पर्शिया देश के ईरान बनने का कारण और बुर्के में छटपटाती ईरानी महिलाएं कर रही हैं अंत: वस्त्रों में प्रदर्शन, अखंड भारत का प्लक्ष द्वीप ही वर्तमान मक्का मदीना अरबिया देश हैं!, आज का पंचाग आपका राशि फल

 ईरान १९७९ तक #पर्शिया कहलाता था और वहाँ के निवासी #पर्शियन। पहले पर्शियन स्वछंद #सैक्युलर और दयालू थे और शांतिदूतों को शरण देना या #शांतिदूतों की #घुसपैठ को भारत की भांति ही कोई गंभीर विषय नहीं मानते थे, बल्कि वहां के तत्कालीन नेता दया का कार्य बताते थे। इस कारण उन्नीसवीं सदी तक इसने अपनी बड़ी भूमि खो दी, 1953 के तख्तापलट ने निरंकुश शासक मोहम्मद रज़ा पहलवी को एक ताकतवर नेता बना दिया जिसने वर्तमान बंग्लादेश की तरह मुस्लिम शरिया की एक श्रृंखला शुरू की और तेजी से #इस्लामीकरण के बाद ईरान को 1979 में इस्लामी देश घोषित किया गया। समुद्री तटों पर स्वछंद घूमने वाली वहां की महिलायें बुर्के में कैद हो गयी #शरिया कानून आने पर छोटे छोटे अपराधों के लिए मृत्यु दंड दिया जाने लगा अब ईरान पूरी तरह दुर्दांत हिंसक #इस्लामी कबीलों के शिकंजे में है उनके शिक्षण संस्थानों की जगह हर गली मदरसे उग आये और उन्हें #मांसभक्षी बना दिया गया है, जैसे अब भारत के केरल को। #बंग्लादेश का #बामपंथी प्रधानमंत्री युनूस शीघ्र ही बंग्लादेश को #इस्लामी_राष्ट्र बनाने के लिए उतावला है, इसीलिए उसके आते ही बंग्लादेश में वहां के अल्पसंख्यक हिन्दूओं का तिलक लगाना कलावा बांधना मांग भरना बिंदी लगाना प्रतिबंधित कर दिया गया है।
आज की स्थितियों में अब ईरान का वापस पर्शियन देश बनना असंभव है। लेकिन वहां की #महिलायें बुर्के #हिजाब की कैद में छटपटा रही हैं और यदा कदा बुर्के से स्वतंत्रता के लिए प्रदर्श करती रहती हैं। इसी सप्ताह एक ईरानी लड़की ने #युनिवर्सिटी कैंपस में केवल अंग वस्त्रों में प्रदर्शन किया। सोशल मीडिया पर इस घटना का वीडियो वायरल हो रहा है जो पूरे विश्व में चर्चा का विषय बन गया है। हालांकि नैतिकता के बहाने उसे गिरफ्तार कर लिया गया।
 इससे पहले भी जुलाई २०२३ में ईरान में महसा अमीनी नामक एक महिला ने हाथों में पोस्टर ले कर बुर्का हिजाब के विरोध में प्रदर्शन किया जिसे नैतिकता के नाम पर पुलिस ने गिरफ्तार किया था और जेल में महसा अमीनी को बुरी तरह पीटा गया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई थी। भारत में भी स्वरा भास्कर नाम की एक लड़की थी टुकड़े गैंग के स्वछंद विचारों से बहुत प्रभावित थी हर समय आजादी मांगती रहती थी। आजादी के नाम पर समय ब्राह्मणों और मोदी को अपशब्द कहना उसकी सनक थी सैक्युलर थी इसलिए अब्दुल से निकाह कर लिया। अब उसके भी स्वर गायब कर दिए गये हैं। शोशल मीडिया पर इन दिनों इसकी भी फोटो वायरल हो रही है। कितने ही बड़े बामपंथी या भीम वादी हो मुसलमान बनने के बाद वही अरबी कबीलों का बुर्के वाली पिछलग्गू बनना है नहीं तो फ्रिज में पैकिंग तय है, यही इस्लाम और आसमानी किताब का अंतिम सत्य है। ✍️हरीश मैखुरी । (फोटो के स्क्रीन शॉट शोशल मीडिया) 
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हमारे शास्त्रों में अरब देशों को प्लक्ष द्वीप बताते हुए भारत का ही भाग कहा गया है। आज से छब्बीस लाख वर्ष पूर्व की बात है, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के द्वारा लंका विजय के उपरांत भी रावण की बहन सूर्पनखा बची रह गयी, तब उसने अपने कुलनाश के लिए अपने को ही दोषी मानते हुए भगवान राम से अपनी भी मुक्ति मांगी तो इस पर भगवान राम ने कहा कि हम स्त्रियों का वध नहीं करते हैं। तब सूर्पनखा ने अपने कल्याण का मार्ग पूछा तो भगवान राम ने उन्हें इसका एकमात्र उपाय प्रायश्चित बताते कहा कि जम्बू द्वीप जैसी देवभूमि में आपका प्रायश्चित संभव नहीं है और उन्हें आसुरी वृति का प्राश्चित करने के लिए प्लक्ष द्वीप के मक्केश्वर मंदिर में ध्यान के लिए स्थान दिया था। उस समय मक्केश्वर मंदिर में विशाल शिवलिंग और उसके प्रासाद में तीन सौ देवी-देवताओं की मूर्तियां थी। रावण की असुर कुलीन बहन सूर्पनखा नाक कान कटी होने के कारण मक्का में भी काले वस्त्र से मुखड़ा ढके रहती थी वही रीति आज तक उनके वंशजों और अनुयायियों में प्रचलित है। कालान्तर में मुहम्मद नाम के उज्जड व्यक्ति ने वहां की तीन सौ मूर्तियां खंडित करवा दी लेकिन वो शिवलिंग आज भी मक्का में विद्यमान है।मक्का का काला पत्थर , मुस्लिम पूजा की वस्तु, काबा (मक्का की महान मस्जिद के भीतर छोटा मंदिर) की पूर्वी दीवार में बनाया गया है अब इसमें तीन बड़े टुकड़े और कुछ टुकड़े हैं, जो एक पत्थर की अंगूठी से घिरे हैं और एक चांदी की पट्टी के साथ एक साथ बंधे हैं। इस्लामी लोगों का मानना है कि इस पत्थर आदम को स्वर्ग से गिरने पर दिया गया था और मूल रूप से सफेद था, लेकिन इसे चूमने और छूने वाले हजारों तीर्थयात्रियों के पापों को अवशोषित करके काला हो गया है। उमरा करने वाले हज यात्री उसी पत्थर शिवलिंग को चूमते हैं और वहां विद्यमान चोकोर आप लिंग की परिक्रमा करते हैं हलांकि अब उस मूल शिवलिंग को काले पत्थरों से ढांप दिया गया है।

अरब की मरूभूमि में अन्न नहीं होता है इसलिए वे निर्दयता पूर्वक पशुओं का वध कर उनके मांस पर आश्रित रहते रहे हैं।