सौभाग्य, यहां जिसको भगवान बुलाते हैं वहीं आ पाते हैं, बद्रीनाथ और केदारनाथ। पिछले 12 सालों से गोरखपुर के बड़कू चौधरी हर साल रुद्रनाथ 18 किलोमीटर पैदल चढ़ते हैं, वे आए तो दर्शनों के लिए थे लेकिन यहां आकर इतना रम गए कि रूद्रनाथ गुफा को सोलर लाइट से सजा दिया, साथ ही यहां पंचगंगी में भंडारा भी लगा दिया। लोग उत्तराखंड आने के लिए तैयार हैं लेकिन उत्तराखंड लोगों के स्वागत व खुद का व्यवसाय बढाने के लिए तैयार नहीं है। हमारे मीडिया महारथी इस कमी के बजाय जाम का रोना रोएंगे तो इससे उत्तराखंड के पर्यटन व्यवसाय पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। आप ऐसे जाम की तस्वीरें अमरनाथ, कैलाश मानसरोवर, वैष्णो देवी से या तिरुपति बालाजी यहां तक कि दिल्ली से नहीं देखेंगे, जबकि वहां इनसे ज्यादा खतरनाक जाम लगते हैं, पर खबर नहीं बनती है। हमें समझना चाहिए कि उत्तराखंड में गोवा टाईप भोगवादी पर्यटक नहीं आते, यहां या तो श्रद्धालु आते हैं या देश के विभिन्न क्षेत्रों साथ ही बंगाली पंजाबी राजस्थानी नेचर लभर आते हैं। हम नैनीताल के बगल में भीमताल तक पर्यटकों को नहीं ले जा पा रहे हैं। ग्वालदम, गरूड़, कंथोली, डोंठला कार्तिक स्वामी, चन्द्रबदनी, रूद्रनाथ कल्पनाथ अभी भी सूने पड़े हैं, तो ये किसकी नाकामी है? ज्यादा पर्यटकों के आने से उत्तराखंड में विलेज टूरिज्म काे पंख लग सकते हैं, माणा गांव में अच्छे खासे पर्यटकों की आमद बढ़ गई है। नीति गमशाली जाने वाले यात्रियों की संख्या में भी काफी वृद्धि हो रही है। उसी तरह से जून में अपने गांव आने वाले लोगों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है, कुछ दिन ही सही लोग अपने गांव में आ रहे हैं, यही उत्तराखंड के लिए शुभ संकेत हैं – हरीश मैखुरी