जिनकी शख्सियत से इंदिरा गांधी भी खाती थी खौफ

 

 

हरीश मैखुरी

पूर्व केंद्रीय पेट्रोलियम व रसायन मंत्री और संयुक्त उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नन्दन बहुगुणा जी 25 अप्रैल, 1921 को पैदा हुए, आज उन्हें याद करके हम धन्य हो रहे हैं। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा जी ने बहुगुणा जी को ठीक उस समय मुख्यमंत्री बनाया जब उत्तर प्रदेश आंदोलन की प्रचंड आग में जल रहा था, यहीं नहीं उत्तर प्रदेश पुलिस भी सरकार के खिलाफ आंदोलन का बिगुल बजा चुकी थी, लेकिन जब बहुगुणा मुख्यमंत्री बनकर उत्तर प्रदेश पहुंचे तो शपथ ग्रहण के दूसरे ही दिन पूरा प्रदेश न केवल शांत हो गया बल्कि प्रदेश ने चैन की सांस भी ली। वर्ष 1952 में पहली बार विधान सभा सदस्य निर्वाचित होने के बाद वे 1977 तक उत्तर प्रदेश विधान सभा सदस्य रहे, जबकि वर्ष 1977 में केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में पेट्रोलियम,रसायन तथा उर्वरक मंत्री तथा वर्ष 1979 में केन्द्रीय वित्त मंत्री बने।
आपको याद होगा जब पहले पहल कुंकिग गैस आई तो सबसे पहले दिल्ली के बाद उत्तराखण्ड के पर्वतीय इलाकों में गैस कनेक्शन दिए गए इसके पीछे भी इंदिरा जी को बहुगुणा जी के द्वारा दी गई वह राय थी जिसमें बहुगुणा जी ने इंदिरा को बताया कि यदि उत्तराखण्ड के जंगल समाप्त हो गए तो उत्तर भारत की नदियां सूख जाएंगी और गंगा यमुना का मैदान रेगीस्तान में बदल जाएगा इसलिए उत्तराखण्ड के जंगल बचाए जाने जरुरी हैं और उन्हें बचाने के लिए यहां गैस कनेक्शन दिए जाएं। बहुगुणा की बात इंदिरा की समझ में आ गई और उत्तराखण्ड में दिल्ली के साथ ही गैस कनेक्शन मिलने लगे। गढ़वाल और कुमांऊ विश्वविद्यालय की स्थापना, पौड़ी और द्वाराहाट के इंजीनियरिंग काॅलेज कई डिग्री काॅलेज और मोटर सड़कों का तोहफा बहुगुणा जी के कार्यकाल की उपलब्धियां हैं।

बहुगुणा जी के तत्काल और सटीक निर्णय लेने की क्षमता ने पूरे देश में उनकी लोकप्रियता और व्यक्तित्व को इंदिरा गांधी के समक्ष लाकर खड़ा कर दिया। जब इंदिरा ने बहुगुणा की लोकप्रियता और स्वयं के लिए चुनौती बनते देखा तो उन्हें केंद्रीय मंत्री के बजाए दूसरी बार 5 मार्च, 1974 से 29 नवम्बर, 1975 तक कद घटाने के लिए ही उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया बहुगुणा जी कभी भी नेहरु खानदान के चाटुकार नहीं रहे वे अपने दम के नेता थे। कांगे्रस पार्टी मतभेदों के चलते उन्होंने दलित मजदूर किसान पार्टी और लोकदल भी बनाया। हलधर किसान तब उनका चुनाव चिहन होता था। इलाहाबाद से लोकसभा चुनाव में जब कांगे्रस ने अमिताभ बच्चन को बहुगुणा जी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए उतारा तो तब अमिताभ का जादू युवा पीढ़ी पर काम कर गया और अमिताभ चुनाव जीत गए, लेकिन बहुगुणा जी की हार का दुख समूचे राष्ट्र को हुआ।

गढ़वाल मध्यावधि चुनाव में भी बहुगुणा जी के खिलाफ कांगे्रस ने चन्द्रमोहन सिंह नेगी को उतारा तो उत्तराखण्ड ने हेमवंती नन्दन बहुगुणा को सर आंखों पर बिठाया और महिलाओं ने बहुगुणा को जिताने के लिए शायद इतिहास में पहली बार अपने जेवर गिरवी रखकर चंदा जुटाया और चुनाव आयोग पर तत्कालीन मुख्यमंत्री बीपी सिंह व इंदिरा गांधी के पूरे दबाव के बावजूद बहुगुणा चुनाव जीते तो बीबीसी लंदन ने समाचार में कहा कि यह बहुगुणा की जीत और इंदिरा गांधी की हार है इसी से बहुगुणा की शख्सियत का पता चलता है। तब मैं गोपेश्वर महाविद्यालय में स्नातक का छात्र था और मध्यावधि चुनाव की रैली में गोपेश्वर के पुराने बस स्टेशन पर बहुगुणा के संबोधन से इतना प्रभावित हुआ कि हमारे कुछ छात्रों की टोलियों ने पढ़ाई छोड़कर बहुगुणा जी के लिए काम प्रचार करना शुरु कर दिया यह बात कांग्रेस को नागवार गुजरी और तत्कालीन जिलाधिकारी केके सिंह के आदेश पर कर्णप्रयाग पुलिस ने हम 14 छात्रों को शंाति भंग व चुनाव कार्य में व्यवधान के आरोप में 13 दिसबंर 1983 को पौड़ी जेल भेज दिया जहां से हमें 1 महीने बाद 11 जनवरी 1984 को जमानत मिली तो हमें अपने जेल जाने का कुछ भी मलाल नहीं था बल्कि खुशी थी कि बहुगुणा जी के लिए हमने संघर्ष किया।

बहुगुणा जी प्रत्युत्पन्नमति के व्यक्ति थे, कब किस जगह क्या बोलना है उन्हें बखूबी आता था, एक बार किसी व्यक्ति से मिल जाते तो दुबारा मिलने पर उसे नाम से पुकार कर हालचाल पूछते । 17 मार्च, 1989 को वे देह त्यागकर हमारे बीच से चले गए लेकिन आदमी सिर्फ उच्चारण से नहीं , उच्च – आचरण से महान बनता है। बहुगुणा जी जैसी शख्सियत पर एक शेर याद आ रहा है हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है, तब जाकर कहीं होता है चमन में दीदावर पैदा। उत्तराखंड में नेता लोग आज बहुगुणा जी के गांव बुघाणी में जुटेंगे, यहां फिर ठेकेदारों की स्क्रिप्ट पास होगी। परन्तु इस अवसर पर यदि गैरसैंण स्थाई राजधानी बनाने, देवभूमि में पूर्णतः शराब बंदी, मोटर सड़क, अस्पताल, स्कूल का जाल बनाने के लिए रोड़ मैप बनाने से ही उनके कद व विचारों को आगे बढ़ाने के लिए काम होगा।

बहुगुणा जी को भूलना अक्षम्य भूल होगी। एडवोकेट हरीश पुजारी सालों से बहुगुणा विचार मंच के माध्यम से बहुगुणा के नाम की अलख जगाये हुए हैं, परन्तु जिस उत्तराखंड को बहुगुणा ने पृथक पर्वतीय विकास मंत्रालय दिया विकास विभाग दिया नाम दिया उसकी सरकारों बहुगुणा को रस्म अदायगी बना दिया।