गोवर्धन पर्वत, जिसे गिरिराज भी कहा जाता है, उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में गोवर्धन और राधा कुंड के क्षेत्र में स्थित एक पवित्र हिंदू स्थल है, जो वृंदावन से लगभग 21 किलोमीटर दूर है.!
यहाँ कुछ और बातें हैं जो गोवर्धन पर्वत के बारे में जानने योग्य हैं.!
यह गोवर्धन और राधा कुंड के क्षेत्र में स्थित है, जो वृंदावन से लगभग 21 किलोमीटर (13 मील) दूर है.!
यह एक पवित्र हिंदू स्थल है, जहाँ हर साल लाखों लोग गोवर्धन पूजा और परिक्रमा के लिए आते हैं.!
गोवर्धन पर्वत के हर छोटे बड़े पत्थर में श्री कृष्ण जी का वास है, माना जाता है कि इसके परिक्रमा करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और भक्तों को सुख शांति का आशीर्वाद मिलता है वैसे तो साल भर लोग इस गोवर्धन पर्वत का परिक्रमा करते हैं लेकिन गोवर्धन पूजा के दिन लोग खास तौर पर इसकी परिक्रमा करते हैं.!
गोवर्धन पर्वत की कथा महाभारत से जुड़ी है, जिसमें श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए इस पर्वत को उठाया था.!
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा 7 कोस (लगभग 21 किलोमीटर) की होती है, जो मानसी-गंगा कुंड से शुरू होकर राधा कुंड गांव तक जाती है.!
गोवर्धन पूजा दिवाली के अगले दिन मनाई जाती है, जिसमें श्री कृष्ण और गायों की पूजा की जाती है.!
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा के दौरान राधा कुंड, श्यामा कुंड, दान घाटी मंदिर, मुखारविंद, कुसुम सरोवर, रिनामोचना और पुचारी जैसे पवित्र स्थलों के दर्शन भी होते हैं.!
गोवर्धन पर्वत उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के अंतर्गत एक नगर पंचायत है। गोवर्धन व इसके आसपास के क्षेत्र को ब्रज भूमि भी कहा जाता है।
यह 7 कोस की परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर की है।राधाकुण्ड से तीन मील दूर गोवर्द्धन पर्वत है।
गोवर्धन पर्वत का इतिहास महाभारत से जुड़ा है। ये पर्वत मथुरा के पास स्थित है।
द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने गोकुल-वृंदावन के लोगों को गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए प्रेरित किया था।
जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचाने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे।
सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और फिर प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा सभी करने लगे.!
वृंदावन तक जाती थी गोवर्धन की छाव, अब तिल-तिल क्यों घट रहा पर्वत…???
श्रीकृष्ण ने 1 उंगली पर उठा लिया था ये पहाड़, हर दिन कम होती है इसकी ऊंचाई.!
मोहन मुरारी “रांची” (झारखंड)
🙏🌹जय श्री कृष्णा 🌹🙏🙏👏
एक सेक्स होता है । Sex की क्रिया होती है । यही Sex जब पति पत्नी के बीच होता है तो मंगल और शुभदायक माना जाता है!
यही Sex जब किसी वेश्या से किया जाता है तो वह नीच और अशुभ माना जाता है!
लेकिन यही Sex का प्रयोग जब किसी स्त्री या पुरुष के साथ ज़ोर जबरदस्ती के साथ किया जाता है तो वह बलात्कार अधम, पतित और दंडनीय होता है!
देखिये सेक्स की क्रिया एक ही है, कोई अंतर नहीं, पर मंशा और उद्देश्य अलग हैं । एक वंश को बढाने के लिए और शुभदायक है और दूसरा अमंगलकारक है ।
उद्देश्य ….!
एक हत्या होती है!
यह हत्या जब कोई सैनिक अपने देश या किसी की जान बचाने के लिए करता है तो उसको वीरता और शौर्यता से सम्मानित किया जाता है।
और यही हत्या जब कोई आतंकवादी करता है तो उसको दंड भोगना पड़ता है!
देखिये क्रिया एक ही है पर उद्देश्य और मंशा अलग अलग है!
एक व्यक्ति physics या chemistry पढ़कर nuclear energy का प्रयोग constructive उद्देश्य से कर रहा है और वहीं दूसरा व्यक्ति वही पढ़कर nuclear energy का प्रयोग bomb बनाकर destructive उद्देश्य से कर रहा है!
बच्चा जब माँ की गोद में माँ को लात मारता है तो माँ को कोई फ़र्क नहीं पड़ता पर वही उसी का बच्चा जब बड़ा होकर वही लात मारता है तो निंदनीय है!
अब देखिए उपरोक्त सभी उदाहरण में क्रिया एक ही है रंचमात्र भी अंतर नहीं है , परंतु नियम, काल , परिस्थिति और उद्देश्य के अनुसार उसकी gravity में परिवर्तन आ गया और वही क्रिया एक जगह निंदनीय हो गयी तो एक जगह सम्मानीय!
तो ठीक इसी प्रकार किसी भी कविता या शायरी को समझने से पहले यह देखना चाहिए कि उसको लिखने वाला कौन , किस भाव का , किस गुण ( सात्विक , राजसिक , तामसिक ) , किस परिस्थिति , किस समय , किस परिवेश में , किस निमित्त लिख रहा है , उस पर निर्भर करता है!
अगर सूरदास जी कहें कि तेरे मुखारविंद पर मैं पूरा जीवन न्योछावर कर दूँ तो ज़ाहिर सी बात है लोग भक्ति में डूब जायेंगे और यही वाक्य शशि थरूर या कोई वेश्यागामी प्रवृत्ति का व्यक्ति बोले तो अंतर सुस्पष्ट है ।
तो एकमात्र उद्देश्य या मंशा ही मुख्य है!
इसी तरह CAA के विरोध में “FUCK HINDUSIM” , “सब बुत उठवाए जायेंगे बस नाम रहेगा अल्लाह का” , चूड़ी बिंदी और भारतीय परिधानों का विरोध, देवी देवताओं का अपमान , भगवा का अपमान , शास्त्रों का विरोध इत्यादि यह दर्शाता है कि यह जो विरोध हो रहा है उसका मूल उद्देश्य CAA न होकर कुछ और ही है ।
चाकू सही है पर उसका उपयोग करने वाला किस तरह उपयोग कर रहा है , यह मायने रखता है!
चाकू से वह हत्या कर रहा है या फल सब्जियाँ छील रहा है , यह उद्देश्य उस चाकू को सही गलत बताता है!
इसलिए किसी भी कवित्त ,शायरी , नज़्म का प्रयोग करने वाला कौन है , किसलिए कर रहा है , किस उद्देश्य से किया जा रहा है , यही उसके ग़लत सही का परिमाप है!
अतः यह नज़्म , इसको प्रयोग करने वाले लोग , परिस्थिति और समय के हिसाब से पूर्णतया हिन्दू और देश विरोधी है!
मुझे उम्मीद है सेक्स शब्द के शुरूआती प्रयोग से इस पोस्ट को पढने वालों की तादाद ज्यादा होगी! 😊😊
क्या तुम्हारे घर में भी बेटी है?
चाहे तुम एक #सेकुलर_हिन्दू हो या फिर मेरे जैसी दूरदृष्टि रखने वाले हिन्दू
ज़रा सा इस पिता के दर्द को महसूस करों 🙏
#पाकिस्तान :- ये 13 वर्ष की मासूम बच्ची जिसे पढ़ने का शोंक था वह कुछ दिन पहले ही दुसरी बच्चियों के साथ मदरसे में पढ़ने चली गई, वहां मोलवी ने बना डाला इस बच्ची को अपनी हवस का शिकार कर दिया #बलात्कार 😠🔥
बच्ची ने अपने पिता को बताया और गरीब पिता अपनी बच्ची को लेकर पुलिस थाने पहुँचा तो वहां एक पुलिस वाले ने कहा भाई इस बच्ची का मेडिकल करवा ले तभी FIR दर्ज होगी ! पिता ने डाक्टरों के हाथ पांव जोड़ कर रो कर गिड़गिड़ा कर मेडिकल रिपोर्ट बनवा कर थाने पहुँचा तो बड़े पुलिस अधिकारी ने कहा कि #इस्लाम में मेडिकल रिपोर्ट के कोई मायने नहीं है 😠❌
यदि वो मोलवी अपना गुनाह खुद कबूल कर ले तो ही करवाई की जा सकती है 🔥
इसके बाद दोनों बाप बेटी घंटो एक दुसरे के गले लगकर रोते रहे लेकिन किसी को उन पर दया नहीं आई 😢🙏
याद रहे भारत में भी संविधान तबतक जीवित है जबतक
हिन्दू जीवित है जिस दिन तुम्हारे अंदर का हिन्दुत्व मर गया उस दिन हमारा हाल भी इन बाप बेटी की तरह होगा।
*काफिर तो काफिर ही होता है।*
🔗 बुजदिल ‘सेकुलर हिंदूओं’ में कुछ स्वाभिमान जगाने के लिए इतिहास की एक छोटी सी याद दिलाना चाहता हूँ। अपने बच्चों पर अगर उपकार करना है तो अवश्य पढ़ना। 🔗
अकबर के दरबार में एक कट्टर सुन्नी मुस्लिम ‘अब्दुल कादीर बदायूनी’ था, उसने हल्दीघाटी के युद्ध का आँखों देखा वर्णन जिसमें वह स्वयं उस युद्ध में शामिल था। उसने अपनी किताब “मुंतखाब-उत-वारीख” में किया है।
मूल किताब अरबी में है, जिसका 18वीं सदी में अंग्रेजी में अनुवाद किया गया। दोनों तरफ की सेनाओं में 90% राजपूत लड़ रहे थे। अकबर की तरफ से सेनापति “मानसिंह” और राजा “लूणकरण” थे। तो दूसरी तरफ स्वयं शूरवीर “महाराणा प्रताप” और दूसरे राजपूत राजा थे।
दोनों तरफ के राजपूतों ने अपने-अपने सिर पर केसरिया साफा पहन रखा था। दोनों सेनाओं के तरफ भगवा ध्वज रथों सुशोभित हो रहे थे। भेषभूषा भी एक जैसी। इससे अकबर का एक सेनानायक “अबुल फजल इब्न मुबारक” कन्फ्यूज हो गया कि कौन राजपूत हमारी तरफ से लड़ रहे हैं और कौन राजपूत दुश्मन की तरफ से हैं।
फिर अबुल फजल इब्न मुबारक ने “अब्द अल कादिर” से पूछा, दोनों तरफ के राजपूत केसरिया साफा पहने हैं। मैं कैसे पहचानूं कि कौन राजपूत अपनी तरफ से हैं और कौन राजपूत दुश्मन की तरफ से हैं।
तब मैंने यानी “अब्द अल कादिर बदायूनी” ने कहा, अबुल फजल तुम बस तीर और फरसा चलाते रहो, भाला फेंकते रहो, मरने वाले तो काफिर ही होंगे ना, चाहे हमारी तरफ के राजपूत मरे या दुश्मन की तरफ के राजपूत मरे! किधर भी तीर चलाओ, किसी को भी मारो, जीत तो इस्लाम की ही होगी।अगर हम युद्ध जीत सके तो ठीक, अगर नहीं भी जीते तो कम से कम खुदा को यह तो कह देंगे कि हमने काफिरों को मारा।
काश हिंदू इतिहास पढ़ते और इतिहास से सीख लेते तो हिंदूओं की स्थिति आज भी वैसी ही है न्यूज़ चैनलों पर देखो मुस्लिम प्रवक्ता एकजुट हैं। मगर वहीं सपा, बसपा, कांग्रेस, टीएमसी और भी तमाम राजनीतिक दलों के हिन्दू प्रवक्ता एक बार भी “सर तन से जुदा” गैंग की निन्दा भी नहीं करते। बल्कि मुस्लिम प्रवक्ताओं के साथ मिलकर इन जेहादियों का समर्थन करते हैं।
आज भी हिंदू आपस में लड़ रहा है और जिहादियों के 2047 तक *गजवा-ए-हिन्द* करने का प्लान बना रखा है और उस पर दृढ़ता से अग्रसर भी है।
*👁️पर हम हिन्दू इस भयंकर खतरे को गम्भीरता से समझ नहीं पा रहे या पशुओं की तरह निश्चिंत जी रहे हैं इन्द्रियों के सुख के भोग में।☹️😢😡*✍️ साभार
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*जनजागृति हेतु लेख आगे प्रसारण अवश्य करें॥*
_यस्य पुत्रो वशीभूतो भार्या छन्दानुगामिनी।_
_विभवे यस्य सन्तुष्टिस्तस्य स्वर्ग इहैव हि।।_
*प्रशासक समिति ®️✊🚩*
*🚩जय सत्य सनातन🚩*
*🚩आज की हिंदी तिथि*
*🌥️ 🚩युगाब्द-५१२६*
*🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०८१*
*⛅🚩तिथि – अष्टमी प्रातः 05:23 मार्च 23 तक तत्पश्चात् नवमी
*⛅दिनांक – 22 मार्च 2025*
*⛅दिन- शनिवार*
*⛅विक्रम संवत् – 2081*
*⛅अयन – उत्तरायण*
*⛅ऋतु – बसन्त*
*⛅मास – चैत्र*
*⛅पक्ष – कृष्ण*
*⛅नक्षत्र – मूल प्रातः 03:23 मार्च 23 तक, तत्पश्चात् पूर्वाषाढा*
*⛅योग – व्यातिपात शाम 06:37 तक तत्पश्चात् वरीयान*
*⛅ राहुकाल – सुबह 09:44 से सुबह 11:15 तक*
*⛅सूर्योदय – 06:42*
*⛅सूर्यास्त – 06:51*
*⛅दिशा शूल – पूर्व दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 05:07 से प्रातः 05:54 तक,*
*⛅अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12:22 से दोपहर 01:11 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:22 मार्च 23 से रात्रि 01:10 मार्च 23 तक*
*⛅व्रत पर्व विवरण – शीतला अष्टमी, कालाष्टमी*
*⛅ विशेष – अष्टमी को नारियल फल खाने से बुद्धि का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🔹सर्वसुलभ, पोषक व औषधीय गुणों से भरपूर सहजन🔹*
*🔸स्वास्थ्य-लाभकारी प्रयोग🔸*
*🔸(1) शारीरिक पुष्टि हेतु : सहजन के पत्तों का आधा से 1 ग्राम चूर्ण प्रतिदिन 2 बार सेवन करने से कुपोषण के शिकार हुए बच्चों की शारीरिक पुष्टि व वृद्धि कम समय में हो सकती है । बड़े व्यक्ति 2 से 5 ग्राम ले सकते हैं ।*
*🔸(2) प्रसूताओं के लिए : सहजन के आधी कटोरी हरे पत्ते 1 चम्मच घी में सेंककर कुछ दिन तक प्रसूताओं को खिलाने से उनमें दूध की कमी नहीं होती और बच्चे को जन्म देने के बाद की कमजोरियों, जैसे थकान आदि का भी निवारण होता है ।*
*🔸(3) रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने हेतु : सहजन की फली और पत्तों का सूप बनाकर या इन्हें दाल के साथ सेवन करने से रोगप्रतिरोधक क्षमता तेजी से बढ़ती है तथा ऋतु-परिवर्तनजन्य बीमारियों से सुरक्षा होती है ।*
*🔸(4) पेट की समस्याओं में : पेट की समस्याओं के लिए सहजन कारगर औषधि है । इसके कोमल पत्तों का साग खाने से शौच साफ होता है । इसकी फलियों की सब्जी खाने से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं ।
*🔸(5) पुरुषत्व की वृद्धि हेतु : इसके 8-10 फूलों को 250 मि.ली. दूध में उबालकर सुबह-शाम पीने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है और पुरुषत्व की वृद्धि होती है ।*
*🔸(6) गायों को नियमित आहार के साथ सहजन के सूखे पत्ते, फली आदि खिलाने से उनके दुग्ध-उत्पादन में काफी बढ़ोतरी होती है ।*
*🔸ध्यान दें : सब्जी के लिए ताजी एवं गूदेवाली फली का प्रयोग करें । सहजन दाहकारक एवं पित्त-प्रकोपक है । पित्त-प्रकोप हो तो इसके सेवनकाल में दूध, गुलकंद आदि पित्तशामक पदार्थों का उपयोग करें । गुर्दे (kidneys) की खराबी में इसे न लें ।*
*🔹 शनिवार के दिन विशेष प्रयोग 🔹*
*🔸 शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का दोनों हाथों से स्पर्श करते हुए ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का 108 बार जप करने से दुःख, कठिनाई एवं ग्रहदोषों का प्रभाव शांत हो जाता है । (ब्रह्म पुराण)*
*🔸 हर शनिवार को पीपल की जड़ में जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है । (पद्म पुराण)*
*🔸आर्थिक कष्ट निवारण हेतु🔸*
*एक लोटे में जल, दूध, गुड़ और काले तिल मिलाकर हर शनिवार को पीपल के मूल में चढ़ाने तथा ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र जपते हुए पीपल की ७ बार परिक्रमा करने से आर्थिक कष्ट दूर होता है ।*
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