मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के चार साल को नकारा कैसे जा सकता है?

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के चार साल को नकारा कैसे जा सकता है?

✍️हरीश मैखुरी 

त्रिवेंद्र सिंह रावत एक शानदार और इमानदार पारी खेल कर गये थे । उन्होंने 262 मोटरेबल पुल बनाये, हरिद्वार से नेपाली फार्म और टिहरी में डोबराचांठी पुल का दशकों से रूका काम पूरा कराया, दून मेडिकल कॉलेज की न्यूं ओपी बिल्डिंग का काम पूरा कराया, उत्तराखंड में 11000 किलोमीटर नये मोटरमार्ग बनाये, 260 नये डाक्टरों की नियुक्ति, 128 नयी हाईटेक एम्बूलेंस खरीद, 13 जिलों में 13 नये पर्यटन केन्द्रों का विकास, प्रदेश में 14 नयी झीलों का विकास, चारधाम देवस्थानम बोर्ड, गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी और कमीश्नरी का निर्माण, गैरसैंण भावी राजधानी के लिए 28000 करोड़ का प्रावधान, चारधाम सड़क परियोजना और चारधाम रेल परियोजनाओं के कार्य में तेजी से निर्माण, देहरादून की ऋषिपर्णा नदी को पुनर्जीवित करने का असंभव बीड़ा उठाने का साहस, हर घर जल का नल, जिला व मुख्यालयों से हर विकासखंड तक डबल लेन मोटर मार्गों की घोषणा, महिलाओं के सिर से घास का बोझ हटाने की घोषणा, विधानसभा और सचिवालय से दलालों को बाहर किया, शराब सिंडिकेट भी काफी हदतक तोड़ दिया था, वेदाग चरित्र, बेलाग बातें, दृढ़ संकल्प व्यक्ति और 80% घोषणा पूरी करना रही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की प्रमुख उपलब्धियां रही। ( यह लेख मेरी ११मार्च २०२१ की फेसबुक पोस्ट का अंश है) https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=3877985942236970&id=100000768081899

यही नहीं अपने कार्यकाल में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने नैनीताल में नई परंपरा “घरैकि पहचान, चेलिक नाम” की शुरू की इस में परिवार की सबसे छोटी बेटी के नाम पर उस घर की पट्टिका लगाई, ताकि घर की पहचान बिटिया के नाम पर हो सके। प्रथम चरण में इस नई परंपरा की शुरुवात नैनीताल जिले की नैनीताल नगरपालिका और जिले के सभी विकासखंडों के एक_एक ग्राम पंचायत से की गई, पट्टिका बनाए जाने में एपन कला का इस्तेमाल किया जाना था इससे स्थानीय कला को भी प्रोत्साहन मिला। त्रिवेंद्र सरकार ने महिलाओं को पति की पैतृक संपत्ति में सहखतेदार का अधिकार दिया इससे महिलाओं को स्वरोजगार के लिए बैंक से लोन मिलने लगा और वो स्वावलंबी बनने लगी नैनीताल के विधायक संजीव आर्य ने कहा कि घरैकि पहचान, चेलिक नाम के तहत नैनीताल जनपद में 8000 घरों का चयन कर उनमें बेटी के नाम की पट्टियां लगाई गयी।

लीक से हटकर काम करने वाले मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की सरकार ने सबसे पहला काम देवभूमि में गो हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध के साथ ही उत्तराखंड में गो मांस खरीद बिक्री पर भी रोक लगायी। पण्डित दीनदयाल सहकारिता किसान कल्याण योजना के अंतर्गत एक ही दिन में 25000 किसानों को 3 अरब का ऋण वितरित किया। इस प्रदेशव्यापी कार्यक्रम में नेट बैंकिंग से राज्य के सभी 95 ब्लॉक मुख्यालयों समेत कुल 101 स्थानों को कार्यक्रम से जोड़ा गया। इस उपलबधि में सहकारिता मंत्री डा. धन सिंह रावत का विजन और मार्गदर्शन भी रहा।

इक्कीस वर्ष के उत्तराखंड प्रदेश ने उतार-चढ़ाव झेलते हुए विकास की जो सीढ़ियां चढ़ी उसमें मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल को अनदेखा करना भाजपा के लिए उचित नहीं रहेगा, प्रदेश में महिला कमााण्डो दस्ता तैयार करना, खाद्यान्न उत्पादन में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए दो बार कृषि कर्मण प्रशंसा पुरस्कार से सम्मानित किया गया। गन्ना किसानों के लंबित देयकों का भुगतान कर भी त्रिवेंद्र ने साफ कर दिया है कि जय जवान जय किसान जैसे नारे के उनके लिए महत्वपूर्ण है।
त्रिवेंद्र सिंह रावत के प्रबंधन और नियोजन की बात करें तो नीति आयोग ने जो भारत नवाचार सूचकांक 2019 जारी किया, उसमें उत्तराखंड सर्वश्रेष्ठ तीन राज्यों में शामिल रहा।
वहीं स्वच्छ भारत मिशन की बात करें, तो इसमें बेहतर प्रदर्शन के लिए अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए उत्तराखंड को तब सात पुरस्कार प्राप्त हुए। समाज की बड़ी उपलब्धियों में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान भी है, इस अभियान में प्रदेश के ऊधमसिंह नगर जिले को देश के सर्वश्रेष्ठ 10 जिलों में चुना गया। और अन्य जनपदों की स्थिति भी कई प्रांतों से उत्तम है। मातृत्व मृत्यु दर में सर्वाधिक कमी के लिए देश में देवभूमि राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत हुई। बेस्ट फिल्म फ्रेंडली स्टेट का श्रेय भी त्रिवेंद्र के राज में ही प्रदेश को मिला, जिन क्षेत्रों में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में चल रहे उत्तराखंड को अखिल भारतीय स्तर पर पुरस्कृत किया गया है वे निर्विवाद हैं।

गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाना प्रदेश के सभी लोगों को अटल आयुष्मान योजना का कवच देना, 14 वर्षों से लटके डोबरा चांठी पुल को एक साथ इक्कीस करोड़ रुपये उपलब्ध करा कर तथा पिछले 12 वर्षों से लटके हरिद्वार नेपाली फार्म के बीच के बीच के मोटर पुलों व कोरिडोर को अरबों रूपयों से पूरा कराना। सिमली बेस चिकित्सालय और पुल को एक साथ करोड़ों रुपये की राशि उपलब्ध कराना। रिकार्ड समय में डोईवाला बाईपास बनाना। 

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह के कार्यकाल की मुख्य उपलब्धियों में 13 जिले 13 डेस्टिनेशन प्रत्येक जिले में एक बड़ी झील बनाना तथा रिस्पना नदी को पुनर्जीवित करना भी उनकी उपलब्धियों में है। 

गढ़वाल से कुमाऊं तक त्रिवेंद्र सिंह के कार्यकाल में कुल 12000 किमी सड़कों और 263 नये मोटर पुलों का जाल बिछा। प्रत्येक ब्लाक मुख्यालयों को डेढ़ लाईन मोटर सड़क से जिला मुख्यालय से जोड़ने की कार्य योजना भी उनके कार्यकाल में बनी।

ग्रोथ सेंटर से महिलाओं को सशक्त बनाना, ग्रामीण पर्यटन और होमस्टे से नया आयाम देना, मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना से स्वरोजगार के द्वार खोलना, किसानों को ब्याजमुक्त ऋण उपलब्ध कराना, कोविड काल मे स्वास्थ्य के ढांचे को रिकॉर्ड मजबूती देना,  तपोवन ग्लेशियर विस्फोट की घटना में बििना एक मिनट समय गंवाये रैस्क्यू आप्रेशन कराना। प्रदेश के सभी जिला चिकित्सालयों को आईसीयू वैड वैंटिलेटरों और आक्स्जिन बैड व आक्स्जिन प्लांट उपलब्ध कराना और करीब 400 नये डाक्टर व 1500 नये स्टाफ नर्सिंग की भर्ती की कार्य योजना बनाने वाले 128 नयीं हाईटेक एम्बुलेंस खरीद करना भी त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में संभव हुआ। 

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के साहसिक निर्णयों में देवस्थानम बोर्ड की स्थापना महत्वपूर्ण कदम है। चारधामों के विकास की कोई न कोई ऐजेन्सी अवश्य होनी चाहिए, जो चारधामों में विकास के प्रतिमान स्थापित कर सके, यात्रा व्यवस्था और विकास के कार्य करे संस्कृति, संस्कृत और संस्कृत महाविद्यालयों का उन्नयन करे। चारधाम देवस्थानम बोर्ड का यही उद्देश्य है। हां बोर्ड को मंदिरों की परम्परागत पूजा विधि विधान परम्परागत वृत्तियाँ संस्कृति रीति रिवाज नीति में हस्तक्षेप कदापि नहीं करना चाहिए। विशेष रूप से मंदिरों में वृतिधारकों की नियुक्ति तो बोर्ड कदापि ना करे यह युगों की परम्परागत संस्कृति है, जिससे भारतीय संस्कृति जीवंत और जीवित है, पंडे पुजारियों और वृतिधारकों द्वारा बोर्ड के विरोध का यही आधार है। नहीं तो वक्फबोर्ड हो सकता है तो देवस्थानम् वोर्ड क्यों नहीं होना चाहिए? आश्चर्यजनक रूप से वक्फबोर्ड बनाने वाले दल देवस्थानम बोर्ड के विरोधी हैं। हां संस्कृति और संंस्कृ महाविद्यालयों के लिए त्र्रिवेंद सिंह के काल में अपेेक्षाकृत काम नहीं हो पाया। 

कोरोना काल के बावजूद कुम्भ के निर्माण कार्यों को सफलता पूर्वक संपन्न कराना और कुंभ मेला कराना भी त्रिवेंद्र सिंह रावत और पर्यटन व संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज की जिजीविषा का उदाहरण है

 

भ्रष्टाचार पर सदैव जीरो टालरैंस की नीति रखने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्य मंत्री रहते विधानसभा और सचिवालय में अराजक अवांछित बाहरी संदिग्धों का प्रवेश निषेध करना, मंत्रियों की सिफारिश पर ठेकेदारों को ठेके देने की प्रथा समाप्त कर पारदर्शी आनलाइन टेंडर प्रक्रिया चलाना। एक विशेष लाबी के शराब सिंडिकेट को तोड़ कर आनलाइन पारदर्शिता से आम लोगों को भी इस धन्धे में अवसर उपलब्ध कराना, मेडिशनल भांग की खेती को प्रमोशन कर बंजर पड़ते खेतों को पुनर्जीवित करना, सीमान्त क्षषेत्रों में फलोद्यान को बढ़ावा देने की योजना, राजमार्ग 74 के घोटाले वाले अधिकारियों का सस्पेंड करना आदि त्रिवेंद्र सिंह रावत के उदाहरणीय कार्य रहे।

त्रिवेंद्र सिंह के मुख्यमंत्री रहते भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा की पांचो सीट राज्यसभा की सभी सीट, नगर निकाय की 95 प्रतिशत और पंचायत चुनावों में 80 प्रतिशत सीटों पर चुनाव जीते। जबकि विधानसभा के उपचुनाव भी जीते।
कुल मिलाकर त्रिवेंद्र सिंह एक सज्जन किंतु दमदार नेता रहे। सरल स्वभाव के बावजूद वे कभी दबाव में नहीं आते थे। उनके बेदाग चरित्र बेलाग बातें और विवाद रहित कार्यकाल को अनदेखा नहीं किया जा सकता। सवाल ये भी है कि यदि भारतीय जनता पार्टी त्र्रिवेंद सिंह के कार्यकाल को अनदेेखा करती है तो आगामी विधानसभा चुनावों में फिर क्या उपलब्धि ले कर जायेंगे!! ✍️हरीश मैखुरी