सड़कों के अभाव को हम सरकारी उपेक्षा नहीं  बल्कि देश के साथ खिलवाड़ कहेंगे

डॉ हरीश मैखुरी 

फोटो में दिख रही खुशनुमा तस्वीर उत्तराखंड के हर गाँव की नहीं है। देखने में आया है कि जिन गांवों में मोटर सड़क पहुंच गई है और सड़क ने गांव के अधिकतम मकानों को कवर किया है तो वहां के लोग दूरी के हिसाब से हफ्ते या महीनों में अपने गांव आ ही जाते हैं। लेकिन जहां सड़कें नहीं हैं वहां के लोग सालों में कभी कभार किसी  बड़े पूजा-पाठ जैसे कार्यक्रम में ही गांव आते हैं। सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि राज्य बनाने के बाद पहाड़ों से 53 लाख लोगों ने स्थाई रूप से पलायन कर लिया जबकि 15 हजार गांवों पर पूरी तरह से ताले लटक गये। हजारों गांवों में सिर्फ बुजुर्गों ने यहाँ कूड़ी के द्वार उगाड़े हुए हैं, उनको सिर्फ बुजुर्गों ने ही जीवित रखा है। अनेक ऐसे गांव हैं जहां सड़कें तब पहुंची जब गांव पूरे खाली हो चुके हैं। चमोली जिले में कई गांव तो ऐसे हैं जहां पंहुंने के लिए आज भी लोगों को 3 से लेकर 23 किलोमीटर तक पैदल चढाई चढनी पड़ती है। अठारह सालों  से सरकारें पलायन के बहाने झख भले मार रही हो लेकिन मोटर सड़क नहीं बना रही । गांव का कोई भी सामान्य नागरिक बता देगा कि सड़कों के बिना ही गांव खाली हो रहे हैं। इतनी छोटी सी बात कि गांवों को सड़क चाहिये, जानबूझकर सरकार की समझ में नहीं आती। सत्ता में बैठे मगरूर और बेशर्म नेता सिर्फ अपने खानदान और व्यवसाय को आगे बढ़ाने की चिंता में दुबले होते रहे हैं। सीमा के कई गांव खाली हो चुके हैं चमोली जिले के नीति जैसे गांव में अब यहां के बुजुर्ग लोग सिर्फ अपना लासपा त्यौहार मनाने जाते हैं, जबकि वह हमारे देश का आखरी गांव है, सरकार को ऐसी कोशिश करनी चाहिए कि वहां वसाहत जाड़े गर्मी सभी मौसम में हो जाए क्योंकि अब वहां तक सड़क पहुंच गई। लेकिन सड़क तब पहुंची जब गांव पूरी तरह से उजड़ गया, और वहां के लोग मैदानी शहरों या पहाड़ी कस्बों में शिफ्ट हो कर छोटे-मोटे धंधे में लग गये हैं अब उनकी नयी पीढ़ी शहर की प्रदूषण भरी जिंदगी रास आने के कारण वो फिर कभी लौट के ना आए। अब नीति बौर्डर में आदमी वहां की देखरेख कर रही आईटीबीपी के जवानों के रूप में ही दिखते हैं। और पहाड़ के रजवाड़े जैसे ठाट को छोड़कर यहां का स्वावलंबी आदमी शहर कस्बों के गैसचैम्बरनुमा बिना हवा धूप की कोठड़ियों में मोल का पानी खरीद कर रहने को अभिशप्त है। और धूल धुंआ धक्का धोखा खाने का आदी और परावलम्बी बन गया है।  यह पलायन नहीं साहब आत्महत्या है, और सड़कों के अभाव को हम सरकारी उपेक्षा नहीं  बल्कि देश के साथ खिलवाड़ कहेंगे।