इस्लामी आतंकवादी संगठन हमास के आधे से अधिक बड़े आतंकवादियों कब्र में भेज चुकी है इस्त्राइली सेना कहा मिशन पूरा होने तक कोई समझौता नहीं

हमास के आधे से अधिक आतंकियों को मौत के घाट उतार चुकी इजरायली सेना ने गुरुवार को कहा कि उसने गाजा में एक ऑपरेशन के दौरान हमास के तीन और आतंकियों को जहन्नुम पहुंचा दिया है। आईडीएफ ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल पर कहा अभी कंफर्म नहीं है कि मारे गए आतंकियों में हमास का नया चीफ याह्या सिनवार है या नहीं। इजरायली सेना मौत की पुष्टि हेतू डीएनए टेस्ट कर रही है। सिनवार को इस्माइल हानियेह के तेहरान में कत्ल के बाद हमास का चीफ बनाया गया था। हानियेह के वक्त वह गाजा प्रमुख और हमास का डिप्टी था। इजरायली सैनिकों के कत्लेआम और अपहरण में 22 साल जेल की सलाखों में रहा। अपना ज्यादातर जीवन शरणार्थी शिविरों में बिताने से उसके मन में इजरायल के खिलाफ जबरदस्त गुस्सा और बदले की आग थी। 7 अक्टूबर 2023 को इजरायल पर हुए अभूतपूर्व हमले के पीछे सिनवार का ही दिमाग था। उसी के कहने पर ईरान और हिजबुल्लाह ने हथियार और पैसों की मदद की थी।

तेहरान में इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद ने बेहद खतरनाक मिशन में इस्माइल हनिया की हत्या कर दी थी। जिसके बाद याह्या (इब्राहिम हसन) सिनवार को हमास का प्रमुख नियुक्त किया गया। सिनवार के बारे में कहा जाता है कि वह बेहद खूंखार और आपराधिक प्रवृत्ति वाला था। मामले के जानकार बताते हैं कि इजरायल के साथ युद्धविराम में लगातार खलल के पीछे सिनवार ही था, क्योंकि वह इजरायल से नफरत करता था और किसी भी सूरत में युद्धविराम के पक्ष में नहीं था।

बंधकों को ढाल बनाकर जान की भीख मांगी

हाल ही के दिनों में जब इजरायली सेना चुन-चुनकर हमास आतंकियों को निशाना बना रही थी, तब मारे डर के सिनवार ने बंधकों को ढाल बनाकर इजरायल से अपनी जान की भीख मांगी थी। उसने इजरायली सेना से बंधकों की रिहाई के बदले उसे और उसके साथियों को किसी तीसरे देश जाने की गुहार भी लगाई थी। इजरायली मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, सिनवार कुछ दिन महिला के वेश में गाजा में आम लोगों के बीच भी रहा। उसे डर था कि आईडीएफ सुरंगों को लगातार निशाना बना रही है और वह कभी भी मारा जा सकता है।

शरणार्थी शिविर में पैदा हुआ, इजरायली जेल में 22 साल बिताए

सिनवार का जन्म 29 अक्टूबर 1962 को गाजा के खान यूनिस शरणार्थी शिविर में हुआ था। 1948 के अरब-इजरायल युद्ध के दौरान उसका परिवार अश्कलोन से विस्थापित हो गया था। यही वजह है कि उसके मन में इजरायल के प्रति नफरत थी। शरणार्थी शिविर में बिताए गए शुरुआती जीवन से उसने इजरायली कब्जे का विरोध करना शुरू कर दिया। जल्द ही वह हमास में शामिल हो गया। सिनवार ने गाजा के इस्लामिक विश्वविद्यालय से अरबी अध्ययन में डिग्री हासिल की।

सिनवार ने 1980 के दशक के अंत में हमास की एक इकाई माजद की स्थापना की, जिसका उद्देश्य इजरायल का समर्थन करने वाले फिलिस्तीनियों की पहचान करना और उन्हें खत्म करना था। आतंकवादी गतिविधियों के कारण 1988 में दो इज़रायली सैनिकों के अपहरण और हत्या की साजिश रचने के आरोप में उसे गिरफ्तार किया गया। सिनवार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, लेकिन 2011 में इजरायली सैनिक गिलाद शालिट के बदले सौदे में उसे रिहा कर दिया गया था।

7 अक्टूबर को इजरायल पर हमले का मास्टरमाइंड

पिछले साल 7 अक्टूबर को दक्षिण इजरायल पर हुए आतंकी हमले में जहां 1200 से अधिक लोगों की जान चली गई, उसका मास्टरमाइंड याह्या सिनवार था। उस दौरान सिनवार गाजा में प्रमुख के तौर पर नियुक्त था। उसने ईरान और हिजबुल्लाह के शीर्ष नेताओं से कई बार की मुलाकातें की। इजरायली मीडिया के अनुसार, उसने 2022 जनवरी में ही इजरायल पर हमले की योजना बना ली थी, लेकिन ईरान और हिजबुल्लाह से समय पर मदद न मिल पाने के कारण उसे योजना टालनी पड़ी। सिनवार ने ईरान और हिजबुल्लाह से हथियार और पैसों की मदद मांगी थी। उसने भरोसा दिलाया था कि उनका दिया पैसा वह बर्बाद नहीं होने देगा और इजरायल को तगड़ा सबक सिखाकर रहेगा। पिछले सात अक्टूबर को हुए हमले में गाजा की ओर से इजरायल पर 20 मिनट के भीतर 5000 से अधिक मिसाइलें दागी गई। इसके बाद हमास के आतंकी इजरायली सीमा में घुस आए और जमकर कत्लेआम किया। एक संगीत समारोह में 350 लोगों का कत्ल कर दिया। इसके अलावा 250 लोगों को अगवा कर दिया। अभी भी हमास के पास 100 से अधिक इजरायली बंधक हैं।

इस्त्राइल की रणनीति गतिविधियों से भारत को भी सीख मिलती है कि आतंकवाद का जड़ों से विनाश करना पड़ता है और बीज भी जलाना पड़ता है आधा अधूरा काम करने से रक्तबीज फिर नये आतंकवादियों को जन्म देते हैं।

*बांग्लादेश में दुर्गा पूजा 2024 ई. के दौरान फिर हुए भयानक दंगों ने हमें फिर से अतीत में झाँकने और एक नए तुर्क राष्ट्र के चरित्र को अच्छी तरह से समझने का अवसर दिया है।*
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*शुरुआत करते हैं शेख हसीना वाजेद जो वर्तमान प्रधानमन्त्री हैं और शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी है जो खुद अपने बाप मुजीबुर्रहमान के समान ही बहुत भयानक ढोंगी, पाखंडी, सांप्रदायिक और सता लोलुप है, जबकि खुद को धर्मनिरपेक्ष बताती हैं और मानती हैं। वह किस परिवार से आती हैं ये पूरी दुनिया को पता है। क्या सचमुच बांग्लादेश हिन्दुओं के लिए एक सुरक्षित राष्ट्र है?*

*शेख हसीना के “अतिमहान” पिता शेख मुजीबुर्रहमान का चरित्र हिन्दुओं के प्रति कैसा था। आइये इस लेख के बहाने हम उसके भयानक गंदे, ढोंगी और पाखंडी जीवन में झांकते हैं। सन 1940 ई. में आल इंडिया मुस्लिम स्टूडेंट्स फेडरेशन में शामिल होने के बाद मुजीब राजनीतिक रूप से सक्रिय हो गया जब वह इस्लामिया कॉलेज का छात्र था। उस वक़्त उसकी आयु मात्र 20 वर्ष थी। सन 1943 ई. आते-आते मुजीब बंगाल मुस्लिम लीग में शामिल हो गया । यही वो समय था जब पूरे भारतवर्ष में मुसलमानों द्वारा एक अलग मुस्लिम राष्ट्र (पाकिस्तान) बनाये जाने की मांग उठ रही थी।*

*इसी अवधि के दौरान, मुजीब ने भी अलग मुस्लिम राज्य (पाकिस्तान) के लिए सक्रिय रूप से काम करना शुरू किया और 1946 ई. में वह इस्लामिया कॉलेज छात्र संघ का महासचिव भी बन गया था । वर्ष 1947 ई. में उसने पअपनी बी.ए. की डिग्री प्राप्त की। मुजीबुर्रहमान भी सांप्रदायिक हिंसा के दौरान हुसैन सैय्यद सुहरावर्दी (उस समय का अविभाजित बंगाल का तुर्क मुख्यमंत्री) के लिए काम करने वाले मुस्लिम राजनेताओं में से एक था ।*

*यानि जिन्ना के ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ (सीधा कार्यवाही दिवस) को मुस्लिम लीग द्वारा ‘पाकिस्तान की माँग को तत्काल स्वीकार करने के लिए’ मचाया गया एक भयानकतम क़त्ले-आम दिवस ( Genocide Day ) था। पर्दे के आगे बंगाल में इसका मुख्य खिलाडी ‘हुसैन सैय्यद सुहरावर्दी’ था, तो पर्दे के पीछे उसके सहयोगी, उसी हत्यारी मानसिकता वाले मुजीबुर्रहमान जैसे मुस्लिम लीग के तमाम युवा कार्यकर्त्ता इस कुकृत्य को अंजाम दे रहे थे। एक्शन डे के दिन “नोआखाली” जिला जो पूर्वी बंगाल में था, बुरी तरह से तुर्क हिंसा की भेंट चढ़ा। तुर्क बहुल इस जिले में हिंदुओं का व्यापक पैमाने पर क़त्ले-आम ( Genocide ) हुआ।*

*नोआखली में दंगे रुकने के बाद, मुस्लिम लीग का दावा था कि, इस तबाही में केवल पांच सौ हिंदू मारे गए जबकि वहाँ बचे प्रत्यक्षदर्शियों के द्वारा मुस्लिम लीग की बात का भयानक विरोध हुआ और बताया कि दंगों में पचास हज़ार से अधिक हिंदू मारे गए थे। अन्य स्रोतों से यह भी पता चला कि डायरेक्ट एक्शन डे के दंगों से “नोआखली” में हिंदू आबादी लगभग ख़त्म ही हो गई थी। वहाँ अब नाममात्र के लिए ही हिन्दू बचे थे। हिन्दू द्रोही, समाज द्रोही और देशद्रोही गांधी, नेहरू और कांग्रेस के भयानक षड्यंत्रों से शुरू में तो बाक़ी दुनिया को नोआखाली के नरसंहार की कानो-कान ख़बर भी नहीं मिली।*

*यह विडंबना ही थी कि जिन तुर्कों ने यह दुष्कृत्य किया, उनमें से अधिकांश तुर्क ऐसे थे, जो पचास वर्ष पूर्व के ही धर्म-परिवर्तित हिंदू थे। इधर कलकत्ता (अब कोलकता) में मात्र 72 घंटों के भीतर ही दस हजार से अधिक हिन्दू मौत के घाट उतारे गए थे। जबकि 20 हजार से अधिक घायल हो गए थे और बेघर होने वालों की तादाद एक लाख से अधिक थी। इसे अंग्रेज़ी में “ग्रेट कलकत्ता किलिंग” ( The Great Calcutta Killings ) भी कहा जाता है। कलकत्ता के इन दंगाइयों में मुजीबुर्रहमान भी अपने साथियों के साथ शामिल था।*

*बांग्लादेश के वर्तमान दंगों के बाद अब बांग्लादेशी कट्टर मज़हबी तुर्कों से सख्त नफ़रत करने का बहाना करने वाली शेख हसीना के बिगड़े बोलों से भी अपने दंगाई पिता मुजीब के उसी रक्तचरित्र की भयानक गन्ध आने लगी है। वो कहती है, “बांग्लादेश में हिन्दुओं की रक्षा के लिए भारतवर्ष को भी हमेशा सतर्क रहना चाहिए। अर्थात भारत में ऐसा कुछ भी घटित नहीं होना चाहिए, जिससे उनके राष्ट्र और राष्ट्र के हिन्दुओं पर असर पड़े।”*

*अनेक बुद्धिजीवियों का मानना है कि मुस्लिम दंगा करने के उपरान्त उसे दबाने-छिपाने, और खुद के लोगों को सही ठहराने के लिए इस तरह के व्यक्तव्य देते हैं यानी “अल तकिया ” करते हैं। असल में ये तुर्कों की भयानक जिहादी मानसिकता और शिक्षा का परिचायक है। मारकाट करके ही उन्होंने अपने लिए पहले पाकिस्तान नामक देश बनाया। फिर 1971 ई. में भाषाई दबाव डालकर, अपने तीन लाख लोगों को मरवाकर, बांग्लादेश बनवाया।*

*पूर्वी पाकिस्तान के इन बंगाली तुर्कों को मारने-काटने वाले पश्चिमी पाकिस्तान के फौजी तुर्क थे। भारत ने तो हस्तक्षेप करके और रक्तपात होने से बांग्लादेश को बचाया था। अपने भाषण में मुजीब की बेटी आगे कहती हैं, ”आमतौर पर बांग्लादेश भारत को कभी भी इस तरह से स्पष्ट संदेश नहीं देता हैं। भले ही इसे लेकर बांग्लादेश में बात होती रही हो।*

*भारत की सत्ताधारी भाजपा में सबसे शक्तिशाली एक व्यक्ति ने भी बांग्लादेश को लेकर अभद्र भाषा का इस्तेमाल नहीं किया था, तब भी हमने कभी इतना खुलकर नहीं बोला था।” शेख हसीना के व्यक्तव्य से ये बात स्पष्ट होती है कि वह प. बंगाल की मुख्य्मंत्री ममता बनर्जी की भयानकतम बदमाशियों और चालाकियों से भयानक रूप से प्रभावित हैं और उसी के आधार पर सोची-समझी नीतियों के तहत बयानबाज़ी कर रही हैं।*

*सन 1906 ई. में जिस मुस्लिम लीग का गठन हुआ था वह चालीस वर्षों बाद अपने असली मक़सद के करीब पहुँच रही थी। फूट डालो और राज करो की नीति साकार रूप ले रही थी। अत: आम हिंदू भी कुछ और ख़ास कट्टर हिंदू हो चुके थे और तुर्क तो स्वभाव से पहले से ही कट्टर थे।सदियों पुरानी, दिखावटी, खोखली हिंदू-मुस्लिम एकता की थोड़ी बहुत बची हुई कमज़ोर लकड़ीनुमा इमारत को अब तक अंग्रेज तंत्र भी दीमक की तरह बुरी प्रकार से चाट चुका था। जो किसी भी वक़्त ढह सकती थी।*

*बेवकूफ़ जिन्ना ने इस दीमक खाई इमारत को, जिसे अब गंगा-जमनी तहज़ीब का नाम दिया जाता है तेज़ी से ढहाने का काम किया। सनकी जिन्ना जो पिछले ढाई दशक से मुस्लिम लीग का सबसे खास व्यक्ति था अब पाकिस्तान बनाने की उतावलेपन में पागलपन की आख़िरी हद तक पहुंच गया अतः उसने 15 अगस्त, 1946 ई. को हिंदुओं के खिलाफ ‘डायरेक्ट एक्शन’ (सीधी कार्रवाई) का नादिरशाही फ़रमान ज़ारी कर दिया। इस वक़्त आत्मरक्षा में हिंदू महासभा भी ‘निग्रह-मोर्चा’ बनाकर प्रतिरोध की तैयारियों में जुट गई। गृहयुद्ध की सारी विकट परिस्थितियां सामने आ खड़ी हुईं थीं*

*इस समय हिन्दूद्रोही देशद्रोही गांधी के अतिप्रसिद्ध सिद्धान्त खोखले हो गए थे। वक़्त की नज़ाकत को भांपते हुए, गांधी ने माउंटबेटन से मुलाकात में स्पष्ट कह दिया, “अंग्रेजीतंत्र की ‘फूट डालो, राज करो’ की नीति से आज यह हालात बने हैं कि हम या तो कानून-व्यवस्था बनाए रखने हेतु अंग्रेजी राज को ही आगे भी झेलते रहें या फिर भारत आये दिन हिन्दु मुस्लिम दंगों में महास्नान करता रहे।*

*इसे ईश्वर का न्याय कहिये। भगवान की लाठी जब पड़ती है तो बड़े-बड़े मसीहा भी सुपुर्दे-ख़ाक हो जाते हैं।जिस हत्यारे मुजीब ने “डायरेक्ट एक्शन डे” के दिन अनेक बेगुनाह हिन्दुओं का क़त्ल किया, उसे ऐसा श्राप लगा कि 1975 ई. में बांग्लादेश की आर्मी ने ही उसके पूरे परिवार का नाश कर दिया। यदि शेख हसीना विदेश यात्रा पर नहीं होती तो मुजीब के सम्पूर्ण परिवार का ही नाश हो जाता।*
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