सावरकर को वीर की उपाधि गांधी ने दी थी और सावरकर ने 1914 में सैल्यूलर जेल में बंद सभी निर्दोष बंदियों के लिए सजा समाप्त किए जाने की मांग की थी न कि केवल अपनी लेकिन क्रूर अंगेजों ने उन्हें आन्दोलन में सक्रिय होने के डर से सजा पूरी होने पर 1921 में छोड़ा

स्वातंत्र्यवीर सावरकर की कालापानी में सैल्यूलर जेल में दो बार आजीवन कारावास से लेकर संसार की श्रेष्ठ संसद तक की गैलरी तक के वृतांत पर एक विहंगम दृष्टि 

असल में, कांग्रेस के साथ एक बयान को लेकर विवाद में उलझ जाने के बाद सावरकर को कांग्रेस ने ब्लैकलिस्ट कर दिया था और हर जगह उनका विरोध किया जाता था. यह 1936 का समय था. ऐसे में मशहूर पत्रकार, शिक्षाविद, लेखक, कवि और नाटक व फिल्म कलाकार पीके अत्रे ने सावरकर का साथ देने का मन बनाया क्योंकि वह नौजवानी की उम्र से सावरकर के किस्से सुनते रहे थे और उनके बड़े प्रशंसक थे. अत्रे के बारे में आप कहानी में और भी बहुत कुछ जानेंगे। पुणे के एक कार्यक्रम में मौजूद सावरकर की यह तस्वीर हिस्ट्रीअंडरयोरफीट ब्लॉग पर सुरक्षित है। कैसे दिया गया ये चर्चित टाइटल?

अत्रे ने पुणे में अपने बालमोहन थिएटर के कार्यक्रम के तहत सावरकर के लिए एक स्वागत कार्यक्रम आयोजित किया. इस कार्यक्रम को लेकर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने सावरकर के खिलाफ पर्चे बांटे और धमकी दी कि वे सावरकर को काले झंडे दिखाएंगे. इस विरोध के बावजूद हज़ारों लोग जुटे और सावरकर का स्वागत कार्यक्रम संपन्न हुआ, जिसमें अत्रे ने वो टाइटल दिया, जो आज तक चर्चित है.

‘जो काला पानी से नहीं डरा, काले झंडों से क्या डरेगा?’

सावरकर के विरोध में कांग्रेसी कार्यकर्ता कार्यक्रम के बाहर हंगामा कर रहे थे और अत्रे ने कार्यक्रम में अपने भाषण में सावरकर को निडर करार देते हुए कह दिया कि काले झंडों से वो आदमी नहीं डरेगा, जो काला पानी की सज़ा तक से नहीं डरा. इसके साथ ही, अत्रे ने सावरकर को उपाधि दी ‘स्वातंत्र्यवीर’. यही उपाधि बाद में सिर्फ ‘वीर’ टाइटल हो गई और सावरकर के नाम के साथ जुड़ गई.

‘सावरकर ने जीत लिया था पुणे’

अत्रे के भाषण और उपाधि दिए जाने के बाद तालियों से सभागार गूंज उठा और उसके बाद करीब डेढ़ घंटे तक सावरकर ने ऐसा ज़ोरदार भाषण दिया कि अत्रे ने ही बाद में लिखा कि उस भाषण का करिश्मा था कि ‘सावरकर ने पुणे फतह कर लिया था’. असल में, यह कांग्रेस के विरोध का जवाब देकर सावरकर की लोकप्रियता को ज़ाहिर करने का कदम था.

पहली कि बात यह कि सावरकर को गांधी भी वीर सावरकर कहते थे इसलिए यदि कोई उनके वीर होने का मजाक बनाये तो वे अपने (बापू) का मजाक बना रहे हैं। 

दूसरी चीज की गांधी से लेकर इंदिरा तक ने सावरकर को राष्ट्रवादी और भारत की वीर सन्तान ही कहा है और इंदिरा ने सावरकर पर डाक टिकट से लेकर अपने पर्सनल खाते से 11000 रुपये उनके ट्रष्ट को डोनेट किये थे।

तीसरी चीज, जिस माफी की बात होती है वो सावरकर ने सभी राजनीतिक बंदी के लिए लिखी थी कि सबको आम माफी (General Amnesty) आम माफी दे दी जाए। केवल खुद के लिए नहीं।

चौथा, पहली चिट्ठी इस सम्बंध में 1914 में लिखी गयी जबकि सावरकर को 1921 में छोड़ा गया जिसका मतलब की माफी जैसा कुछ नही मिला था और छोड़ने के बाद भी उन्हें काला पानी से रत्नागिरी लाकर हाउस अरेस्ट ही रखा था काफी समय तक।

पांचवा, यह चिट्ठी भी काला पानी मे मिलने वाली यातनाएं देखकर सावरकर ने सबके बदले लिखी थी और यह बात नेहरू खानदान के इटैलियन गुलाम इसलिए नही समझ सकते कि उन्हें लगता है हर कोई नेहरू की तरह फाइव स्टार जेल भेजा जाता होगा।

छठा, आप कितने ही बड़े क्रांतिकारी हो… लीगल प्रोसेस तो आपको तब भी यही करना था और आज भी आप यदि जेल गए तो एक प्रक्रिया से ही बाहर आओगे, अन्यथा नही। इसलिए किसी कोर्ट को होनोरेबल कह देने या I beg to differ or parden जैसे अंग्रेजी में लिखे शब्दों के beg को भीख अर्थ में लेने से आप अपना ही पढ़ा लिखा होना दर्शा रहे होते हैं।

सातवां, नेहरू ने जीवन मे एक बार सामान्य जेल में बिताए वो भी 12 दिन और उसके बाद उसके पिता मोतीलाल ने लिखित में माफी मांग यह कहा था कि मेरा बेटा दुबारा पटियाला स्टेट में नही आएगा। ऐसे खानदान के चप्पलचाट लोग जब 2 आजीवन काला पानी कारावास के व्यक्ति पर प्रश्न उठाते हैं तो नेहरू की आत्मा भी शर्म से पानी हो जाती होगी।

वीर सावरकर ही वो थे जिन्होंने बोस से कहा था कि आप जापान जाइये जहां रास बिहारी बोस ने आजाद हिंद फौज बनाई है। दरअसल रास बिहारी जापानी हिन्द महासभा के अध्यक्ष थे और उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष सावरकर थे। ये उन सुतियों को पता होना चाहिए जो कहते हैं कि जेल से छूटने के बाद सावरकर ने आजादी की लड़ाई छोड़ दी थी।

और जापान पहुंच कर फिर रासबिहारी बोस ने आजाद हिंद फौज की कमान सुभाष बोस को दे दी। उसके बाद क्या हुआ और आजादी किसने दिलवाई ये आपको पता ही है।

यही हिन्द महासभा से श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी थे जिन्होंने जनसंघ की स्थापना की थी जिसे आज भाजपा के नाम से जाना जाता है और जिनकी सत्ता इस समय देश मे है। आज उन्ही वीर सावरकर की जयंती पर आजाद भारत की सनातन संसद को मोदी जी ने देश को समर्पित किया है।

समय लगा लेकिन असल नायक जिन्हें अंग्रेजो के पाले कांग्रेसियो ने छुपाकर रखा और उनकी सच्चाई बिल्कुल उल्टी ही पढ़ाई और खुद को आजादी का नायक बता दिया, अब उनकी असलियत एक एक करकर देश के सामने लाई जा रही है। आज जो सेंगोल स्थापित हुआ है उसका छुपाया इतिहास तो था ही लेकिन उस इतिहास में एक चीज और थी कि नेहरू को सत्ता का हस्तांतरण हुआ था नाकि आजादी इन लोगों ने छीनी थी जिसकी बात हर क्रांतिकारी करता था। ये भी एक वजह थी कि सेंगोल छुपा दो क्योंकि ये पोल खोलेगा।

असलियत ये थी कि कांग्रेसियो ने कभी आजादी मांगी ही नहीं। हर समय ये डोमीनियन स्टेट मांगा करते थे। इनका पूर्ण स्वराज सलब्स एक नौटंकी थी। खुद गांधी का तिरंगा सर्च कर लो इनकी अंग्रेजो की गुलामी दिख जाएगी। इनका सारा ड्रामा पब्लिक को दूसरी तरफ नही जाने देने के लिए था जब आजादी छीनने के लिए बोस ने फौज भारत के लिए रवाना कर दी और इन्हें लगा कि इनकी क्रेडिबिलिटी खत्म हो जाएगी तो इन्होंने फिर से “भारत छोड़ो” का ड्रामा शुरू किया जो उसी साल फ्लॉप भी हो गया।

अंततः बोस द्वारा सेना भारत मे लाना और सावरकर के वो लोग (स्लीपर सेल) जो आर्मी में थे, उनका विद्रोह करना… अंग्रेजो को भागने को मजबूर किया और ऐसी परिस्थिति में उन्होंने उन्हें सत्ता दे दी जो उनके ही पैदा किये काले अंग्रेज थे।

यही वजह थी कि नेहरू ने हमेशा बोस से नफरत की। इसी कारण बोस की नेहरू ने आजादी के बाद भी जासूसी करवाई जबकि दूसरी तरफ कहा कि वो मर चुके हैं। यही सावरकर के साथ किया जब गांधी वध पर उनपर केस किये पर वहां भी कुछ नही साबित कर सके। आरएसएस जो भी हिन्दू महासभा की ही करीबी थी उसपर भी बैन लगाने की कोशिश की।

हर कोशिश की कि सबको खत्म और गायब कर दो लेकिन हर बार सत्य जीतकर बाहर आया। आज भी उसी नाकामी की खीज कांग्रेसियों को है जो नफरत के साथ इनके अंदर से बाहर आती रहती है। 

विनायक दामोदर सावरकर एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने अपने चिंतन, लेखन और ओजस्वी वक्ता होने की वजह से ब्रिटिश शासन को हिला डाला था। भारत की स्वतंत्रता में सावरकर का योगदान अमूल्य रहा है। उन्होंने देश के भीतर और बाहर रहते हुए आजादी के लिए केवल क्रांतिकारी गतिविधियों को चलाया और कई अन्‍यों के लिए प्रेरणास्रोत भी बने। उन्‍हें भारतीय इतिहास में हिंदुत्व तथा राष्ट्रवाद के विस्तार के लिए जाना जाता है। सावरकर को अण्डमान निकोबार द्वीप समूह स्थित सैल्यूलर जेल में यातनाएं दी गईं।