“योगरतो वाभोगरतोवा, सङ्गरतो वा सङ्गवीहिनः । यस्य ब्रह्मणि रमते चित्तं, नन्दति नन्दति नन्दत्येव ॥” (आदि शंकराचार्य) अर्थात – “कोई योग में लगा हो या भोग
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“योगरतो वाभोगरतोवा, सङ्गरतो वा सङ्गवीहिनः । यस्य ब्रह्मणि रमते चित्तं, नन्दति नन्दति नन्दत्येव ॥” (आदि शंकराचार्य) अर्थात – “कोई योग में लगा हो या भोग
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