आज का पंचाग आपका राशि फल, श्री दुर्गा सप्तशती में छुपे गूढ़ अर्थ और चरित्रों के नामों के प्रतीक, मंगल और कुंडली में मंगली दोष हो तो करें ये अचूक उपाय, देवी के 51 शक्तिपीठ

🕉श्री हरिहरो विजयतेतराम🕉
🌄सुप्रभातम🌄
🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓
🌻मंगलवार, १२ अक्टूबर २०२१🌻

सूर्योदय: 🌄 ०६:२०
सूर्यास्त: 🌅 ०५:५१
चन्द्रोदय: 🌝 १२:३५
चन्द्रास्त: 🌜२२:४८
अयन 🌕 दक्षिणायने (दक्षिणगोलीय
ऋतु: ❄️ शरद
शक सम्वत: 👉 १९४३ (प्लव)
विक्रम सम्वत: 👉 २०७८ (आनन्द)
मास 👉 आश्विन
पक्ष 👉 शुक्ल
तिथि 👉 सप्तमी (२१:४७ तक)
नक्षत्र 👉 मूल (११:२७ तक)
योग 👉 शोभन (०८:५१ तक)
प्रथम करण 👉 गर (१०:४६ तक)
द्वितीय करण 👉 वणिज (२१:४७ तक)
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॥ गोचर ग्रहा: ॥
🌖🌗🌖🌗
सूर्य 🌟 कन्या
चंद्र 🌟 धनु
मंगल 🌟 कन्या (अस्त, पश्चिम, मार्गी)
बुध 🌟 कन्या (अस्त, पश्चिम, वक्री)
गुरु 🌟 मकर (उदय, पूर्व, मार्गी)
शुक्र 🌟 वृश्चिक (उदय, पश्चिम, मार्गी)
शनि 🌟 मकर (उदय, पूर्व, मार्गी)
राहु 🌟 वृष
केतु 🌟 वृश्चिक
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शुभाशुभ मुहूर्त विचार
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अभिजित मुहूर्त 👉 ११:४० से १२:२६
अमृत काल 👉 २९:४५ से ०७:१६ बजे
रवियोग 👉 ०६:१७ से ११:२७
विजय मुहूर्त 👉 १३:५८ से १४:४५
गोधूलि मुहूर्त 👉 १७:३८ से १८:०२
निशिता मुहूर्त 👉 २३:३८ से २४:२८
राहुकाल 👉 १४:५६ से १६:२३
राहुवास 👉 पश्चिम
यमगण्ड 👉 ०९:१० से १०:३६
होमाहुति 👉 बुध (११:२७ तक)
दिशाशूल 👉 उत्तर
अग्निवास 👉 पृथ्वी
भद्रावास 👉 पाताल (२१:४७ से)
चन्द्रवास 👉 पूर्व
शिववास 👉 भोजन में (२१:४७ श्मशान में)
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☄चौघड़िया विचार☄
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॥ दिन का चौघड़िया ॥
१ – रोग २ – उद्वेग
३ – चर ४ – लाभ
५ – अमृत ६ – काल
७ – शुभ ८ – रोग
॥रात्रि का चौघड़िया॥
१ – काल २ – लाभ
३ – उद्वेग ४ – शुभ
५ – अमृत ६ – चर
७ – रोग ८ – काल
नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
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शुभ यात्रा दिशा
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पूर्व-उत्तर (दलिये अथवा धनिये का सेवन कर यात्रा करें)
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तिथि विशेष
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सरस्वती पूजन, नवपद पूजा (जैन), नवरात्रि के सप्तम दिवस आदिशक्ति माँ दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा उपासना, विवाहदी मुहूर्त (हिमाचल, पंजाब, कश्मीर, हरियाणा आदि के लिये) मेष-वृष लग्न प्रातः ०६:२८ से ०८:५० तक, व्यवसाय आरम्भ मुहूर्त प्रातः १०:४६ से १२:१३ तक, देवप्रतिष्ठा मुहूर्त प्रातः ०६:२९ से ०९:२० तक आदि।सफेद या लाल रंग का कपड़ा पहनकर मध्यरात्री मांकालरात्र‍ि की पूजा करनी चाहिए. मां के सामने दीपक जलाएं और उन्हें गुड़ का भोग लगाएं. इसके बाद 108 बार नवार्ण मंत्र पढ़ते जाएं और हर मंत्र के साथ एक लौंग चढ़ाएं. नवार्ण मंत्र है – ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे
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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण
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आज ११:२७ तक जन्मे शिशुओ का नाम
मूल नक्षत्र के तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (भ, भी) नामाक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओं का नाम पूर्वाषाढ़ नक्षत्र के प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमश (भू, धा, फा, ढा) नामाक्षर से रखना शास्त्रसम्मत है।
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उदय-लग्न मुहूर्त
कन्या – २८:२६ से ०६:४४
तुला – ०६:४४ से ०९:०५
वृश्चिक – ०९:०५ से ११:२४
धनु – ११:२४ से १३:२८
मकर – १३:२८ से १५:०९
कुम्भ – १५:०९ से १६:३५
मीन – १६:३५ से १७:५८
मेष – १७:५८ से १९:३२
वृषभ – १९:३२ से २१:२७
मिथुन – २१:२७ से २३:४२
कर्क – २३:४२ से २६:०३
सिंह – २६:०३ से २८:२२
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पञ्चक रहित मुहूर्त
रोग पञ्चक – ०६:१७ से ०६:४४
शुभ मुहूर्त – ०६:४४ से ०९:०५
मृत्यु पञ्चक – ०९:०५ से ११:२४
अग्नि पञ्चक – ११:२४ से ११:२७
शुभ मुहूर्त – ११:२७ से १३:२८
रज पञ्चक – १३:२८ से १५:०९
शुभ मुहूर्त – १५:०९ से १६:३५
चोर पञ्चक – १६:३५ से १७:५८
रज पञ्चक – १७:५८ से १९:३२
शुभ मुहूर्त – १९:३२ से २१:२७
चोर पञ्चक – २१:२७ से २१:४७
शुभ मुहूर्त – २१:४७ से २३:४२
रोग पञ्चक – २३:४२ से २६:०३
शुभ मुहूर्त – २६:०३ से २८:२२
मृत्यु पञ्चक – २८:२२ से ३०:१७
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आज का राशिफल
🐐🐂💏💮🐅👩
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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
आज के दिन आप अपने धार्मिक एवं परोपकारी स्वभाव का लाभ उठायेंगे। जन मानस में आपकी छवि भद्र इंसान के रूप में बनेगी लोग अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए आपसे परामर्श लेंगे। लेकिन आज अन्य लोगो की समस्या सुलझाने में ही समय खराब न हो इसका भी ध्यान रखें। व्यवसायी वर्ग जिस काम को करने में संकोच करेंगे उसी से अधिक लाभ कमा सकेंगे। निवेश आज बेझिझक होकर करें भविष्य के लिए लाभदायक रहेगा। पारिवारिक स्थिति शांत रहेगी लेकिन आवश्यकता पूर्ति समय पर ना करने पर स्त्री संतानों से नाराजगी हो सकती है। स्वास्थ्य में आज कुछ ना कुछ विकार लगा रहेगा वाहन से सावधान रहें।

वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
आज का दिन भी आपके लिये हताशा से भरा रहेगा। पूर्व में मिली असफलता के कारण आज किसी भी कार्य को करने में उत्साह नही दिखाएंगे। मानसिक एवं शारीरिक विकार रहने के कारण मुश्किल से ही साहस जुटा पाएंगे। घर के बड़े बुजुर्गों से प्रोत्साहन मिलेगा परन्तु आज किसी की सांत्वना भी आपको पसंद नही आएगी। सीधी बातो का उल्टा जवाब देने से आस-पास का वातावरण कलुषित होगा। कार्य क्षेत्र पर अव्यवस्था के चलते सीमित साधनों से काम करना पड़ेगा परिणाम स्वरूप धन की आमद भी अल्प मात्रा में ही होगी।आज आप तंत्र-मंत्र में भी रुचि लेंगे। सरकारी कार्यो भी आज कागजी कमी के कारण अधूरे रहेंगे। लंबी यात्रा से बचें अपव्यव अधिक होंगे।

मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
आज के दिन आपको प्रातः काल से ही कुछ ना कुछ गड़बड़ होने का अंदेशा रहेगा लेकिन ज्यादा परेशान ना हों आज का दिन आपको अधिकांश कार्यो में सफलता दिलाएगा। आज आपके कार्यो में टांग अड़ाने वाले या सही मार्ग से भटकाने वाले भी मिलेंगे इनकी सुने अवश्य पर करें विवेक से ही। नौकरी वाले लोग कार्यो को जल्दी निपटाने के चक्कर मे गलती करेंगे स्वयं ही सुधार भी कर लेंगे लेकिन समय बर्बाद करके। व्यवसाय में आज बिक्री बढ़ेगी धन लाभ भी ठीक ठाक हो जायेगा खर्च आज कम रहने से बचत कर लेंगे। पारिवारिक वातावरण सामान्य बना रहेगा महिकाये शक की आदत से बचे कलह हो सकती है। आरोग्य में कुछ कमी रहेगी।

कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
आज के दिन कुछ ना कुछ कारण से भाग दौड़ लगी रहेगी। धन कमाने की लालसा आज कुछ ज्यादा ही रहेगी इसके लिए आप भूख प्यास की परवाह नही करेंगे लेकिन घर एवं व्यवसाय में तालमेल बैठाने के चक्कर मे कोई ना कोई काम अधूरा ही रह जायेगा। अतिआवश्यक कार्यो को संध्या से पहले पूर्ण करने का प्रयास करें अन्यथा इसके बाद लंबे समय के लिये टल सकते है। आज आपकी समाज के उच्चवर्गीय लोगो से जान पहचान बनेगी परन्तु सभी आपसे स्वार्थ सिद्धि के लिए व्यवहार करेंगे। परिजनों के अलावा आज कोई अन्य हितैषी नही मिलेगा। राजनीतिक सोच वाले लोगो से सावधान रहें। धन लाभ आज लेदेकर अवश्य ही होगा। सेहत का विशेष ध्यान रखें।

सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
आज का दिन आपको अवश्य कोई यादगार सौगात देकर जाएगा आज आपका स्वभाव शांत एवं मिलनसार रहेगा हर किसी से जल्द ही घुल-मिल जाएंगे परन्तु अन्य लोग इसको गलत नजरिये से भी देख सकते है। महिलाओ के प्रति सम्मानजनक रवैया अपनाए विवाद से बचे रहेंगे। व्यवसाइयों का काम-धंधा आज पहले से बेहतर चलेगा धन की आमद भी समय पर होने से आर्थिक उलझने नही रहेंगी फिर भी आज धन के लेनदेन में अधिक स्पष्टता बरते उधारी के कारण किसी से झगड़ा हो सकता है। नौकरी पेशा जातक आज जल्दी काम खत्म करने का प्रयास करेंगे परन्तु कोई नया काम आने से परेशानी होगी। घर का वातावरण सामान्य ही रहेगा आवश्यकताओं की पूर्ति पर खर्च होगा।

कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
आज के दिन आपके स्वभाव में भावुकता अधिक रहेगी लोग इसका नाजायज फायदा भी उठा सकते है। मध्यान से पहले आवश्यक कार्यो को पूरा कर लें इसके बाद परिस्थितियां कलहकारी बनने से अधिकाशं निर्णय गलत ही होंगे। धन लाभ की कामना थोड़े प्रयास के बाद पूर्ण हो जाएगी लेकिन आज बेमतलब के खर्च पर नियंत्रण रखें अन्यथा भविष्य की योजनाए बिगड़ेंगी। कार्य क्षेत्र पर मध्यान बाद तक व्यस्तता रहेगी इसका लाभ भी आशाजनक मिल जाएगा इसके बाद किसी से धन को लेकर तकरार होने की संभावना है घर के सदस्य भी संध्या बाद मांगे पूरी ना होने पर उग्र रहेंगे। पत्नी को छोड़ अन्य कोई भी आपकी भावनाओं को नही समझ सकेगा।

तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
आज का दिन वैसे तो आपके लिए वृद्धिकारक रहेगा धन लाभ आवश्यकता से अधिक ही होगा परन्तु आज आप अन्य लोगो से बराबरी करने के चक्कर मे स्वयं ही परेशान रहेंगे। महिलाये भी आज स्वयं को उपेक्षित अनुभव करेंगी। कार्य व्यवसाय में वृद्धि होने से आय के नए स्त्रोत्र बनेंगे पर आज आप जितना भी कमाई करे उससे संतोष नही होगा। ज्यादा कमाने के लोभ में अनैतिक कार्य भी कर सकते है आरम्भ में इससे लाभ ही होगा लेकिन बाद में कोई नई समस्या बनेगी। संध्या के समय आकस्मिक लाभ अथवा उपहार मिलेगा थकान भी इस अवधि में ज्यादा रहेगी। परिवार में किसी की जिद पूरी करने में खर्च भी करना पड़ेगा।

वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
आज के दिन आपका आत्मविश्वास तो बड़ा रहेगा परन्तु साथ मे आलस्य भी रहने से सोची हुई योजनाओ को सही दिशा नही दे सकेंगे। कार्य-व्यवसाय में लाभ के कई अवसर मिलेंगे परन्तु कुछ एक से ही संतोष करना पड़ेगा। आज कोई घरेलू कार्य के कारण भाग-दौड़ भी करनी पड़ेगी। सरकारी कार्य आज ना ही करें पूर्ण नही हो सकेंगे। संध्या का समय अधिक थकान वाला परन्तु दिन की अपेक्षा अधिक लाभदायक रहेगा आकस्मिक धन लाभ होने से थकान भूल जाएंगे। आज आप जिस कार्य की योजना बनाएंगे उसके संध्या बाद अथवा आने वाले कल में पूर्ण होने की संभावनाएं है। सेहत को लेकर परेशानी होगी शारीरिक दर्द अथवा कब्ज पित्त की शिकायत रहेगी।

धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
आज का दिन आपके लिये लाभदायक रहेगा। आज लोग आपसे अंदर ही अंदर ईर्ष्या का भाव रखेंगे परन्तु स्वयं के स्वार्थ के कारण व्यवहारिकता बनाये रखेंगे लोगों को आपसे काम पड़ता रहेगा आपभी लोगो की लाचारी का जमकर लाभ उठाएंगे। आज आप किसी से कुछ भी मांग सकते है कोई मना नही कर सकेगा। आर्थिक लाभ भी आज उम्मीद ना होने पर भी हो जाएगा। व्यवसायी वर्ग जिस भी काम मे हाथ डालेंगे उसमे सफल अवश्य होंगे। लेकिन शेयर सट्टे में निवेश आज ना करें भविष्य में हानि हो सकती है। आवश्यक कार्य संध्या से पहले पूर्ण कर लें इसके बाद सेहत प्रतिकूल होने की संभावना है कार्य अधूरे रह सकते है। संध्या के समय मानसिक उच्चाटन रहेगा।

मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
आपके लिये आज का दिन भी हानिकर रहेगा। आज आप मेहनत करने में कोई कसर नही छोड़ेंगे फिर भी धन संबंधित समस्या यथावत बनी रहेगी। मध्यान से पहले कोई अशुभ समाचार मिलने से मन विचलित रहेगा। व्यवसायी भी आज हानि की आशंका से प्रत्येक कार्य को डर कर करेंगे। किसी भी कार्य मे निवेश करने से बचे और अपने आस-पास के लोगो में स्वार्थ ना खोजे अन्यथा धन के साथ सम्मान हानि हो सकती है। संध्या बाद से स्थिति में सुधार आने लगेगा लेकिन मानसिक रूप से चंचलता बढ़ेगी भले बुरे का विवेक ना होने से काम उटपटांग होंगे इसे ठीक होने में थोड़ा समय लगेगा। परिजनों के स्वास्थ्य पर खर्च होगा। संध्या बाद का समय हर प्रकार से राहत वाला रहेगा।

कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
आज के दिन आपको पूर्व ने की गई गलतियों से ग्लानि अनुभव होगी फिर भी आज इससे शिक्षा लेने की जगह लापरवाही दिखाएंगे। कार्य व्यवसाय से आज धन की अच्छी आमाद हो जाएगी लेकिन व्यवहारिकता में कमी के कारण कुछ ना कुछ कमी अवश्य रहेगी। सहकर्मियों का ऊपर बेवजह क्रोध करना भारी पड़ सकता है संभल कर व्यवहार करें अन्यथा अकेले ही कार्य करना पड़ेगा। महिलाओ के मनोकामना आज पूरी होने में विघ्न आएंगे जिस वजह से गुस्से में रहेंगी जानबूझ कर कार्यो को बिगाड़ भी सकती है। घर के बुजुर्ग के ऊपर भी ध्यान दें आज आपसे नाराज हो सकते है। भाई बंधुओ से मेल जोल केवल स्वार्थ के लिए ही रहेगा।

मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
आज दिन के आरंभ में आप दिनचार्य को व्यवस्थित बनाने की योजना बनाएंगे लेकिन इसपर अमल नही करेंगे अपने काम की जगह अन्य के काम मे हस्तक्षेप करे बिना नही मानेंगे बिना मांगे सलाह देने से सम्मान कम हो सकता है। अपने कार्यो पर अधिक ध्यान दे परिस्थितियां आपके अनुकूल बनी हुई है धन लाभ के लिये आज ज्यादा भाग-दौड़ नही करनी पड़ेगी। सरकारी कार्य भी आज जोड़-तोड़ कर बन ही जायेंगे अधिकारी वर्ग का मूड समझना मुश्किल होगा फिर भी आपके लिये मददगार साबित होंगे। नौकरी पेशा लोग अपनी मांगे निसंकोच होकर रख सकते है देर अबेर पूरी होने की संभावना है। थोड़ी मानसिक दुविधा को छोड़ स्वास्थ्य उत्तम बना रहेगा ।
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〰〰〰〰〰🙏राधे राधे🙏

श्री दुर्गा सप्तशती में छुपे गूढ़ अर्थ और चरित्रों के नामों के प्रतीक

“अजी नाम में क्या रखा है?”, कुछ बड़े लोग कहते हैं। सनातनी संस्कृति के हिसाब से देखें तो ऐसा होता नहीं दिखता। यहाँ नाम के प्रकट और गूढ़, कई अर्थ निकलते हैं। उदाहरण के रूप में श्री दुर्गा सप्तशती में कुछ ही नाम देख लेने पर यह स्पष्ट हो जाता है।

मार्कंडेय पुराण के एक भाग से निकले इस ग्रंथ के पहले ही अध्याय में आपको तीन पात्रों के नाम मिल जाएँगे। इनमें से पहले पात्र सुरथ नाम के एक राजा हैं, दूसरे समाधि नामक एक वैश्य (व्यापारी) और तीसरे मेधा नाम के एक ऋषि हैं।

इनमें से दो, सुरथ एवं समाधि, अपनी स्थिति से परेशान होकर वन में आ गए होते हैं। उनकी चिंता, मन का उद्वेग शांत नहीं हुआ था इसलिए वे मेधा ऋषि के पास जाते हैं। अगर सुरथ नाम को देखें तो शरीर की तुलना कई बार रथ से होती मिल जाएगी।

ऐसा माना जाता है कि मन अश्वों की भाँति इस शरीर रूपी रथ को इधर-उधर ले जाता है और बुद्धि (मेधा) एक कुशल सारथि की भाँति मन रूपी अश्वों पर नियंत्रण करके रथ का सही तरीके से संचालन करे, यह मनुष्य के धर्म-पथ पर रहने के लिए आवश्यक है।

आत्मानम् रथिनम् विद्धि, शरीरम् तु एव रथम्,
बुद्धिम् तु सारथिम् विद्धि, मनः च एव प्रग्रहम् ।
(कठोपनिषद्, अध्याय 1, वल्ली 3, मंत्र 3)

अर्थ- इस जीवात्मा को तुम रथी, रथ का स्वामी समझो, शरीर को उसका रथ, बुद्धि को सारथि, रथ हाँकने वाला, और मन को लगाम समझो ।

धर्म अंततः अर्थ अथवा काम के उपार्जन हेतु, उचित पथ पर ले जाए इसलिए राजा का नाम सुरथ, अर्थात अच्छे रथ वाला है। समाधि भी धर्म की प्रवृत्ति ही दर्शाता हुआ नाम है लेकिन समाधि की स्थिति में चार पुरुषार्थों में से काम और अर्थ को छोड़कर केवल धर्म और मोक्ष की और झुकाव स्पष्ट है।

यानी कि इन नामों से हमें शुरू में ही पता चल जाता है कि जब कथा के अंत में हम पहुँचेंगे, तो राजा सुरथ को राज्य-वैभव इत्यादि मिलेंगे और समाधि को मोक्ष! थोड़ा और आगे चलें तो जब भगवान् विष्णु निद्रा में होते हैं, उनके कान के मैल से दो राक्षस मधु-कैटभ जन्म लेते हैं।

इन दोनों राक्षसों का वध करने के ही कारण विष्णु ‘मधुसूदन’ और ‘कैटभजित्‌’ कहलाए। यहाँ अगर फिर से प्रतीकों की ओर ध्यान दें तो विष्णु निद्रा में हैं, अर्थात् उनका ध्यान नहीं है, तब इन राक्षसों का जन्म हुआ है।

कान के मैल से जन्म हुआ है तो कहा जा सकता है कि आपके कानों में जो बातें जा रही हैं, उनकी बात प्रतीकों में हो रही है। मधु से ऐसा लगता है कि सुनने में अच्छी बातें की जा रही होंगी, जिनसे अक्सर अहंकार का जन्म होता है। अहंकार वश गलतियाँ होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

कैटभ का नाम कटु जैसा सुनाई देता है। निंदा या नीचा दिखाए जाने से जो स्थिति होगी इसे उसका द्योतक कहा जा सकता है। आत्मविश्वास के न होने, निराशा की स्थिति में होने से जो होगा यह राक्षस कुछ वैसा ही है।

अगर महाभारत के अनुसार, दुखों के कारण देखें तो वहाँ भी अहंकार और आत्मविश्वास की कमी, दोनों ही दुखों के कारणों में से दिख जाते हैं। अगर अपनी क्षमता इत्यादि को आँके बिना, कौशल-बुद्धि न होने पर भी कोई कार्य करना आरंभ किया जाए तो उससे असफलता मिलेगी और दुःख होगा।

इसके विपरीत लगातार निंदा सुनता व्यक्ति, जिसमें कमियाँ निकाली जा रही हों, हताशा की स्थिति में होगा और वह भी असफल हो, ऐसा संभव है। जिस मानसिक स्थिति में राजा सुरथ और समाधी दोनों, ऋषि मेधा के पास जाते हैं, उसे अवसाद की सी स्थिति कहा जा सकता है।

हाल के कोविड काल से जुड़े लॉकडाउन, नौकरियों के जाने की चिंता, उद्वेग जैसी स्थितियों में मानसिक स्वास्थ्य की चर्चाएँ भी होती रही हैं। हाल ही में यूनिसेफ की मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित रिपोर्ट भी जारी की गई है। इनके आलोक में सोचा जाए तो अवसाद, मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक बुरी परिस्थिति है।

वापस श्री दुर्गा सप्तशती पर आएँ तो यह भी दिखता है कि ये दोनों राक्षस ब्रह्मा को मारने के प्रयास में थे। ब्रह्मा जन्म से वैसे ही जुड़े हैं, जैसे विष्णु पालन से। इसे प्रतीक मानें तो कहा जा सकता है कि अवसाद जैसी स्थितियाँ या मानसिक स्वास्थ्य का सही न होना, नई संभावनाओं को जन्म देने की क्षमता को रोकता है।

यह सृजन का ही अंत कर देने पर तुला होगा। भगवान् विष्णु का इनसे युद्ध को देखें तो वह लंबे समय तक चला युद्ध था। यह भी मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं में होता है। इनसे जीतना आसान नहीं है।

अंततः जब उनके ही अहंकार के प्रयोग से उत्पत्ति-विनाश के कारणों को पहचानकर प्रयास किया जाता है, तब मधु-कैटभ पर विजय प्राप्त होती है। सीधे-सीधे अध्यात्म, तंत्र या फिर धार्मिक दृष्टिकोण को छोड़कर अगर काफी नीचे के मनुष्यों के स्वास्थ्य के स्तर पर आएँ तो भी श्री दुर्गा सप्तशती के केवल पहले ही अध्याय से सीखने के लिए इतना कुछ है!

अंत में यह याद दिला देना भी आवश्यक है कि जो प्रतीक एक व्यक्ति को दिखे, वही आपको भी दिखें यह आवश्यक नहीं। जिसे आदिशंकराचारी विवर्तवाद की दृष्टि से देखते हैं, उसे ही श्री भास्कराचार्य की गुप्तवती जैसी टीका परिणामवाद की दृष्टि से देखती है। आपकी दृष्टि से क्या दिखता है यह आप स्वयं पढ़कर तय करें!

पर्वत की ऊँची चोटी के लिए संस्कृत में “शिखर”, और उसे धारण करने वाले, यानी पर्वत के लिए “शिखरि” शब्द प्रयुक्त होता है। इसी का स्त्रीलिंग “शिखरिणी” हो जाएगा। इसी शब्द “शिखरिणी” का एक और उपयोग “सुन्दर कन्या” के लिए भी होता है। शिखरिणी संस्कृत काव्य का एक छन्द भी है। इसी शिखरिणी छन्द में आदि शंकराचार्य ने सौंदर्यलहरी की रचना की थी। संस्कृत जानने वालों के लिए, शाक्त उपासकों के लिए या तंत्र की साधना करने वालों के लिए सौन्दर्यलहरी कितना महत्वपूर्ण ग्रन्थ है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसकी पैंतीस से अधिक टीकाएँ, केवल संस्कृत में हैं। हिन्दी-अंग्रेजी भी जोड़ें तो पता नहीं गिनती कहाँ तक जाएगी।

आदि शंकराचार्य के सौन्दर्यलहरी की रचना के साथ भी एक किम्वदंती जुड़ी हुई है। कहते हैं वो एक बार कैलाश पर्वत पर गए और वहां भगवान शिव ने उन्हें सौ श्लोकों वाला एक ग्रन्थ दिया। देवी के अनेक रूपों के वर्णन वाले ग्रन्थ को उपहार में पाकर प्रसन्न आदि शंकराचार्य लौट ही रहे थे कि रास्ते में उन्हें नन्दी मिले। नन्दी ने उनसे ग्रन्थ छीन लेना चाहा और इस क्रम में ग्रन्थ आधा फट गया! आदि शंकराचार्य के पास शुरू के 41 श्लोक रहे और बाकी लेकर नन्दी भाग गए। आदि शंकराचार्य ने वापस जाकर भगवान शंकर को ये बात बताई तो उन्होंने कहा कि कोई बात नहीं, 41वें से आगे के श्लोकों को देवी की स्तुति में तुम स्वयं ही रच दो!

तो इस तरह तंत्र के साधकों का ये प्रिय ग्रन्थ दो भागों में बंटा हुआ है। पहले 41 श्लोक देवी के महात्म्य से जुड़े हैं और आनन्दलहरी के नाम से जाने जाते हैं। जहाँ से देवी के सौन्दर्य का बखान है उस 42वें से लेकर सौवें श्लोक को सौन्दर्यलहरी कहते हैं। अब जिस छन्द में ये रचा गया है उस “शिखरिणी” पर वापस चलें तो उसका पहला अर्थ पहाड़ की चोटी बताया जाता है। नन्दा देवी या वैष्णो देवी जैसी जगहों के बारे में सुना हो तो याद आ जायेगा कि देवी को पर्वत की चोटी पर रहने वाली भी बताया जाता है। दूसरे हिस्से के लिए अगर “शिखरिणी” का दूसरा अर्थ सुन्दर कन्या लें, तो नवरात्र में कन्या पूजन भी याद आ जायेगा।

एंथ्रोपोलॉजिस्ट यानि मानवविज्ञानी जब धर्म का अध्ययन करते हैं तो उसे दो भागों में बांटने की कोशिश करते हैं। रिलिजन या मजहब के लिए संभवतः ये तरीका आसान होगा। वृहत (ग्रेटर) धारा में वो उस हिस्से को डालते हैं जिसमें सब कुछ लिखित हो और उस लिखे हुए को पढ़ने, समझने और समझाने के लिए कुछ ख़ास लोग नियुक्त हों। छोटी (लिटिल) धारा उसे कहते हैं जो लोकव्यवहार में हो, उसके लिखित ग्रन्थ नहीं होते और कोई शिक्षक भी नियुक्त नहीं किये जाते। भारत में धर्म की शाक्त परम्पराओं में ये वर्गीकरण काम नहीं करता क्योंकि आदि शंकराचार्य को किसी ने “नियुक्त” नहीं किया था। रामकृष्ण परमहंस या बाम-खेपा जैसे शाक्त उपासकों को देखें तो बांग्ला में “खेपा” का मतलब पागल होता है। इससे उनके सम्मान में कोई कमी भी नहीं आती, ना ही उनकी उपासना पद्दति कमतर या छोटी होती है।

तंत्र में कई यंत्र भी प्रयोग में आते हैं। ऐसे यंत्रों में सबसे आसानी से शायद श्री यंत्र को पहचाना जा सकता है। सौन्दर्यलहरी के 32-33वें श्लोक इसी श्री यंत्र से जुड़े हैं। साधकों के लिए इस ग्रन्थ का हर श्लोक किसी न किसी यंत्र से जुड़ा है, जिसमें से कुछ आम लोगों के लिए भी परिचित हैं, कुछ विशेष हैं, सबको मालूम नहीं होते। शिव और शक्ति के बीच कोई भेद न होने के कारण ये अद्वैत का ग्रन्थ भी होता है। ये त्रिपुर-सुंदरी रूप की उपासना का ग्रन्थ है इसलिए भी सौन्दर्य लहरी है। कई श्लोकों में माता श्रृष्टि और विनाश का आदेश देने की क्षमता के रूप में विद्यमान हैं।

इसके अंतिम के तीन-चार श्लोक (सौवें के बाद के) जो आज मिलते हैं, उन्हें बाद के विद्वानों का जोड़ा हुआ माना जाता है। उत्तर भारत में जैसे दुर्गा-सप्तशती का पाठ होता है वैसे ही दक्षिण में सौन्दर्यलहरी का पाठ होता है। शायद यही वजह होगी कि इसपर हिन्दी में कम लिखा गया है। इसपर दो अच्छे (अंग्रेजी) प्रचलित ग्रन्थ जो हाल के समय में लिखे गए हैं उनमें से एक रामकृष्ण मिशन के प्रकाशन से आता है और दूसरा बिहार योग केंद्र (मुंगेर) का है। दक्षिण और उत्तर में एक अंतर समझना हो तो ये भी दिखेगा कि सौन्दर्यलहरी में श्लोकों की व्याख्या और सम्बन्ध बताया जाता है। श्लोक का स्वरुप, उसके प्रयोग या अर्थ से जुड़ी ऐसी व्याख्या वाले ग्रन्थ दुर्गा सप्तशती के लिए आसानी से उपलब्ध नहीं हैं।

बाकी आस पास के रामकृष्ण मिशन या दूसरे जो भी योग अथवा संस्कृत विद्यालय हों, वहां तक जाकर भी देखिये। संस्कृति को जीवित रखना समाज का ही कर्तव्य है।
#नवरात्र
✍🏻 आनन्द कुमार

नवरात्र में पठनीय देवीपुराण
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यह पुराण अति विशिष्ट है। देवी की लीलाओं और जनोपयोगी विषयों का सुंदर समन्वय है। मार्कंडेय पुराण में यदि सप्तशती को प्रतिष्ठा मिली तो देवी पुराण में लोक हितकारी विषयों को।
यह पुराण इतना प्रमाणिक माना गया कि अनेकों स्मृति निबंधकारों और टीकाकारों ने इसके श्लोक प्रमाण के लिए उद्धृत किए। हालांकि इसका पाठ संपादित होना शेष है! इसी कारण अच्छा अनुवाद शेष है। भगवती कृपा करे और कोई संस्कृत मित्र आगे आए तो पाठ प्रमाणिक हो सकता है।

नवरात्र में पारायण योग्य : महाभागवत
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भगवती की लीलाओं और स्तुति, साधना के उद्देश्य से संकल्प सहित पारायण के योग्य उप पुराण है : महा भागवत। दोनों ही नवरात्र और गुप्त नवरात्र में इसका पाठ बंगाल क्षेत्र में विशेष रूप से होता आया है।

महाभागवत शक्ति मतमान्य उपपुराण है और इसमें सीता, गंगा आदि अनेक देवियों के प्राकट्य तथा कृपा अनुग्रह के अनेक सुंदर प्रसंग शिव नारद संवाद रूप में है। इस पुराण को गोरखपुर से देवीपुराण का नाम देकर हाल ही प्रकाशित किया गया है जबकि डेढ़ सदी पहले, 1886 में कोलकाता से इसका पहला प्रकाशन मूल रूप में हुआ।

नवशक्ति प्रकाशन, वाराणसी ने इसको सुंदर अनुवाद और भूमिका सहित प्रकाशित किया है। डॉ. प्रेमा खुल्लर ने अनुवाद किया और संपादन आचार्य श्री मृत्युंजय त्रिपाठी ने किया है।

कालिका पुराण : नवरात्र पाठ
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देवी चरित्र विषयक पुराणों में “कालिका पुराण” मूलत: उप पुराण की कोटि का सुंदर ग्रंथ है। मार्कंडेय और देवी पुराण आदि में भगवती के ध्यान के जो जो स्वरूप प्रसंग आए हैं, उनमें कालिका देवी के माहात्म्य का विस्तृत विवरण इस पुराण में प्राप्त है।

यह कुल 90 अध्याय का है और इसमें कालिका, सती और योगमाया का चित्रण पूर्वार्द्ध (कालिका खण्ड) और उत्तरार्द्ध ( कालिकेय) में विस्तार से मिलता है। शाक्त और तांत्रिक उपासना, अरुंधती, नरकासुर, वैताल भैरव, चंद्रभागा नदी, चंद्रमा चरित आदि अनेक प्रसंग विश्वकोश की तरह भी मिल जाते हैं। शब्द और मूर्ति विषयक कोश निर्माण में यह सहायक रहा है। आराधक वशिष्ठ, वक्ता मार्कण्डेय और श्रोता मुनिगण हैं।

संस्कृत मूल का प्रकाशन पिछले डेढ़ सौ सालों में बंगला, उड़िया और देवनागरी में हुआ है। मेरे संग्रह में इसके कुछ पाठ हैं। आचार्य मृत्युंजय त्रिपाठी का सुंदर हिंदी अनुवाद मेरे पास है जिसको नवशक्ति प्रकाशन ने 2006 में प्रकाशित किया है। राष्ट्रीय कला केंद्र का “कालिका पुराण में मूर्ति विनिर्देश” नामक एक अंशात्मक प्रकाशन (अंग्रेजी अनुवाद सहित) भी हमारे लिए उपयोगी है।
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सरस्वती पुराण : नवरात्र में पठनीय
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स्थल पुराणों में माहात्म्य प्रधान “सरस्वती पुराण” स्मरणीय है। यह गुजरात में संपादित हुआ और सिद्धराज जयसिंह और अन्य चालुक्य वंशी नरेशों के साथ साथ सरस्वती के तटवर्ती तीर्थों की महत्ता लिए है। सरस्वती नदी लुप्त क्या हुई, सरोवर से जुड़ी हर शिरा और सर भी सरस्वती हो गई :
अथ ज्ञानेन सा तत्र जीवनमुक्ता बभूव ह।
चिरकालेन देहोऽस्या जलरूपोऽ भवत्तदा।। (२०, ६२)

कितनी बड़ी बात है कि मार्कंडेय पुराण, जिसमें देवी पाठ है, के मार्कंडेय ऋषि ही सभी शाक्त पुराणों के प्रवक्ता है : श्री मार्कण्डेयोक्ते सरस्वती पुराणे।

इसमें कुल 32 अध्याय है और संस्कृत मूल पाठ ही उपलब्ध है। कुछ समय पहले श्रीकन्हैयालालजी जोशी (परिमल प्रकाशन, दिल्ली) ने इसके अनुवाद और प्रकाशन का संकल्प हमारे सामने रखा लेकिन उनके नित्यलीलास्थ हो जाने से काम रुक गया। मेरे पास इस पुराण का कोलकाता पाठ है और कुछ समय पहले पिंपरी पूना के श्री पी. आर. अहीरराव ने भी हमें अपनी अंग्रेजी भूमिका वाली छाया प्रति भेजी है।

नवरात्रि में मुझे देवी दर्शन के साथ पुस्तक दर्शन के क्रम में यह पुराण सदा स्मरण होता है। नवरात्र पारायण के व्याज से पुस्तक दर्शन का अनुपम अवसर है। कभी अवसर मिला तो इसके अनुवाद को पाठकों को समर्पित करूंगा…
✍🏻डॉ श्रीकृष्ण जुगनू

*मंगल और मंगली दोष*
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मंगल कि उत्पत्ती कैसे हुई?
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शास्त्रों में मंगल ग्रह कि उत्पत्ति शिव से मानी गई हैं. मंगल को पृथ्वी का पुत्र माना गया हैं. मंगल की उत्पत्ति भारत के मध्यप्रदेश के उज्जैन में मानी गई हैं।

जैसे मंगल का रंग लाल या सिंदूर के रंगके समान हैं।इस लिये भगवान गणेश को भी सिंदूर चढाया जाता हैं. इस लिये गणेशजी को मंगलनाथ या मंगलमूर्ति भी कहाजाता हैं।

मंगल कुमार को गणेशजी नें मंगलवार के दिन दर्शन देकर उनहे मंगल ग्रह होने का वरदान दिया था इसी के कारण ही भगवान गणेश को मंगल मूर्ति कहा जाता हैं और मंगलवार के दिन मंगलमूर्ति गणेश का पूजन किया जाता हैं.

विद्वानो ने देवी महाकाली जी का पूजन भी मंगलवार को श्रेष्ठ फल देने वाला माना हैं।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल का प्रभाव मनुष्य के रक्त और मज्जा पर होता है. इसी से मंगली कुंडली वाले जातक थोड़े गुस्सैल और चिड़चिड़े स्वभाव के होते हैं।

जन्म कुंडली में मंगली होना अथवा मंगल दोष होना किसी जातक के लिये अमंगलकारी नहीं हैं. मंगली होना कोई दोष नहीं हैं यह एक विशेष योग होता हैं जो कुछ विषेश जन्म कुंडली में पायेजाते हैं. मंगली जातक कुछ विशेष गुण लिये हुवे प्रतिभा संपन्न होते हैं. हमारा उद्देश्य यहा मंगल दोष के प्रभाव को नकारना नहीं हैं, उस्से जुडे भ्रम को दूर कर, उस्से जुडे शास्त्रीय नियमो से आपको परिचित करना और उसके निवारण के उपाय बताना हैं।

मंगली – दोष विचार कैसे किया जाता हैं. इस्से जुडे शास्त्रोक्त नियम इस प्रकार हैं.

अगस्त्य संहिता के अनुसार
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धने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे.

भार्या भर्तु विनाशाय भर्तुश्च स्त्री विनाशनम्.

मानसागरी के अनुसार
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धने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे.

कन्या भर्तुविनाशाय भर्तुः कन्या विनश्यति.

वृह्द ज्योतिषसार के अनुसार
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लग्ने व्यये चतुर्थे च सप्तमे वा अष्टमे कुजः.

भर्तारं नाशयेद् भार्या भर्ताभार्या विनाश्येत्.

भावदीपिका के अनुसार
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लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे.

स्त्रीणां भर्तु विनाशः स्यात् पुंसां भार्या विनश्यति.

वृह्द पाराशर होरा के अनुसार:
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लग्ने व्यये सुखे वापि सप्तमे वा अष्टमे कुजे.

शुभ दृग् योग हीने च पतिं हन्ति न संशयम्.।।

उपरोक्त श्लोकों का भावार्थ है कि जन्म लग्न से प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश स्थान मे मंगल स्थित होने पर मंगल दोष या कुज दोष बनता हैं. कुछ आचार्यों के अनुसार लग्न के अतिरिक्त मंगली दोष चन्द्र लग्न, शुक्र या सप्तमेश से इन्हीं स्थानो में मंगल स्थित होने पर भी होता हैं।

मंगली दोष का फल
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मंगली दोष वैवाहिक जीवन को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करता है – मे विवाह विघ्न, विलम्ब, व्यवधान या धोखा, विवाहोपरान्त दम्पति मे से किसी एक अथवा दोनाको शारीरिक, मानसिक अथवा आर्थिक कष्ट, पारस्परिक मन – मुटाव, वाद – विवाद तथा विवाह – विच्छेद. अगर दोष अत्यधिक प्रबल हुआ तो दोना। अथवा किसी एक की मृत्यु भी हो सकती है।

कुंडली में यदि मंगली दोष हो तो उस्से भयभीत या आतंकित नहीं होना चाहिये. प्रयास यह करना चाहिये कि मंगली जातक का विवाह मंगली जातक से ही हो क्याकि मंगल – दोष साम्य होने से वह प्रभावहीन हो जाता हैं तथा दोनासुखी रहते हैं।

दम्पत्योर्जन्मकाले व्ययधनहिबुके सप्तमे लग्नरन्ध्रे।
लग्नाच्चन्द्राच्च शुक्रादपि भवति यदा भूमिपुत्रो द्वयोर्वै।
तत्साम्यात्पुत्रमित्रप्रचुरधनपतां दंपती दीर्घ – काला।
जीवेतामेकहा न भवति मश्तिरिति प्राहुरत्रात्रिमुख्याः।।

अर्थातः👉यदि वर और कन्या के जन्मांग मे मंगल द्वितीय, द्वादश, चतुर्थ, सप्तम अथवा अष्टम भाव मे, चंद्रमा अथवा शुक्र से समभाव मे स्थित हो तो समता का मंगल दोष होने के कारण वह प्रभावहीन हो जाता है लग्न. परस्पर सुख, धनधान्य, संतति, स्वास्थ्य एवं मित्रादि की उपलब्धि होती हैं.

कुज दोष वत्ती देया कुजदोषवते किल.
नास्ति दोषो न चानिष्टं दम्पत्यो सुखवर्धनम्।।

अर्थातः👉मंगल दोष वाली कन्या का विवाह मंगल दोष वाले वर के साथ करने से मंगल का अनिष्ट दोष नहीं होता तथा वर – वधू के मध्य दांपत्य – सुख बढ़ता है।

मंगल के प्रभाव वाले जाताक आकर्षक, तेजस्वी, चिड़चिड़े स्वाभाव, समस्याओं से लडऩे की शक्ति विशेष रूप से प्रभावमान हैं होता. विकट से विकट समस्याओं में घिरे होने के बावजूद जातक अपना धैर्य नहीं छोड़ते हैं. ज्योतिष ग्रथो में मंगल को भले ही क्रूर ग्रह बताया गया हैं, मंगल केवल अमंगलकारी हि नहीं हैं यह मंगलकारी भी होता हैं।

मंगली होने के लाभ
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मंगली कुंडली वाले जातक में अपनी जिम्मेदारी को पूर्ण निष्ठा से निभाने का विशेष गुण होता हैं. मंगली व्यक्ति ज्यादातर कठिन से कठिन कार्य को समय से पूर्व ही कर लेने समर्थ होते हैं. एसे व्यक्ति में नेतृत्व करने की क्षमता जन्मजात पाई जाती हैं. एसे व्यक्ति जल्द किसी से मित्रता नहीं करते और जल्द किसी से घुलते – मिलते नहीं हैं. एसे व्यक्ति जब मित्र या या संबंध बनाते हैं तो पूर्णत: निभा ने का प्रयास अवस्य करते हैं।। एसे व्यक्ति अत्याधिक महत्वाकांक्षी होने के कारण इनके स्वभाव में क्रोध पाया जाता हैं. एसे व्यक्ति उग्र स्वभाव के होने पर भी वह बहुत दयालु, शीध्र क्षमा करने वाले तथा मानवतावादी होते हैं।

एसे व्यक्ति सहीं को सहीं और गलत को गलत कहने में नहीं हिचकिचाते. व्यक्ति किसी गलत के आगे झुकते नहीं और खुद भी गलत नहीं करते. किसी कि खुशामत करना इन्हें ज्यादा रास नाहीं आता. मंगली जातक प्रायः व्यवसायी, उच्च पद आसीत, राजनीति, डॉक्टर, इंजीनियर, अभिभाषक, तंत्र का जानकार और सभी क्षेत्रों में इन्हें विशेष योग्यता प्राप्त होती हैं. व्यक्ति विपरित लिंग के प्रति विशेष संवेदनशील होते हैं उनकी और विशेष झुकाव रखते हैं।

ज्योतिष शास्त्रों के अनुशार मंगली लडके – अपने जीवन साथी से विशेष अपेक्षाएं रखते हैं और अपने जीवन साथी के मामले में अधिक संवेदनशील होते हैं लडकी. इस कारण शास्त्रों में मंगली का विवाह मंगली से ही करने पर जोर दिया गया हैं. कुछ विद्वानो का मत हैं कि लड़के की कुंडली में मंगल हो और लड़की की एक में, ४, ७, ८, १२ स्थान में शनि स्थित हो अथवा मंगल के साथ गुरु स्थित हो तब मंगल का प्रभाव समाप्त माना जाता हैं कुंडली. एसा माना जाता हैं कि मंगली जातक का विवाह विलंब से होता लेकिन अधिकांशतः अच्छी जगह होता हैं।
इसीलिये मंगली कुंडली वाले व्यक्ति का विवाह मंगली से करना शुभ माना जाता हैं.

ज्योतिष महत्व:👉 ज्योतिष में मंगल ऋण, भूमि, भवन, मकान, झगड़ा, पेट की बीमारी, क्रोध, मुकदमे बाजी और भाई का कारक होता हैं. मंगल हमें साहस, सहिष्णुता, धैर्य, कठिन, परिस्थितियों एवं समस्याओं को हल करने की योग्यता प्रदान करता हैं और खतरों से सामना करने की शक्ति देता हैं।

कुंडली के योग ही दूर करते हैं मंगल दोष
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यदि प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्ठम व द्वादश भावों में कहीं भी मंगल हो तो उसे मंगल दोष कहा जाता है लेकिन उन दोषों के बावजूद अगर अन्य ग्रहों की स्थिति, दृष्टि या युति निम्नलिखित प्रकार से हो, तो मंगल दोष खुद ही प्रभावहीन हो जाता है :-

1👉यदि मंगल ग्रह वाले भाव का स्वामी बली हो, उसी भाव में बैठा हो या दृष्टि रखता हो, साथ ही सप्तमेश या शुक्र अशुभ भावों (६/८/१२) में न हो।

2👉यदि मंगल शुक्र की राशि में स्थित हो तथा सप्तमेश बलवान होकर केंद्र त्रिकोण में हो।

3👉यदि गुरु या शुक्र बलवान, उच्च के होकर सप्तम में हो तथा मंगल निर्बल या नीच राशिगत हो।

4👉मेष या वृश्चिक का मंगल चतुर्थ में, कर्क या मकर का मंगल सप्तम में, मीन का मंगल अष्टम में तथा मेष या कर्क का मंगल द्वादश भाव में हो।

5👉यदि मंगल स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि या अपनी उच्च राशि में स्थित हो।

6👉यदि वर-कन्या दोनों में से किसी की भी कुंडली में मंगल दोष हो तथा कुंडली में उन्हीं पाँच में से किसी भाव में कोई पाप ग्रह स्थित हो। कहा गया है👇

शनि भौमोअथवा कश्चित्‌ पापो वा तादृशो भवेत्‌।
तेष्वेव भवनेष्वेव भौम-दोषः विनाशकृत्‌॥

इनके अतिरिक्त भी कई योग ऐसे होते हैं, जो मंगली दोष का परिहार करते हैं। अतः मंगल के नाम पर मांगलिक अवसरों को नहीं खोना चाहिए।

सौभाग्य की सूचिका भी होती है मंगली कन्या : कन्या की जन्मकुंडली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम तथा द्वादश भाव में मंगल होने के बाद भी प्रथम (लग्न, त्रिकोण), चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम तथा दशम भाव में बलवान गुरु की स्थिति कन्या को मंगली होते हुए भी सौभाग्यशालिनी व सुयोग्य पत्नी तथा गुणवान व संतानवान बनाती है।

मंगल दोष के शांति उपाय
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जिनकी राशि में मंगल अशुभ फल देने वाला है उन्हें निम्न उपाय करने से मंगल अनुकूल हो जाएगा व्यवसाय और जीवन में आ रही बाधा कम होगी।
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👉 मंगल शांति के लिए मंगल का दान (लाल रंग का बैल, सोना, तांबा, मसूर की दाल, बताशा, लाल वस्त्र आदि) किसी गरीब जरूरतमंद व्यक्ति को दें।
मंगल का मंत्र: ऊँ अंगारकाय विद्महे शक्तिहस्ताये धीमहि तन्नौ भौम: प्रचोदयात्। इस मंत्र का नित्य जप करें।

मंगलवार का व्रत रखें 👉 मंगलवार को किसी गरीब को पेटभर खाना खिलाकर तृप्त करें।

👉 अपने घर में भाई-बहनों का विशेष ध्यान रखें। मंगलवार को उन्हें कुछ विशेष उपहार दें।

👉 ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल हमारे शरीर के रक्त में स्थित माना गया है। अत: ऐसा खाना खाएं जिससे आपका रक्त शुद्ध बना रहे।

👉 मंगल प्रभावित व्यक्ति क्रोधी स्वभाव का, चिढ़-चिढ़ा हो जाता है, अत: प्रयत्न करें की क्रोध आप पर हावी न हो।

👉 लाल बैल दान करें।

👉 मंगल परम मातृभक्त हैं। वह सभी माता-पिता का सेवा-सम्मान करने वाले लोगों पर विशेष स्नेह रखते हैं अत: मंगलवार को अपनी माता को लाल रंग का विशेष उपहार दें।

👉 मंगल से संबंधित वस्तुएं उपहार में भी ना लें।

👉 लाल रंग मंगल का विशेष प्रिय रंग हैं अत: कम से कम को मंगलवार खाने में ऐसा खाना खाएं जिसका रंग लाल हो, जैसे इमरती, मसूर की दाल, सेवफल आदि।
अगर कुण्डली में मंगल दोष का निवारण ग्रहों के मेल से नहीं होता है तो व्रत और अनुष्ठान द्वारा इसका उपचार करना चाहिए. मंगला गौरी और वट सावित्री का व्रत सौभाग्य प्रदान करने वाला है. अगर जाने अनजाने मंगली कन्या का विवाह इस दोष से रहित वर से होता है तो दोष निवारण हेतु इस व्रत का अनुष्ठान करना लाभदायी होता है।

👉 जिस कन्या की कुण्डली में मंगल दोष होता है वह अगर विवाह से पूर्व गुप्त रूप से घट से अथवा पीपल के वृक्ष से विवाह करले फिर मंगल दोष से रहित वर से शादी करे तो दोष नहीं लगता है।

👉 प्राण प्रतिष्ठित विष्णु प्रतिमा से विवाह के पश्चात अगर कन्या विवाह करती है तब भी इस दोष का परिहार हो जाता है।

👉 मंगलवार के दिन व्रत रखकर सिन्दूर से हनुमान जी की पूजा करने एवं हनुमान चालीसा का पाठ करने से मंगली दोष शांत होता है।

👉 कार्तिकेय जी की पूजा से भी इस दोष में लाभ मिलता है।

👉 महामृत्युजय मंत्र का जप सर्व बाधा का नाश करने वाला है. इस मंत्र से मंगल ग्रह की शांति करने से भी वैवाहिक जीवन में मंगल दोष का प्रभाव कम होता है.
लाल वस्त्र में मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान एवं द्रव्य लपेट कर नदी में प्रवाहित करने से मंगल अमंगल दूर होता है।

नोट👉 जहाँ तक संभव हो मांगलिक से मांगलिक का संबंध करें। फिर भी मांगलिक एवं अमांगलिक पत्रिका हो, दोनों परिवार अपने पारिवारिक संबंध के कारण पूर्ण संतुष्ट हो, तब भी यह संबंध श्रेष्ठ नहीं है। ऐसा नहीं करना चाहिए।ऐसे में अन्य कई कुयोग हैं। जैसे वैधव्य विषागना आदि दोषों को दूर रखें। यदि ऐसी स्थिति हो तो ‘पीपल’ विवाह, कुंभ विवाह, सालिगराम विवाह तथा मंगल यंत्र का पूजन आदि कराके कन्या का संबंध अच्छे ग्रह योग वाले वर के साथ करें। मंगल यंत्र विशेष परिस्थिति में ही प्रयोग करें। देरी से विवाह, संतान उत्पन्न की समस्या, तलाक, दाम्पत्य सुख में कमी एवं कोर्ट केस इत्या‍दि में ही इसे प्रयोग करें। छोटे कार्य के लिए नहीं।
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*51 शक्तिपीठों का संक्षिप्त विवरण*

हिंदू धर्म में पुराणों का विशेष महत्‍व है। इन्‍हीं पुराणों में वर्णन है माता के शक्‍तिपीठों का भी है। पुराणों की ही मानें तो जहांजहां देवी सती के अंग के टुकड़े वस्‍त्र और गहने गिरे वहां वहां मां के शक्‍तिपीठ बन गए। ये शक्तिपीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हैं। *देवी भागवत में 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र है। वहीं देवी पुराण में 51 शक्तिपीठ बताए गए हैं।*

*आइए जानें कहांकहां हैं ये शक्तिपीठ*

1. *किरीट शक्तिपीठ*
पश्चिम बंगाल के हुगली नदी के तट लालबाग कोट पर स्थित है किरीट शक्तिपीठ, जहां सती माता का किरीट यानी शिराभूषण या मुकुट गिरा था। यहां की शक्ति विमला अथवा भुवनेश्वरी तथा भैरव संवर्त हैं। इस स्थान पर सती के ‘किरीट (शिरोभूषण या मुकुट)’ का निपात हुआ था। कुछ विद्वान मुकुट का निपात कानपुर के मुक्तेश्वरी मंदिर में मानते हैं।

2. *कात्यायनी पीठ*
वृन्दावन मथुरा में स्थित है कात्यायनी वृन्दावन शक्तिपीठ जहां सती का केशपाश गिरा था। यहां की शक्ति देवी कात्यायनी हैं। यहाँ माता सती ‘उमा’ तथा भगवन शंकर ‘भूतेश’ के नाम से जाने जाते है।

3. *करवीर शक्तिपीठ*
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित ‘महालक्ष्मी’ अथवा ‘अम्बाईका मंदिर’ ही यह शक्तिपीठ है। यहां माता का त्रिनेत्र गिरा था। यहां की शक्ति ‘महिषामर्दिनी’ तथा भैरव क्रोधशिश हैं। यहां महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है।

4. *श्री पर्वत शक्तिपीठ*
यहां की शक्ति श्री सुन्दरी एवं भैरव सुन्दरानन्द हैं। कुछ विद्वान इसे लद्दाख (कश्मीर) में मानते हैं, तो कुछ असम के सिलहट से 4 कि.मी. दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्यकोण) में जौनपुर में मानते हैं। यहाँ सती के ‘दक्षिण तल्प’ (कनपटी) का निपात हुआ था।

5. *विशालाक्षी शक्तिपीठ*
उत्तर प्रदेश, वाराणसी के मीरघाट पर स्थित है शक्तिपीठ जहां माता सती के दाहिने कान के मणि गिरे थे। यहां की शक्ति विशालाक्षी तथा भैरव काल भैरव हैं। यहाँ माता सती का ‘कर्णमणि’ गिरी थी। यहाँ माता सती को ‘विशालाक्षी’ तथा भगवान शिव को ‘काल भैरव’ कहते है।

6. *गोदावरी तट शक्तिपीठ*
आंध्र प्रदेश के कब्बूर में गोदावरी तट पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहाँ माता का वामगण्ड यानी बायां कपोल गिरा था। यहां की शक्ति विश्वेश्वरी या रुक्मणी तथा भैरव दण्डपाणि हैं। गोदावरी तट शक्तिपीठ आन्ध्र प्रदेश देवालयों के लिए प्रख्यात है। वहाँ शिव, विष्णु, गणेश तथा कार्तिकेय (सुब्रह्मण्यम) आदि की उपासना होती है तथा अनेक पीठ यहाँ पर हैं। यहाँ पर सती के ‘वामगण्ड’ का निपात हुआ था।

7. *शुचींद्रम शक्तिपीठ*
तमिलनाडु में कन्याकुमारी के त्रिासागर संगम स्थल पर स्थित है यह शुचींद्रम शक्तिपीठ, जहाँ सती के ऊर्ध्वदंत (मतान्तर से पृष्ठ भागद्ध गिरे थे। यहां की शक्ति नारायणी तथा भैरव संहार या संकूर हैं। यहाँ माता सती के ‘ऊर्ध्वदंत’ गिरे थे। यहाँ माता सती को ‘नारायणी’ और भगवान शंकर को ‘संहार’ या ‘संकूर’ कहते है। तमिलनाडु में तीन महासागर के संगम-स्थल कन्याकुमारी से 13 किमी दूर ‘शुचीन्द्रम’ में स्याणु शिव का मंदिर है। उसी मंदिर में ये शक्तिपीठ है।

8. *पंच सागर शक्तिपीठ*
इस शक्तिपीठ का कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है लेकिन यहां माता के नीचे के दांत गिरे थे। यहां की शक्ति वाराही तथा भैरव महारुद्र हैं। पंच सागर शक्तिपीठ में सती के ‘अधोदन्त’ गिरे थे। यहाँ सती ‘वाराही’ तथा शिव ‘महारुद्र’ हैं।

9. *ज्वालामुखी शक्तिपीठ*
हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां सती का जिह्वा गिरी थी। यहां की शक्ति सिद्धिदा व भैरव उन्मत्त हैं। यह ज्वालामुखी रोड रेलवे स्टेशन से लगभग 21 किमी दूर बस मार्ग पर स्थित है। यहाँ माता सती ‘सिद्धिदा’ अम्बिका तथा भगवान शिव ‘उन्मत्त’ रूप में विराजित है। मंदिर में आग के रूप में हर समय ज्वाला धधकती रहती है।

10. *हरसिद्धि शक्तिपीठ*
(उज्जयिनी शक्तिपीठ) इस शक्तिपीठ की स्थिति को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ उज्जैन के निकट शिप्रा नदी के तट पर स्थित भैरवपर्वत को, तो कुछ गुजरात के गिरनार पर्वत के सन्निकट भैरवपर्वत को वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं। अत: दोनों ही स्थानों पर शक्तिपीठ की मान्यता है। उज्जैन के इस स्थान पर सती की कोहनी का पतन हुआ था। अतः यहाँ कोहनी की पूजा होती है।

11. *अट्टहास शक्तिपीठ*
अट्टाहास शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के लाबपुर (लामपुर) रेलवे स्टेशन वर्धमान से लगभग 95 किलोमीटर आगे कटवा-अहमदपुर रेलवे लाइन पर है, जहाँ सती का ‘नीचे का होठ’ गिरा था। इसे अट्टहास शक्तिपीठ कहा जाता है, जो लामपुर स्टेशन से नजदीक ही थोड़ी दूर पर है।

12. *जनस्थान शक्तिपीठ*
महाराष्ट्र के नासिक में पंचवटी में स्थित है जनस्थान शक्तिपीठ जहां माता का ठुड्डी गिरी थी। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव विकृताक्ष हैं। मध्य रेलवे के मुम्बई-दिल्ली मुख्य रेल मार्ग पर नासिक रोड स्टेशन से लगभग 8 कि.मी. दूर पंचवटी नामक स्थान पर स्थित भद्रकाली मंदिर ही शक्तिपीठ है। यहाँ की शक्ति ‘भ्रामरी’ तथा भैरव ‘विकृताक्ष’ हैं- ‘चिबुके भ्रामरी देवी विकृताक्ष जनस्थले’। अत: यहाँ चिबुक ही शक्तिरूप में प्रकट हुआ। इस मंदिर में शिखर नहीं है। सिंहासन पर नवदुर्गाओं की मूर्तियाँ हैं, जिसके बीच में भद्रकाली की ऊँची मूर्ति है।

13. *कश्मीर शक्तिपीठ*
कश्मीर में अमरनाथ गुफ़ा के भीतर ‘हिम’ शक्तिपीठ है। यहाँ माता सती का ‘कंठ’ गिरा था। यहाँ सती ‘महामाया’ तथा शिव ‘त्रिसंध्येश्वर’ कहलाते है। श्रावण पूर्णिमा को अमरनाथ के दर्शन के साथ यह शक्तिपीठ भी दिखता है।

14. *नन्दीपुर शक्तिपीठ*
पश्चिम बंगाल के बोलपुर (शांति निकेतन) से 33 किमी दूर सैन्थिया रेलवे जंक्शन से अग्निकोण में, थोड़ी दूर रेलवे लाइन के निकट ही एक वटवृक्ष के नीचे देवी मन्दिर है, यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ देवी के देह से ‘कण्ठहार’ गिरा था।

15. *श्री शैल शक्तिपीठ*
आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद से 250 कि.मी. दूर कुर्नूल के पास ‘श्री शैलम’ है, जहाँ सती की ‘ग्रीवा’ का पतन हुआ था। यहाँ की सती ‘महालक्ष्मी’ तथा शिव ‘संवरानंद’ अथवा ‘ईश्वरानंद’ हैं।

16. *नलहाटी शक्तिपीठ*
पश्चिम बंगाल के बोलपुर में है नलहरी शक्तिपीठ, जहां माता का उदरनली गिरी थी। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव योगीश हैं। यहाँ सती की ‘उदर नली’ का पतन हुआ था। यहाँ की सती ‘कालिका’ तथा भैरव ‘योगीश’ हैं।

17. *मिथिला शक्तिपीठ*
यहाँ माता सती का ‘वाम स्कन्ध’ गिरा था। यहाँ सती ‘उमा’ या ‘महादेवी’ तथा शिव ‘महोदर’ कहलाते हैं। इस शक्तिपीठ का निश्चित स्थान बताना कुछ कठिन है। स्थान को लेकर कई मत-मतान्तर हैं। तीन स्थानों पर ‘मिथिला शक्तिपीठ’ को माना जाता है। एक जनकपुर (नेपाल) से 51 किमी दूर पूर्व दिशा में ‘उच्चैठ’ नामक स्थान पर ‘वन दुर्गा’ का मंदिर है। दूसरा बिहार के समस्तीपुर और सहरसा स्टेशन के पास ‘उग्रतारा’ का मंदिर है। तीसरा समस्तीपुर से पूर्व 61 किमी दूर सलौना रेलवे स्टेशन से 9 किमी दूर ‘जयमंगला’ देवी का मंदिर है। उक्त तीनों मंदिर को विद्वजन शक्तिपीठ मानते है।

18. *रत्नावली शक्तिपीठ*
रत्नावली शक्तिपीठ का निश्चित्त स्थान अज्ञात है, किंतु बंगाल पंजिका के अनुसार यह तमिलनाडु के मद्रास में कहीं है। यहाँ सती का ‘दायाँ कन्धा’ गिरा था। यहां की शक्ति कुमारी तथा भैरव शिव हैं।

19. *अम्बाजी शक्तिपीठ*
यहाँ माता सती का ‘उदार’ गिरा था। गुजरात, गुना गढ़ के गिरनार पर्वत के प्रथत शिखर पर माँ अम्बा जी का मंदिर ही शक्तिपीठ है। यहाँ माता सती को ‘चंद्रभागा’ और भगवान शिव को ‘वक्रतुण्ड’ के नाम से जाना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि गिरिनार पर्वत के निकट ही सती का उर्द्धवोष्ठ गिरा था, जहाँ की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण है।

20. *जालंधर शक्तिपीठ*
यहाँ माता सती का ‘बायां स्तन’ गिरा था। यहाँ सती को ‘त्रिपुरमालिनी’ और शिव को ‘भीषण’ के रूप में जाना जाता है। यह शक्तिपीठ पंजाब के जालंधर में स्थित है। इसे त्रिपुरमालिनी शक्तिपीठ भी कहते हैं।

21. *रामगिरि शक्तिपीठ*
रामगिरि शक्तिपीठ की स्थिति को लेकर मतांतर है। कुछ मैहर, मध्य प्रदेश के ‘शारदा मंदिर’ को शक्तिपीठ मानते हैं, तो कुछ चित्रकूट के शारदा मंदिर को शक्तिपीठ मानते हैं। दोनों ही स्थान मध्य प्रदेश में हैं तथा तीर्थ हैं। रामगिरि पर्वत चित्रकूट में है। यहाँ देवी के ‘दाएँ स्तन’ का निपात हुआ था।

22. *वैद्यनाथ का हार्द शक्तिपीठ*
शिव तथा सती के ऐक्य का प्रतीक झारखण्ड के गिरिडीह जनपद में स्थित वैद्यनाथ का ‘हार्द’ या ‘हृदय पीठ’ है और शिव का ‘वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग’ भी यहीं है। यह स्थान चिताभूमि में है। यहाँ सती का ‘हृदय’ गिरा था। यहाँ की शक्ति ‘जयदुर्गा’ तथा शिव ‘वैद्यनाथ’ हैं।

23. *वक्त्रेश्वर शक्तिपीठ*
माता का यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के सैन्थया में स्थित है जहां माता का मन गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव वक्त्रानाथ हैं। यहाँ का मुख्य मंदिर वक्त्रेश्वर शिव मंदिर है।

24. *कन्याकुमारी शक्तिपीठ*
यहाँ माता सती की ‘पीठ’ गिरी थी। माता सती को यहाँ ‘शर्वाणी या नारायणी’ तथा भगवान शिव को ‘निमिष या स्थाणु’ कहा जाता है। तमिलनाडु में तीन सागरों हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी के संगम स्थल पर कन्याकुमारी का मंदिर है। उस मंदिर में ही भद्रकाली का मंदिर शक्तिपीठ है।

25. *बहुला शक्तिपीठ*
पश्चिम बंगाल के हावड़ा से 145 किलोमीटर दूर पूर्वी रेलवे के नवद्वीप धाम से 41 कि.मी. दूर कटवा जंक्शन से पश्चिम की ओर केतुग्राम या केतु ब्रह्म गाँव में स्थित है-‘बहुला शक्तिपीठ’, जहाँ सती के ‘वाम बाहु’ का पतन हुआ था। यहाँ की सती ‘बहुला’ तथा शिव ‘भीरुक’ हैं।

26. *भैरवपर्वत शक्तिपीठ*
यह शक्तिपीठ भी 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ माता सती के कुहनी की पूजा होती है। इस शक्तिपीठ की स्थिति को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ उज्जैन के निकट शिप्रा नदी तट स्थित भैरवपर्वत को, तो कुछ गुजरात के गिरनार पर्वत के सन्निकट भैरवपर्वत को वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं।

27. *मणिवेदिका शक्तिपीठ*
राजस्थान में अजमेर से 11 किलोमीटर दूर पुष्कर एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थान है। पुष्कर सरोवर के एक ओर पर्वत की चोटी पर स्थित है- ‘सावित्री मंदिर’, जिसमें माँ की आभायुक्त, तेजस्वी प्रतिमा है तथा दूसरी ओर स्थित है ‘गायत्री मंदिर’ और यही शक्तिपीठ है। जहाँ सती के ‘मणिबंध’ का पतन हुआ था।

28. *प्रयाग शक्तिपीठ*
तीर्थराज प्रयाग में माता सती के हाथ की ‘अँगुली’ गिरी थी। यहाँ तीनों शक्तिपीठ की माता सती ‘ललिता देवी’ एवं भगवान शिव को ‘भव’ कहा जाता है। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित है। लेकिन स्थानों को लेकर मतभेद इसे यहां अक्षयवट, मीरापुर और अलोपी स्थानों में गिरा माना जाता है। ललिता देवी के मंदिर को विद्वान शक्तिपीठ मानते है। शहर में एक और अलोपी माता ललिता देवी का मंदिर है। इसे भी शक्तिपीठ माना जाता है। निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचना कठिन है।

29. *विरजा शक्तिपीठ*
उत्कल (उड़ीसा) में माता सती की ‘नाभि’ गिरी थी। यहाँ माता सती को ‘विमला’ तथा भगवान शिव को ‘जगत’ के नाम से जाना जाता है। उत्कल शक्तिपीठ उड़ीसा के पुरी और याजपुर में माना जाता है। पुरी में जगन्नाथ जी के मंदिर के प्रांगण में ही विमला देवी का मंदिर है। यही मंदिर शक्तिपीठ है।

30. *कांची शक्तिपीठ*
यहाँ माता सती का ‘कंकाल’ गिरा था। देवी यहाँ ‘देवगर्मा’ और भगवान शिव का ‘रूद्र’ रूप है। तमिलनाडु के कांचीपुरम में सप्तपुरियों में एक काशी है। वहाँ का काली मंदिर ही शक्तिपीठ है।

31. *कालमाधव शक्तिपीठ*
कालमाधव में सती के ‘वाम नितम्ब’ का निपात हुआ था। इस शक्तिपीठ के बारे कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है। परन्तु, यहां माता का ‘वाम नितम्ब’ का निपात हुआ था। यहां की शक्ति काली तथा भैरव असितांग हैं।यहाँ की सति ‘काली’ तथा शिव ‘असितांग’ हैं।

32. *शोण शक्तिपीठ*
मध्य प्रदेश के अमरकण्टक के नर्मदा मंदिर में सती के ‘दक्षिणी नितम्ब’ का निपात हुआ था और वहाँ के इसी मंदिर को शक्तिपीठ कहा जाता है। यहाँ माता सती ‘नर्मदा’ या ‘शोणाक्षी’ और भगवान शिव ‘भद्रसेन’ कहलाते हैं।

33. *कामाख्या शक्तिपीठ*
यहाँ माता सती की ‘योनी’ गिरी थी। असम के कामरूप जनपद में असम के प्रमुख नगर गुवाहाटी (गौहाटी) के पश्चिम भाग में नीलाचल पर्वत/कामगिरि पर्वत पर यह शक्तिपीठ ‘कामाख्या’ के नाम से सुविख्यात है। यहाँ माता सती को ‘कामाख्या’ और भगवान शिव को ‘उमानंद’ कहते है। जिनका मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य उमानंद द्वीप पर स्थित है।

34. *जयंती शक्तिपीठ*
भारत के पूर्वीय भाग में स्थित मेघालय एक पर्वतीय राज्य है और गारी, खासी, जयंतिया यहाँ की मुख्य पहाड़ियाँ हैं। सम्पूर्ण मेघालय पर्वतों का प्रान्त है। यहाँ की जयंतिया पहाड़ी पर ही ‘जयंती शक्तिपीठ’ है, जहाँ सती के ‘वाम जंघ’ का निपात हुआ था।

35. *मगध शक्तिपीठ*
बिहार की राजधानी पटना में स्थित पटनेश्वरी देवी को ही शक्तिपीठ माना जाता है जहां माता का दाहिना जंघा गिरा था। यहां की शक्ति सर्वानन्दकरी तथा भैरव व्योमकेश हैं। यह मंदिर पटना सिटी चौक से लगभग 5 कि.मी. पश्चिम में महाराज गंज (देवघर) में स्थित है।

36. *त्रिस्तोता शक्तिपीठ*
यहाँ के बोदा इलाके के शालवाड़ी गाँव में तिस्ता नदी के तट पर ‘त्रिस्तोता शक्तिपीठ’ है, जहाँ सती के ‘वाम-चरण’ का पतन हुआ था। यहाँ की सती ‘भ्रामरी’ तथा शिव ‘ईश्वर’ हैं।

37. *त्रिपुर सुन्दरी शक्तिपीठ*
त्रिपुरा में माता सती का ‘दक्षिण पद’ गिरा था। यहाँ माता सती ‘त्रिपुरासुन्दरी’ तथा भगवन शिव ‘त्रिपुरेश’ कहे जाते हैं। त्रिपुरा राज्य के राधा किशोरपुर ग्राम से 2 किमी दूर दक्षिण-पूर्व के कोण पर, पर्वत के ऊपर यह शक्तिपीठ स्थित है।

38. *विभाष शक्तिपीठ*
यहाँ माता सती का ‘बायाँ टखना’ गिरा था। यहाँ माता सती ‘कपालिनी’ अर्थात ‘भीमरूपा’ और भगवन शिव ‘सर्वानन्द’ कपाली है। पश्चिम बंगाल के पासकुडा स्टेशन से 24 किमी दूर मिदनापुर में तमलूक स्टेशन है। वहाँ का काली मंदिर ही यह शक्तिपीठ है।

39. *देवीकूप शक्तिपीठ*
यहाँ माता सती का ‘दाहिना टखना’ गिरा था। यहाँ माता सती को ‘सावित्री’ तथा भगवन शिव को ‘स्याणु महादेव’ कहा जाता है। हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र नगर में ‘द्वैपायन सरोवर’ के पास कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ स्थित है, जिसे ‘श्रीदेवीकूप भद्रकाली पीठ’ के नाम से जाना जाता है।

40. *युगाद्या शक्तिपीठ*
‘युगाद्या शक्तिपीठ’ बंगाल के पूर्वी रेलवे के वर्धमान जंक्शन से 39 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में तथा कटवा से 21 किमी. दक्षिण-पश्चिम में महाकुमार-मंगलकोट थानांतर्गत क्षीरग्राम में स्थित है- युगाद्या शक्तिपीठ, जहाँ की अधिष्ठात्री देवी हैं- ‘युगाद्या’ तथा ‘भैरव’ हैं- क्षीर कण्टक। तंत्र चूड़ामणि के अनुसार यहाँ माता सती के ‘दाहिने चरण का अँगूठा’ गिरा था।

41. *विराट शक्तिपीठ*
यह शक्तिपीठ राजस्थान की राजधानी गुलाबी नगरी जयपुर से उत्तर में महाभारतकालीन विराट नगर के प्राचीन ध्वंसावशेष के निकट एक गुफा है, जिसे ‘भीम की गुफा’ कहते हैं। यहीं के वैराट गाँव में शक्तिपीठ स्थित है, जहाँ सती के ‘दायें पाँव की उँगलियाँ’ गिरी थीं।

42. *कालीघाट काली मंदिर*
यहाँ माता सती की ‘शेष उँगलियाँ’ गिरी थी। यहाँ माता सती को ‘कलिका’ तथा भगवान शिव को ‘नकुलेश’ कहा जाता है। पश्चिम बंगाल, कलकत्ता के कालीघाट में काली माता का सुविख्यात मंदिर ही यह शक्तिपीठ है।

43. *मानस शक्तिपीठ*
यहाँ माता सती की ‘दाहिनी हथेली’ गिरी थी। यहाँ माता सती को ‘दाक्षायणी’ तथा भगवान शिव को ‘अमर’ कहा जाता है। यह शक्तिपीठ तिब्बत में मानसरोवर के तट पर स्थित है।

44. *लंका शक्तिपीठ*
श्रीलंका में, जहाँ सती का ‘नूपुर’ गिरा था। यहां की शक्ति इन्द्राक्षी तथा भैरव राक्षसेश्वर हैं। लेकिन, उस स्थान ज्ञात नहीं है कि श्रीलंका के किस स्थान पर गिरे थे।

45. *गण्डकी शक्तिपीठ*
नेपाल में गण्डकी नदी के उद्गमस्थल पर ‘गण्डकी शक्तिपीठ’ में सती के ‘दक्षिणगण्ड’ का पतन हुआ था। यहां शक्ति `गण्डकी´ तथा भैरव `चक्रपाणि´ हैं।

46. *गुह्येश्वरी शक्तिपीठ*
नेपाल में ‘पशुपतिनाथ मंदिर’ से थोड़ी दूर बागमती नदी की दूसरी ओर ‘गुह्येश्वरी शक्तिपीठ’ है। यह नेपाल की अधिष्ठात्री देवी हैं। मंदिर में एक छिद्र से निरंतर जल बहता रहता है। यहाँ की शक्ति ‘महामाया’ और शिव ‘कपाल’ हैं।

47. *हिंगलाज शक्तिपीठ*
यहाँ माता सती का ‘ब्रह्मरंध्र’ गिरा था। यहाँ माता सती को ‘भैरवी/कोटटरी’ तथा भगवन शिव को ‘भीमलोचन’ कहा जाता है। यहाँ शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त के हिंगलाज में है। हिंगलाज कराची से 144 किमी दूर उत्तर-पश्चिम दिशा में हिंगोस नदी के तट पर है। यही एक गुफा के भीतर जाने पर माँ आदिशक्ति के ज्योति रूप के दर्शन होते है।

48. *सुंगधा शक्तिपीठ*
बांग्लादेश के बरीसाल से 21 किलोमीटर उत्तर में शिकारपुर ग्राम में ‘सुंगधा’ नदी के तट पर स्थित ‘उग्रतारा देवी’ का मंदिर ही शक्तिपीठ माना जाता है। इस स्थान पर सती की ‘नासिका’ का निपात हुआ था।

49. *करतोयाघाट शक्तिपीठ*
यहाँ माता सती का ‘वाम तल्प’ गिरा था। यहाँ माता ‘अपर्णा’ तथा भगवन शिव ‘वामन’ रूप में स्थापित है। यह स्थल बांग्लादेश में है। बोगडा स्टेशन से 32 किमी दूर दक्षिण-पश्चिम कोण में भवानीपुर ग्राम के बेगड़ा में करतोया नदी के तट पर यह शक्तिपीठ स्थित है।

50. *चट्टल शक्तिपीठ*
चट्टल में माता सती की ‘दक्षिण बाहु’ गिरी थी। यहाँ माता सती को ‘भवानी’ तथा भगवन शिव को ‘चंद्रशेखर’ कहा जाता है। बंग्लादेश में चटगाँव से 38 किमी दूर सीताकुंड स्टेशन के पास चंद्रशेखर पर्वत पर भवानी मंदिर है। यही ‘भवानी मंदिर’ शक्तिपीठ है।

51. *यशोर शक्तिपीठ*
यह शक्तिपीठ वर्तमान बांग्लादेश में खुलना ज़िले के जैसोर नामक नगर में स्थित है। यहाँ सती की ‘वाम’ (जांघ के नीचे और पैर के ऊपर का हिस्सा) का निपात हुआ था।