इस दौर का भी सबसे गरीब तबका कृष्ण सखा ही है

 
जगदिश पंडित जी गांव मे एक यजमान के यहॉ सत्यनारायण कथा करके घर आए , और पत्नी सावित्री से बोले जरा एक गिलास पानी पिलाना । तभी पंडित जी की छोटी बेटी व बेटा दौडते हुए आए और बोले पापा हमारे लिए क्या लेकर आए तो पंडित जी ने थैली मे रखी आटे की प्रसाद और कुछ फल बच्चो को देते हुए कहा बेटा ये लो प्रसाद तुम्हारे लिए , तो बेटी बोली पापा मिठाई नही लाए पंडित जी बोले बेटा मिठाई यजमान लाए तो थे पर इतनी की सिर्फ वो व उनके घरवाले खा सके हमारे लिए तो सिर्फ आटे की प्रसाद बची ये खाऔ अगली बार मिठाई ले आऊंगा । तभी बेटा बोला पापा हमारे मास्टर जी कह रहे थे जल्दी स्कुल की फिस ( शुल्क ) भरदो नही तो परिक्षा मे नही बैठने देंगे । दुखी मन से पंडित जी ने कहा बेटा मास्टरजी से कहना जल्दी भर देगे । तभी पंडिताईन ( पत्नी ) बोली सुनते हो दुर के रिश्तेदार के यहॉ शादी है हमे उनको कुछ तो देना चाहिए न यदि नही देगे तो कल को हमारे बच्चौ की शादी मे नही आएगे वो । पंडित जी की ऑखो मे आंसु आ गए और बोले पंडिताईन तुम जानती हो पुरोहित कर्म करके मे तुम सबकी इच्छाएँ पुरी नही कर पा रहा हु । आज सत्यनारायण कथा करवाई बदले मे 101 रुपये दक्षिणा दि और पचास रुपये चढावे मे आए अब तुम ही बताऔ इन 150 रुपये बेटे की स्कुल फिस भरु या बेटी को कपडे दिलवाऊ या रिश्तेदार की शादी के लिए सामान खरिदु ?? आज पैसा होता तो बेटी को सरकारी स्कुल मे नही पढा रहा होता बल्कि बेटे के साथ प्रायवेट स्कुल मे पढाता । ब्राह्मण कुल मे पैदा हुआ हु यदि अपना पुरोहित कर्म छोडु तो पुर्वजो की कीर्ति को ठेस पहुचे और ये सब ही करता रहु तो बच्चो के भविष्य को बिगाडु । पंडिताईन आज हमारा दुर्भाग्य ये है कि हम गरिब हे फिर भी लोग मुझसे कहते है जब मै पुजा करवाकर घर आता हु तो कि यजमान को कितने का चुना लगाया । ये तो प्रभु जानते हे मैने चुना लगाया या नही लगाया । हम ब्राह्मण हैं तो हमे राशन नही मिलता , ब्राह्मण हैं तो मेरे बच्चौ को छात्रवत्ती ( स्कालरशिप ) नहीं मिलती , ब्राह्मण हैं तो मेरे बच्चों  को निशुल्क किताबे नहीं  मिलती , ब्राह्मण हैं इसलिए मेरे बच्चे की स्कुल फीस ज्यादा है । पंडिताईन हम ब्राह्मण कुल में  पैदा हुए इसमें हमारा दोष क्या है। ब्राह्मण गरिब नहीं हो सकता ?
 
पंडिताईन बोली आप चिंता मत करिए ब्राह्मणो के हितैषी भगवान जानते हैं हमने कभी गलत नही किया एक न एक दिन हमारा भी भला होगा आप रोइए मत मेरे पायल गिरवी रखकर बेटे की फिस भर दीजिए और शादी का सामान ले आइए , इतना कहकर पंडिताईन रसोई मे भोजन बनाने चली गई व पंडित जी बच्चों से बात करने लग गए।
 
ये अधिकांश ब्राह्मणों के घर की सच्ची यही कहानी है, समाज को विश्व की सबसे समृद्ध संस्कृति ज्ञान और दिशा देने वाले पंडितों की दयनीय स्थिति सामाजिक चिंतन का विषय होना चाहिए ?