वनों की भीषण आग के पीछे किसका हाथ

डॉ हरीश मैखुरी

इन दिनों उत्तराखंड के सभी जिले आग की चपेट में हैं। हर साल आग का तमाशा बनता है और कुछ होता नहीं है। पहले ग्रामीणों के अपने जंगल हुआ करते थे जिसे गांव पंचायत की जमीन कहते थे इस पर पेड़ लगे रहते थे आग पत्रोल हुआ करते थे उन्हें ₹25 महीना तनखा मिलती थी और वह आग बुझाने का काम करते थे। अब जंगल सारे सरकार ने हड़प लिए हैं ग्रामीणों की जो निर्भरता जंगलों पर थी वह समाप्त हो गई है, इसलिए ग्रामीणों का जंगलों से मोहभंग हो गया साथ ही जो वृक्षारोपण का टारगेट वन विभाग को दिया जाता है वह आज तक कभी पूरा नहीं हुआ जो कुछ पौधे लगदी गए वह पानी और देखरेख के अभाव में सूख जाते हैं उसी टारगेट को कागजों में फिट करने के लिए कभी कभार बन विभाग के अधिकारी भी वनाग्नि में परोक्ष रूप से शरीक रहते हैं वनों में आग लगने का सबसे बड़ा कारण चीड़ के पेड़ तो है ही साथ ही ऐसे पेड़ों का सफाया होना भी है जिनकी वजह से आग नहीं लगती थी देहरादून शहर में पेड़ सुखाने वाला गिरोह सक्रिय है अंग्रेजो के लगाए हुए पेड़ तेजी से सुखाने का काम यहां कई गिरोह पेड़ों की जड़ों में दवाई डाल कर कर रहे हैं कॉलोनाइजर भी पेड़ों को काटकर चैटिंग कर रहे हैं जिसकी वजह से देहरादून शहर के पेड़ तेजी से समाप्त हो रहे हैं यही हाल हल्द्वानी हरिद्वार पिथौरागढ़ अल्मोड़ा और पौड़ी शहर के भी हैं यहां पर तेजी से पेड़ों का पतन हुआ है इसकी वजह से उत्तराखंड का तापमान बढ़ गया है बारिश कम हो गई है,  मैन मेड आपदा की वजह से उत्तराखंड में वन अग्नि की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं इससे वन्यजीवों को भी भारी नुकसान हुआ है उसके अलावा जो जंगली छोटे-छोटे क्रिएचर हैं जो प्रकृति का इकोसिस्टम है वह खत्म हुआ है जल स्रोत सूखे हैं और जो नन्हे पेड़ उगने वाले थे वह खत्म हो गए हैं जंगल की आग का मतलब एक पूरा इकोसिस्टम जंगलों की कैनोपी वन्य जीव जंतु पशु पक्षियों के अंडे बच्चे यह सभी समाप्त हो जाते हैं सुझाव यह है कि आग लगाने वालों पर पैनी निगाह रखी जाए और उनको जबरदस्त जुर्माना और जेल की सजा हो पुरानी व्यवस्था आग पथरोल रखने की थी उसे अब ₹500 महीना देकर साल भर के लिए रखा जाए ताकि कम से कम वह आग की सूचना यथा समय दे सके और आग लगाने वालों पर अंकुश रख सके। पहाड़ों की चोटियों पर डांडा कुल और खालों का निर्माण किया जाए ताकि वहां बरसात में पानी जमा होता रहे और पूरे पहाड़ पर नमी बनी रहे नमी की वजह से आग नहीं लगती है कॉलोनी को सबसे पहले 5 साल तक अपनी सड़क पर जिंदा पेड़ दिखाने होंगे तब वह प्लॉटिंग कर सकेगा ऐसा नियम बनना चाहिए उसके अलावा प्रत्येक मकान पर कम से कम 2 पेड़ अवश्य रुप से लगने चाहिए सभी शहरों में मकान बनाने की अनुमति मिली कोई भी गाड़ी का गैराज जमीन के अंदर से पानी खींच कर गाड़ी नहीं दे सके इसके लिए सख्त नियम बने। अभी तो हम आग बुझाने में असमर्थ हैं और पूरी तरह से बारीस पर आस लगाये बैठे हैं।  इस मुद्दे पर वन मंत्री हरक सिंह रावत से जब बात की गई तो उनका कहना था कि वह आग के मामले पर अधिकारियों के संपर्क में हैं अल्मोड़ा और पौड़ी के डीएफओ ने बताया कि उनके पास आग बुझाने हेतु पर्याप्त संसाधनों का अभाव है इसी तरह की लापरवाही अन्य जनपदों के पदाधिकारियों ने भी दिखाई है। यह खतरनाक चुप्पी वनों के लिए भी काफी नुकसानदेह है चमोली के जिला अधिकारी आशीष जोशी ने बनाग्नि पर जरूर एक्शन लेते हुए आग लगाने  वालों को जेल भेजने की चेतावनी दी है उनके अनुसार वनाग्नि दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए इन्सीडेंट रिसंपोस सिस्टम (आईआरएस) के सभी संबधित अधिकारियों की बैठक लेते हुए वनाग्नि से निपटने के लिए फायर फाइटिंग प्लान के तहत कार्य करने के निर्देश दिये। उन्होंने कहा कि कोशिश ये रहे कि पहले तो जंगलों में आग न लगे और आग लग भी जाय तो समय से उसको रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाये जाय, ताकि आग फैल न सके। उन्होंने कहा कि जंगलों में आग लगती है, परन्तु फैलती वन विभाग की लापरवाही से है।

जिलाधिकारी ने कहा कि वनों में आग लगने पर वन विभाग द्वारा कन्ट्रोल रूम को समय से सूचना नही दी जा रही है, जो वन विभाग की उदासीनता व घोर लापरवाही को दर्शाता है। उन्होंने वनाधिकारियों को फटकार लगाते हुए अपनी कार्यप्रणाली में सुधार लाने तथा वनाग्नि की तत्काल कन्ट्रोल रूम को सूचना उपलब्ध कराने, फायर की घटनाओं पर निरन्तर निगरानी रखने तथा आग लगाने वाले लागों की धरपकड कर एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश दिये।  
जिलाधिकारी ने अब तक हुई वनाग्नि घटनाओं की समीक्षा करते हुए सभी संवेदनशील एरिया में कैमरे लगाने, क्रू-स्टेशन कार्मिकों को अलर्ट रखने तथा संवेदनशील एरिया के ग्राम प्रधानों व गांवों में गठित राहत एवं बचाव टीमों से संपर्क रखने के निर्देश दिये। ताकि वनाग्नि की रोकने में रिसंपोस टाईम कम से कम रहे। उन्होंने वनो में बनाये गये फायर कन्ट्रोल लाइनों एवं आसपास क्षेत्र की फिर से साफ-सफाई कराने के भी निर्देश दिये। सेटलाइट इमेज से वनाग्नि पर निगरानी रखने, कैमरे व फायर फाइटिंग उपकरणों की तत्काल खरीद करने, आग बुझाने के लिए कम से कम 100 मीटर तक पानी फेकनें वाले पम्पों की खरीद हेतु आपदा एवं वन विभाग को प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिये “

सच्चिदान्द सेमवाल लिखते हैं कि  ” शास्त्रों के अनुसार भी  जंगल में आग लगाने वालों  निश्चित रूप से नरक भोगते हैं। 

इस संसार में क्या करने और क्या न करने के लिए शास्त्र प्रमाण हैं। यहाँ भी नीति सम्बन्धी एक पञ्चतन्त्र का एक श्लोक प्रस्तुत है-
वृक्षान् क्षित्वा पशून् हत्वा कृत्वा रुधिर कर्दमम्।
यदि येन गम्यते स्वर्गं नरकं केन गम्यते??
भावार्थ- वृक्षों को काटने और पशुओं को मारने वाले को ही यदि स्वर्ग होगा तो फिर नरक किसको होगा?
ज्ञातव्य है कि जंगल में आग लगाने से वृक्ष व प्राणी दोनों की हिंसा होती है। अकारण वृक्ष काटना भी अपराध है”