मुख्यमंत्री के नाम ज्ञान चक्षु खोलने वाली चिट्ठी

सेवा में,
श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत जी,
माननीय मुख्यमंत्री
उत्तराखण्ड सरकार
देहरादून।

विषय- उत्तराखण्ड को देवभूमि अधिसूचित करने हेतु।

मान्यवर,
निवेदन है कि-

(1) देवभूमि उत्तराखण्ड मानव की उत्तपत्ति स्थल है। यहाँ श्री बद्रिकाश्रम में भगवान नारायण का अवतरण हुआ। इसे ही श्वेतद्वीप कहा जाता है जहां वाराह अवतार लेकर भगवान ने सृष्टि का सृजन करने के लिए प्रजापति ब्रह्मा को उतपन्न किया। ब्रह्मा जी ने इसी बद्रिकाश्रम के ब्रह्म यजन गिरी पर कठोर तप कर सप्तऋषियों का यजन किया। इन सप्त ऋषियों की तपःस्थली को आज भी देवांगन या सप्तकुण्ड कहा जाता है। इन ऋषियों के उत्तपत्ति कुण्ड आज भी विद्यमान हैं जो अब जलाप्लावित हैं।
(2) जब सप्तऋषि भी सृष्टि सृजन में प्रवृत्त नहीं हुए तब इसी बद्रिकाश्रम में प्रजापति ब्रह्मा ने कठोर तप कर माया का सृजन कर उसी पर मोहित होकर अपने को योगाग्नि में भस्म कर दो भागों में विभक्त किया जिसमें एक भाग जो पुरुष हुआ वह मनु नाम से जाने गये और जो भाग स्त्री के रूप में प्रकट हुआ वह शतरूपा के नाम से जाना गया। ब्रह्मा की यह तपःस्थली बद्रीनाथ में बामणी गांव के नाम से जाना जाता है।
(3) महोदय सृष्टि के आरम्भ में शिव पार्वती के विवाह के समय त्रियुगी नारायण में विवाह सम्पन्न करवाने वाले प्रजापति ब्रह्मा को पातक से मुक्त होने के लिए भगवान शंकर ने पवमान सूक्तों से अभिमन्त्रित जल का कमण्डलु ब्रह्मा को दिया था। जब भगवान विष्णु ने बामण रूप धारण कर अपने पग से तीन लोकों को मापा तब स्वर्ग में पड़े विष्णुपद का प्रजापति ब्रह्मा द्वारा कमण्डलु के जल से अभिषेक किया गया। इस अभिषिक्त जल को पुनः भगवान शंकर ने अपनी जटा में धारण किया और कुछ जल इस पृथ्वी के श्रीमुख पर्वत पर गिरा, जो गङ्गा की सात धाराओं में विभक्त हुआ।
(4) इन सात धाराओं की पहली धारा को गौतमऋषि धरती पर लाए जो विष्णुपदी अलकनन्दा के नाम से जानी जाती है। इस मुख्यधारा में गङ्गा की अन्य धाराएँ जहां पर मिली उन स्थानों पर वैदिक ऋषियों ने विधि पूर्वक यज्ञ-याग किया जिससे इन स्थानों को प्रयाग के नाम से जाने लगा और निरन्तर यज्ञ भाग के लिए उपस्थित रहने के कारण प्रजापति ब्रह्मा की प्रतिष्ठा हमेशा इन प्रयागों में हो गयी। यही कारण है कि सनातन धर्म के तीनों मुख्य देवताओं में उतपन्नकर्ता ब्रह्मा की उपासना लोग उत्तराखण्ड के प्रयागों में स्नान करके करते हैं। तब चतुर्दश प्रयागों में स्नान द्वारा ब्रह्मा की उपासना से पवित्र हुआ जीव श्री बद्रिकाश्रम में भगवान नारायण के दर्शन का अधिकारी होता है। और भगवान नारायण के दर्शन के बाद वह मानसरोवर में स्नान कर कैलास के दर्शन से जीवन मरण के बन्धन से मुक्ति प्राप्त करता है। तब जा कर उत्तराखण्ड का नाम साकार होता है। क्योंकि उत्तर का अर्थ ही तारने वाला होता है। अर्थात धरती का वह भू-भाग जो मनुष्य को इहलौकिक व पारलौकिक बन्धनो से तार दे वह उत्तराखण्ड कहलाता है। लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि आज उत्तराखण्ड के शासकों को तक उत्तराखण्ड का अर्थ पता नहीं है।
(5) मान्यवर उत्तराखण्ड देवताओं और ऋषियों की तपःस्थली रही है लेकिन सरकारी कानून धर्मनिरपेक्षता की आड़ में उत्तराखण्ड की सभ्यता, संस्कृति व परम्पराओं को नेशतो नाबूत करने वाले रहे हैं। उत्तराखण्ड में भू-स्वामित्व प्राचीन काल में मन्दिरों के पास रहा है, लेकिन 1965 में up सरकार द्वारा उत्तराखण्ड ज़मीदारी विनाश अधिनियम लागू किया गया जिसके अन्तर्गत मन्दिरों को जमीनदार मान लिया गया और मन्दिर की जमीन पर काश्तकारी कर जो लोग उपज से मन्दिर की भोग पूजा और प्रसाद की व्यवस्था करते थे। जमीन उनके नाम दर्ज कर दी गयी। जिसका नतीजा यह हुआ कि देवभूमि के मन्दिरों पर अवैध कब्जेधारी रातोंरात मालामाल और मन्दिर कंगाल हो गये। स्थिति यह है। आज उत्तराखण्ड के अनेकों मन्दिर बंजर व वीरान पड़े हैं तथा शहरों के मन्दिरों की उस भूमि जिस पर बाजगिरी आदि लोग काबिज थे उन्होंने पैसे के लोभ में जमीन विधर्मियों और खासकर ईसाइयों और मुसलमानों को बेच दी है। नतीजतन मन्दिरों की भूमि पर मस्जिद और चर्च ही नहीं खड़े हो गये बल्कि जेहादियों की हवेलियां भी खड़ी हो गयी हैं। जिससे मन्दिर और मन्दिर से जुड़े कर्मकारों और खासकर पुजारी पुरोहितों को जानमाल का खतरा उतपन्न हो गया है।
(6) मान्यवर वेटिकन सिटी हो या काबा या फिर गौतमबुद्ध की जन्मस्थली लुम्बनी ही क्यों न हो गैर मतावलम्बियों को वहां बसने पर ही रोक ही नहीं बल्कि कई जगह तो प्रवेश पर भी रोक है। तब केवल सनातनधर्म के उपासना स्थलों को ही क्यों लावारिस छोड़ा गया है? यह धर्मनिर्पेक्षता की आड़ में सनातन धर्म के विनाश की साजिश के अलावा कुछ नहीं है।
(7) महोदय विडम्बना यह है कि निर्धन पहाड़ी आजीवीकोपार्जन के लिए पहाड़ों से पलायन कर रहा है और उसकी जगह रोजगार कमाने के लिए जेहादी तत्व और अंग्रेजी कान्वेंट के नाम पर ईसाइयों की देवभूमि में घुसपैठ बढ़ी है। जिस कारण इस क्षेत्र की डेमोग्राफी तेजी से बदल रही है। स्थिति यह है कि उत्तराखण्ड को कश्मीर बनाने के जेहादियों के प्रयास में तेजी आयी है। इस क्षेत्र को खुरासान बनाने के लिए जगह जगह मस्जिदें बनाई जा रही हैं। जिनका एकमात्र लक्ष्य सनातनधर्म के समस्त प्रतीकों (मठ-मन्दिरों) को नष्ट करना है।
(8) महोदय मैं पिछ्ले 20 सालों से इस खतरे के बारे में सचेत करता रहा पर किसी ने नहीं सुनी। अब जबकि आतंक के उद्गम देवबन्द ने साफ कर दिया है कि बद्रीनाथ बदरूदीन की मजार और मस्जिद है तब आप से निवेदन है कि उत्तराखण्ड के तीर्थ मन्दिरों की रक्षा के लिए इसे धार्मिक क्षेत्र अधिसूचित किया जाय और विधर्मियों के इस क्षेत्र में प्रवेश को तत्काल प्रतिबन्धित किया जाय।
महोदय देवभूमि उत्तराखण्ड को धार्मिक क्षेत्र अधिसूचित करने के लिए निम्न कदम उठाये जाने जरूरी हैं-
1 वर्ष 1965 में जब से उत्तराखण्ड जमींदारी उन्मूलन अधिनियम द्वारा मन्दिरों को जमीदार मानकर उनकी भोग-पूजा की जमीन अधिग्रहित की गयी है तब से देवभूमि नाएं मन्दिरों का विनाश हुआ है। इस अधिनियम को तत्काल खत्म कर 1965 से पूर्व की स्थिति बहाल की जाय।
2 उत्तराखण्ड में मन्दिरों की काश्तकारी भूमि जो कि 1965 से पूर्व मन्दिरों के नाम दर्ज थी उसको बहाल किया जाय। खैकरों के कब्जे, पट्टे, रजिस्ट्री आदि खरीद फ़रोख़्त की बिक्री निरस्त कर इस भूमि को खाली करते हुए मन्दिरों को वापस लौटाया जाय।
3 उत्तराखण्ड में मूल निवास की अवधि तय करने हेतु ज़मीदारी उन्मूलन अधिनियम 1965 से पूर्व वर्ष को आधार वर्ष मानते हुए उसके बाद कि तमाम रजिस्ट्रियां निरस्त की जायँ और उनकी खरीद बिक्री को अवैध माना जाय। जो 1965 से पूर्व उत्तराखण्ड के मूल निवासी थे उनकी भोमि के खरीद- विक्रय की रजिस्ट्री को ही वैध माना जाय।
इससे उत्तराखण्ड में ईसाइयों और जेहादियों की जो घुसपैठ हुई है, उनकी जमीनों के पट्टे निरस्त हो जायेंगे।
4 जिस प्रकार वेटिकन सिटी, मक्का मदीना, लुम्बिनी में कोई गैर धर्मावलम्बी भूमि नहीं क्रय कर सकता है, उसी प्रकार देवभूमि उत्तराखण्ड को धार्मिक क्षेत्र अधिसूचित कर विधर्मियों के भूमि क्रय पर तत्काल रोक लगायी जाय और उनके पट्टे निरस्त किए जायं।
5 महोदय उत्तराखण्ड के तीर्थ मन्दिर द्वापर से पूर्व के हैं अतएव प्रत्येक तीर्थ मन्दिर जो कि हाल और एबर्टशन बन्दोबस्त में दर्ज कागजाद हैं। उस तीर्थ के चारों और 10 किलोमीटर की भूमि तीर्थ क्षेत्र घोषित की जाय। साथ ही गङ्गा नदी को तीर्थ क्षेत्र घोषित करते हुए इसके दोनों तरफ 10 किलोमीटर की हवाई दूरी तथा इसकी ट्रिब्यूटरी धाराओं के भी 10 दस किलोमीटर दोनों और धार्मिक क्षेत्र अधिसूचित किया जाय।
6 उत्तराखण्ड में एक स्वायत्त विद्वत परिषद का गठन किया जाय जो तीर्थ क्षेत्रों में होने वाले निर्माण कार्यों और विकास कार्यों मार्ग दर्शन व धार्मिक मामलों में निर्णय लेने की सर्वोच्च संस्था हो।
इस हेतु विद्वत परिषद की रूप रेखा डॉ0 भगवती प्रसाद पुरोहित द्वारा तैयार की जा चुकी है। साथ ही उनके द्वारा 20-25 सालों के गहन शोध अध्ययन द्वारा उत्तराखण्ड के तीर्थ मन्दिरों का डाक्यूमेंटेशन भी किया गया है जो कि उत्तराखण्ड के लिए धरोहर है।
महोदय उत्तराखण्ड को धार्मिक क्षेत्र अधिसूचित करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 के अन्तर्गत विधि सम्मत है, इससे-
(A) तीर्थ मन्दिरों का संरक्षण होगा।
(B) दैवीय संस्कृति का संरक्षण होगा।
(C) इतिहास, पुरातत्व व परम्पराओं का संरक्षण मानव विज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण होगा, जिससे विश्व मानवता की उद्गम स्थली/ मानव उत्तपत्ति का यह केन्द्र अध्येताओं के आकर्षण का केन्द्र बनेगा जिससे सनातनधर्म की पुनर्प्रतिष्ठा होगी।
चूँकि महोदय उत्तराखण्ड को धार्मिक क्षेत्र अधिसूचित करने से सरकार को किसी प्रकार का वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा और इस क्षेत्र में हलाल के बूचड़खानों, गौकशी, व कसाईखानों पर रोक लगेगी। अन्यथा इस देवभूमि में भी विधर्मियों द्वारा गौकशी दिन व फिन बढ़ती जा रही है। साथ ही अजान के भौंपू में मन्दिर की घण्टियों और शंखध्वनि दम तोड़ रही है। स्थिति यह है कि पवित्र तीर्थों जहां सनातनी नहा कर पवित्र मन से नंगे पाँव जाते थे वहां चर्च और मस्जिदें खड़ी होगयी हैं तथा हिन्दुओं के तीर्थ लुप्त होने के कगार पर हैं।
महोदय उत्तराखण्ड को धार्मिक क्षेत्र अधिसूचित करने से ईसाइयों और जेहादियों की गतिविधियों पर रोक लगेगी। क्योंकि हिन्दू धर्म के शिखर तीर्थों को निशाना बनाना जेहाद का हिस्सा है। जिसको रोक पाने में विद्यमान कानून विफल हुए हैं।
अतः इस दृष्टि से भी धार्मिक क्षेत्र अधिसूचित किया जाना तीर्थ मन्दिरों औऱ सनातन धर्म की रक्षा के लिए आवश्यक कदम होगा। इससे जहां विधर्मियों की रोजगार व व्यवसाय की आड़ में उत्तराखण्ड में बढ़ती घुसपैठ पर रोक लगेगी वहीं स्थानीय निवासियों को रोजगार के नए अवसर भी प्राप्त होंगे।
महोदय यह क्षेत्र भारत-चीन-नेपाल की अन्तराष्ट्रीय सीमा से जुड़े होने और संवेदनशील देवबन्द – बरेलवी मजलिसों के प्रभाव क्षेत्र तथा मुरादाबाद-विजनौर जैसे आतंक की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों के प्रभाव में है जो कि जेहादियों द्वारा कथित खुरासान राष्ट्र के अंग के रूप में प्रदर्शित है, इसलिए भी इस क्षेत्र की रक्षा सरकार का प्राथमिक दायित्व है। इस दृष्टि से भी उत्तराखण्ड को धार्मिक क्षेत्र अधिसूचित किया जाना आवश्यक है।
अतः महोदय निवेदन है कि उत्तराखण्ड की एक करोड़ हिन्दू जनता और विश्व भर में फैली करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक देवभूमि उत्तराखण्ड को धार्मिक क्षेत्र अधिसूचित करने का कानून बनाने की महती कृपा करेंगे
दिनाँक- 28 नवम्बर 2017
सादर-
डॉ0 भगवती प्रसाद पुरोहित
रुद्रमहालय
गोपेश्वर, उत्तराखण्ड