आज का पंचाग आपका राशि फल, पिथौरागढ़ के लोक कलाकारों की हिलजात्रा, अद्वितीय है अटल ब्रिज, आक्रांताओं के अपवित्र हाथों से बचाव के लिए आज के दिन रानी पद्मिनी ने 16,000 क्षत्राणियों के साथ जौहर किया,

. अद्वितीय है अटल ब्रिज

‼️ 🕉️ ‼️
🚩🌞 *सुप्रभातम्* 🌞🚩
📜««« *आज का पञ्चांग* »»»📜
कलियुगाब्द……………………..5124
विक्रम संवत्…………………….2079
शक संवत्……………………….1944
रवि………………………….दक्षिणायन
मास…………………………….भाद्रपद
पक्ष……………………………….शुक्ल
तिथी…………………………..प्रतिपदा
दोप 02.43 पर्यंत पश्चात द्वितीया
सूर्योदय…………..प्रातः 06.08.01 पर
सूर्यास्त…………..संध्या 06.48.22 पर
सूर्य राशि…………………………..सिंह
चन्द्र राशि………………………….सिंह
गुरु राशि…………………………..मीन
नक्षत्र……………………..पूर्वाफाल्गुनी
रात्रि 09.49 पर्यंत पश्चात उत्तराफाल्गुनी
योग………………………………सिद्ध
रात्रि 01.34 पर्यंत पश्चात साध्य
करण………………………………बव
दोप 02.43 पर्यंत पश्चात बालव
ऋतु……………………………….वर्षा
*दिन………………………..रविवार*

*🇮🇳 राष्ट्रीय सौर भाद्र, दिनांक ०६*
*( नभस्यमास ) !*

*🇬🇧 आंग्ल मतानुसार दिनांक*
*२८ अगस्त सन् २०२२ ईस्वी !*

☸ शुभ अंक………………………1
🔯 शुभ रंग…………………….लाल

⚜️ *अभिजीत मुहूर्त :-*
दोप 12.02 से 12.52 तक ।

👁‍🗨 *राहुकाल :-*
संध्या 05.10 से 06.44 तक ।

🌞 *उदय लग्न मुहूर्त :-*
*सिंह*
05:23:44 07:35:32
*कन्या*
07:35:32 09:46:12
*तुला*
09:46:12 12:00:50
*वृश्चिक*
12:00:50 14:17:00
*धनु*
14:17:00 16:22:37
*मकर*
16:22:37 18:09:45
*कुम्भ*
18:09:45 19:43:18
*मीन*
19:43:18 21:14:30
*मेष*
21:14:30 22:55:14
*वृषभ*
22:55:14 24:53:52
*मिथुन*
24:53:52 27:07:33
*कर्क*
27:07:33 29:23:44

🚦 *दिशाशूल :-*
पश्चिमदिशा – यदि आवश्यक हो तो दलिया, घी या पान का सेवनकर यात्रा प्रारंभ करें ।

✡ *चौघडिया :-*
प्रात: 07.44 से 09.18 तक चंचल
प्रात: 09.18 से 10.52 तक लाभ
प्रात: 10.52 से 12.27 तक अमृत
दोप. 02.01 से 03.35 तक शुभ
सायं 06.43 से 08.09 तक शुभ
संध्या 08.09 से 09.35 तक अमृत
रात्रि 09.35 से 11.01 तक चंचल ।

📿 *आज का मंत्रः*
|| ॐ हिरण्यगर्भाय नम: ||

 *संस्कृत सुभाषितानि :-*
खलानां कण्टकानां च द्विविधैव प्रतिक्रिया ।
उपानन्मुखभंगो वा दूरतो वा विसर्जनम् ॥
अर्थात :-
दुष्ट मानव और कंटक को दूर करने के दो हि उपाय है, या तो जूते से मुख तोड दो, या तो दूर से हि भगा दो ।

🍃 *आरोग्यं सलाह :-*
*अजवाइन की पत्ती के फायदे -*

*3. उर्जा को बढ़ाए -*
ओरिगैनो या आजवाइन की पत्तियां उर्जा को बढ़ाने काम करता है। यह मेटाबॉलिज्म या चयापचय की कार्यक्षमता में सुधार करने में मदद करता है तथा शरीर हर समय कायाकल्प और उत्साहित रहता है। यह ब्लड सर्कुलेशन में वृद्धि, आयरन जैसे खनिजों की उपस्थिति के कारण, हमारे शरीर की कोशिकाओं और मांसपेशियों को ऑक्सीजन करने में मदद करता है, जो ऊर्जा को बढ़ावा देता है और हमें शक्ति देता है।

. ⚜ *आज का राशिफल* ⚜

🐐 *राशि फलादेश मेष :-*
*(चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, आ)*
स्थायी संपत्ति के बड़े सौदे बड़ा लाभ दे सकते हैं। मनपसंद रोजगार मिलेगा। आर्थिक उन्नति के प्रयास सफल रहेंगे। कर्ज समय पर चुका पाएंगे। बैंक-बैलेंस बढ़ेगा। नौकरी में चैन रहेगा। व्यापार में वृद्धि के योग हैं। शेयर मार्केट से लाभ होगा। घर-परिवार की चिंता बनी रहेगी। तनाव रहेगा।

🐂 *राशि फलादेश वृष :-*
*(ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)*
धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने का अवसर प्राप्त हो सकता है। सत्संग का लाभ मिलेगा। राजकीय सहयोग प्राप्त होगा। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। नौकरी में सहकर्मी साथ देंगे। कारोबार में वृद्धि होगी। निवेश लाभ देगा। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। जल्दबाजी से हानि संभव है।

👫🏻 *राशि फलादेश मिथुन :-*
*(का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, ह)*
आंखों का विशेष ध्यान रखें। चोट व रोग से बचाएं। पुराना रोग उभर सकता है। कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। वाणी पर नियंत्रण रखें। व्यवसाय की गति धीमी रहेगी। आय बनी रहेगी। नौकरी में कार्यभार रहेगा। थकान महसूस होगी। सहकर्मी सहयोग नहीं करेंगे। चिंता रहेगी।

🦀 *राशि फलादेश कर्क :-*
*(ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)*
वाणी में शब्दों का प्रयोग सोच-समझकर करें। प्रतिद्वंद्विता में कमी होगी। राजकीय सहयोग प्राप्त होगा। वैवाहिक प्रस्ताव मिल सकता है। व्यापार में वृद्धि होगी। स्त्री वर्ग से समयानुकूल सहायता प्राप्त होगी। नौकरी में उच्चाधिकारी प्रसन्न रहेंगे। निवेश शुभ रहेगा। स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

🦁 *राशि फलादेश सिंह :-*
*(मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)*
बिगड़े काम बनेंगे। निवेश मनोनुकूल लाभ देगा। नौकरी में प्रभाव वृद्धि होगी। कोई पुराना रोग बाधा का कारण हो सकता है। सामाजिक कार्य करने का अवसर प्राप्त होगा। घर-बाहर पूछ-परख रहेगी। विरोध होगा। आर्थिक नीति में परिवर्तन होगा। कार्यप्रणाली में सुधार होगा। तत्काल लाभ नहीं होगा।

🙎🏻‍♀️ *राशि फलादेश कन्या :-*
*(ढो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)*
किसी मांगलिक कार्य का आयोजन हो सकता है। स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ उठा पाएंगे। यात्रा लाभदायक रहेगी। बौद्धिक कार्य सफल रहेंगे। किसी प्रबुद्ध व्यक्ति का मार्गदर्शन प्राप्त होगा। स्वास्थ्य का पाया कमजोर रह सकता है। दूसरों के झगड़ों में न पड़ें। लेन-देन में सावधानी रखें। लाभ होगा।

⚖ *राशि फलादेश तुला :-*
*(रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)*
यात्रा मनोनुकूल रहेगी। कारोबार से संतुष्टि रहेगी। रुका हुआ धन प्राप्त होगा। प्रयास सफल रहेंगे। बुद्धि का प्रयोग करें। प्रमाद न करें। निवेश से लाभ होगा। नौकरी में प्रभाव क्षेत्र बढ़ेगा। व्यापार-व्यवसाय में उत्साह से काम कर पाएंगे। भाग्य अनुकूल है, जल्दबाजी न करें। प्रसन्नता रहेगी।

🦂 *राशि फलादेश वृश्चिक :-*
*(तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)*
आवश्यक वस्तु समय पर नहीं मिलने से खिन्नता रहेगी। बनते कामों में बाधा उत्पन्न होगी। स्वास्थ्य कमजोर रहेगा। काम में मन नहीं लगेगा। वैवाहिक प्रस्ताव मिल सकता है। थोड़े प्रयास से ही कार्यसिद्धि होने से प्रसन्नता रहेगी। निवेश से लाभ होगा। व्यापार-व्यवसाय ठीक चलेंगे।

🏹 *राशि फलादेश धनु :-*
*(ये, यो, भा, भी, भू, धा, फा, ढा, भे)*
जल्दबाजी व लापरवाही से हानि होगी। राजकीय कोप भुगतना पड़ सकता है। विवाद न करें। शुभ समाचार प्राप्त होंगे। प्रसन्नता रहेगी। बिछड़े मित्र व संबंधी मिलेंगे। विरोधी सक्रिय रहेंगे। जोखिम उठाने का साहस कर पाएंगे। व्यापार मनोनुकूल चलेगा। नौकरी में सहकर्मी सहयोग करेंगे। लाभ होगा।

🐊 *राशि फलादेश मकर :-*
*(भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी)*
कोई अनहोनी होने की आशंका रहेगी। काम में मन नहीं लगेगा। व्यावसायिक यात्रा लाभदायक रहेगी। रोजगार मिलेगा। आय में वृद्धि होगी। कारोबार में वृद्धि होगी। शेयर मार्केट मनोनुकूल लाभ देगा। बुद्धि का प्रयोग करें। घर-बाहर प्रसन्नता का वातावरण बनेगा। भाग्य का साथ मिलेगा।

🏺 *राशि फलादेश कुंभ :-*
*(गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)*
वाहन, मशीनरी व अग्नि के प्रयोग में सावधानी रखें। विशेषकर गृहिणियां लापरवाही न करें। आवश्यक वस्तुएं गुम हो सकती हैं। दुष्टजन हानि पहुंचा सकते हैं। अप्रत्याशित खर्च सामने आएंगे। किसी व्यक्ति की बातों में न आएं। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। चिंता तथा तनाव बने रहेंगे।

🐋 *राशि फलादेश मीन :-*
*(दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)*
आय में निश्चितता रहेगी। शत्रु शांत रहेंगे। व्यापार-व्यवसाय से लाभ होगा। बुरी खबर मिल सकती है, धैर्य रखें। दौड़धूप की अधिकता का स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ेगा। थकान व कमजोरी रह सकती है। वाणी में कड़े शब्दों के इस्तेमाल से बचें। दूसरों की बातों में नहीं आएं।

. *🚩 🎪 ‼️ 🕉️ घृणि सूर्याय नमः ‼️ 🎪 🚩*

*☯ आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो ☯*

. *‼️ शुभम भवतु ‼️*
. *‼️ जयतु भारती ‼️*

*भाद्रपद कुशोत्पाटिनी (पिठौरी)* *अमावस्या विशेष*
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हिन्दू धर्म में अमावस्या की तिथि पितरों की आत्म शांति, दान-पुण्य और काल-सर्प दोष निवारण के लिए विशेष रूप से महत्व रखती है। चूंकि भाद्रपद माह भगवान श्री कृष्ण की भक्ति का महीना होता है इसलिए भाद्रपद अमावस्या का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस अमावस्या पर धार्मिक कार्यों के लिये कुशा एकत्रित की जाती है। कहा जाता है कि धार्मिक कार्यों, श्राद्ध कर्म आदि में इस्तेमाल की जाने वाली कुशा यदि इस दिन एकत्रित की जाये तो वह पुण्य फलदायी होती है। अध्यात्म और कर्मकांड शास्त्र में प्रमुख रूप से काम आने वाली वनस्पतियों में कुशा का प्रमुख स्थान है। इसका वैज्ञानिक नाम Eragrostis cynosuroides है। इसको कांस अथवा ढाब भी कहते हैं। जिस प्रकार अमृतपान के कारण केतु को अमरत्व का वर मिला है, उसी प्रकार कुशा भी अमृत तत्त्व से युक्त है।

अत्यन्त पवित्र होने के कारण इसका एक नाम पवित्री भी है। इसके सिरे नुकीले होते हैं। इसको उखाड़ते समय सावधानी रखनी पड़ती है कि यह जड़ सहित उखड़े और हाथ भी न कटे। कुशल शब्द इसीलिए बना।

इस वर्ष कुशोत्पाटिनी अमावस्या कुश एकत्रित करने के लिये 27 – 28अगस्त को है । कुशोत्पाटिनी अमावस्या मुख्यत: पूर्वान्ह में मानी जाती है।

भाद्रपद्र कुशोत्पाटिनी अमावस्या व्रत में किये जाने वाले धार्मिक कर्म
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स्नान, दान और तर्पण के लिए अमावस्या की तिथि का अधिक महत्व होता है।भाद्रपद कुशोत्पाटिनी अमावस्या के दिन किये जाने वाले धार्मिक कार्य इस प्रकार हैं।

👉 इस दिन प्रातःकाल उठकर किसी नदी, जलाशय या कुंड में स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद बहते जल में तिल प्रवाहित करें।

👉 नदी के तट पर पितरों की आत्म शांति के लिए पिंडदान करें और किसी गरीब व्यक्ति या ब्राह्मण को दान-दक्षिणा दें।

👉 इस दिन कालसर्प दोष निवारण के लिए पूजा-अर्चना भी की जा सकती है।

👉 अमावस्या के दिन शाम को पीपल के पेड़ के नीचे सरसो के तेल का दीपक लगाएं और अपने पितरों को स्मरण करें। पीपल की सात परिक्रमा लगाएं।

👉 अमावस्या शनिदेव का दिन भी माना जाता है। इसलिए इस दिन उनकी पूजा करना जरूरी है।

भाद्रपद अमावस्या का महत्व
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पूजाकाले सर्वदैव कुशहस्तो भवेच्छुचि:।
कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया॥

हर माह में आने वाली अमावस्या की तिथि का अपना विशेष महत्व होता है। हिन्दू धर्म में कुश के बिना किसी भी पूजा को सफल नहीं माना जाता है। भाद्रपद अमावस्या के दिन धार्मिक कार्यों के लिये कुशा एकत्रित की जाती है, इसलिए इसे कुशग्रहणी या कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है। वहीं पौराणिक ग्रंथों में इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा गया है। यदि भाद्रपद अमावस्या सोमवार के दिन हो तो इस कुशा का उपयोग 12 सालों तक किया जा सकता है।

किसी भी पूजन के अवसर पर पुरोहित यजमान को अनामिका उंगली में कुश की बनी पवित्री पहनाते हैं। शास्त्रों में 10 प्रकार के कुश का वर्णन है।

कुशा:काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:।
गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:।।

मान्यता है कि घास के इन दस प्रकारों में जो भी घास सुलभ एकत्रित की जा सकती हो इस दिन कर लेनी चाहिये। लेकिन ध्यान रखना चाहिये कि घास को केवल हाथ से ही एकत्रित करना चाहिये और उसकी पत्तियां पूरी की पूरी होनी चाहिये आगे का भाग टूटा हुआ न हो। इस कर्म के लिये सूर्योदय का समय उचित रहता है।

इनमें जो भी आपको मिल सके, उसे पूजा के समय या धार्मिक अनुष्ठान के समय ग्रहण करें।

ऐसे कुश का प्रयोग वर्जित
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जिस कुश का मूल सुतीक्ष्ण हो, अग्रभाग कटा न हो और हरा हो, वह देव और पितृ दोनों कार्यों में वर्जित होता है।

कुश उखाड़ने की प्रक्रिया
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अमावस्या के दिन दर्भस्थल में जाकर व्यक्ति को पूर्व या उत्तर मुख करके बैठना चाहिए। फिर कुश उखाड़ने के पूर्व निम्न मंत्र पढ़कर प्रार्थना करनी चाहिए।

कुशाग्रे वसते रुद्र: कुश मध्ये तु केशव:।
कुशमूले वसेद् ब्रह्मा कुशान् मे देहि मेदिनी।।

‘विरञ्चिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज।
नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव।।

मंत्र पढ़ने के बाद “ऊँ हूँ फट्” मंत्र का उच्चारण करते कुशा दाहिने हाथ से उखाड़ें। इस वर्ष आपके घर जो भी पूजा या धार्मिक कार्यों का आयोजन हो, उसमें इस कुश का प्रयोग करें। यह पूरे वर्षभर के लिए उपयोगी और फलदायी होता है।

कुशा:काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:।
गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:।।

यह पौधा पृथ्वी लोक का पौधा न होकर अंतरिक्ष से उत्पन्न माना गया है। मान्यता है कि जब सीता जी पृथ्वी में समाई थीं तो राम जी ने जल्दी से दौड़ कर उन्हें रोकने का प्रयास किया, किन्तु उनके हाथ में केवल सीता जी के केश ही आ पाए। ये केश राशि ही कुशा के रूप में परिणत हो गई। सीतोनस्यूं पौड़ी गढ़वाल में जहाँ पर माना जाता है कि माता सीता धरती में समाई थी, उसके आसपास की घास अभी भी नहीं काटी जाती है।

भारत में हिन्दू लोग इसे पूजा /श्राद्ध में काम में लाते हैं। श्राद्ध तर्पण विना कुशा के सम्भव नहीं हैं ।

कुशा से बनी अंगूठी पहनकर पूजा /तर्पण के समय पहनी जाती है जिस भाग्यवान् की सोने की अंगूठी पहनी हो उसको जरूरत नहीं है। कुशा प्रत्येक दिन नई उखाडनी पडती है लेकिन अमावस्या की तोडी कुशा पूरे महीने काम दे सकती है और भादों की अमावस्या के दिन की तोडी कुशा पूरे साल काम आती है। इसलिए लोग इसे तोड के रख लते हैं।

केतु शांति विधानों में कुशा की मुद्रिका और कुशा की आहूतियां विशेष रूप से दी जाती हैं। रात्रि में जल में भिगो कर रखी कुशा के जल का प्रयोग कलश स्थापना में सभी पूजा में देवताओं के अभिषेक, प्राण प्रतिष्ठा, प्रायश्चित कर्म, दशविध स्नान आदि में किया जाता है।

केतु को अध्यात्म और मोक्ष का कारक माना गया है। देव पूजा में प्रयुक्त कुशा का पुन: उपयोग किया जा सकता है, परन्तु पितृ एवं प्रेत कर्म में प्रयुक्त कुशा अपवित्र हो जाती है। देव पूजन, यज्ञ, हवन, यज्ञोपवीत, ग्रहशांति पूजन कार्यो में रुद्र कलश एवं वरुण कलश में जल भर कर सर्वप्रथम कुशा डालते हैं। कलश में कुशा डालने का वैज्ञानिक पक्ष यह है कि कलश में भरा हुआ जल लंबे समय तक जीवाणु से मुक्त रहता है। पूजा समय में यजमान अनामिका अंगुली में कुशा की नागमुद्रिका बना कर पहनते हैं।

कुशा आसन का महत्त्व
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धार्मिक अनुष्ठानों में कुश (दर्भ) नामक घास से निर्मित आसान बिछाया जाता है। पूजा पाठ आदि कर्मकांड करने से व्यक्ति के भीतर जमा आध्यात्मिक शक्ति पुंज का संचय कहीं लीक होकर अर्थ न हो जाए, अर्थात पृथ्वी में न समा जाए, उसके लिए कुश का आसन विद्युत कुचालक का कार्य करता है। इस आसन के कारण पार्थिव विद्युत प्रवाह पैरों के माध्यम से शक्ति को नष्ट नहीं होने देता है।

इस पर बैठकर साधना करने से आरोग्य, लक्ष्मी प्राप्ति, यश और तेज की भी वृद्घि होती है और साधक की एकाग्रता भंग नहीं होती। कुशा की पवित्री उन लोगों को जरूर धारण करनी चाहिए, जिनकी राशि पर ग्रहण पड़ रहा है। कुशा मूल की माला से जाप करने से अंगुलियों के एक्यूप्रेशर बिंदु दबते रहते हैं, जिससे शरीर में रक्त संचार ठीक रहता है।

यह भी कहा जाता है कि कुश के बने आसन पर बैठकर मंत्र जप करने से सभी मंत्र सिद्ध होते हैं। नास्य केशान् प्रवपन्ति, नोरसि ताडमानते। -देवी भागवत 19/32 अर्थात कुश धारण करने से सिर के बाल नहीं झडते और छाती में आघात यानी दिल का दौरा नहीं होता। उल्लेखनीय है कि वेद ने कुश को तत्काल फल देने वाली औषधि, आयु की वृद्धि करने वाला और दूषित वातावरण को पवित्र करके संक्रमण फैलने से रोकने वाला बताया है।

आपको पता होगा कि कुश के ऊपर अमृत कलश रखा गया था। इसलिए इस पर अमृत का संयोग भी है। रक्षा करने वाले नागों ने जब कुश चाटने शुरू किये तब जीभ कुशों के कारण फटी थी उसकी कथा इस प्रकार से है।
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सभी साँप और गरुड़ दोनों सौतेले भाई थे, लेकिन साँपों की माँ कद्रू ने गरुड़ की माँ विनता को छल से अपनी दासी बना लिया। सभी साँपों ने गरुड़ के सामने यह शर्त रखी कि अगर वह स्वर्ग से उनके लिए अमृत लेकर आयेगा तो उसकी माँ को दासता से मुक्त कर दिया जायेगा। यह सुनकर गरुड़ ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया और सभी को परास्त कर दिया। युद्ध में स्वर्ग के देवता इन्द्र को भी उसने मारकर मूर्छित कर दिया। उसका यह पराक्रम देखकर भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न हुए और उसे अपना वाहन बना लिया। गरुड़ ने भगवान् विष्णु से यह वरदान भी माँग लिया कि वह हमेशा अमर रहेगा और उसे कोई नहीं मार सकेगा।

अमृत लेकर गरुड़ वापस धरती पर आ रहा था कि तभी इंद्र ने उस पर अपने वज्र से प्रहार कर दिया। गरुड़ को अमरता का वरदान मिला था, इसलिए उस पर वज्र के प्रहार का कोई असर नहीं हुआ, लेकिन गरुड़ ने इंद्र से कहा कि आपका वज्र दधीचि के हड्डियों से बना हुआ है, इसलिए मैं उनके सम्मान में अपना एक पंख गिरा देता हूँ। यह देखकर इंद्र ने कहा कि तुम जो अमृत साँपों के लिए ले जा रहे हो, उससे वह पूरी सृष्टि का विनाश कर देंगे, इसलिए अमृत को स्वर्ग में ही रहने दो।

इंद्र की बात सुनकर गरुड़ ने कहा इस अमृत को देकर वह अपनी माँ को दासता से मुक्त कराना चाहता है। वह इन्द्र से कहता है- मैं इस अमृत को जहाँ रख दूंगा, आप वहाँ से उठा लीजियेगा। गरुड़ की यह बात सुनकर इंद्र बहुत प्रसन्न हुए और बोले कि तुम मुझसे कोई वर मांगो। गरुड़ ने कहा कि जिन साँपों ने मेरी माँ को अपनी दासी बनाया है, वे सभी मेरा प्रिय भोजन बने। गरुड़ अमृत लेकर साँपों के पास पहुँचा और साँपों से बोला कि मैं अमृत ले आया हूं। अब तुम मेरी माँ को अपनी दासता से मुक्त कर दो। साँपों ने ऐसा ही किया और उसकी माँ को मुक्त कर दिया। गरुड़ अमृत को एक कुश के आसन पर रख कर बोलता है कि तुम सभी पवित्र होकर इसको पी सकते हो।

सभी साँपों ने मिलकर विचार किया और स्नान करने चले गये। दूसरी तरफ इंद्र वहुं घात लगाकर बैठे हुए थे। जैसे ही सभी सांप चले जाते हैं, इन्द्र अमृत कलश लेकर स्वर्ग भाग जाते हैं। जब साँप वापस आये तो उन्होंने देखा कि अमृत कलश कुश के आसन पर नहीं है, उन्होंने सोचा कि जिस तरह से हमने छल करके गरुड़ की माँ को अपनी दासी बनाया हुआ था, उसी तरह से हमारे साथ भी छल हुआ है। लेकिन उन्हें थोड़ी देर बाद ध्यान आता है कि अमृत इसी कुश के आसन पर रखा हुआ था, तो हो सकता है, इस पर अमृत की कुछ बूंदे गिरी हों। सभी सांप कुश को अपनी जीभ से चाटने लगते हैं और उनकी जीभ कुशों के कारण बीच से दो भागों में कट जाती है। अमृत कलश के स्पर्श के बाद से कुश और पवित्र भी माने जाते हैं।

कुशा की पवित्री का महत्त्व
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कुश की अंगूठी बनाकर अनामिका उंगली में पहनने का विधान है, ताकि हाथ द्वारा संचित आध्यात्मिक शक्ति पुंज दूसरी उंगलियों में न जाए, क्योंकि अनामिका के मूल में सूर्य का स्थान होने के कारण यह सूर्य की उंगली है। सूर्य से हमें जीवनी शक्ति, तेज और यश प्राप्त होता है। दूसरा कारण इस ऊर्जा को पृथ्वी में जाने से रोकना भी है। कर्मकांड के दौरान यदि भूलवश हाथ भूमि पर लग जाए, तो बीच में कुश का ही स्पर्श होगा। इसलिए कुश को हाथ में भी धारण किया जाता है। इसके पीछे मान्यता यह भी है कि हाथ की ऊर्जा की रक्षा न की जाए, तो इसका दुष्परिणाम हमारे मस्तिष्क और हृदय पर पडता है।

पिथौरा अमावस्या
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भाद्रपद अमावस्या को पिथौरा अमावस्या भी कहा जाता है, इसलिए इस दिन देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। इस संदर्भ में पौराणिक मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती ने इंद्राणी को इस व्रत का महत्व बताया था। विवाहित स्त्रियों द्वारा संतान प्राप्ति एवं अपनी संतान के कुशल मंगल के लिये उपवास किया जाता है और देवी दुर्गा की पूजा की जाती है।

अमावस्या तिथि आरम्भ👉 26 अगस्त 2022 को दिन 12:23 से

अमावस्या तिथि समाप्त 27 अगस्त को दिन 01:45 पर।

कुशा एकत्रित करने का मुहूर्त 👉 26 अगस्त प्रातः 07:27 बजे से 09:04 बजे तक लाभ की घड़ी में।

सायं 16.45 बजे से 06.33 बजे तक अमृत की घड़ी में
आचार्य पं.दयानन्द डबराल श्री संकट मोचन हनुमान मंदिर कडोला ज्ञानसु उतरकाशी देवभूमि उत्तराखंड

. 🚩 🇮🇳 ‼️ *भारत माता की जय* ‼️ 🇮🇳 🚩
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आज ही के दिन चित्तौड़ की रानी पद्मिनी ने अपनी पवित्रता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए 16,000 क्षत्राणियों के साथ जौहर किया था।

धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाली वीरांगनाओं को कोटि-कोटि नमन।
BJP Uttarakhand

‘जब तक सिंधु नदी स्वतंत्र भारत में न बहने लगे, तब तक मेरी अस्थियों को प्रवाहित न किया जाए’

 

ये बात किसने कही थी ?

यहां लखिया भूत के साथ गल्या बैलों की जोड़ी, एकल्वा बैल, हलिया, किसान, पुतारियां के दर्शन अद्भुत…….

 

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की सोर घाटी का प्रसिद्ध हिलजात्रा उत्सव कुमौड़ के हिलजात्रा मैदान में आयोजित होता है। देव परंपरा और कृषि पर आधारित इस उत्सव को देखने के लिए हर साल हजारों की संख्या में लोग जुटते हैं। इस ऐतिहासिक मैदान में लखिया के अलावा गल्या बैलों की जोड़ी, एकल्वा बैल, हलिया, किसान, पुतारियां बने पात्र प्राचीन परंपरा और संस्कृति को बेहद खूबसूरत ढंग से प्रस्तुत करते हैं। मुखौटा नृत्य पर आधारित हिलजात्रा बनी सोरघाटी की पहचान

आज से 36 वर्ष पहले सोरघाटी (पिथौरागढ़) के लोक परंपरा की संवाहक हिलजात्रा का दिल्ली दूरदर्शन से प्रसारण हुआ तो इस लोक उत्सव को देशभर में प्रसिद्धि मिली। खास बात यह है कि इस लोकनाट्य परंपरा को बड़े स्तर के सांस्कृतिक आयोजनों में पांच बार पहला स्थान मिल चुका है। मुखौटा नृत्य पर आधारित यह लोकोत्सव सोरघाटी की पहचान बनता जा रहा है।

 

रंगकर्मी स्व उप्रेती को जाता श्रेय….

 

हिलजात्रा को राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि देने का श्रेय विख्यात रंगकर्मी स्व. मोहन उप्रेती को जाता है। 1983 में दूरदर्शन से जब इस लोक परंपरा का प्रसारण हुआ तो पर्वतीय कलाकार संघ ने दिल्ली में इसका मंचन किया। उस मंचन में अल्मोड़ा के रंगकर्मी स्व. बृजेंद्र लाल शाह और प्रसिद्ध रंगकर्मी पूर्व विधायक स्वर्गीय हीरा सिंह बोरा ने भी पात्र की भूमिका निभाई थी। 1996 में रामनगर में हुए पर्वतीय सांस्कृतिक महोत्सव में हिलजात्रा को पहला स्थान मिला। उसके बाद जमशेदपुर, सूरजकुंड, टिहरी, दिल्ली में हिलजात्रा का मंचन हुआ और हर बार हिलजात्रा को पहला स्थान मिला।

 

1999 में दिल्ली में हुई थी हिलजात्रा….

 

पिथौरागढ़ का नवोदय पर्वतीय कला केंद्र देश के विभिन्न शहरों में 21 बार हिलजात्रा का मंचन कर चुका है। 1999 में दिल्ली में हिलजात्रा का मंचन किया गया। तब कुमौड़ गांव के यशवंत महर, कुंडल महर, जीवन महर और अर्जुन सिंह महर ने पात्रों की जीवंत भूमिका निभाई थी। राज्य आंदोलनकारी गोपू महर कहते हैं कि समय में आए बदलाव के बावजूद हिलजात्रा का वही प्राचीन स्वरूप कायम है। 

 

मुखौटा नृत्य की ऐसी परंपरा नहीं दुनिया में…

हिलजात्रा लोकनाट्य परंपरा है। कृषि से जुड़े इस उत्सव में एक ओर मध्य हिमालयी क्षेत्र के मुखौटा नृत्य का प्रदर्शन होता है तो दूसरी ओर देश के अन्य हिस्सों में प्रचलित जात्रा परंपरा का भी समावेश है। पहले जब लोगों के पास मनोरंजन के अन्य साधन नहीं थे, तब ऐसे लोकोत्सवों में जन भागीदारी बहुत ज्यादा होती थी। जानकार बताते हैं कि कुमौड़ और पिथौरागढ़ जिले के तमाम गांवों में यह परंपरा दो सौ साल से चली आ रही है।  

 

यहां होता हिलजात्रा का आयोजन……

सोरघाटी में एक पखवाड़े तक चलने वाला यह लोकोत्सव कुमौड़ के साथ ही भुरमुनी, मेल्टा, बजेटी, खतीगांव, सिलचमू, अगन्या, उड़ई, लोहाकोट, चमाली, जजुराली, गनगड़ा, बास्ते, देवलथल, सिरौली, कनालीछीना, सिनखोला, भैंस्यूड़ी आदि गांवों में मनाया जाता है।

(साभार-अमर उजाला)