उत्तराखंड में बीपीएल शराब

हरीश मैखुरी

फेसबुक पर एक पोस्ट डाली थी “गरीबी की रेखा से नीचे वाले शराब कहां से पीते होंगे? और जब रोज शराब पीते हैं तो गरीब किस बात के?” इस पर गढ़वाल विश्व विद्यालय के सुविख्यात अंग्रेज़ी प्रोफेसर डॉ डी आर पुरोहित ने कॉमेंट में लिखा “बीपीएल शराब” हमें टाईटल मिल गया। एक और कमेंट में राजेन्द्र प्रसाद जुयाल ने लिखा ” कोई सूचना या अध्ययन है जो ये बताये कि गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले कितने लोग अपने पैसे से शराब पीते है और कितने घटिया नेता इन्हे शराब पिला कर अपना उल्लू सीधा करते है। शायद आप को पत्ता हो कई भूमि हीन कृषि मजदूरो को अफीम की लत लगाई जाती है। ये तो आपको भी मालूम ही होगा कि सीवर लाइन साफ करने वाले सफाई मजदूरो को कोई दस्ताने, मास्क दे न दे,शराब जरूर पकडा देते है।और सहाब ,जब मकान का काम पूरा हो जाता है या कुछ अतिरिक्त घंटे काम करवाना.होता है तो कई सभ्रांत लोग भी शराब पेश करते है।और बैड बाजे वालो को तो लोग दारू पिलाना जरूरी मानते है ध्यान दीजियेगा,ढोल दमों बजाने वाले लोक कलाकारो को अच्छी मजदूरी मिले न मिले,रम जरूर मिल जाती है।गरीब को और गरीब करने के बहुत तरीके है।शराब भी उनमे एक है। गरीबी सिर्फ इसलिए अभिशाप नहीं कि वह पैसे की कमी बताती है बल्कि इसलिये भी है कि उसे सभ्रांत लोग काहिली और बुरी लतो का परिणाम मानते है।भाई साहब गरीबी व्यवस्था जन्य होती है जिसमे फंसा परिवार बहुत दम लगा और कुर्बानी देकर ही कुछ हालात संवार पाता है,यदि व्यवस्था संवेदनशील हो तब ही”

 मेरा मंतव्य है कि शराबियों की खराबी कम हो इस हेतु प्रयास हों। कई शराबियों की घरवालियां जिस डिब्बे में सुबह इनके पास दूध बेचने के लिए देती हैं शाम को ये शराबी उसी डिब्बे में बोतल छिपा कर लाते हैं और कहते हैं कि… डंडी तू कुछ नहीं जानती.. बच्चे और ब्वारी तब डर के मारे वबरा भीतर लूक जाते हैं.. कुछ शराबी तो सुबह शरम के मारे बात नहीं करते पर ब्याखुलिदों सिर्फ अंग्रेजी में छोंकते हैं। जबकि छोटी उम्र के नशेडी़ तो गालिब की भी टांग तोड़ देते हैं तेरे इश्क ने गालिब शराबी बना दिया… शादी विवाह के मौके पर तो ये शराबी कौतूहल मजाक और झगडे़ के कारक भी बनते हैं। और आजकल सूंघने वाले बच्चों को देखता हूँ तो दर्द और दोस्ती के सागर हैं। साहब ये बीपीएल शराब भोत दर्द भी देती है। ??? इस पोस्ट पर अनेे सहयोगी सहमत थे। देवभूमि में शराब को सरकारी राजस्व संग्रह का उपक्रम न बनाया जाय। और यदि सरकार समझती है कि उसके पास शराब बेचने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है  और ना इस दिशा में  इच्छा शक्ति है तो  सरकार कोदा झंगोरा से बनने वाली शराब की फैक्ट्री डाले और इन बीपीएल नशेड़ियों के लिए भी बीपीएल में शराब की व्यवस्था करें  बाईगाॅड सरकारी शराब धंधा चमक उठेगा। नशेे के विरुद्ध कार्य करते हैं इस दिशा में एक व्यक्ति ललित जोशी भी काम कर रहे हैं वे हर साल स्कूलों में जाकर जागरूकता अभियान चला रहे हैं और इसके लिए अब तक 15 लाख लोगों को वोलेन्टियर के  लिए तैयार कर चुके हैं