सिस्टम की लापरवाही से नवजात की मौत

चमोली जिले के घूनी गाँव निवासी मोहन सिंह की गर्भवती पत्नी नंदी देवी प्रसव के लिए 4 दिसम्बर को जिला चिकित्सालय गोपेश्वर आये, डॉ ने परीक्षण के उपरांत बच्चे की धड़कन असामान्य पाते हुए उन्हें हायर सैन्टर लेजाने का परामर्श देकर चलता कर दिया। पैंसे की कमी के कारण नन्दी देवी बस से ही श्रीनगर जा रही थी लेकिन रास्ते में ही तीव्र प्रसव वेदना के चलते बस वाले ने उन्हें रुद्रप्रयाग से पहले सड़क पर उतार दिया जहां सड़क पर ही नन्दी देवी ने बच्चे को जन्म दिया, लेकिन ठंड और चिकित्सा के अभाव में बच्चे ने दम तोड़ दिया। मामले में गोपेश्वर में लोगों ने मुख्य चिकित्सा अधीक्षक का घेराव कर अपना आक्रोश जताया। इस संबंध में गोपेश्वर राजकीय जिला चिकित्सालय के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डा विराज शाह ने बताया कि चिकित्सालय में गायनेकोलॉजिस्ट चाइल्ड स्पेशलिस्ट और हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं है यह महिला ओपीडी के अंतर्गत दिन में जिला चिकित्सालय आई थी लेकिन सामान्य परीक्षण के उपरांत पाया गया कि गर्भस्थ शिशु की हार्टबीट कम चल रही है और ऐसे में चाइल्ड स्पेशलिस्ट व हृदय रोग विशेषज्ञ की अनुपस्थिति के कारण बच्चे की जान को खतरा हो सकता है, उन्हें स्थिति से अवगत कराया गया जिसके बाद वे स्वत: ही चले गए। लेकिन सवाल उठता है कि उत्तराखंड राज्य बनने के 18 साल बाद भी हमारी सरकारें पहाड़ों पर डॉक्टर नहीं चढ़ा पाई हैं हमारे सभी विशेषज्ञ डॉक्टर मैदानी इलाकों में जमे हुए हैं, इसी के चलते ऐसी ह्रदय विदारक स्थितियां सामने आती हैं, और सरकारें हैं कि उन्हें शर्म तक नहीं आती।  पहाड़ों के चिकित्सालय सिर्फ रेफरल सेंटर बन के रह गए हैं। इस मामले में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के अनुसार सड़क और स्वास्थ्य सरकार की प्राथमिकता में है विशेषकर पर्वतीय जनपदों को ध्यान में रखते हुए एयर एंबुलेंस की परियोजना पर तेजी से काम चल रहा है प्रश्नगत प्रकरण का भी संज्ञान ले लिया गया है।