उत्तराखंड राज्य के पुरोधा इंद्रमणि बडोनी को श्रधांजलि

ब्रेकिंग उत्तराखंड देहरादून – इन्द्रमणि बडोनी: उत्तराखंड के गाँधी, राज्य निर्माण के पुरोधा, राज्य आन्दोलनकारी, संस्कृतिकर्मी और पूर्व विधायक  इन्द्रमणि बडोनी की 93वीं जयंती पर राज्य भर में उन्हें याद कर श्रद्धासुमन अर्पित किए गये । (Indramani Badoni) का जन्म 24 दिसम्बर 1925 को तत्कालीन टिहरी रियासत के भिलगना ब्लॉक के अखोड़ी गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम पं. सुरेशानन्द बडोनी था। बडोनी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई और अपनी माध्यमिक व उच्च शिक्षा के लिए नैनीताल और देहरादून चले गये। शिक्षा प्राप्ति के बाद अल्पायु 19 वर्ष में ही उनका विवाह सुरजी देवी से हो गया।

बडोनी, डी.ए.वी. कॉलेज देहरादून से स्नातक की डिग्री लेने के बाद आजीविका की तलाश में बम्बई चले गये। लेकिन स्वास्थ्य खराब होने की वजह से उन्हें वापस गाँव लौटना पड़ा। तब उन्होंने अखोड़ी गाँव और जखोली ब्लाक को अपना कार्यक्षेत्र बना लिया।
सन् 1953 में गांधी जी की शिष्या मीरा बेन टिहरी के गाँवों के भ्रमण पर थीं। जब अखोड़ी पहुँच कर उन्होंने किसी पढ़े-लिखे आदमी से ग्रामोत्थान की बात करनी चाही तो गाँव में बडोनी जी के अलावा कोई पढ़ा-लिखा नहीं था। मीरा बेन की प्रेरणा से ही इन्द्रमणि बडोनी सामाजिक कार्यों में तन-मन से समर्पित हुए। 1961 में वे गाँव के प्रधान बने और फिर जखोली विकास खंड के प्रमुख। बाद में उन्होंने उत्तर प्रदेश विधान सभा में तीन बार देव प्रयाग क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 1977 के विधान सभा चुनाव में निर्दलीय लड़ते हुए उन्होंने कांग्रेस और जनता पार्टी प्रत्याशियों की जमानतें जब्त करवायीं। पर्वतीय विकास परिषद के वे उपाध्यक्ष रहे। वे सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पेयजल योजनाओं पर बोलते हुए व्यक्ति के विकास पर भी जोर देते थे। उत्तराखंड में विद्यालयों का सबसे ज्यादा उच्चीकरण उसी दौर में हुआ।
पहाड़ों से उन्हें बेहद लगाव था। आज सहस्त्रताल, पवाँलीकांठा और खतलिंग ग्लेशियर दुनिया भर से ट्रेकिंग के शौकीनों को खींच रहे हैं, पर इनकी सर्वप्रथम यात्राएँ बडोनी जी द्वारा ही शुरू की गई। पहाड़ की संस्कृति और परम्पराओं से उनका गहरा लगाव था। मलेथा की गूल और वीर माधो सिंह भंडारी की लोक गाथाओं का मंचन उन्होंने दिल्ली और बम्बई तक किया। दिल्ली में उनके द्वारा मंचित पांडव नृत्य को देख कर तत्कालीन प्रधान मंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू भाव-विभोर हो कर बडोनी जी के साथ ही थिरकने लगे। दिल्ली प्रवास के उन्हीं दिनों में वे कॉमरेड पी.सी. जोशी के सम्पर्क में आये और पृथक उत्तराखंड राज्य के पैरोकार बन गये।
1980 में वे उत्तराखंड क्रांति दल के सदस्य बन गये। वन अधिनियम के विरोध में उन्होंने आंन्दोलन का नेतृत्व किया और पेड़ों के कारण रुके पड़े विकास कार्यों को खुद पेड़ काट कर हरी झंडी दी। इस आंदोलन में हजारों लोगों पर वर्षों मुकदमे चलते रहे। 1988 में तवाघाट (पिथौरागढ) से देहरादून तक उन्होंने 105 दिनों में लगभग 2000 किलोमीटर की पैदल जन संपर्क यात्रा की। इस यात्रा में उन्होंने दो हजार से ज्यादा गाँवों और शहरों को छुआ और पृथक राज्य की अवधारणा को घर-घर तक पहुँचा दिया। 1989 में उक्रांद कार्यकर्ताओं के आग्रह पर उन्होंने सांसद का चुनाव लड़ा। जिस दिन चुनाव का पर्चा भरा गया, बडोनी जी की जेब में मात्र एक रुपया था। संसाधनों के घोर अभाव के बावजूद बडोनी जी दस हजार से भी कम वोटों से हारे। लेकिन बडोनी जी की राजनीतिक यात्राओं का सिलसिला थमा नहीं। एक दिन वे मुनिकी रेती में होते थे तो दूसरे दिन पिथौरागढ़, तीसरे दिन उनकी बैठक नैनीताल में होती तो चौथे दिन धूमाकोट।
अपनी बात कहने का उनका ढंग निराला था। गम्भीर और गूढ़ विषयों पर उनकी पकड़ थी, उत्तराखंड के चप्पे-चप्पे के बारे में उन्हें जानकारी थी और वे बगैर लाग-लपेट के सीधी-सादी भाषा में अपनी बात कह देते थे। उनको सुनने के लिए लोग घंटों इन्तजार करते थे और वे लोगों को एक जुनून दे देते थे। 1992 की मकर संक्रांति पर बागेश्वर के उत्तरायणी मेले में उन्होंने उत्तराखंड क्रांति दल का संकल्प जन-जन में वितरित किया। उसी वर्ष गैरसैण को उत्तराखंड की राजधानी घोषित कर चन्द्रनगर गैरसैण के नाम से वहाँ शिलान्यास कर दिया।
1994 के राज्य आन्दोलन के वे सूत्रधार थे। 2 अगस्त 1994 को पौड़ी प्रेक्षागृह के सामने आमरण अनशन पर बैठ कर उन्होंने राजनीतिक हलकों में खलबली मचा दी। 7 अगस्त 1994 को उन्हें जबरन मेरठ अस्पताल में भरती करवा दिया गया और उसके बाद सख्त पहरे में नई दिल्ली स्थित आयुर्विज्ञान संस्थान में। जनता के भारी दबाव पर 30वें दिन उन्होंने अनशन समाप्त किया। इस बीच आन्दोलन पूरे उत्तराखंड में फैल चुका था। उत्तराखंड की सम्पूर्ण जनता अपने महानायक के पीछे लामबन्द हो गयी। बीबीसी ने तब कहा था, ‘‘यदि आपने जीवित एवं चलते-फिरते गांधी को देखना है तो आप उत्तराखंड की धरती पर चलें । 18 अगस्त 1999 इन्द्रमणि बडोनी जी अपना शरीर छोड़कर परलोक सिधार गये। उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष श्री प्रेम चंद्र अग्रवाल ने उन्हें ऋषिकेश में आयोजित एक कार्यक्रम में भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके बताये हुए मार्ग पर चलने का संकल्प लिया और उनकी प्रतिमा पर मार्ल्यापण किया।

विधान सभा अध्यक्ष ने कहा कि उत्तराखंड राज्य प्राप्ति के दौरान पर्वतीय गांधी के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है, आज स्वर्गीय बडोनी के बताये हुए मार्ग पर चलने के लिए सभी को कार्य करना होगा।

स्व0 इन्द्रमणी बडोनी जी जन्म तिथि पर कार्यक्रम में उपस्थित सम्मानित जन मनोज द्विवेदी जी, रम्मावल्लभ भट्ट, नरेन्द्र मैठाणी, जितेन्द्र भट्ट, जनार्दन कैरवाण, मनन द्विवेदी, सुरेन्द्र भण्डारी, सरोज कुकरेती, पुष्पा ध्यानी, मधुलिका द्विवेदी, राजपाल ठाकुर, भारत भूषण कुकरेती, आदर्श डबराल, मीना गौड, सन्तोष ध्यानी, नीरज, सुभाष डोभाल, आदि सभी सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे।