चंद्रयान ३की सफलता जहां संसार में नये भारत की अमिट गौरव गाथा लिख रही है, वहीं हर वर्ष भारत सरकार का अरबों रूपये ठिकाने लगा कर भी शून्य उपादेयता वाले विभागों को इसरो ने दर्पण भी दिखा दिया

 ✍️हरीश मैखुरी

चंद्रयान ३की सफलता  जहां संसार में नये भारत की अमिट गौरव गाथा लिख रही है, वहीं हर वर्ष भारत सरकार का अरबों रूपये ठिकाने लगा कर भी शून्य उपादेयता (नानपर्फार्मिंगन्यस)वाले विभागों के मुंह पर इसरो का झन्नाटेदार तमाचा भी पड़ा है।

बड़ा समाचार ये है कि Russia’s Luna-25: फेल हुआ रूस का मिशन मून, चंद्रमा से टकराकर क्रैश हुआ स्पेसक्राफ्ट लूना-25, जबकि 23 अगस्त की शाम 6.04 बजे चंद्रमा पर उतरेगा चंद्रयान-3… ISRO ने लैंडिंग समय की घोषणा भी कर दी है। 

ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो चन्द्रयान-1 (वर्ष-2008) की सफलता के स्वर्णिम इतिहास पर चन्द्रयान-2 (वर्ष-2019) की नाकामी के धरातल पर चन्द्रयान-3 (वर्ष-2023) की चन्द्रमा पर सफल लैंडिंग पर भारत के वैज्ञानिकों को खड़े होने, गिरकर व फिर खड़े होने होने के पराक्रम पर अधिकांश लोगों की तरह हमारी  शुभकामनाएं और बधाई कई राजनेताओं, मंत्रियों, अधिकारियों, बाबू वाले सरकारी वैज्ञानिकों इत्यादि-इत्यादि के मन में नये घोटालों (2G स्पैक्ट्रम जैसे) व सत्ता पाने का रास्ता बनाने वालों की तंद्रा इससे टूट जायेगी, क्योंकि साइंटिफिक-एनालिसिस राजनीति के चश्में से विज्ञान को नहीं देखता और सोशियल-इंजनियरिंग जैसे नये शब्दों की स्थापना से राजनैतिक-विज्ञान के नये पाठयक्रम को शुरू कर देश की नई पीढी को अंधकार के गर्त में धकेल कर कर विज्ञान के माथे पर अभिशाप शब्द को धो डाला है। पता इतनी बड़ी उपलब्धि के बाद अब वैज्ञानिकों की आकस्मिक रूप से मृत्यु भी नहीं होती ये नया भारत है। हम तो टेलिस्कोप के माध्यम से माइक्रोस्कोप द्वारा आकार को गुणात्मक रूप से बडा कर देने के गुण से विज्ञान के सिद्धांतों का उपयोग कर राजनीति की व्याख्या व विश्लेषण करते हैं। पहला ये कि चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुव पर पहले पहुंचने के चक्कर में रूस द्वारा भारत के चन्द्रयान-3 के समानांतर भेजा गया LUNA-25 चन्द्रमा के सरफेस से टकराकर नष्ट हो गया है, ये भी बहुत दुखद है। 

आपको यह लगता है की यह आम नागरिक, नौकरी या व्यवसायिक लोगो को छोड़कर यह प्रसन्नता का एक बहुत बड़ा अवसर है जबकि सच्चाई यह है की यह भारत के राजनेताओं, उच्च संवैधानिक पदो पर आसीन लोगों, मंत्रियो, सांसदों, विधायको व सरकारी पत्रजातों में कहे जाने वाले इनके सलाहकारों के गाल पर जबरदस्त तमाचा है। जिसे यह निर्लज्जता के साथ बिना डकार लिए हजम करने का प्रयास करके अपने अपने दलो की देहली से बाहर निकल कर वैज्ञानिकों को सतही बधाई दे रहे हैं ताकि जनता इनके चहरे पर बनावटी मुस्कान व रटी रटाई बयानबाजी के बीच इनके गाल पर छपे अंगुलियोंनुमा राकेट के निशान न देख पाये। 

अब आप स्वयं विचार करें इतनी दूर चन्द्रमा पर अब तक दूसरे देशों के 24 इंसान कदम रख चुके हैं वहां न हवा, पानी का पता है और न कोई इन्सान, जानवर, जीव-जंतु, पेड़-पौधें, जीवाणु-विषाणु, शैवाल-कवक का पता है, प्रभु का ऐसा रूप जो विमान का दरवाजा खोल मदद कर दें और आधे के करीबन सरकारी टैक्स की कीमत वाला पैट्रोल-डीजल (ईंधन) विमान में भर दे। वहा न कोई x , y , z सिक्योरिटी वाले ट्रेंड आधुनिक हथियार बंद सिपाही है जो प्रत्येक पल आपके आगे शेर की टोपी लगाकर सीना फुलाये ढाल बनकर खड़े रहे। आख़िरकार वे भी हमारे जैसे जीवंत मनुष्य हैं जो पांच वर्षों के कम समय से लगातार प्रतिदिन घंटों तक नौकरी करके चन्द्रयान-3 को चन्द्रमा की धरती पर सफलतापूर्वक उतारने का काम करा रहे हैं। उठ कर गिरना गिर कर उठना कम संसाधनों में इसरो दो वर्षों में ही चांद पर पंहुच सकता है तो हजारों करोड़ रुपये डकारने वाले सरकारी विभाग क्या केवल पैंसा ठिकाने लगाने के लिए बने हैं!! वे क्यों नहीं ऐसी ही परफार्मेंस देते? चांद पर मत जाओ धरती पर ही वो कार्य अच्छे से करो जिसके लिए पैंसा मिला है। बिहार में १७ हजार करोड़ का पुल बनते बनते ही धड़ाम से गिर गया। उस पर सीमेंट सरिया की जगह केवल बालू लगा था। पर मजाल क्या ईडी छापे मारे पुलिस एफआईआर लिखे कोई कोर्ट स्वत संज्ञान ले यानी पूरी दाल ही काली है। 

हर दिन की पारिवारिक, सामाजिक एवं धार्मिक विषम परिस्तिथियों के बाद भी वैज्ञानिक जमीन पर एक जगह बैठकर ऐसी व्यवस्था बनाकर की बोर्ड और माउस से सबकुछ नियन्त्रित कर लेते है। जबकि इस धरती के भू भाग के जिम्मेदार लोग सब कुछ होते हुये कई वर्षो में एक व्यवस्था भी नहीं बना सके जिसके माध्यम से देश में अपराधिक, सामाजिक समस्या खत्म हो सके व दैनिक जीवन के काम को छोडो व्यवस्था के कारण उत्पन हुये सरकारी कागजी काम भी सरलता से हो सके!! 

अब यदि आप भी वैज्ञानिको को बधाई देना भूल गए है तो कोई बात नहीं हम आपकी तरफ से बधाई दे देंगे यदि आप दिल से बधाई दे रहे हैं तो थोड़ा बहुत धन भी दें ताकि एक बड़ा आयोजन करके उनको अच्छी सुगंध वाली 1000 रुपये वाले फूलों की माला बनाकर पनायेंगे। आप तो आमंत्रित है ही तालियों की गूंज कहा से आएगी! यदि कर्मचारी हैं तो बिना बुलाये आना चाहिए। 

शैलेन्द्र विरानी युवा वैज्ञानिक देश में हर व्यक्तिगत पेटेंट धारक के लिए राष्ट्रीय अवार्ड व 5 – 5 लाख की धनराशि आरंभ कराने वाले 350 वर्ष पुरानी आधुनिक निडिल आधारित डिस्पोजल प्लास्टिक वाली चिकित्सा विज्ञान में भारत को अग्रणी बनाने वाले। चलो इनको नहीं जानते तो नित्य देश हित में १८ घंटे कार्य करने वाले पल पल देश का हित क्षण क्षण विकास के नये आयाम रचने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी या नीतिन गडकरी या रतन टाटा से आदि किसी से तो प्रेरणा लो। 

     धैर्य व समर्पित भाव से कार्य करने वाला चाहे व्यक्ति हो या संस्थान अपने इच्छानुसार सब कुछ प्राप्त कर सकता है यही संदेश है सोच सही तो, जीवन सही।