पर्यटन की तस्वीर बदल देंगी गंगावली की गुफाएं

राजेन्द्र पन्त* *रमाकान्त’*

गंगावली क्षेत्रं एवं *सुतारगांव(गंगोलीहाट) गुफाओं की घाटियों के नाम से प्रसिद्ध जनपद पिथौरागढ़ का गंगावली क्षेंत्र हिमालयी भूभाग  विश्व का सर्वश्रेष्ठ़ अद्भूत क्षेत्र  है। मातेश्वरी महाकाली के इस आंचल में मौजूद गुफायें सनातन धर्म का वृहद्  इतिहास समेटे हुए है। पौराणिक महत्व वाले इन प्राकृतिक धरोहरों को तीर्थाटन के रुप में विकसित किया जाए तो आध्यात्मिक रुप से समृद्व गंगावली क्षेत्र की पहचान अपने आप में अद्वीतीय व अतुलनीय होगी। क्योंकि गंगावली की रागनियां अनहद नाद बनकर यहां की घाटियों में मौजूद इन अद्भुत फाओं में गूजतें है। शिव शक्ति की इस पावन स्थली गंगावली के बारे में कहा जाता है कि जैसे  सतीयों में माता पार्वती श्रेष्ठ़ है, देवताओं में विष्णु,सरोवरों में समुद्र,नदियों में गंगा,योगियों में याज्ञवल्क्य,भक्तों में नारद,शिलाओं में वैष्णवी शालग्रामशिला,वनों में वदरीवन,धेनुओं में कामधेनु,मनुष्यों में विप्र,विप्रों में ज्ञानदाता, स्त्रियों में पतिव्रता,प्रियों में पुत्र,पदार्थों में सुवर्ण ,मुनियों में शुकदेव,सर्वज्ञों में व्यास देव ,देशो में भारत,मनुष्यों में राजा,देवताओं में इन्द्र ,वसुओं में कुबेर,पुरियों में कैलाशपुरी,अप्सराओं में रम्भा,गन्धर्वो में तुम्बरू,क्षेत्रों में केदार,व पर्वतों में हिमालय,हिमालय में गंगावली व गंगावली में यहां मौजूद गुफायें श्रेष्ठ़ हैं ?।

जनपद पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट तहसील के अंतर्गत सुतारगाँव में स्थित दाणेश्वर महादेव अलौकिक गुफायें आश्चर्य भरी विराट धरोहर हैं ।सुतारगांव की यह परम पावन गुफा क्षेत्र अपनी अलौकिक छटाओं के लिए जितना प्रसिद्व है उससे कहीं अधिक आध्यात्मिक समृद्वि के लिए प्रसिद्ध है। इन घाटियों की अलौकिक रागनियों में अनहद नाद भरा मधुर संगीत व गीत बसा हुआ है। दाणेश्वर गुफा की झलक  देखने से सनातन संस्कृति के प्रचार-प्रसार में गंगावली के  गौरवशाली इतिहास का अहसास होता है । लोक देवताओं की विरासत की अनेकों गाथाएं इस भूमि से जुड़ी हुई हैं।* ?वर्ष 2014 में इस गाँव में मिली सात मंजिली गुफा इस बात की गवाही देती है, कि ये भूभाग ऋषि मुनियों की तपस्या व आराधना का विशेष केन्द्र रहा है। गुफा की लम्बाई व इसके रहस्य पर अभी गहन शोध व खोज की आवश्यकता है। विषम भौगोलिक स्थिति से घिरा सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ का सुतारगांव भी अपने आप में महांश्चर्य का प्रतीक है*?। लेकिन शासन प्रशासन की बेरुखी व उदासीनता के चलते गुफा  का पता लगने के तीन साल बाद भी गुमनामी के साये में है,पर्यटन एंव तीर्थाटन विभाग इस ओर आखें मूदें बैठा है।यहां तक मार्ग निर्माण की मांग को लेकर ग्रामीणों ने अनेक बार शासन प्रशासन को ज्ञापन सौपें, परन्तु आज तक कोई कार्यवाही न होनें व सरकार की बेरुखी के चलते लोग हताश व उदास हैं। वहीं पर्यटन विभाग को भी हर साल होने वाली लाखों रूपए की आमदनी से हाथ धोना पड़ा है।  पूर्वोत्तर राज्यों में मेघालय की चेरापूंजी नामक स्थान पर मौसमाई गुफाएं वहां की सरकार की आमदनी के स्रोत हैं पाताल भुवनेश्वरी की गुफाओं को भी उत्तराखंड के मानचित्र में स्थान मिल गया लेकिन उत्तराखंड की ही उससे हजारों गुना सुंदर यह  गुफाएं भारी उपेक्षा के शिकार हैं। 

 दुर्गा सप्तशती में वर्णित माँ दुर्गा की तमाम लीलायें इन्हीं पहाड़ियों में सम्पन हुई, शिव की लीलाओं का प्रताप इस क्षेत्र के कण कण में ब्याप्त है,सुतारगांव की दाणेश्वर गुफा हालाकि अभी कुछ वर्ष पूर्व ही प्रकाश में आयी है,लेकिन गुफा के दर्शन के पश्चात् यह ज्ञात होता है,कि यह गुफा सदियों युग का इतिहास अपनें आप में समेटे हुए है,जिस पर गहन शोध व अध्यन की आवश्यकता है।गुफा के भीतर अंकित प्राकृतिक दृश्यावली अचम्भित करनें वाली है।* *?इस गुफा को आप चाहे आध्यात्मिक दृष्टि से देखे या पर्यटन की दृष्टि से हर स्थिति में यह आपका मन मोहनें में पूर्णतया सक्षम है।धर्म विशेषज्ञों का मानना है शायद पृथ्वी के चरित्र के साथ ही गुफा की गाथा का चरित्र हो।क्योकिं गंगावली की घाटियों में गुफाओं की लम्बी श्वखंला मौजूद है।कुछ प्रकाशित है,तो कुछ गुमनामी के साये में सिमटी हुई है।निरन्तर प्रकाश में आ रही गुफायें भी पुरातन पहचान से कोसों दूर है*?।उदराहण स्वरुप बीते दशक में प्रकाश में आयी भूलेश्वर गुफा पहचान की दृष्टि से भूल भूलल्या में खोई हुई है।ऐसी अनेकों तमाम गुफायें यहां मौजूद है जो धर्म व आध्यात्म की दृष्टि से विराट महत्व का अतुलनीय भण्डार है।लेकिन तीर्थाटन के मानचित्र से कोसों दूर है।दाणेश्वर गुफा इन्हीं मैं से एक है।जो मार्ग निर्माण के अभाव में उपेक्षा के दशं को झेल रही है।तीर्थाटन की बदहाली की दास्तां बयां करती सुतारगांव की इस गुफा की ओर अभी लोगों का ध्यान ही नही गया है।यदि तीर्थ स्थलों को ईमानदारी के साथ विकसित करनें की कारगर योजना होती तो पिछले तीन सालों में यह गुफा प्रसिद्धि के सिखर को पार कर गयी होती लेकिन अफसोच जनक बात यह है कि गुफा तक सुविधाजनक तरीके से पहुंचने के लिए तीन किलोमीटर सड़क तक नहीं बन पाई है।गौरतलब बात यह भी है।कि * *?स्कंदपुराण के मानस खण्ड़ में वर्णित तमाम प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष गुफाये सनातन संस्कृति की महान् धरोहरें कही गयी है। मानस खण्ड़ में मंगलाचरण के पश्चात् इस बात का स्पष्ट संकेत मिलता है,कि शिव व शक्ति का युगल महात्म्य यहां सर्वत्र फैला हुआ है’रुद्राख्यानमिद् पवित्रतंम्तुलम्* *श्लोक से इस ओर ईशारा किया गया है।इस गुफा के भीतर एक ऐसा दुर्लभ दृश्य देखनें को मिलता है,जो शायद ही और कहीं दृष्टिगोचर हो अलौकिक दृश्य में माता पार्वती भगवान शिव के गले में वरमाला डाल रही है* *।यह अनुपम दृश्य युग युगान्तर के इतिहास को प्रतिबिम्बत कर गुफा की पौराणिकता को प्रबल प्रमाण देती है।एक से बढ़कर एक महान् आश्चर्यों के प्रतीक वाले दृश्य गुप्त इतिहास का दर्शन कराते हैं । शेषनाग जी की आकृति,गणेश जी की पिण्ड़ी,माता पार्वती,भगवान शिव के साथ शिव शक्ति का अलौकिक स्वरूप,एक साधु की तपस्यारतमूर्ति सहित अनेक दुर्लभ दृश्य हर मंजिल पर अंकित भांति भांति के प्राकृतिक चित्र यहां आने  वाले आगन्तुकों को बरबस ही अपनी ओर खीचं लेती हैं ।पिण्ड़ीस्वरूप तमाम आकृतियां महान् आस्थाओं के महान् धरोहर के रुप में दाणेश्वर गुफा में देखनें को मिलती है*।कैलाश पर्वत का महात्म्य पुराणों में विस्तार के साथ वर्णित है।यात्रा पथ में अनेकों दुर्लभ गुफाओं का जिक्र आया है एक के बाद एक प्रकाश में आ रही गुफायें मानसखण्ड़ की प्रमाणिका को सार्थक सिद्व कर रही है।फिर भी सरकारी तन्त्र गंगावली की गुफाओं को विकसित करनें की दिशा में आखें बन्द करके बैठा हुआ है।इन गुफाओं के दर्शन के लिए गुफा दर्शन जैसी कोई सकारात्मक योजना पर्यटन एंव तीर्थाटन विभाग के पास नही है। जबकि * *?गंगोलीहाट गुफाओं के लिये पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त हैं। इन गुफाओं में पाताल भुवनेश्वर,ही एक ऐसी गुफा है।जो कुछ हद तक जनमानस में प्रसिद्ध है।इसके अलावाभृगुतम्ब,मुक्तेश्वर, शैलेश्वर, बाणेश्व कृतेश्वर, भोलेश्वर, सीणकोटेश्वर, कोटेश्वर, जैसे अनेकों गुफाएं गुमनामी के साये में बदहाल होकर गुम है।ये तमाम गुफायें पूरे विश्व में इस क्षेत्र को विशेष पहचान दिलानें के साथ साथ तीर्थाटन का प्रमुख केन्द्र बनकर रोजगार के साधन शुलभ करा सकती है*?

वर्ष 2014 में स्वप्न के आधार पर खोजी ग्ई दाणेश्वर गुफा जो कि सुतारगांव में है। इस गुफा को खोजनें का श्रेय शंकर सिंह नामक व्यक्ति को जाता है।जो समीपस्त स्थित धारापानी गांव के पूर्व सैनिक है। 2014 के मई महीनें में प्रकाश में आयी यह गुफा तहसील मुख्यालय से लगभग छह किमी की दूरी पर दाणाकोट पहाड़ी में मिली जिसे डाणाकोट के नाम से भी पुकारा जाता है,अब इस गुफा को दाणेश्वर,डाणेश्वर,दानेश्वर आदि नाम से प्रचलित किये जाने के प्रयास जारी है।सात मंजिली गुफा के भीतर विभिन्न देवी देवताओं की आकृतियां स्थानीय लोगों की आस्था का केन्द्र बनी हुई है*वर्ष2014 में इस गुफा में सर्वप्रथम शंकर सिंह बोरा ने प्रवेश किया उन्हें इस गुफा के दर्शन अक्सर स्वप्न में होते रहते थे।शिव प्रेरणा से उन्होनें मोहन भट्ट,देवेन्द्र भट्ट सहित अनेकों ग्रामीणों को लेकर डाणाकोट के जगंल में जाकर इस गुफा को खोजा गुफा के दर्शन से सभी धन्य हो उठे शिव परिवार के अतिरिक्त राम,लक्ष्मण,सीता आदि की आकृतियों के भी दर्शन लोगों ने किये गुफा के भीतर शिव की आकृति पर गाय के थनों से गिरती पानी की बूदें आस्था व भक्ति का अनोखा संगम है।दशाईथल से भगौरा बैण्ड़,पैनापानी,बलीगांव होते हुए यहां सुतारगांव पहुंचकर लोग जितनी शातिं महसूस करते है।उससे ज्यादा कड़वे अनुभव लेकर यहां से लेकर लौटते है।जिसका सबसे बड़ा कारण मार्ग की दयनीय दशा है।कभी लम्बी चौड़ी बसासत वाले सुतारगाँव में अब मात्र लगभग तीस पैतीस परिवार ही निवास करते है।शेष जन यहां से पलायन कर चुके है।उत्तराखण्ड़ पर्यटन विभाग ने गंगावली क्षेत्रं की घाटियों को नजरअंदाज कर रक्खा है।जिसका जीता जागता उदाहरण डाणेश्वर महादेव की यह गुफा है।जो एक अदद मार्ग निर्माण को तरस गयी है।यही नही विश्व प्रसिद्व कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग जैसै कठिन मार्ग को सुविधाजनक बनानें की दिशा में भी कोई सकारात्मक प्रयास शासन प्रशासनिक स्तर पर यहां नजर नहीं आते है।पर्यटकों व तीर्थयात्रियों को आकर्षित करने का प्रयास भी क्रियाशून्य ही नजर आता है।पर्यटक आवास गृहों के हालात भी ज्यादा ठीक नही दिखतें है।खासतौर पर यात्रा पथों की बदहाली से पर्यटन एंव तीर्थाटन की भागीदारी को यहां भारी धक्का लगा है।