विश्व सुन्दरी और बाजार वाद की नग्नता 

विश्व की सुन्दरी और बाजार वाद की नग्नता 

शोशल मीडिया का एक सामयिक आलेख अपने सुधी पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं-संपादक 

आवारा बाज़ारवाद की स्टॉल पर बैठ अपने जिस्म कि नुमाइश लगाकर उपभोक्ता की बुद्धि को भ्रमित कर देने के लिए विश्व सुन्दरियाँ बनाई जाती हैं।ज़रा सोचिये कि अगर उत्पादों के इश्तहारों पर से जिस्म परोसती सुन्दरियाँ ग़ायब हो जाएँ तो बाज़ार कैसा होगा ? विशुद्ध भारतीय जनसंख्या नियंत्रक उपकरण ‘निरोध’ का प्रचार अगर Durex की तर्ज़ पर किया जाता तो निश्चित तौर पर यह स्वदेशी ब्रांड आज ज़िंदा होता, मुझे याद है कि ‘कामसूत्र’ नामक कंडोम के इश्तहार ने बाज़ार में तहलका मचा दिया था, इसके इश्तहार में सुश्री पूजा बेदी ने बहुत ईमानदारी के साथ अपना जिस्म परोसा था, जिन बच्चों की उम्र गैस वाले ग़ुब्बारे ख़रीदने की थी इश्तहार देखने के चक्कर में उन्होंने भी उत्तेजित कर देने वाले ग़ुब्बारे ख़रीद लिए, मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि अपने विज्ञापनों में अश्लीलता के कारण ये गर्भ निरोधक उपकरण देश की जनसंख्या नियंत्रण में नहीं बल्कि जनसंख्या वृद्धि में सहायक सिद्ध हो रहे हैं और ये ही बाज़ारवाद का असली चेहरा है ।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों का विश्वास अपने उत्पादों का प्रचार टॉप मॉडलों से करवाने में रहा है लिहाज़ा उन्होंने पहले हमारे देश में विश्व सुन्दरियाँ पैदा की और फिर अपने उत्पादों को भारतीय बाज़ारों में धकेला, आप क्रोनोलौजी को समझिये, एक बार देशी विश्व सुन्दरियों के बनने और विदेशी ब्रांडों के भारत आगमन के समय का मिलान करके देखिये । मैंने ‘कैंपा कोला’ का विज्ञापन नहीं देखा परन्तु ‘माजा’ के विज्ञापन में महिला मॉडल को आम चूसते हुए अवश्य देखा है, मुझे भी आम चूसते-चूसते पैंतीस वर्ष हो गये हैं परन्तु ‘माजा’ के विज्ञापन में आम चूसती मादा को देखकर मुझे अपने आम चूसने पर शर्म आने लगी है । बिना जिस्मपरोसी के गुज़ारा नहीं है, हद तो तब हो गई जब ‘नूरीमन तेल’ के विज्ञापनों में भी विदेशी महिला की नग्न पीठ दिखाई जाने लगी है, अन्डरगार्मेन्ट के विज्ञापन में केवल अन्डरगार्मेन्ट पहनकर माडलों का उछलना कूदना पुरानी बात हो गई है । आप अपने परिवार के साथ TV पर कितनी भी परिवारिक पिक्चर देख रहे हों लेकिन बीच में कंडोम,अन्डरगार्मेंट,जोश वर्धक दवाई आदि के विज्ञापन आते ही आपको चैनल बदलना पड़ता है ।
हो सकता है विश्व सुन्दरी बनना सौभाग्य की बात हो,पर मुझ गँवार को नहीं मालूम कि विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता के क्या मानक होते हैं और इसके लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है, हमारे देश के श्री विजय मालिया जी विश्व सुन्दरियों के असली कद्रदान थे, एक सफल महिला मॉडल कैसे पैदा की जाती है यह बात उनसे अधिक कोई नहीं जानता है, ये बात अलग है कि कुछ दिलजले लोग उन्हें रसिया कहकर बदनाम करते हैं ।
ख़ैर ! विश्व सुन्दरियाँ अगर कुछ व्यापारियों के कहने से बनाई जा सकती होती तो फिर यह धरती स्वर्ग बन गई होती, मेरी नज़र में मेरी फ़ैक्ट्री में काम करने वाली माएँ और बहनें विश्व सुन्दरी है, वो सुबह अपने परिवार के लिए खाना बनाकर आती हैं और दिनभर परिश्रम करने के पश्चात शाम को वापस घर जाकर पुन: अपने परिवार के लिए भोजन बनाती हैं, बेशक वो महीने का 10-11 हज़ार रूपये कमाती हों लेकिन इन रूपयों की क़ीमत किसी कुबेर के ख़ज़ाने से कम नहीं है, मेरी नज़र में वो देवियाँ साक्षात लक्ष्मी स्वरूप हैं और जिस देश की संस्कृति देवियों के पूजन की रही हो वहाँ इन अधनंगी विश्व सुन्दरियों का क्या काम(साभार)