एक दौर था जब उत्तराखंड में चीड़ का पिरूल इधर-उधर व्यर्थ पड़ा रहता था लेकिन अब वह बीते दिनों की बात होने वाली है अब पिरूल एक बहु उपयोगी बायोमास बन गया है इसलिए जो लोग आज ही से पूर्व इकट्ठा करने लगेंगे उन्हें गर्मियों में इसकी अच्छी खासा पैंसा मिलने वाला है। पिरुल बायोमास का सही सदुपयोग करके व पशुधन, पर्यावरण ,वन्य जीव और वन्य सूक्ष्मजीव और ग्रीष्मकालीन वनाग्नि से वनों के संरक्षण हेतु, लोगों पिछले गत वर्षों से बड़ी जाागरूकता आयी है। अब सरकार और अनेक संस्थाएं इस दिशा में काम कर रही हैं। देवभूमि उत्तराखंड के सभी देवी देवताओं को साक्षी मानते हुए देवभूमि उत्तराखंड के माननीय राज्य और माननीय केंद्र सरकार के साथ-साथ , संबंधित विषय की जानकारी रखने वाले माननीय संवैधानिक उच्च पदों पर कार्यरत सभी वरिष्ठ अधिकारियों को एक संस्था ने उत्तराखंड में वनाग्नि पर नियंत्रण के विषय में सरल ग्रामीण भाषा में ई मेल पत्रों और संलग्न वाणी संदेशों के माध्यम से अवगत कराया है कि अध्यात्मिक संस्कृति और संस्कार, स्वच्छ पर्यावरण और वन धरोहर हम देवभूमि उत्तराखंड के लोगों की पहचान है, और ये सभी अनमोल धरोहर बहुमूल्य रत्न हमारे बुजुर्गों द्वार हम लोगों को दी गयी विरासत है ।
उत्तराखण्ड सरकार द्वारा भी वनाग्नि की रोकथाम के लिए पांच साल की विस्तृत योजना तैयार कर मंजूरी के लिए केंद्र सरकार को भेजी है। इसके साथ ही वन विभाग आगामी वनाग्नि सत्र से पहले प्रदेश में सात नई पिरुल ब्रिकेट्स यूनिट तैयार कर देगा। इससे पिरुल एकत्रीकरण के जरिए वनाग्नि रोकथाम में मदद मिलेगी।
वन विभाग चीड़ पिरुल को एकत्रित करते हुए इसका प्रयोग पैलेट्स, ब्रिकेट्स बनाने में कर रहा है। इसके लिए स्वयं सहायता समूहों की मदद ली जा रही है। वर्तमान में विभाग इन समूहों को प्रति क्विंटल तीन सौ रुपए की दर से चीड़ एकत्रित करने का भुगतान करता है। गत वर्ष विभाग ने स्वयं सहायता समूहों के जरिए 38299.48 कुंतल चीड़ पिरुल एकत्रित किया। जिसके बदले समूहों को ₹1.13 करोड़ से अधिक का भुगतान किया गया।
अपर प्रमुख मुख्य वन संरक्षक श्री निशांत वर्मा के मुताबिक, पिरुल एकत्रीकरण से वनाग्नि रोकथाम में प्रभावी कमी आयी है। इसलिए वर्तमान में जारी ब्रिकेट्स यूनिट की संख्या बढ़ाकर 12 किए जाने की तैयारी है। जल्द ही अल्मोड़ा, चम्पावत, गढ़वाल और नरेंद्रनगर वन प्रभाग में सात नई यूनिट स्थापित की जाएंगी। इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन भी हो सकेगा।
उत्तराखण्ड सरकार द्वारा वनाग्नि की रोकथाम के लिए पांच साल की विस्तृत योजना तैयार कर मंजूरी के लिए केंद्र सरकार को भेजी है। इसके साथ ही वन विभाग आगामी वनाग्नि सत्र से पहले प्रदेश में सात नई पिरुल ब्रिकेट्स यूनिट तैयार कर देगा। इससे पिरुल एकत्रीकरण के जरिए वनाग्नि रोकथाम में मदद मिलेगी।
वन विभाग चीड़ पिरुल को एकत्रित करते हुए इसका प्रयोग पैलेट्स, ब्रिकेट्स बनाने में कर रहा है। इसके लिए स्वयं सहायता समूहों की मदद ली जा रही है। वर्तमान में विभाग इन समूहों को प्रति क्विंटल तीन सौ रुपए की दर से चीड़ एकत्रित करने का भुगतान करता है। गत वर्ष विभाग ने स्वयं सहायता समूहों के जरिए 38299.48 कुंतल चीड़ पिरुल एकत्रित किया। जिसके बदले समूहों को ₹1.13 करोड़ से अधिक का भुगतान किया गया।
अपर प्रमुख मुख्य वन संरक्षक श्री निशांत वर्मा के मुताबिक, पिरुल एकत्रीकरण से वनाग्नि रोकथाम में प्रभावी कमी आयी है। इसलिए वर्तमान में जारी ब्रिकेट्स यूनिट की संख्या बढ़ाकर 12 किए जाने की तैयारी है। जल्द ही अल्मोड़ा, चम्पावत, गढ़वाल और नरेंद्रनगर वन प्रभाग में सात नई यूनिट स्थापित की जाएंगी। इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन भी हो सकेगा।
https://www.facebook.com/share/p/12DuGSrQj1c/पिरूल लाओ–पैसा पाओ अभियान। पिरूल का वजन कर संग्रहण केंद्र में भंडारण किया जाएगा और ग्रामीणों या युवाओं को 50 रुपये प्रति किलो के हिसाब से भुगतान किया जाएगा, जो सीधे उनके बैंक खातों में भेजा जाएगा। एकत्रित पिरूल को पैक और संसाधित किया जाएगा और आगे उपयोग के लिए उद्योगों को बेचा जाएगा। ✍️हरीश मैखुरी