आज का पंचाग आपका राशि फल, ‘पुराण’ धरती और अखंड भारत वर्ष के जीवंत यथार्थ इतिहास और एक संस्कारित जीवन की व्यवस्था हैं, आत्म सुरक्षा के लिए शास्त्र व ध्यान और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए शस्त्र संधान

कंबोडिया में सनातन धर्म के प्रति बढ़ती जागरूकता 

🕉️ श्री गणेशाय नमः 🕉️ जगत् जनन्यै जगदंबा भगवत्यै नम 🕉️ नमः शिवाय 🕉️ नमो भगवते वासुदेवाय नमः सभी मित्र मंडली को आज का पंचांग एवं राशिफल भेजा जा रहा है इस का लाभ उठाएंगे भगवान हनुमान जी सभी मित्र मंडली की मनोकामनाएं पूर्ण करेंगे
मंगल ग्रह स्तुति:–
*धरणी गर्भ सम्भूतं, विद्युत् कान्ति समप्रभम्।कुमारं शक्तिहस्तं तं,मंगलं प्रणमाम्यहम्*।।
हिन्दी ब्याख्या:– पृथ्वी के उदर से जिनकी उत्पत्ति हुई विद्युत पुंज बिजली के सामान जिनकी प्रभा है जो हाथों में शक्ति धारण किए रहते हैं उन मंगल देव को मैं प्रणाम करता हूं।
भौम गायत्री मंत्र:–🕉️ *भूमि पुत्राय विद्महे लोहितांगाय धीमहि तन्नो भौम: प्रचोदयात्*।।
भौम गायत्री का यथाशक्ति जप करने के बाद खादिर युक्त पायस घी से दशांश हवन करें।
आपका अपना *पंडित चक्रधर प्रसाद मैदुली*फलित ज्योतिष शास्त्री* ✡️
🌿💐🌹🌷🙏🏻
*शुभ प्रभात म्।*
*यत्र यत्र रघुनाथ कीर्तनं*
*तत्र तत्र कृतमस्तकाञ्जलिम्।*
*भाष्पवारि परिपूर्ण लोचनं*
*मारुतिं नमत राक्षसान्तकम् ।।*
अर्थ : जहां – जहां भगवान श्रीरघुनाथकी संकीर्तन होता है, वहां शरणागत मस्तक, जुडे हुए हस्त कमल और नेत्रोंमें भावपूर्ण आनंद अश्रुके साथ उपस्थित होते हैं , ऐसे राक्षसोंका संहार करनेवाले, श्रीहनुमानको हमारा कोटिश: प्रणाम
✡️दैनिक पंचांग✡️
✡️वीर विक्रमादित्य संवत् ✡️
✡️2078✡️
✡️आषाढ़ मासे ✡️
✡️15 प्रविष्टे गते ✡️
✡️भौम वासरे ✡️
🕉️दिनांक ✡️ :29 – 06 – 2021(मंगलवार)✡️
✡️सूर्योदय :05.47 पूर्वाह्न✡️
✡️सूर्यास्त :07.12 अपराह्न✡️
✡️सूर्य राशि :मिथुन✡️
✡️चन्द्रोदय :11.21 अपराह्न✡️
✡️चंद्रास्त :11.07 पूर्वाह्न✡️
✡️चन्द्र राशि :कुंभ✡️
✡️विक्रम सम्वत :2078✡️
✡️अमांत महीना :ज्येष्ठ 19✡️
✡️पूर्णिमांत महीना :आषाढ़ 5✡️
✡️पक्ष :कृष्ण 5✡️
✡️तिथि :पंचमी 1.23 अपराह्न तक, बाद में षष्ठी✡️
✡️नक्षत्र :धनिष्ठा 12.48 पूर्वाह्न तक, बाद में शतभिषा✡️
✡️योग :प्रीति 12.20 अपराह्न तक, बाद में आयुष्मान✡️
✡️करण :तैतिल 1:23 अपराह्न तक, बाद में गर✡️
✡️राहु काल :3.52 अपराह्न से – 5.32 अपराह्न से✡️
✡️कुलिक काल :12.31 अपराह्न से – 2.11 अपराह्न तक✡️
✡️यमगण्ड :9.11 पूर्वाह्न से – 10.51 पूर्वाह्न तक✡️
✡️अभिजीत मुहूर्त :12.03 अपराह्न से- 12.56 अपराह्न तक✡️
✡️दुर्मुहूर्त :08:28 पूर्वाह्न से – 09:22 पूर्वाह्न तक, 11:26 अपराह्न से – 12:09 पूर्वाह्न तक✡️
*मित्रों राहुकाल यमघंट काल एवं दूर मुहूर्त में यात्रा एवं शुभ कार्य आरंभ नहीं करने चाहिए तथा अभिजीत मुहूर्त एवं कुलिक काल में यात्रा एवं शुभ कार्य आरंभ करने चाहिए*

✡️आज के लिए राशिफल (29-06-2021) ✡️
✡️मेष✡️29-06-2021
शुभ संदर्भ में आज का दिन आपको दूसरों के साथ व्यावसायिक व्यवहार के संदर्भ में भाग्यशाली बना देगा। आप लोकप्रियता प्राप्त करेंगे, व्यापार से आपकी आय बढ़ेगी और आपको अधिकारियों से पूर्ण सहयोग मिलेगा। किन्तु विपरीत संदर्भ में अनैतिक संबंध आपके पारिवारिक जीवन को नष्ट-भ्रष्ठ कर सकते हैं। प्रेमियों के लिए समय शुभ नहीं है। स्वास्थ्य के संबंध में आप सर्दी, खांसी अथवा आंखों की शिकायत से पीड़ित हो सकते हैं। अर्हिक संदर्भ में नुकसान से बचने के लिए अटकलों से दूर रहें।
भाग्यशाली दिशा : उत्तर
भाग्यशाली संख्या : 5
भाग्यशाली रंग : चांदी रंग
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✡️वृष ✡️29-06-2021
आज आपके सोचे हुए काम पूरे हो सकते हैं। आपको किसी घरेलू सामान की खरीदारी करनी पड़ सकती है। वाहन चलाते समय आपको सावधानी रखने की जरूरत है। किसी से बातचीत करते समय अपने शब्दों का ध्यान जरूर रखें। पारिवारिक विवादों से बचे रहें। बच्चे आज किसी पार्क में खेलने जा सकते हैं। आपको बच्चों की सेहत का थोड़ा ख्याल रखना चाहिए। जरूरत से ज्यादा बाहर का खाना पेट संबंधी परेशानियां उत्पन्न कर सकता है। शिवलिंग पर जल अर्पित करें, आपके सोचे हुए काम पूरे होंगे और आपके साथ सब अच्छा होगा।
भाग्यशाली दिशा : पश्चिम
भाग्यशाली संख्या : 1
भाग्यशाली रंग : पीला रंग
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✡️मिथुन ✡️29-06-2021
आज आपका दिन मिला-जुला रहेगा। दोस्तों के साथ कुछ दिलचस्प और रोमांचक समय बिताने के लिए अच्छा दिन है। क्रोध पर नियंत्रण रखें, अन्यथा विवादों में फंस सकते हैं। नौकरी करने वालों को संघर्ष करना पड़ सकता है। सामाजिक रूप से मान-सम्मान प्राप्त होगा। आज जोश में आकर किसी प्रकार का कोई गलत कदम नहीं उठाएं। अनियोजित खर्चों में वृद्धि होगी। सन्तान को कष्ट होगा।
भाग्यशाली दिशा : दक्षिण पश्चिम
भाग्यशाली संख्या : 7
भाग्यशाली रंग : हरा रंग
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✡️कर्क ✡️29-06-2021
आज आप कोशिश करेंगे, तो अच्छी सफलता भी मिल सकती है। आप आज लगभग किसी को भी अपनी बात से सहमत कर सकते हैं। घर में कुछ मामले अचानक आपके सामने आ सकते हैं। थोड़ा समय अकेले में बिताएं,आपके लिए अच्छा रहेगा। आप सहयोग और समझौता करने का पक्का इरादा करके ही घर से निकलें। ऑफिस या फील्ड में आपको किसी न किसी मामले में कोई समझौता भी करना पड़ सकता है। जो आने वाले दिनों में आपके फेवर में होगा।
भाग्यशाली दिशा : उत्तर
भाग्यशाली संख्या : 6
भाग्यशाली रंग : हल्का हरा
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✡️सिंह ✡️29-06-2021
आज आप जो कुछ भी करेंगे उसमें आप उत्साही रहेंगे। सुविचारित निर्णय लंबे समय तक प्रभावी रहेंगे। आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। संपत्ति के सौदे आपको लाभ देंगे। नौकरीपेशा जातकों के लिए तरक्की के आसार बन सकते हैं। घरेलू मोर्चे पर रुकी हुई परियोजनाएं गति और निकटता को पूरा करेंगी। गृह नवीनीकरण पर व्यय हो सकता है। आप एक मित्र के साथ फिर से जुड़ेंगे और यह पुरानी यादों को ताजा करेगा। आपमे से कुछ अपच के शिकार हो सकते है।
भाग्यशाली दिशा : पूर्व
भाग्यशाली संख्या : 2
भाग्यशाली रंग : हरा रंग
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✡️कन्या✡️29-06-2021
आज आप जिस भी काम को करना चाहेंगे, वो काम बड़े आराम से पूरा हो सकता है। आप किसी दोस्त की जन्मदिन समारोह में जा सकते हैं। आप किसी काम के लिये नई योजना बना सकते हैं। आपको अपनी मान-प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिये समाज के कार्यों में सहयोग देना चाहिए। आपको दूसरों के सामने अपनी बात खुलकर रखनी चाहिए। इससे विषय स्पष्ट रहेंगी। संतान की ओर से आपको सुख मिलेगा। आर्थिक स्थिति बेहतर रहेगी। मंदिर में चने की दाल दान करें, मान-सम्मान में वृद्धि होगी।
भाग्यशाली दिशा : दक्षिण
भाग्यशाली संख्या : 9
भाग्यशाली रंग : हल्का लाल
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✡️तुला ✡️29-06-2021
आज आप परिजनों के साथ खुशहाल समय बिताएंगे। संतान की जरूरतें पूरी हो सकती है। मानसिक तनाव हो सकता है। इस समय यात्रा करते समय सावधान रहें, और अपने निजी सामान को सुरक्षित और अपने पास रखें। आज का दिन आपके लिए नए आय के स्रोत खोल सकता है। रिश्तों में मधुरता और प्यार करने वाला साथी अच्छा रहेगा। गायत्री मंत्र का जप करें, शिक्षा के क्षेत्र में सफलता मिलेगी ।
भाग्यशाली दिशा : पूर्व
भाग्यशाली संख्या : 7
भाग्यशाली रंग : हल्का पीला
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✡️वृश्चिक ✡️29-06-2021
कार्यालय में अतिरिक्त दायित्व मिलने की संभावना है। आप नए काम शुरू करने का भी मन बना सकते हैं। दूसरों की बात ध्यान से सुनें। सकारात्मक रहें। काम ज्यादा नहीं रहेगा, फिर भी दिन तेजी से बीत सकता है। ऑफिस के किसी काम में आ रही रुकावट खत्म हो सकती है। आज आपकी मुलाकात कुछ ऐसे लोगों से हो सकती है जो आपके जीवन पर गहरा प्रभाव छोड़ेंगे। पैसों से जुड़े विषयों को विशेष तरह से निपटा दें।
भाग्यशाली दिशा : उत्तर
भाग्यशाली संख्या : 4
भाग्यशाली रंग : हल्का नीला
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✡️धनु ✡️29-06-2021
पिता-पुत्र के संबंध बिगड़ने से आप बहुत परेशान हो सकते हैं और भावनात्मक रूप टूट सकते हैं। कानूनी या विभागीय कार्यवाही आपको चिंतित कर सकती है। आप दूर या विदेशी स्थानों के लोगों के साथ व्यापार में नुकसान उठा सकते हैं। आप में से कुछ विदेश में रहने का विकल्प चुन सकते हैं। माँ या मातृ पक्ष के रिश्तेदारों के साथ आपका रिश्ता बिगड़ सकता है।
भाग्यशाली दिशा : दक्षिण पश्चिम
भाग्यशाली संख्या : 5
भाग्यशाली रंग : ग्रे रंग
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✡️मकर ✡️29-06-2021
आज काम से निपट लेने के बाद आप आराम अनुभव करेंगे। आपको किसी मामले में बड़ा निर्णय लेना पड़ सकता है। आप अपने दोस्तों के साथ बाहर जाकर कुछ हर्ष के पल बितायेंगे। कुछ जरूरी चीजें आज आपको फायदे दिलायेगी। इस राशि के व्यवसायी को किसी से आवश्यक भेंंट करनी पड़ सकती है। धन के मामले में स्थिति ठीक रहेगी। मित्रों और परिवारजनों के लिए समय निकालेंगे। उनकी सलाह आपके लिये महत्वपूर्ण रहेगी। अपने ईष्ट देव को प्रणाम करें, रिश्ते मजबूत होंगे।
भाग्यशाली दिशा : उत्तर
भाग्यशाली संख्या : 4
भाग्यशाली रंग : हल्का नीला
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✡️कुंभ ✡️29-06-2021
आज दांपत्य जीवन के विवादों का समाधान होगा। आज निवेश करने से बचना चाहिए। घरेलू समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है। नौकरी अथवा व्यवसाय में भी सफलता के अवसर तो मिलेंगे, लेकिन कार्यभार की अधिकता से अवसर हाथ से निकल सकते हैं। आकस्मिक लाभ या सट्टेबाज़ी के जरिए आर्थिक हालात सुदृढ़ होंगे। अपने निजी संबंधो में छोटी छोटी बातों पर हो रहे विवाद के कारण चिंता बढ़ेगी।
भाग्यशाली दिशा : दक्षिणपूर्व
भाग्यशाली संख्या : 3
भाग्यशाली रंग : चन्दन रंग
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✡️मीन ✡️29-06-2021
अच्छे मौके आपको मिल सकते हैं। नई प्लानिंग और अवसरों को लेकर कोई बड़ा फैसला भी आप कर सकते हैं। नौकरी में नया पद या नए काम का ऑफर मिल सकता है। बड़ी रुकावटें दूर हो सकती हैं। धन लाभ होगा, आमदनी का कोई नया सोर्स बनेगा। आपको कोई यात्राकरनी पड़ सकती है। दूसरों की कही हुई बातों पर ध्यान न दें। अपने काम से सबको खुश करने की प्रयास करें।
भाग्यशाली दिशा : उत्तर
भाग्यशाली संख्या : 8
भाग्यशाली रंग : सफ़ेद रंग
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*आपका अपना पंडित चक्रधर प्रसाद मैदुली फलित ज्योतिष शास्त्री जगदंबा ज्योतिष कार्यालय सोडा सरोली रायपुर देहरादून मूल निवासी ग्राम वादुक पत्रालय गुलाडी पट्टी नन्दाक जिला चमोली गढ़वाल उत्तराखंड फोन नंबर 8449046631, 9149003677* 🙏🏽🌹🌹🌹

हमारे अठारह पुराण हैं। उन सभी में भारतवर्ष का वर्णन संक्षिप्त या विस्तार से अवश्य मिलता है।हमारे पूर्वजों को अपने देश का भौगोलिक व्याप,उसमें रहने वाले निवासियों/ वर्ग,क्षेत्रों, प्रदेशों, नदियों और पर्वतों आदि का सूक्ष्मता और गहराई से ज्ञान था।यह हमारी पुण्यभूमि है ,ऐसा भाव प्राचीनकाल से रहा है। मत्स्यपुराण से उद्धृत विस्तृत वर्णन अवश्य पढ़िए। जानने योग्य है/विगत रात्रि में पढ़ा था।

मत्स्य पुराण में भारतवर्ष का वर्णन
अध्याय 114(सूत उवाच)

अथाहं वर्णिष्यामि वर्षे अस्मिन भारते प्रजा:।
भरणाच्च प्रजानां वै मनुर्भरत उच्यते।।5।।

निरूक्त वचनाच्चेैव वर्षं तद् भारतं स्मृतम् ।
यतः स्वर्गश्च मोक्षश्च मध्यमश्चापि हि स्मृतः ।।6।।

न खल्वन्यत्र मर्त्यानां भूमौ कर्मविधि: स्मृत:।
भारतस्यास्य वर्षस्य नव भेदान् निबोधत।।7।।

इन्द्रद्वीप:कशेरूश्च ताम्रपर्णो गभस्तिमान्।
नागद्वीपस्तथा सौम्यो गन्धर्वस्त्वथ वारुण:।।8।।

अयं तु नवमस्तेषां द्वीप: सागरसंवृत:।
योजनानां सहस्त्रं तु दीपो अयं दक्षिणोत्तर:।।9।।

आयतस्तु कुमारीतो गंगायाः प्रवहावधिः। तिर्यगूर्ध्वं तु विस्तीर्णः सहस्राणि दशैव तु ।।10।।

द्वीपो ह्युपनिविष्टो अयं म्लेच्छैरन्तेषु सर्वश:।
यवनाश्च किराताश्च तस्यान्ते पूर्वपश्चिमे।।11।।

ब्राह्मणा:क्षत्रिया वैश्या मध्ये शूद्राश्च भागश:।
इज्यायुधवणिज्याभिर्वर्तयन्तो व्यवस्थिता:।।12।।

तेषां संव्यवहारो अयं वर्तते तु परस्परम्।
धर्मार्थकामसंयुक्तो वर्णानां तु स्वकर्मसु।।13।।

सकल्पपञ्चमानां तु आश्रमाणां यथाविधि।
इह स्वर्गापवर्गार्थं प्रवृत्तिरिह मानुषे।।14।।

ऋषियो!अब इस भारतवर्ष में उत्पन्न होने वाली प्रजाओं का वर्णन कर रहा हूँ।इन प्रजाओं की सृष्टि करने तथा इनका भरण-पोषण करने के कारण मनु को भरत कहा जाता है।निरुक्त वचनों के आधार पर यह वर्ष उन्हीं के नाम पर भारतवर्ष नाम से प्रसिद्ध है।यहाँ स्वर्ग,मोक्ष तथा दोनों के अन्तर्वर्ती भोग पद की प्राप्ति होती है।
इस भूतल पर भारतवर्ष के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं भी प्राणियों के लिए कर्म का विधान नहीं सुना जाता।इस भारतवर्ष के नौ भेद हैं, उनके नाम सुनिए——-
इन्द्रद्वीप, कशेरुमान, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान, नागद्वीप,सौम्यद्वीप,गन्धर्वद्वीप और वारुणद्वीप–ये आठ तथा उनमें नवाँ यह समुद्र से घिरा हुआ द्वीप(या खण्ड)है। यह द्वीप दक्षिण से उत्तर तक एक हजार योजन में फैला हुआ है।
इसका विस्तार गंङ्गा के उद्गमस्थान से लेकर कन्याकुमारी अथवा कुमारी अन्तरीप तक है। यह तिरछे रूप में ऊपर ही-ऊपर दस सहस्त्र योजन विस्तृत है।
इस द्वीप के चारों ओर सीमावर्ती प्रदेशों में म्लेच्छ जातियों की बस्तियां हैं। इसकी पूर्व और पश्चिम दिशा में क्रमशः किरात और यवन निवास करते हैं।
इसके मध्य भाग में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र विभागपूर्वक यज्ञ,शस्त्र-ग्रहण और व्यवसाय आदि के द्वारा जीवन-यापन करते हुए निवास करते हैं।
उन चारों वर्णों का पारस्परिक व्यवहार धर्म,अर्थ और काम से संयुक्त होता है और वे अपने-अपने कर्मों में ही लगे रहते हैं।
यहाँ कल्पसहित पाँचों वर्णों(ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, योगी और सन्यासी)तथा आश्रमों का विधिपूर्वक पालन होता है।इस द्वीप के मनुष्यों की कर्म-प्रवृत्ति स्वर्ग और मोक्ष के लिए होती है।

यस्त्वयं मानवो द्वीपस्तिर्यग्यामः प्रकीर्तितः । य एनं जयते कृत्स्नं स सम्राडिति कीर्तितः ।।15।।

अयं लोकस्तु वै सम्राडन्तरिक्षजितां स्मृतः।
स्वराडसौ स्मृतो लोकःपुनर्वक्ष्यामि विस्तरात्।।16।।
सप्त चास्मिन् महावर्षे विश्रुताः कुलपर्वताः । महेन्द्रो मलयः सह्यः शुक्तिमानृक्षवानपि।।17।।

विन्ध्यश्च पारियात्रश्च इत्येते कुलपर्वताः ।
तेषां सहस्रशश्चान्ये पर्वतास्तु समीपतः।।18।।

अमिज्ञातास्ततश्चान्ये विपुलाश्चित्रसानवः।
अन्ये तेभ्यःपरिज्ञाता हृस्वा हृस्वोपजीविनः।।19।।

तैर्विमिश्रा जानपदा आर्या म्लेच्छाश्च सर्वतः।
पीयन्ते यैरिमा नद्यो गंङ्गा सिन्धु: सरस्वती।।20।।

शतद्रुश्चन्द्रभागा च यमुना सरयुस्तथा ।
इरावती वितस्ता च विपाशा देविका कुहूः। ।।21।।

गोमती धूतपापा च बाहुदा च दृषद्वती ।
कौशिकी च तृतीया च निश्चीरा गण्डकी तथा । चक्षुर्लौहित इत्येता हिमवत्पादनिः सृताः।।22।।

वेदस्मृतिर्वेत्रवती वृत्रघ्नी सिंधुरेव च ।
पर्णाशा चन्दना चैव सदानीरा मही तथा।।23।।

पारा चर्मण्वती यूपा विदिशा वेणुमत्यपि ।
शिप्रा ह्यवन्ती कुन्ती च पारियात्राश्रिताः स्मृता: ।।24।।

इस मानव द्वीप(भारतवर्ष) को जो त्रिकोणाकार फैला हुआ है, जो सम्पूर्ण रूप में जीत लेता है वह सम्राट कहलाता है। और जो समस्त धरती को अपने अधीन करता है वह चक्रवर्ती सम्राट कहलाता है। 
अन्तरिक्ष विजय पानेवालों के लिए यह लोक सम्राट कहा गया है और यही लोक स्वराट् के नाम से भी प्रसिद्ध है।अब मैं इसका पुनः विस्तारपूर्वक वर्णन कर रहा हूँ।
इस महान भारतवर्ष में सात विश्वविख्यात कुलपर्वत हैं।महेन्द्र(उड़ीसा के दक्षिणपूर्वी भाग का पर्वत),मलय,सह्य,शुक्तिमान(यह शक्ति पर्वत है ,जो रायगढ़ से लेकर मानभूम जिले की डालमा पहाड़ी तक फैला है),ऋक्षवान(यह विन्ध्य-पर्वतमाला का पूर्वी भाग है),विन्ध्य और पारियात्र(यह विन्ध्यपर्वतमाला का पश्चिमी भाग है)–ये कुलपर्वत हैं।इनके समीप अन्य हजारों पर्वत हैं।
इनके अतिरिक्त अन्य भी विशाल एवं चित्र-विचित्र शिखरोंवाले पर्वत हैं तथा कुछ उनसे भी छोटे हैं जो निम्न(पर्वतीय)जातियों के आश्रयभूत हैं।
इन्हीं पर्वतों से संयुक्त जो प्रदेश हैं उनमें चारों ओर आर्य एवं म्लेच्छ जातियाँ निवास करती हैं,जो इन आगे कही जानेवाली नदियों का जलपान नहीं कर पाती है। (इसी से उस काल में भारत के विस्तार की कल्पना की जा सकती है) 
जैसे गंङ्गा,सिन्धु,सरस्वती, शतद्रु(सतलज),चन्द्रभागा(चिनाव),यमुना, सरयू, इरावती(रावी),वितस्ता(झेलम),विपाशा(व्यास),देविका, कुहू,गोमती, धूतपापा(धोपाप),बाहुदा,दृषद्वती कौशिकी(कोसी),तृतीया, निश्चीरा,गण्डकी,चक्षु,लौहित–ये सभी नदियाँ हिमालय की उपत्यका(तलहटी)से निकली हुई हैं।
वेदस्मृति, वेत्रवती(वेतवा),वृत्रन्घी,सिन्धु,पर्णाशा, चन्दना, सदानीरा, मही,पारा,चर्मण्वती, यूपा,विदिशा, वेणुमती,शिप्रा, अवन्ती तथा कुन्ती-इन नदियों का उद्गमस्थान पारियात्र पर्वत है।

शोणो महानदी चैव नर्मदा सुरसा क्रिया । मन्दाकिनी दशार्णा च चित्रकूटा तथैव च ।
तमसा पिप्पली श्येनी करतोया पिशाचिका।।25।।

विमला चञ्चला चैव वञ्जुला वालुवाहिनी । शक्तिमन्ती शुनी लज्जा मुकुटा हृदिकापि च । ऋक्षवन्त प्रसूतास्ता नद्यो अमलजलाः शुभाः।। ।।26।।

तापी पयोष्णी निर्विन्ध्या क्षिप्रा च निषधा नदी । वेण्वा वैतरणी चैव विश्वमाला कुमुद्वती।।27।।

तोया चैव महागौरी दुर्गा चान्तः शिला तथा । विन्ध्यपादप्रसूतास्ता नद्यः पुण्यजलाः शुभाः।।28।।

गोदावरी भीमरथी कृष्णवेणी च वञ्जुुला । तुङ्गभद्रा सुप्रयोगा वाह्या कावेर्यथापि च । दक्षिणापथनद्यस्ताः सह्यपादाद् विनिःसृताः।।29।।

कृतमाला ताम्रपर्णी पुष्पजा चोत्पलावती । मलयान्निः सृता नद्यः सर्वाः शीतजलाः शुभाः।।30।।

त्रिषामा ऋषिकुल्या च इक्षुला त्रिदिवाचला । लाङ्गूलिनी वंशधरा महेन्द्रतनयाः स्मृताः।।31।।

ऋषीका सुकुमारी च मन्दगा मन्दवाहिनी ।
कृपा पलाशिनी चैव शुक्तिमत्प्रभवाः स्मृताः।।32।।
सर्वाः पुण्यजलाः पुण्याः सर्वाश्चैव समुद्रगाः।
विश्वस्य मातरः सर्वाः सर्वपापहराः शुभाः।।33।।

शोण,महानदी, नर्मदा, सुरसा, क्रिया,मन्दाकिनी, दर्शाणा,चित्रकूटा, तमसा, पिप्पली, श्येनी,करतोया, पिशाचिका, विमला चञ्चला,वञ्जुला,वालुवाहिनी, शुक्तिमन्ती,शुनी,लज्जा, मुकुटा और हृदिका–ये स्वच्छसलिला कल्याणमयी नदियाँ ऋक्षवन्त(ऋक्षवान)पर्वत से उद्भूत हुई हैं।
तापी,पयोष्णी(पूर्णानदी या पैनगङ्गा),निर्विन्ध्या, क्षिप्रा, निषधा,वेण्या, वैतरणी,विश्वमाला,कुमुद्वती, तोया, महागौरी, दुर्गा तथा अन्त:शिला–ये सभी पुण्यतोया मङ्गलमयी नदियाँ विन्ध्याचल की उपत्यकाओं से निकली हुई हैं।
गोदावरी, भीमरथी, कृष्णवेणी,वञ्जुला(मंजीरा),कर्णाटक की तुङ्गभद्रा, सुप्रयोगा, वाह्या(वर्धानदी)और कावेरी–ये सभी दक्षिणापथ में प्रवाहित होनेवाली नदियाँ हैं,जो सह्यपर्वत की शाखाओं से प्रकट हुई ।
कृतमाला(वैगयीन नदी),ताम्रपर्णी, पुष्पजा(कुसुमाङ्गा,पेम्बै या पेन्नार नदी)और उत्पलावती–ये कल्याणमयी नदियाँ मलयाचल से निकली हुई हैं।इनका जल बहुत शीतल होता है।
त्रिषामा,ऋषिकुल्या,इक्षुला,त्रिदिवा, अचला, लाङ्गूलिनी और वंशधरा—ये सभी नदियाँ महेन्द्र पर्वत से निकली हुई मानी जाती हैं।
ऋषीका,सुकुमारी, मन्दग,मन्दवाहिनी,कृपा और पलाशिनी–इन नदियों का उद्गम शुक्तिमान् पर्वत से हुआ है।
ये सभी पुण्यतोया नदियाँ पुण्यप्रद, सर्वत्र बहनेवाली तथा साक्षात् या परम्परा से समुद्रगामिनी हैं।ये सब-की-सब विश्व के लिए माता-सदृश हैं तथा इन सबको कल्याणकारिणी एवं पापहारिणी माना गया है।

तासां नद्युपनद्यश्च शतशो अथ सहस्त्रश:।
तास्विमे कुरुपाञ्चाला:शाल्वाश्चैव सजाङ्गला:।।34।।
शूरसेना भद्रकारा बाह्याः सहपटच्चराः।
मत्स्याः किराताः कुन्त्याश्च कुन्तलाः काशिकोसला:।।35।।

आवन्ताश्च कलिङ्गाश्च मूकाश्चैवान्धकैः सह।
मध्यदेशा जनपदाः प्रायशः परिकीर्तिताः।।36।।

सह्यस्यानन्तरे चैते यत्र गोदावरी नदी।
पृथिव्यामपि कृतस्न्नायां स प्रदेशो मनोरमः।।37।।

यत्र गोवर्धनो नाम मन्दरो गन्धमादन:।
रामप्रियार्थं स्वर्गीया वृक्षा दिव्यास्तथौषधीः।।38।।

भरद्वाजेन मुनिना तत्प्रियार्थे अवतारिताः।
ततः पुष्पवरो देशस्तेन जज्ञे मनोरमः।।39।।

बाल्हीका वाटधानाश्च आभीराः कालतोयकाः।
पुरंध्राश्चैव शूद्राश्च पल्लवाश्चात्तखण्डिकाः।।40।।

गान्धारा यवनाश्चैव सिन्धुसौवीरभद्रकाः।
शका द्रुह्याः पुलिन्दाश्च पारदाहारमूर्तिकाः।।41।।

रामठाः कण्टकाराश्च कैकेय्या दशनामकाः।
क्षत्रियोपनिशाश्च वैश्याः शूद्रकुलानि च।।42।।

काम्बोजा दरदाश्चैव वर्वरा पल्हवा तथा।
अत्रेयाश्च भरद्वाजाः प्रस्थलाश्च कसेरकाः।।43।।

लम्पकास्तलगानाश्च सैनिकाः सह जाङ्गलैः।
एते देशा उदीच्यास्तु प्राच्यान् देशान् निबोधत।।44।।
अङ्गा वङ्गा मद्रुरका अन्तर्गिरिबहिर्गिरी।
ततः प्लवङ्गमातङ्गा यमका मालवर्णकाः।
सुह्योत्तराः प्रविजया मार्गवागेयमालवाः।।45।।

प्राग्ज्योतिषाश्च पुण्ड्राश्च विदेहास्ताम्रलिप्तकाः।
शाल्वमागधगोनर्दाः प्राच्या जनपदाः स्मृताः।।46।।

अथवा इनकी सैकड़ों-हजारों छोटी-बड़ी सहायक नदियाँ भी हैं जिनके कछारों में कुरु,पाञ्चाल, शाल्व,सजाङ्गल,शूरसेन, भद्रकार,बाह्य, सहपटच्चर,मत्स्य, किरात,कुन्ती, कुन्तल,काशी,कोसल,आवन्त,कलिङ्ग,मूक और अन्धक—ये देश अवस्थित हैं,जो प्रायः मध्यदेश के जनपद कहलाते हैं।ये सह्य पर्वत के निकट बसे हुए हैं,यहाँ गोदावरी नदी प्रवाहित होती है।
अखिल भूमण्डल में यह प्रदेश अत्यंत मनोरम है।
तत्पश्चात गोवर्धन, मन्दराचल और श्रीरामचन्द्रजी का प्रियकारक गन्धमादन पर्वत है,जिस पर मुनिवर भरद्वाजजी ने श्रीराम के मनोरंजन के लिए स्वर्गीय वृक्षों और दिव्य औषधियों को अवतरित किया था।
उन्हीं मुनिवर के प्रभाव से वह प्रदेश पुष्पों से परिपूर्ण होने के कारण मनोमुग्धकारी हो गया था।
बाल्हीक(बलख),वाटधान,आभीर,कालतोयक,पुरन्ध्र,शूद्र, पल्लव,आत्तखण्डिक,गान्धार, यवन,सिन्धु(सिंध),सौवीर(सिन्ध का उत्तरी भाग),मद्रक(पंजाब का उत्तरी भाग),शक,द्रुह्य(ययाति-पुत्र द्रुह्य का उत्तरी भाग-पश्चिमी पंजाब),पुलिन्द,पारद,आहारमूर्तिक,रामठ,कण्टकार,कैकेय और दशनामक-ये क्षत्रियों के उपनिवेश हैं तथा इनमें वैश्य और शूद्र-कुल के लोग भी निवास करते हैं।
इनके अतिरिक्त कम्बोज(अफगानिस्तान),दरद,बर्बर, पल्हव(ईरान),अत्रि, भरद्वाज, प्रस्थल,कसेरक,लम्पक,तलगान,और जाङ्गल सहित सैनिक प्रदेश–ये सभी उत्तरापथ के देश हैं।
अब पूर्व दिशा के देशों को सुनिए।
अङ्ग(भागलपुर),वङ्ग(बंगाल),मद् गुरक,अन्तर्गिरि,बहिर्गिरि,प्लवङ्ग,मातङ्ग,यमक,मालवर्णक,सुह्य(उत्तरी असम),प्रविजय,मार्ग,वागेय,मालव,प्राग्ज्योतिष(आसाम का पूर्वी भाग),पुण्ड्र(बंगलादेश),विदेह(मिथिला),ताम्रलिप्तक(उड़ीसा का उत्तरी भाग),शाल्व,मगध और गोनर्द–ये पूर्व दिशा के जनपद हैं।

अथापरे जनपदा दक्षिणापथवासिनः।
पाण्ड्याश्च केरलाश्चैव चोलाः कुल्यास्तथैव च।।47।।
सेतुका मूषिकाश्चैव कुपथा वाजिवासिकाः।महाराष्ट्रा माहिष्काः कलिङ्गाश्चैव सर्वशः।।48।।

आभीराश्च सहैषीका आटव्याः शबरास्तथा।
पुलिन्दा विन्ध्यमुलिका वैदर्भा दण्डकैः सह।।49।।

कुलीयाश्च सिरालाश्च अश्मका भोगवर्धनाः।
तथा तैत्तिरिकाश्चैव दक्षिणापथवासिनः।।50।।

नासिक्याश्चैव ये चान्ये ये चैवान्तरनर्मदाः।भारुकच्छाः समाहेयाः सह सारस्वतैस्तथा।।51।।

काच्छीकाश्चैव सौराष्ट्रा आनर्ता अर्बुदैः सह।
इत्येते अपरान्तास्तु श्रृणु ये विन्ध्यवासिनः।।52।।

मालवाश्च करूषाश्च मेकलाश्चोत्कलैः सह।
औण्ड्रा माषा दशार्णाश्च भोजाः किष्किन्धकैः सह।।53।।

तोशलाः कोसलाश्चैव त्रैपुरा वैदिशास्तथा।
तुमुरास्तुम्बराश्चैव पद्रमा नैषधैः सह।।54।।

अरूपाःशौण्डिकेराश्च वीतिहोत्रा अवन्तयः
एते जनपदाः ख्याता विन्ध्यपृष्ठनिवासिनः।।55।।

अतो देशान् प्रवक्ष्यामि पर्वताश्रयिणश्च ये।
निराहाराः सर्वगाश्च कुपथा अपथास्तथा।।56।।

कुथप्रावरणाश्चैव ऊर्णादर्वाः समुद्रकाःः
त्रिगर्ता मण्डलाश्चैव किराताश्चामरैः सह।।57।।

चत्वारि भारते वर्षे युगानि मुनयो अब्रुवन्।
कृतं त्रेता द्वापरं च कलिश्चेति चतुर्युगम्।
तेषां निसर्गं वक्ष्यामि उपरिष्टाच्च कृत्स्न्नशः।।58।।

इनके बाद अब दक्षिणापथ के देश बतलाये जा रहे हैं।पाण्ड्य,केरल,चोल,कुल्य,सेतुक,मूषिक,कुपथ,वाजिवासिक,महाराष्ट्र, माहिषक,कलिंग(उड़ीसा का दक्षिणी भाग),आभीर,सहैषीक,आटव्य,शबर,पुलिन्द, विन्ध्यमुलिक,वैदर्भ(विदर्भ),दण्डक,कुलीय, सिराल,,अश्मक(महाराष्ट्र का दक्षिण भाग),भोगवर्धन(उड़ीसा का दक्षिण भाग),तैत्तिरिक,नासिक्य,तथा नर्मदा के अन्तःप्रान्त में स्थित अन्य प्रदेश–ये दक्षिणापथ के अन्तर्गत के देश हैं।
भारुकच्छ,माहेय,सारस्वत,काच्छीक,सौराष्ट्र, आनर्त और अर्बुद –ये सभी अपरान्त प्रदेश हैं।
अब जो विन्ध्यवासियों के प्रदेश हैं,उन्हें सुनिये।
मालव,करुष,मेकल,उत्कल,औण्ड्र(उड़ीसा), माष,दशार्ण,भोज,किष्किन्धक,तोशल, कोसल(दक्षिणकोसल),त्रैपुर,वैदिश(भेलसा राज्य),तुमुर,तुम्बर,पद्रम,नैषध,अरूप, शौण्डिकेर,वीतिहोत्र तथा अवन्ति–ये सभी प्रदेश विन्ध्यपर्वत की घाटियों में स्थित बतलाये जाते हैं।
इसके बाद अब मैं उन देशों का वर्णन कर रहा हूँ जो पर्वत पर स्थित हैं।उनके नाम हैं–निराहार, सर्वग,कुपथ,अपथ,कुथप्रावरण,ऊर्णादर्व, समुद्रक,त्रिगर्त,मण्डल,किरात और चामर।

मुनियों का कथन है कि इस भारतवर्ष में सत्ययुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग –इन चार युगों की व्यवस्था है।अब मैं उनके वृत्तान्त का पूर्णतया वर्णन कर रहा हूँ।–क्रमशः (तात्पर्य यही है कि पुराण धराधाम और मानव उद्गम स्थल अखंड भारत वर्ष के जीवंत और यथार्थ इतिहास भी हैं और एक आचारवान जीवन जीने की व्यवस्था भी) 

आचार्य रजनीश के एक अनुयायी ने उनसे प्रश्न किया 
प्रश्न – कृपया बतायें जेहादियों द्वारा जब मकान और संपत्ति जलाई जा रही हों , हत्याएं की जा रही हों,तब हमें क्या करना चाहिए? हिन्दू मुस्लिम भाई भाई का प्रचार करना चाहिए या सुरक्षा के लिए कोई कदम उठाना चाहिए , कृपया मार्गदर्शन करें।

उत्तर – तुम्हारा प्रश्न ही तुम्हारी मूढ़ता को बता रहा है, इतिहास से तुमने कुछ सीखा हो ऐसा मालूम नहीं पड़ता।

महमूद गजनबी ने जब सोमनाथ के मंदिर पर आक्रमण किया तो सोमनाथ उस समय का भारत का सबसे बड़ा और धनी मंदिर था।

उस मंदिर में पूजा करने वाले 1200 हिन्दू पुजारियों का ख़याल था कि हम तो रातदिन ध्यान ,भक्ति ,पूजापाठ, में लगे रहते हैं।

इसलिए भगवान हमारी रक्षा करेगा।
उन्होंने रक्षा का कोई इंतज़ाम नहीं किया उल्टे जो क्षत्रिय अपनी रक्षा कर सकते थे उन्हें भी मना कर दिया

नतीजन महमूद ने उन हज़ारों निहत्थे हिन्दू पुरोहितो की हत्या की, मूर्तियों ओर मंदिर को तोड़ा ओर अकूत धन संपत्ति हीरे जवाहरात सोना -चाँदी लूट कर ले गया
उनका ध्यान भक्ति पूजा पाठ उनकी रक्षा न कर सका।

आज सैकड़ों साल बाद भी वही मूढ़ता जारी है, तुमने अपने महापुरूषों के जीवन से भी कुछ सीखा हो ऐसा मालूम नहीं पड़ता है।

यदि ध्यान में इतनी शक्ति होती कि वो दुष्टों का ह्रदय परिवर्तन कर सके तो रामचंद्र जी को हमेशा अपने साथ धनुष बाण रखने की जरूरत क्यों होती। ध्यान की शक्ति से ही वो राक्षस और रावण का हदय परिवर्तन कर देते उन्हें सुर-असुर भाई -भाई समझा देते और झगड़ा ख़त्म हो जाता लेकिन राम भी किसी को समझा न पाए और राम रावण युद्ध का फैसला भी अस्र शस्त्र से ही हुआ।

ध्यान में यदि इतनी शक्ति होती कि वो दुसरो के मन को परिवतिर्त कर सके। तो पूर्णावतार श्रीकृष्ण को कंस ओर जरासंघ का वध करने की जरूरत क्यों पड़ती! ध्यान से ही उन्हें बदल देते।

ध्यान में यदि दूसरे के मन को बदलने की शक्ति होती तो महभारत का युद्ध ही नहीं होता, कृष्ण अपनी ध्यान की शक्ति से दुर्योधन को बदल देते ओर युद्ध टल जाता। लेकिन उल्टे कृष्ण ने अर्जुन को जो कि ध्यान में जाना चाहता था रोका और उसे युद्ध में लगाया ।

महाभारत का युद्ध इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध है जिसमें करोड़ों लोगों का नरसंहार हुआ, पिछले 1200 सालों में भारत मे कितने महर्षि संत हुए ,गोरखनाथ से लेकर रैदास ओर कबीर तक गुरुनानक से लेकर गुरु गोविंदसिंह तक इन सबकी ध्यान की शक्ति भी मुस्लिम आक्रान्ताओं और अंग्रेज़ों को न रोक सकी इस दौरान करोड़ों हिन्दुओं का नरसंहार हुआ और ज़बरदस्ती तलवार की नोक पर उनका धर्म परिवर्त्तन करवाया गया।

मार मार कर उन्हें मुसलमान बनाया गया
उन संतों की शिक्षा आक्रान्ताओं को बदल न सकी। गुरुनानक ने तो अपना धर्म दर्शन ही इस प्रकार दिया कि मुस्लमान उसे आसानी से समझ सकें, आत्मसात कर सकें । लेकिन उसी गुरु परंपरा में गुरुगोविंद सिह को हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए, मुसलमानों के खिलाफ़ तलवार उठानी पड़ी निहत्थे सिक्खों को शस्त्र उठाने पड़े।

इससे स्पष्ट हो जाता है कि ध्यान से स्वयं की ही चेतना का रूपांतरण हो सकता है
लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा और पदार्थ (भौतिक शरीर) की रक्षा हमें स्वयं करनी होगी उसके लिए विज्ञान और टेक्नॉलॉजी का सहारा लेना होगा। (आदि शंकराचार्य द्वारा भी सनातन धर्म रक्षा हेतु नागा सन्यासी बनाये गये) 

देश की 70% से अधिक समस्याओं का समाधान

*भगवान श्रीकृष्ण ने 5 गाँव मांगे थे!*
*हम देशहित में 5 कानून मांग रहे हैं!!*

*समान शिक्षा*
*समान नागरिक संहिता*
*धर्मातंरण नियंत्रण*
*घुसपैठ नियंत्रण*
*जनसंख्या नियंत्रण*

ये पांच कानून नहीं आऐ तो पूरी दुनियां और भारत के नौ राज्यों की तरह सनातन पूरी तरह मिट जाऐगा।

*भारत बचाओं आंदोलन*

*प्रातः 10 बजे, 8 अगस्त 2021*
*चलो जंतर-मंतर, दिल्ली*

संपर्क सूत्र – 9868310740 

निवेदक :-
*अश्विनी उपाध्याय*
*अधिवक्ता – सुप्रीम कोर्ट*
*PIL MAN OF INDIA**

*भाई प्रीत सिंह*

*President – Save India Foundation*