कुरूड़ श्री नंदा राजराजेश्वरी नंदाधाम सिद्धपीठ कुरुड़ मंदिर समिति (परगना नंदाक बधांण) का नव गठन, राजजात यात्रा और वार्षिक जात को भव्य और दिव्य स्वरूप देने का संकल्प

✍️हरीश मैखुरी 

श्री नंदा राजराजेश्वरी नंदाधाम सिद्धपीठ कुरुड़ मंदिर समिति (परगना नंदाक बधांण) आज दिनांक-19 जून 2022 दिन-रविवार को मंदिर समिति में नये पदाधिकारियों का चयन किया गया

समिति का उद्देश्य नन्दा देवी राजजात यात्रा प्रति वर्ष होने वाली जात यात्रा को धार्मिक और परम्पराओं के साथ भव्य दिव्य और सुरक्षित बनाना और कुरूड़ नन्दादेवी मंदिर का कुशल संचालन व रखरखाव के साथ ही कार्यक्रम का सनातन धर्म संस्कृति और देवभूमि की परम्पराओं का प्रचार-प्रसार भी है। कुरूड़ श्री नंदा राजराजेश्वरी नंदाधाम सिद्धपीठ कुरुड़ मंदिर समिति (परगना नंदाक बधांण) गठित समिति ने राजजात यात्रा और वार्षिक जात को भव्य और दिव्य स्वरूप देने का संकल्प भी लिया। 

समिति में सर्वसम्मति से अध्यक्ष श्री नरेश प्रसाद गौड़ शाश्त्री जी को चुना गया, उपाध्यक्ष श्री किशोर गौड़ जी, कोंषाध्यक्ष श्री दयाराम गौड़ जी, सचिव श्री सतीश चंद्र गौड़ जी, सह सचिव श्री धनीराम गौड़ जी, संरक्षक श्री योगेश्वर प्रसाद गौड़ जी, संरक्षक श्री अनुसुया प्रसाद गौड़ जी, व अन्य माननीय सदस्य चुने गए, समिति के पदाधिकारियों ने जानकारी दी कि इस वर्ष की जात के लिए उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्करसिंह धामी को भी आमंत्रित किया जायेगा। ब्रेकिंग उत्तराखंड डाट काम न्यूज संस्थान की ओर से मंदिर समिति के नवनियुक्त पदाधिकारियों को बहुत बहुत बधाई एवं नये कार्यकाल की हार्दिक शुभकामनाएं। 

       अवगत करा दें कि नंदाधाम सिद्धपीठ कुरुड़ से प्रत्येक वर्ष अगस्त माह में मां नंदादेवी लोकजात यात्रा का आयोजन होता है मां नंदा की डोली सिद्धपीठ कुरुड़ से अपने पौराणिक पडावों से होते हुए कैलाश के लिए बिदा होती है ईस यात्रा का अंतिम पडाव वांण गांव है नंदा सप्तमी के लिए बेदनी कुंड में जात पुजा के पश्चात देवी कैलाश के लिए बिदा होती है उसके अपरांत डोली बिभिन्न पडावों से होते हुए अपने ननिहाल सिद्धपीठ देवराडा पहुंचती है तत्पश्चात देवी की डोली 6 महिने यहीं परवाश करती है पोष माघ मास में देवी की डोली अपने मायके कुरुड़ उत्तरायणी त्योहारों के लिए पहुंचती है फिर उसी क्रम में सिद्धपीठ कुरुड़ से अगस्त माह में यात्रा का आयोजन माता की कैलाश बिदाई को नंदादेवी लोकजात यात्रा के नाम से जाना जाता है, प्रत्येक 12 वर्ष में राजजात यात्रा भी सिद्धपीठ कुरूड़ से ही प्रारंभ होती है, ईस यात्रा को ऐशिया की सबसे लंबी पेदल यात्रा माना जाता है मां नंदादेवी राजराजेश्वरी की नित नियम की पुजा यात्रा संचालन व मंदिर परिसर में उच्चित व्यवस्था हेतु प्रत्येक पांच वर्ष में देवी के सभी गौड़ पुजारियों द्वारा नई समिति का गठन किया जाता है*।