उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू होने से पूरे देश में हलचल जगी सबके लिए समान विधान की आश

यूं ही नहीं हुई दून से लेकर दिल्ली तक ‘हलचल’ 

12 फरवरी 2022 का दिन था। उत्तराखण्ड में विधानसभा चुनाव का प्रचार चल रहा था। खटीमा में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ऐलान किया कि “सत्ता बरकरार रही तो भाजपा उत्तराखण्ड में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) लागू करेगी। यह सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देगा, महिला सशक्तिकरण को मजबूत करेगा और राज्य की असाधारण सांस्कृतिक-आध्यात्मिक पहचान की रक्षा करने में मदद करेगा।” धामी यहीं पर नहीं रुके उन्होंने आगे कहा कि “मैंने जो यह वादा किया है वह मेरी पार्टी का संकल्प है और नई भाजपा सरकार बनते ही इसे पूरा किया जाएगा। 

धामी के इस ऐलान से साफ हो गया था कि उत्तराखण्ड में यूसीसी लागू करने का वादा वह सिर्फ अपने बूते नहीं कर रहे बल्कि उनकी इस सोच के पीछे भाजपा हाईकमान मजबूती से खड़ा है। विधानसभा चुनाव के परिणाम सामने आए तो प्रदेश में हर चुनाव में सरकार बदलने वाली रवायत टूट गई। भाजपा प्रचण्ड बहुमत के साथ उत्तराखण्ड में सत्ता बरकरार रखने में कामयाब रही, लेकिन चुनाव में एक अप्रत्याशित घटनाक्रम भी हुआ। मुख्यमंत्री धामी खुद अपना चुनाव हार गए। फिर भी पार्टी हाईकमान ने धामी पर विश्वास कायम रखा और उन्हें दूसरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी। धामी को यूसीसी को लेकर जनता से किया अपना वायदा याद था लिहाजा उन्होंने 27 मई 2022 को यूसीसी पर विशेषज्ञ समिति का गठन कर दिया। जस्टिस (सेवानिवृत्त) रंजना देसाई को इस हाई पॉवर कमेटी का चेयरमैन बनाया गया। 

 

गठन के कुछ दिनों बाद ही जस्टिस देसाई और हाई पॉवर कमेटी के सभी सदस्यों ने 2 जून 2022 को दिल्ली स्थित उत्तराखण्ड सदन में भारतीय विधि आयोग के अध्यक्ष जस्टिस (सेवानिवृत्त) ऋतुराज अवस्थी और सदस्यों केटी शंकरन, आनंद पालीवाल और डीपी वर्मा से मुलाकात की। इस मुलाकात को सामान्य घटनाक्रम के रूप में देखा गया लेकिन इसके बाद 14 जून को भारतीय विधि आयोग भी ‘समान नागरिक संहिता’ के मुद्दे पर एक्टिव हो गया और आयोग ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मुद्दे पर लोगों और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों के सदस्यों सहित विभिन्न हितधारकों के विचार आमंत्रित कर नये सिरे से परामर्श की प्रक्रिया शुरू कर दी। आयोग की इस गतिविधि से साफ हो गया कि केन्द्र की मोदी सरकार भी देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है। 

इससे पहले 2017 में 21वें विधि आयोग ने भी मुद्दे की पड़ताल की थी और समान नागरिक संहिता पर दो मौकों पर सभी हितधारकों के विचार और सुझाव मांगे थे। लेकिन राशुमारी के बाद आयोग साफ कह दिया कि मौजूदा समय में समान नागरिक संहिता की न तो जरूरत है और ना ही वह वांछनीय है। हालांकि 21वें विधि आयोग का कार्यकाल अगस्त 2018 में समाप्त हो गया था। इस स्पष्ट टिप्पणी के बाद भी अगर 22वां आयोग अब इस विषय को प्राथमिकता दे रहा है तो समझा जा सकता है कि इसमें मोदी सरकार की खासी रुचि है। 22वां आयोग की ओर से कुछ महीनों पहले जारी सार्वजनिक नोटिस में कहा गया है कि ‘‘21वें आयोग की राय को पांच साल से अधिक का समय बीत जाने के बाद, मुद्दे की प्रासंगिकता एवं महत्व और इस पर विभिन्न अदालती आदेशों को ध्यान में रखते हुए 22वें विधि आयोग ने मुद्दे पर नये सिरे से चर्चा करने का फैसला किया है।” 

  भारतीय विधि आयोग की इस कवायद से इतर भारतीय जनता पार्टी के स्तर पर देखें तो देशभर में यूसीसी लागू करने की मंशा को लेकर स्थिति साफ हो जाती है। 27 मई 2022 को उत्तराखण्ड में यूसीसी के लिए हाई पॉवर कमेटी गठित होने के बाद 9 दिसम्बर 2022 को राज्यसभा में भाजपा सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने भारत में समान नागरिक संहिता लागू किए जाने को लेकर निजी विधेयक पेश किया। बिल को पेश करने के बाद मतदान हुआ, जिसके पक्ष में 63 वोट पड़े, जबकि विपक्ष में 23 वोट डाले गए। देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने के उद्देश्य से यह प्रस्ताव रखा गया। इतना ही नहीं इसी बीच मध्यप्रदेश, गुजरात, हिमाचल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह और केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ ने प्रचार के दौरान कहा कि उत्तराखण्ड के बाद इन सभी राज्यों में यूसीसी लागू किया जाएगा। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के संकल्प पत्र में भी यूसीसी लागू करने का वायदा किया गया। 

  अंतत: 27 जून 2023 को भोपाल में भाजपा कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को देश की जरूरत बताया। उन्होंने विपक्षी दलों से सवाल किया कि दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चलेगा? संविधान में भी सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार का उल्लेख है। बीजेपी ने तय किया है कि वह तुष्टिकरण और वोटबैंक की राजनीति के बजाए संतुष्टिकरण के रास्ते पर चलेगी। 

यदि मोदी सरकार पूरे देश में यूसीसी लागू करने में कामयाब होती है तो इसकी ठोस पहल करने का श्रेय उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को जाएगा। वो धामी ही हैं जिन्होंने न सिर्फ पूरा खम ठोक कर उत्तराखण्ड में यूसीसी लागू किया, बल्कि अन्य राज्यों में इसे लेकर सियासी हलचल बढ़ा दी। कल मोदी नेशनल गेम्स का उद्घाटन करने देहरादून आ रहे हैं। उनके आगमन से ठीक एक दिन पहले प्रदेश में यूसीसी लागू करके धामी सरकार ने प्रधानमंत्री के लिए ‘रेड कार्पेट’ बिछा दिया है। साभार – ✍️दीपक फर्सवाण 

मीडिया राजनेता और न्याय व्यवस्था धर्मांतरण को बढ़ावा देने में लगी है क्या?
क्योंकि न धर्मांतरण रोकने के लिए अभी तक न कठोर और प्रभावी कानून बना न धर्मांतरण कारियों को सजा मिलती है न मीडिया में धर्मांतरण का विषय गंभीरता से उठाया जाता है। जबकि #धर्मांतरण एक गंभीर विषय है। धर्मांतरण को #कानूनी प्रोत्साहन व सहयोग नहीं देनी चाहिए, अपितु #धर्मांतरणकारी को #फांसी देनी चाहिए। क्योंकि सनातनियों को विदेशी कबीले बनाने के लिए धर्मांतरण का धधा केवल हिन्दूओं के धर्मांतरण पर फोकस्ड है। भारत के कई पूरे राज्य धर्मांतरित कर दिए गए हैं। #सुप्रीम_कोर्ट को ये बात समझनी चाहिए।

बता दें कि मानसिक रूप से कमजोर नाबालिग के अवैध धर्मांतरण के आरोपी कानपुर के मौलवी सैयद शाह काजमी उर्फ मोहम्मद शाद को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अवैध धर्मांतरण हत्या, रेप या डकैती जैसा कोई इतना गंभीर अपराध नहीं है कि उसमें जमानत न दी जा सके. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे बी पारदीवाला की अध्यक्षता वाले 2 जजों की बेंच ने इस बात पर हैरानी जताई कि मौलवी को निचली अदालत और हाई कोर्ट ने जमानत नहीं दी. बेंच ने अपने आदेश में कहा है, “हर साल सेमिनार होते हैं, जिनमें निचली अदालत के जजों को यह बताया जाता है कि जमानत के मामले में वह अपने विवेक का इस्तेमाल कैसे करें. फिर भी जज अपनी इच्छा से जमानत देने या न देने का फैसला करते हैं. निचली अदालत के जज ने अगर याचिकाकर्ता को जमानत नहीं दी, तब भी कम से कम हाई कोर्ट से यह उम्मीद की जाती है कि वह ऐसा करता.” लेकिन धर्मांतरणकारी को जमानत देने के सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से धर्मांतरणकारियों को प्रोत्साहन मिल सकता है।